कनकधारा स्तोत्र- Kanakdhara Strotam

कनकधारा स्तोत्र देवी लक्ष्मी को आकर्षित करने वाला मंत्र है। कहते है इसका पाठ करने से व्यक्ति को धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती है। देवी ल्क्ष्मी कनकधारा स्तोत्र का नियमित और हर शुक्रवार को पाठ करने वाले को धनवान और ऐश्वर्यवान बना देती हैं। दरअसल यह देवी लक्ष्मी को आकर्षित करने वाला स्तोत्र है जिसकी रचना एक विशेष परिस्थिति में आदिगुरु शकराचार्य ने की थी।

कनकधारा स्तोत्र की कथा

एक बार शंकराचार्य भिक्षा मांगने के लिए घूमते घूमते हुए एक ब्राह्मण के घर पहुंचे। इतने तेजस्वी अतिथि को देखकर संकोच के मारे उस ब्राह्मण की पत्नी लज्जित हो गई। उसके पास भिक्षा देने के लिए कुछ था नहीं। उसे अपनी स्थिति पर रोना आ गया। नम आंखों के साथ उसने घर में रखें कुछ आंवला लिए और सूखे आंवले तपस्वी को भिक्षा में दे दिए। शंकराचार्यजी को उनकी यह दशा देखकर उन पर तरस आ गया। उन्होंने तुरंत ही ऐश्वर्य दायक, दशविध लक्ष्मी देने वाली, अधिष्ठात्री, करुणामयी, वात्सल्यमयी, नारायण पत्नी, महालक्ष्मी को संबोधित करते हुए एक स्तोत्र की रचना की। इस स्तोत्र के पाठ करने से वहां सोने की वर्षा होने लगी। इससे इस स्तोत्र का नाम कनकधारा स्तोत्र हुआ। कनक का मतलब सोना होता है। वर्षा के समान सोना बरसने ही यह स्तोत्र श्री कनकधारा स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

श्री कनकधारा स्तोत्रम्

कनकधारा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

श्लोक :

अर्थ:
जिनके अंगों पर पुलकित रोमावली शोभायमान है, जो भृगु की पुत्री लक्ष्मीजी के रूप में तमाल के वृक्ष के मुकुलों की भांति सुंदर दिखाई देती हैं, और जिनके अपांग दृष्टि की लीलाओं से सम्पूर्ण विभूतियों को प्राप्त करने वाली हैं, वे मेरी मंगलमयी देवता लक्ष्मीजी मेरे लिए सदा शुभदायक हों।

श्लोक :

अर्थ:
जिनकी अद्भुत सुंदरता मुरारि भगवान (श्री विष्णु) के मुख को बार-बार आकर्षित करती है, जिनकी प्रेम से भरी और लज्जा से झुकी हुई आँखें मधुर मुस्कान के साथ श्री विष्णु के साथ संवाद करती हैं, वे सागर से उत्पन्न लक्ष्मीजी मेरी रक्षा करें और मुझे ऐश्वर्य प्रदान करें।

श्लोक :

अर्थ:
जो विश्व के इन्द्र पद की शोभा और विभ्रम को देने में सक्षम हैं, जो मधुविद्वेषी (भगवान विष्णु) को अत्यधिक आनन्दित करती हैं, वे इन्दीवर के समान नेत्रों वाली इन्दिरा (लक्ष्मीजी) अपनी कृपा से क्षणभर के लिए मुझ पर कृपा दृष्टि डालें।

श्लोक ४:

अर्थ:
जो बंद नेत्रों से भी भगवान मुकुंद (विष्णु) के आनन्दकन्द रूप का निरन्तर ध्यान करती हैं, जिनकी नेत्र पलकें (पक्ष्म) उठाकर कनी (साइड) दृष्टि से भगवान को निहारती हैं, वे भुजंगराज (शेषनाग) की पत्नी (लक्ष्मी) मुझे ऐश्वर्य प्रदान करें।

श्लोक ५:

अर्थ:
जो मधुजित (विष्णु) के अंदर और बाहर कौस्तुभ मणि और हारावली के समान हरिनील रंग में विभूषित होती हैं, जिनकी कटाक्षमाला भगवान विष्णु को भी कामनाएं देने वाली है, वे कमलालय (लक्ष्मी) अपनी कल्याणकारी दृष्टि से मुझे भी सुख और समृद्धि प्रदान करें।

श्लोक ६:

