क्षमा प्रार्थना मंत्र

छमा प्रार्थना मंत्र या देवी क्षमा प्रार्थना एक हिन्दू धार्मिक प्रार्थना है जो आमतौर पर नित्य पूजा के बाद की जाती है। इस प्रार्थना के माध्यम से भक्त अपनी गलतियों के लिए देवी से क्षमा मांगते हैं। इस प्रार्थना का उद्देश्य है आत्मा की शुद्धि और अहंकार का निवारण है ।


यह प्रार्थना अपने आप में एक आत्मीय अनुभव और विनम्रता का प्रतीक है। इसके प्रत्येक श्लोक में एक विशेष संदेश और अर्थ निहित है। इन श्लोकों का विस्तार से व्याख्या इस प्रकार हैं:

अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया

दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि || || 

व्याख्या: इस श्लोक में भक्त यह स्वीकार करता है कि वह प्रतिदिन, दिन-रात अनेकों अपराध और गलतियाँ करता है। ‘अपराधसहस्राणि’ का अर्थ है हजारों गलतियाँ या अपराध। भक्त यहाँ परमेश्वरी, यानी देवी, से विनती करता है कि उसे उसके दास के रूप में मानते हुए उसकी गलतियों को क्षमा कर दें। इस श्लोक में भक्त की विनम्रता और देवी के प्रति समर्पण की भावना प्रकट होती है।

आवाहनं जानामि जानामि विसर्जनम्

पूजां चैव जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि || ||

व्याख्या: इस श्लोक में भक्त अपनी अज्ञानता को स्वीकार करता है। उसे न तो देवी का आवाहन (आमंत्रण) करना आता है और न ही विसर्जन (पूजा का समापन)। यहां तक कि वह पूजा की विधि भी नहीं जानता। इस प्रकार, वह परमेश्वरी से अपनी अज्ञानता के लिए क्षमा याचना करता है। इस श्लोक में भक्त की सादगी और सच्चाई झलकती है, जिसमें वह अपनी सीमाओं को पहचानता है और देवी से गलतियों के लिए क्षमा प्रार्थना करता है।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि |  

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु में || || 

व्याख्या: इस श्लोक में भक्त देवी से अपनी साधारण पूजा को पूर्ण और संपूर्ण मानने की प्रार्थना करता है। यहां भक्त यह स्वीकार करता है कि उसकी पूजा में मंत्रों का उचित उच्चारण नहीं हो सकता है, क्रिया या रीतियाँ अधूरी हो सकती हैं, और कभी-कभी भक्ति भी कमजोर पड़ सकती है। फिर भी, वह देवी से आग्रह करता है कि वे उसकी साधना को पूर्ण मानें और उसे आशीर्वाद दें।

अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत्

यां गतिं समवाप्नोति तां ब्रह्मादयः सुराः || ||

व्याख्या: इस श्लोक में बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति सैकड़ों अपराध करने के बाद भी ‘जगदम्बा’ (देवी का एक नाम) का स्मरण करता है, तो उसे ऐसा मोक्ष या उद्धार प्राप्त होता है, जिसे ब्रह्मा और अन्य देवता भी नहीं प्राप्त कर सकते। यह श्लोक देवी के प्रति शरणागति की महत्वपूर्णता को बताता है और यह दिखाता है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना की शक्ति कितनी अद्भुत है।

सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके

इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु || || 

व्याख्या: इस श्लोक में भक्त स्वीकार करता है कि वह अपराधी है और देवी जगदम्बिका की शरण में आया है। भक्त यहाँ देवी से अनुकंपा की याचना करता है और अपने आपको पूरी तरह से देवी की इच्छा पर छोड़ देता है, जो भी देवी उचित समझें, वही करने की प्रार्थना करता है। यह श्लोक भक्त के आत्मसमर्पण और देवी के प्रति पूर्ण विश्वास को दर्शाता है।

अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम्

तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि || ||

व्याख्या: इस श्लोक में भक्त देवी से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगता है, जो अज्ञान, विस्मृति (भूलने की स्थिति), या भ्रान्ति (गलतफहमी) के कारण हुई हैं। यहाँ भक्त यह मानता है कि उसके द्वारा की गई हर कमी या अधिकता—चाहे वह ज्ञान की कमी के कारण हो या भूलवश—उसे देवी द्वारा क्षमा की जाए। इस प्रार्थना के माध्यम से भक्त देवी की कृपा और प्रसाद की आशा करता है।

कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानंदविग्रहे

गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि || || 

व्याख्या: इस श्लोक में भक्त देवी को ‘कामेश्वरि’ और ‘जगन्मातः’ के रूप में संबोधित करता है, जो जगत की माता हैं और इच्छाओं की अधिष्ठात्री हैं। ‘सच्चिदानंदविग्रहे’ का अर्थ है ‘सत्-चित्-आनंद (अस्तित्व, चेतना और आनंद) का स्वरूप’। भक्त देवी से अपनी पूजा को स्वीकार करने और उस पर प्रसन्न होने की याचना करता है। यह श्लोक देवी की दिव्यता और उनके सर्वव्यापक स्वभाव की स्तुति करता है।

गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्

सिद्धिर्भवतु में देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि || || 

व्याख्या: यहाँ भक्त देवी को ‘गुह्यातिगुह्यगोप्त्री’, यानी सबसे गुप्त और रहस्यमयी चीजों की रक्षक के रूप में संबोधित करता है। भक्त ने जो जप (मंत्रों का उच्चारण) किया है, उसे देवी से स्वीकार करने और उसके माध्यम से सिद्धि (आध्यात्मिक उपलब्धि) प्राप्त करने की याचना करता है। इस श्लोक के माध्यम से भक्त देवी की कृपा का आशीर्वाद पाने की इच्छा व्यक्त करता है।

इन मंत्रों के उच्चारण में भक्त अपने अपराधों और गलतियों की स्वीकृति के साथ-साथ देवी से क्षमा की प्रार्थना करते हैं। इस प्रकार के मंत्र न केवल दिव्य कृपा के लिए याचना करते हैं, बल्कि भक्त के हृदय और मन को शुद्ध करने में मदद करते हैं। इससे भक्त को आत्मिक शांति और जीवन में सद्भाव की अनुभूति होती है।

इन मंत्रों का उच्चारण निम्नलिखित तरीके से लाभदायक हो सकता है:

  • आत्मपरिष्कारन: यह भक्त को अपने आचरण और कर्मों की समीक्षा करने में मदद करता है, जिससे वे अपनी गलतियों को पहचान सकें और उन्हें सुधार सकें।
  • दिव्य शक्ति से संपर्क: मंत्रों का उच्चारण भक्त को देवी की दिव्य ऊर्जा से जोड़ता है, जो उन्हें नई ऊर्जा, प्रेरणा और दिशा प्रदान करती है।
  • क्षमा प्राप्ति: देवी से क्षमा मांगने से भक्त को मानसिक शांति मिलती है और आत्मिक विकास के लिए एक स्वच्छ और निर्मल आधार मिलता है।
  • सद्भाव और शांति: मंत्रों का सकारात्मक प्रभाव भक्त के जीवन में शांति और सद्भाव लाने में सहायक होता है।

ये प्रार्थनाएँ और मंत्र न केवल धार्मिक संस्कारों का हिस्सा हैं, बल्कि वे भक्तों को आत्म-साक्षात्कार और आत्म-विकास की ओर भी मार्गदर्शन करते हैं।

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देवी क्षमा प्रार्थना मंत्र के बारे में आप क्या समझाते हैं?

देवी क्षमा प्रार्थना मंत्र एक हिन्दू धार्मिक प्रार्थना है जिसे आमतौर पर नित्य पूजा के बाद पढ़ा जाता है। इस प्रार्थना के माध्यम से भक्त देवी से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं, जिसका उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और अहंकार का निवारण होता है।

देवी क्षमा प्रार्थना मंत्र का उच्चारण करने का उद्देश्य क्या है?

देवी क्षमा प्रार्थना मंत्र का उच्चारण अनेकों गलतियों के लिए क्षमा मांगने के लिए किया जाता है, इसका उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करना और ईगो को कम करना है, जिससे भक्त के जीवन में शांति और सद्भावना आ सके।

देवी क्षमा प्रार्थना मंत्र में भक्त ने किस प्रकार की क्षमा की प्रार्थना की है?

भक्त ने अज्ञान, भूल या गलतफहमी के कारण हुई गलतियों के लिए देवी से क्षमा की प्रार्थना की है, और देवी से उसकी गलतियों को क्षमा करने का अनुरोध किया है।





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