Shiv Dhyan Mantra- शिव ध्यान मंत्र

शिव ध्यान मंत्र (Shiv Dhyan Mantra) भगवान शंकर के गुण की महिमा का गुणगान करता है। यह श्लोक का पथ बागवन शिव के दिव्य एवं उनकी अनंत शक्तियों की स्तुति करना माना जाता है।  यह श्लोक की स्तुति  करने से भगवान शिव की कृपा एवं जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति एवं पापों का नाश करने की कामना किया जाता है।

इन श्लोको में मुख्य रूप से भगवान शिव की महिमा का वर्णन है जिसमें शिव के हाथ में डमरू, उस डमरू से निकलने वाली निरंतर ध्वनि, उनके गले में सांपों की माला भगवान शिव के मंदिर में बजाने वाली घटिया की ध्वनियों का विशेष वर्णन किया गया है।

इन पाठ  के अंतिम भाग में भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म का रगड़ना, कपाल रखना, अपने वाहन नंदी को रखना,अपने कानो  में कुंदन को धारण करना जैसी दिव्य रूपों  को ध्यान में रखते हुए भक्त  जीवन के सभी प्रकार के भौतिक और आध्यात्मिक लाभ करना ही प्रार्थना करता है।

यह श्लोक भगवान शिव के विभिन्न आयुधों और प्रतीकों की स्तुति में लिखा गया है, जो उनके अद्वितीय और विविध स्वरूपों को प्रकट करते हैं।

अर्थ:

  1. ऊं डिं डिं डिंकत डिम्ब डिम्ब डमरु: यह भाग भगवान शिव के डमरु की ध्वनि का वर्णन करता है, जिसे वे हमेशा अपने हाथ में धारण करते हैं। डमरु से उत्पन्न ध्वनि आदि नाद ‘ऊं’ का प्रतीक है, जिसका मानव जीवन और सृष्टि के चक्र से गहरा संबंध है।
  2. फुं फुं फुंकत सर्पजाल हृदयं: इस भाग में भगवान शिव के गले में धारण किए गए सर्पों का वर्णन है। सर्पों का यह जाल शिव की योगिक शक्ति और मृत्यु के प्रति उनकी विजय को दर्शाता है।
  3. घं घं च घण्टा रवम्: यह भाग शिव मंदिरों में बजाए जाने वाले घंटे की ध्वनि को दर्शाता है। घंटे की ध्वनि से भक्तों का मन एकाग्र होता है और यह ध्वनि भक्तों को आध्यात्मिक जागरूकता की ओर ले जाती है।

व्याख्या: इस श्लोक के माध्यम से, भगवान शिव के त्रिशूल, डमरु, सर्पों के जाल और घंटे की ध्वनि के प्रतीकात्मक महत्व को समझाया गया है। ये सभी प्रतीक शिव के विविध रूपों और उनके द्वारा निभाई गई विविध भूमिकाओं को दर्शाते हैं। डमरु से लेकर सर्पों के जाल तक, और घंटे की ध्वनि तक, हर एक तत्व शिव की आध्यात्मिकता और उनकी शक्ति के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करता है।

यह श्लोक भगवान शिव की उपासना और ध्यान की महत्वपूर्ण प्रक्रिया का वर्णन करता है। इसमें ध्वनि-आलंकार के माध्यम से भगवान शिव के विभिन्न गुणों और उनकी महिमा को प्रकट किया गया है।

अर्थ:

  1. वं वं वंकत वम्ब वम्ब वहनं: यहाँ ‘वं वं’ का उच्चारण भगवान शिव के वाहन, नंदी (वृषभ) के ध्वनियों का प्रतीक है, जो उनकी सेवा और भक्ति का सूचक है।
  2. कारुण्य पुण्यात् परम्: इसका अर्थ है कि भगवान शिव की करुणा अतुलनीय है और वह सबसे बड़ी पुण्यता है। उनकी करुणा से भक्तों को अनुकंपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  3. भं भं भंकत भम्ब भम्ब नयनं: ‘भं भं’ भगवान शिव की तीसरी आँख की ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है, जिससे ज्ञान और अंतर्दृष्टि की धारा प्रवाहित होती है।
  4. ध्यायेत् शिवं शंकरम्: इसका संदेश है कि भक्तों को भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए, जो शंकर हैं – कल्याणकारी और मंगलकारी।