अर्थ:
जो काल मेघों से सज्जित कैटभारी (विष्णु) के वक्षस्थल पर चमकती हैं जैसे बिजली के समान स्फुरित होती हैं, वे समस्त जगत की माता महनीय मूर्ति लक्ष्मीजी, भृगुनन्दन (भृगु की पुत्री) मुझे शुभ और कल्याण प्रदान करें।

श्लोक ७:

अर्थ:
जो महालक्ष्मीजी अपने प्रभाव से पहले ही प्राप्त कर चुकी हैं, वे मन्मथ (कामदेव) और मधुमायिनी (मधु के शत्रु, विष्णु) के लिए शुभ फलदायक हैं। जिनकी मंद, आलस्यपूर्ण दृष्टि का मध्यभाग धीरे-धीरे गिरता है, वे मकरालय (समुद्र) की कन्या लक्ष्मीजी मुझे भी अपनी कृपादृष्टि प्रदान करें।

श्लोक ८:

अर्थ:
जो नारायण की प्रियतमा हैं, वे अपनी करुणा की पवन से धन की वर्षा करें, जैसे किसी निर्धन और दुःखी पक्षी के बच्चे पर दया करें। वे हमारे दुष्कर्मों और पापों को दूर कर हमें सदा के लिए सुख और समृद्धि प्रदान करें।

श्लोक ९:

अर्थ:
जिनकी करुणामयी दृष्टि से उच्चतम पद (स्वर्ग) भी विशिष्ट मति वाले लोग आसानी से प्राप्त कर लेते हैं, वे प्रसन्न और कमल के भीतर की दीप्ति जैसी दृष्टि से मेरी ओर देखें। कमलासन वाली लक्ष्मीजी की यह दृष्टि मुझे ऐश्वर्य, समृद्धि और कल्याण प्रदान करे।

श्लोक १०:

अर्थ:
जिन्हें वाणी की देवी सरस्वती कहा जाता है, गरुड़ध्वज (विष्णु) की प्रिया लक्ष्मी कहा जाता है, शाकम्भरी (दुर्गा) कहा जाता है, और शशिशेखर (शिव) की वल्लभा (पार्वती) कहा जाता है, जो सृष्टि, स्थिति और प्रलय की लीला में संलग्न रहती हैं, उन त्रिभुवन के एकमात्र गुरु की पत्नी (लक्ष्मी) को मेरा प्रणाम।

श्लोक ११:

अर्थ:
जो वेदों की शक्ति हैं, शुभ कर्मों के फल की प्रसूता हैं, जो रति (कामदेव की पत्नी) हैं और रमणीय गुणों के समुद्र के समान हैं, जो शक्ति रूप हैं और जिनका निवास शतपत्र (कमल) में है, वे पुरूषोत्तम (विष्णु) की वल्लभा (प्रिय) लक्ष्मीजी को मेरा प्रणाम।

श्लोक १२:

अर्थ:
जिनका मुख नालिक (कमल) के समान है, जो दुग्ध महासागर से उत्पन्न हुई हैं, जो सोम (चन्द्र) और अमृत की सोदर (बहन) हैं, उन नारायण की वल्लभा (प्रिय) लक्ष्मीजी को मेरा प्रणाम।

श्लोक १३:

अर्थ:
हे सरोरूहाक्षि (कमल के नेत्रों वाली)! आपकी वन्दना (प्रशंसा) करने से समस्त इन्द्रियों को आनंद देने वाली, सम्पत्ति प्रदान करने वाली, साम्राज्य का दान करने वाली और दुरित (पाप) को हरने वाली शक्तियाँ मुझे निरंतर प्राप्त हों। हे मातर, कृपया मेरी ही ओर सदा ध्यान रखें, अन्य किसी की ओर नहीं।

श्लोक १४:

अर्थ:
मुरारि (विष्णु) की हृदयेश्वरी (हृदय की स्वामिनी) लक्ष्मीजी के कटाक्ष की उपासना करने की विधि से सेवक को कला, अर्थ और सम्पदा की प्राप्ति होती है। मैं उन लक्ष्मीजी की उपासना करता हूँ, जो वाणी, अंग और मन को संतोष देती हैं।

श्लोक १५:

अर्थ:
हे सरसिजनिलये (कमल निवासिनी), सरोजहस्ते (कमल के हाथ वाली), धवलवस्त्र (सफेद वस्त्र) और गंधमाल्य (सुगन्धित माला) से शोभित! हे भगवति, हरिवल्लभे (हरि की प्रिय), मनोज्ञे (सुंदर)! त्रिभुवन की भूतिकर (संपत्ति देने वाली) मुझ पर प्रसन्न हों।

