मंगला गौरी व्रत

हिंदू धर्म में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। इन व्रतों और त्योहारों के माध्यम से व्यक्ति अपनी आस्था को प्रकट करता है और ईश्वर की कृपा प्राप्त करता है। मंगलागौरी व्रत उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे मुख्यतः सुहागिन महिलाएं करती हैं। इस व्रत को करने से जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है।

मंगलागौरी व्रत का महत्व

मंगलागौरी व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से पति की लंबी आयु, संतान की रक्षा और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। मंगलागौरी व्रत मुख्यतः सावन के महीने के मंगलवार को किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं करती हैं, लेकिन कुंवारी लड़कियां भी इसे कर सकती हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति की कुंडली में मौजूद दोष दूर होते हैं और जीवन में सभी प्रकार की बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।

मंगलागौरी व्रत की विधि

मंगलागौरी व्रत की विधि अत्यंत सरल और प्रभावशाली होती है। इसे सही तरीके से करने पर इसका पूर्ण फल प्राप्त होता है। इस व्रत की विधि निम्नलिखित है:

व्रत की तैयारी

  1. पूजन सामग्री: व्रत के दिन पूजा करने के लिए आपको निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होगी:
  2. लकड़ी की चौकी
  3. सफेद और लाल कपड़ा
  4. गेहूं और चावल
  5. नारियल
  6. धूप, कपूर और दीपक
  7. पवित्र मिट्टी
  8. माता गौरी की मूर्ति या फोटो
  9. पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर और शहद)
  10. वस्त्र, मौली, रोली, अक्षत, हल्दी, सिंदूर, काजल
  11. 16 प्रकार की माला, पत्ते और लड्डू
  12. पांच प्रकार की मिठाई और सात प्रकार के अनाज
  13. पान, सुपारी, लौंग, इलायची
  14. सुहाग की पिटारी जिसमें 16 वस्त्र हों जैसे साड़ी, सिंदूर, बिंदी, नथ, काजल, नेलपॉलिश, लिपस्टिक, मंगलसूत्र

व्रत की विधि

  • स्नान और वस्त्र धारण: व्रत के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा करने से पहले मन को शुद्ध और शांत करें।
  • पूजा स्थल की तैयारी: पूजा के लिए एक साफ स्थान चुनें और वहां लकड़ी की चौकी पर सफेद और लाल कपड़ा बिछाएं। चौकी पर गेहूं और चावल की ढेरियां बनाएं।
  • मूर्ति की स्थापना: चौकी पर माता गौरी की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। अगर मिट्टी की मूर्ति बना रहे हैं, तो उसे अच्छी तरह से तैयार कर लें।
  • पंचामृत स्नान: माता गौरी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं और वस्त्र धारण कराएं।
  • पूजा विधि:
  • सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करें और उन्हें रोली, अक्षत, चंदन, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • इसके बाद माता गौरी की विधिवत पूजा करें। उन्हें रोली, अक्षत, सिंदूर, मेहंदी, काजल और 16 प्रकार की वस्त्र अर्पित करें।
  • पंचामृत और विभिन्न प्रकार के मिठाई और फल अर्पित करें।
  • दीपक जलाएं और माता की आरती करें।
  • व्रत कथा: व्रत कथा का पाठ या श्रवण अवश्य करें। इससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

व्रत के बाद

  • भोजन: व्रत के दिन भोजन में सादा और सात्विक भोजन करें। व्रत के बाद फलाहार या दूध का सेवन कर सकते हैं। व्रत के समय नमक का सेवन न करें।
  • व्रत का उद्यापन: व्रत का उद्यापन सावन महीने के अंतिम मंगलवार को किया जाता है। उस दिन विधिपूर्वक पूजा कर व्रत का संकल्प समाप्त करें।

मंगलागौरी व्रत एक महत्वपूर्ण और फलदायी व्रत है जिसे सुहागिन महिलाएं मुख्यतः पति की लंबी आयु और परिवार की समृद्धि के लिए करती हैं। इस व्रत को विधिपूर्वक और श्रद्धा से करने पर जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आपको मंगलागौरी व्रत की पूरी जानकारी प्राप्त हुई होगी। आप इस व्रत को पूरी विधि और नियमों के साथ करें और माता गौरी की कृपा प्राप्त करें।

Mangala Gauri Vrat Katha

मंगलागौरी व्रत एक महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक अनुष्ठान है जिसे विशेषकर महिलाओं द्वारा उनके पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इस व्रत की कथा में भगवान गणेश, माता पार्वती, और भगवान शिव की प्रमुख भूमिका होती है। व्रत की कथा सुनने और उसका पालन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

