रघुपति राघव राजाराम भजन भगवान राम और माता सीता की महिमा का गायन है। इसे गाकर हम भगवान के प्रति अपनी भक्ति प्रकट करते हैं और अपने जीवन में उनके आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा लेते हैं। इसे श्री लक्ष्माचर्या द्वारा रचित माना जाता है।
यह भजन हमें भगवान राम के आदर्श चरित्र की ओर प्रेरित करता है। इसमें दया, करुणा, और सत्य के मूल्यों को अपनाने का संदेश है। “रघुपति राघव राजाराम” को महात्मा गांधी ने अपने भजन कार्यक्रम में शामिल किया था, जिससे यह भजन स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
सुंदर विग्रह मेघश्याम
गंगा तुलसी शालिग्राम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
भद्रगिरीश्वर सीताराम
भगत-जनप्रिय सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
जानकीरमणा सीताराम
जयजय राघव सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
– श्री लक्ष्माचर्या
“रघुपति राघव राजाराम” केवल एक भजन नहीं, बल्कि भगवान राम के प्रति प्रेम, श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। इसे गाने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक शांति मिलती है। यह भजन हमें भगवान राम और माता सीता के आदर्शों का पालन करने और धर्म के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है।
भजन का अर्थ और व्याख्या
रघुपति राघव राजाराम भजन भगवान श्रीराम की स्तुति में गाया जाता है। इसे सत्य, धर्म, और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह भजन हमें राम के आदर्श जीवन से प्रेरणा लेने और अपने जीवन में धर्म, दया और सेवा के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है। आइए इसके श्लोकों का अर्थ और भावार्थ समझते हैं:
रघुपति राघव राजाराम,पतित पावन सीताराम।
अर्थ: श्रीराम, जो रघुकुल के स्वामी और राजा हैं, पतितों को पवित्र करने वाले और दयालु सीताराम को नमन।
भावार्थ: श्रीराम केवल एक राजा नहीं थे; वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जिन्होंने हमेशा धर्म का पालन किया और अपने भक्तों को पवित्र किया।
सुंदर विग्रह मेघश्याम,गंगा तुलसी शालग्राम।
अर्थ: श्रीराम का सुंदर स्वरूप मेघ के समान श्यामवर्ण है, और वे गंगा, तुलसी तथा शालग्राम जैसे पवित्र प्रतीकों से सुशोभित हैं।
भावार्थ: श्रीराम का स्वरूप और उनके गुण भक्तों के हृदय को आनंदित करते हैं। गंगा, तुलसी और शालग्राम उनके दिव्य व्यक्तित्व को प्रकट करते हैं।
भद्रगिरीश्वर सीताराम,भगत-जनप्रिय सीताराम।
अर्थ: सीता और राम भद्रगिरि (पवित्र पर्वत) के देवता हैं और भक्तों के प्रियतम हैं।
भावार्थ: भगवान राम और माता सीता अपने भक्तों के प्रति सदा दयालु और करुणामय हैं।
जानकी रमणा सीताराम,जयजय राघव सीताराम।
अर्थ: माता जानकी (सीता) के प्रियतम श्रीराम, रघुकुल के नायक की जय हो।
भावार्थ: भजन के इस अंश में राम और सीता की अखंड प्रेममयी जोड़ी की स्तुति की गई है, जो आदर्श दांपत्य जीवन का प्रतीक है।
भजन और स्वतंत्रता आंदोलन
यह भजन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अत्यधिक लोकप्रिय हुआ, जब महात्मा गांधी ने इसे अपनी प्रार्थना सभाओं का हिस्सा बनाया। गांधी जी इस भजन के मूल स्वरूप में 1-2 पंक्तियों को बदलकर अपने विचारों के अनुरूप गाते थे। इसे वह शांति, सद्भावना और भाईचारे के संदेश को प्रचारित करने के लिए उपयोग करते थे। गांधी जी ने इस भजन के माध्यम से न केवल भारतवासियों को एकजुट किया बल्कि अहिंसा और सत्याग्रह के अपने सिद्धांतों को भी मजबूती से स्थापित किया।
हाल के वर्षों में, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के दौरान यह भजन विशेष रूप से चर्चा में रहा। प्राण-प्रतिष्ठा के समय यह भजन राम भक्तों के बीच एक बार फिर गुंजायमान हुआ।
रघुपति राघव राजाराम भजन भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। इसे गाने से मन में शांति और भगवान के प्रति प्रेम की भावना जागृत होती है। महात्मा गांधी ने इस भजन को स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपनाया, जिससे यह भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश का हिस्सा बन गया।
“रघुपति राघव राजाराम” केवल एक भजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह भजन शांति और एकता का प्रतीक है, जिसने अतीत में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और वर्तमान में राम मंदिर निर्माण के समय लाखों लोगों को प्रेरित किया है। चाहे यह भजन श्री लक्ष्माचर्या के मूल रूप में हो या गांधी जी के संशोधित रूप में, इसका उद्देश्य लोगों के बीच भक्ति, प्रेम, और सामूहिक चेतना को बढ़ावा देना है।
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