कनकधारा स्तोत्र के चमत्कार

कनकधारा स्तोत्र का महत्व और चमत्कारिक प्रभाव प्राचीन काल से ही मान्य है। इस स्तोत्र का नियमित और श्रद्धा पूर्वक पाठ करने से व्यक्ति को कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख चमत्कारिक प्रभाव और लाभों का वर्णन किया गया है:

·         धन-संपत्ति की प्राप्ति

  • कनकधारा स्तोत्र का पाठ विशेषकर उन लोगों के लिए बहुत ही लाभकारी है जो आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। इस स्तोत्र के प्रभाव से लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है और धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।

·         कर्ज से मुक्ति

  • इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को अपने कर्ज से मुक्ति मिलती है। कनकधारा स्तोत्र के पाठ से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है जिससे कर्ज को चुकाना आसान हो जाता है।

·         सुख-शांति और समृद्धि

  • कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। यह स्तोत्र नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता का संचार करता है जिससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

·         व्यापार और नौकरी में सफलता

  • व्यापार में वृद्धि और नौकरी में तरक्की पाने के लिए भी कनकधारा स्तोत्र का पाठ बहुत ही प्रभावी है। लक्ष्मी जी की कृपा से व्यापार में लाभ और नौकरी में प्रमोशन मिलता है।

·         दैवीय कृपा और आशीर्वाद

  • कनकधारा स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को दैवीय कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता करता है। यह स्तोत्र न केवल आर्थिक बल्कि आध्यात्मिक लाभ भी प्रदान करता है।

·         शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य

  • इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह स्तोत्र मानसिक शांति और तनावमुक्ति प्रदान करता है।

·         कष्टों और बाधाओं का निवारण

  • जीवन में आने वाली सभी प्रकार की कष्टों और बाधाओं को दूर करने के लिए भी कनकधारा स्तोत्र का पाठ अत्यंत प्रभावी माना गया है। यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन को कष्टों से मुक्त कर सुखमय बनाता है।

·         दानशीलता और पुण्य की प्राप्ति

  • कनकधारा स्तोत्र का पाठ व्यक्ति में दानशीलता की भावना का विकास करता है और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र व्यक्ति को धर्म और आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करता है।

कनकधारा स्तोत्र पाठ की विधि

  • शुक्रवार के दिन विशेष रूप से कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना गया है।
  • पाठ करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • लक्ष्मी जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाकर श्रद्धा पूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करें।
  • पाठ के बाद लक्ष्मी जी को मिष्ठान्न का भोग लगाएं और प्रसाद को सभी में वितरित करें।

कनकधारा स्तोत्र का यह चमत्कारिक प्रभाव अद्वितीय है और इसे श्रद्धा एवं विश्वास के साथ पढ़ने से निश्चित ही लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है।

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कनकधारा स्तोत्र क्या है?

कनकधारा स्तोत्र एक मंत्र है जो देवी लक्ष्मी को समर्पित है, जिसे उनकी कृपा को आकर्षित करने के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि नियमित जप, खासकर शुक्रवार को, धन, समृद्धि लाता है, और वित्तीय कठिनाइयों को दूर करता है।

कनकधारा स्तोत्र को किसने रचा और किस परिस्थिति में?

कनकधारा स्तोत्र को आदि शंकराचार्य ने एक विशेष परिस्थिति में रचा, जहां उन्हें एक गरीब ब्राह्मण महिला का दृढ़ आलम्ब दिया गया था। उनकी गरीबी के बावजूद उनकी भक्ति से प्रभावित होकर, उन्होंने इस मंत्र को बनाया ताकि देवी लक्ष्मी की कृपा को प्रेरित किया जा सके, जिससे सोने की बौछार हुई, इसलिए इसे कनकधारा (कनक का अर्थ सोना है, और धारा का अर्थ नदी है) कहा जाता है।

कनकधारा स्तोत्र का जप करने के मुख्य लाभ क्या हैं?

कनकधारा स्तोत्र का जप करने के मुख्य लाभ धन और समृद्धि का प्राप्ति ऋण मुक्ति घर में शांति और समृद्धि व्यापार और करियर में सफलता दिव्य कृपा और आशीर्वाद शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार रोड़े और कठिनाइयों का हटाना उदारता के विकास और आध्यात्मिक मेरिट का प्राप्ति है।





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