गणेश जी की कहानी से व्रत की शुरुआत

मंगलागौरी व्रत की शुरुआत गणेश जी की कहानी से होती है। पुराने समय में एक गांव में एक दादी और उनकी पोती रहा करती थी। दादी ने गणेश भगवान की कहानी सुनाने का नियम लिया हुआ था। वह एक कलश में जल भरकर और फूल रखकर कहानी सुनाया करती थी। गणेश भगवान के नाम का अज्ञ दिया करती थी। ऐसा करते-करते कई साल बीत गए और दादी की पोती विवाह योग्य हो गई।

जब पोती ससुराल जाने लगी, दादी ने उसे सिर्फ एक कलश में जल भरकर दिया और कहा कि गणेश जी भगवान की कहानी का नियम कभी मत छोड़ना। पोती ससुराल के रास्ते में सोच रही थी कि ससुराल वाले पूछेंगे कि क्या लेकर आई है तो वह क्या बतायेगी। तभी गणेश भगवान ने उसकी परेशानी देखकर उसका संकट मिटाने का सोचा। रास्ते में पोती ने गणेश भगवान की कहानी कहकर अरज दिया। जैसे ही उसने अरज दिया, वहां पर हीरे मोतियों का कुंड भर गया।

ससुराल पहुंचने पर पोती ने अपने साथ लाए हीरे-मोती दिखाए। ससुराल वाले यह देखकर बहुत खुश हुए। जब उसकी सास ने भोजन बनाने के लिए चावल और दाल पड़ोस से उधार लाने को कहा, तो पोती ने कलश के पानी से ही भोजन बनाने की सलाह दी। इससे पूरा रसोई अनाज और तरह-तरह के पकवानों से भर गया। यह देखकर सास और भी प्रसन्न हुई और सबको गणेश भगवान की कहानी सुनाने लगी।

पड़ोसन ने भी गणेश भगवान की कहानी सुनने का नियम अपनाया और उसके घर में भी अनधन के भंडार भर गए। गणेश जी महाराज की कृपा से उसकी समृद्धि बढ़ गई।

साहूकार और उसकी पत्नी की कथा

एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। साहूकार धनवान था, लेकिन उन्हें संतान नहीं थी। एक दिन एक साधु ने साहूकार की पत्नी को सावन में मंगलवार को किए जाने वाले मंगला गौरी व्रत को करने की सलाह दी। साहूकार की पत्नी ने यह व्रत करना शुरू किया और भगवान शिव और माता पार्वती जी की कृपा से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।

साहूकार के पुत्र को श्राप मिला था कि वह 21 साल तक ही जीवित रहेगा। एक दिन साहूकार ने अपने पुत्र के साथ तालाब के किनारे कमला और मंगला नाम की दो कन्याओं की बातचीत सुनी। कमला मंगला गोरी व्रत के महत्व को बता रही थी। साहूकार ने मंगला को अपने पुत्र के लिए योग्य वधु माना और उनका विवाह करवा दिया।

विवाह के पश्चात कमला विधिपूर्वक मंगला गोरी का व्रत करती रही। माता पार्वती जी की कृपा से उसके पति के प्राण बच गए। इस प्रकार मंगला गोरी व्रत के पुण्य फल से साहूकार का पुत्र श्राप मुक्त हो गया।

शिव और सती की कथा

राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री सती की कथा भी मंगलागौरी व्रत में सुनी जाती है। सती ने भगवान शिव से विवाह किया और कैलाश पर जाकर रहने लगी। राजा दक्ष ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया लेकिन शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। सती अपने पिता के यज्ञ में बिना बुलाए गई और वहां उसका अपमान हुआ। सती ने अपने पति शिव के सम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग दिए।

मंगलागौरी व्रत की कथा सुनने और पालन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यह व्रत महिलाओं के लिए विशेषकर महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनके पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इस कथा को श्रद्धा और भक्ति भाव से सुनना और पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मंगलागौरी व्रत की कथा हमें भक्ति, समर्पण और श्रद्धा का महत्व सिखाती है। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि भगवान की कृपा से हमारे जीवन में कितने भी बड़े संकट आ जाएं, उनका समाधान संभव है। मंगलागौरी व्रत की कथा को सुनने और पालन करने से हमारे जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है। इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति से करना चाहिए। इस कथा को सुनकर और इसे दूसरों के साथ साझा करके हम अपने जीवन को धन्य बना सकते हैं।

जय मंगला गौरी माता!

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पीरियड्स में व्रत कैसे करें?

अगर व्रत के दिन पीरियड्स आ जाएं तो पूजा किसी और सदस्य से करवा लें, लेकिन व्रत जारी रखें। पीरियड्स में खुद पूजा न करें।

सोलह श्रंगार का सामान कब चढ़ाएं?

सोलह श्रंगार का सामान हर मंगलवार को चढ़ा सकते हैं, लेकिन यदि हर बार संभव न हो तो उद्यापन वाले दिन अवश्य चढ़ाएं।





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