व्याख्या: इस श्लोक के माध्यम से, भक्तों को भगवान शिव के विविध रूपों और उनकी गहरी, कारुणिक दृष्टि पर चिंतन करने के लिए प्रेरित किया जाता है। वृषभ (नंदी) और शिव की तीसरी आंख का उल्लेख उनकी अद्वितीय शक्तियों और आध्यात्मिक ज्ञान को प्रकट करता है। यह श्लोक भक्तों को भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को गहराई से महसूस करने और उनके दिव्य गुणों का ध्यान करते हुए उनकी आराधना करने का आह्वान करता है।

यह श्लोक भगवान शिव की महिमा और उनके दिव्य गुणों का वर्णन करता है, विशेष रूप से उनकी अनंतता और सौंदर्य को प्रकट करता है। आइए इसके अर्थ और व्याख्या पर विचार करें:

अर्थ:

  1. यावत् तोय धरा धरा धर धरा, धारा धरा भूधरा: इस लाइन का अर्थ है कि जब तक पृथ्वी पर जल है और पर्वत (भूधर) धारा का समर्थन करते हैं, तब तक भगवान शिव की महिमा अनंत रहेगी। यहाँ “धरा धरा” धरती को संबोधित करता है और “भूधरा” पर्वतों को, जो जल को धारण करते हैं। इसका संकेत है कि जैसे पृथ्वी और पर्वत निरंतर अपनी जगह पर स्थिर हैं, वैसे ही भगवान शिव की महिमा भी स्थिर और अनंत है।
  2. यावत् चारू सुचारू चारू चमरं, चामीकरं चामरं: यह भाग भगवान शिव की आभूषणों और उनके दिव्य सौंदर्य की प्रशंसा करता है। “चारू चमरं” और “चामीकरं चामरं” उनके द्वारा धारण किए जाने वाले शोभायमान और सुंदर आभूषणों को दर्शाता है। चमर एक प्रकार का विशेष चमकदार और सुंदर आभूषण है, और इसका उल्लेख यहां भगवान शिव के दिव्य सौंदर्य और उनके आभूषणों की भव्यता को प्रकट करने के लिए किया गया है।

व्याख्या: इस श्लोक के माध्यम से, भक्त भगवान शिव की अनंतता और उनकी दिव्यता का ध्यान करते हैं। यह श्लोक न केवल भगवान शिव के विशाल और अद्वितीय गुणों की प्रशंसा करता है, बल्कि उनके सौंदर्य और शक्ति को भी प्रकट करता है। इसके माध्यम से भक्तों को भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को गहराई से अनुभव करने का अवसर मिलता है।

इस श्लोक के माध्यम से यह सिखाया गया है कि रामायण का पठन और गायन न केवल हमें धार्मिक और नैतिक मूल्यों की शिक्षा देता है, बल्कि यह हमें जीवन में सच्चे आनंद और संतोष की ओर भी मार्गदर्शन करता है।

अर्थ:

  • यहाँ “रावण राम राम रमणं” का उल्लेख इस बात का प्रतीक है कि रावण, जो कि राम का प्रतिद्वंद्वी था, भी राम के नाम की महिमा और उसके रमणीय स्वरूप को स्वीकार करता है।
  • “रामायणे श्रुयताम्” का अर्थ है कि रामायण का पठन और श्रवण करना चाहिए। रामायण न केवल एक महाकाव्य है, बल्कि यह धर्म, नीति, और आदर्श जीवन शैली का भी मार्गदर्शन करता है।
  • “भोग विभोग भोगमतुलम्” से तात्पर्य है कि जो लोग नियमित रूप से रामायण का पठन और गायन करते हैं, वे भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के अनुभवों में अतुलनीय आनंद प्राप्त करते हैं। यह आनंद भौतिक भोगों से परे है और आत्मा की गहराई तक पहुँचता है।
  • यो गायते नित्यस” से तात्पर्य है कि यह आनंद केवल भौतिक सुखों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक संतुष्टि और मुक्ति की ओर भी मार्गदर्शन करता है।

व्याख्या: इस श्लोक में रामायण के पठन और गायन के महत्व को बताया गया है। रावण, जो कि एक महान शिव भक्त और ज्ञानी थे, उनके द्वारा भी राम का नाम लिया जाता है, जिससे राम के नाम की महिमा का पता चलता है। यह श्लोक बताता है कि रामायण का पठन और गायन न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह व्यक्ति को आध्यात्मिक आनंद और संतोष भी प्रदान करता है। नित्यस: गायन से आत्मा को शुद्धि और मन को शांति मिलती है, जो जीवन में अतुलनीय भोग (सुख-साधन) के समान है।

यह श्लोक ध्वन्यात्मक शब्दों का उपयोग करते हुए एक विशेष दृश्य या क्रिया का वर्णन करता प्रतीत होता है। इसमें ध्वनि के माध्यम से किसी विशेष घटना या प्रक्रिया की गतिशीलता और तीव्रता को दर्शाया गया है। आइए इसके अर्थ और संभावित व्याख्या पर विचार करें:

अर्थ:

  • “द्राट द्राट द्रुट द्रुट ममलं, टंट टंट टंटटम्”: यह भाग शायद किसी तीव्र और रफ्तार से चलने वाली गतिविधि या मशीनरी की ध्वनि का वर्णन करता है। “द्राट द्राट” और “द्रुट द्रुट” जैसे शब्द तीव्रता और गति का आभास देते हैं, जबकि “टंट टंट” निरंतर और लगातार ध्वनि का संकेत देता है।
  • “तैलं तैलं तु तैलं खुखु खुखु खुखुमं, खंख खंख सखंखम्”: इस भाग में “तैलं” शब्द का पुनरावृत्ति से शायद एक चिकनाई या तेल की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। “खुखु खुखु” ध्वनि शायद तेल के गिरने या चिकनाई के प्रवाह को दर्शाती है, और “खंख खंख” ध्वनि किसी अन्य क्रिया या प्रक्रिया का संकेत दे सकती है।

व्याख्या: इस श्लोक के माध्यम से, कवि ने ध्वनियों का उपयोग करके एक विशिष्ट घटना या प्रक्रिया की गतिशीलता और संवेदनशीलता को प्रकट किया है। यह दर्शाता है कि कैसे काव्य और साहित्य में ध्वनि के माध्यम से भी गतिविधियों और प्रक्रियाओं की जीवंतता को व्यक्त किया जा सकता है। यह श्लोक पाठकों को उस गतिविधि या प्रक्रिया की तीव्रता और रूप की कल्पना करने का आमंत्रण देता है, जिसका वर्णन किया गया है।

इस श्लोक में भगवान शिव, जिन्हें चंद्रचूड़ भी कहा जाता है, की स्तुति की गई है। यह उनकी शक्ति और उनके भक्तों के प्रति संरक्षण के विषय में है। आइए इसके अर्थ और व्याख्या पर विचार करें:

अर्थ:

  • “डंस डंस डुडंस डुहि चकितं, भूपकं भूय नालम्”: इस भाग में एक तीव्र और अचानक क्रिया का वर्णन किया गया है, जैसे किसी वीर या दैवीय शक्ति का आविर्भाव जो चकित कर देने वाला हो। “भूपकं भूय नालम्” का अर्थ हो सकता है कि यह क्रिया भूमि पर या भूतल के संदर्भ में होती है, जहां एक निश्चित सीमा या मात्रा से अधिक प्रभाव डाला जा रहा है।
  • “ध्यायस्ते विप्रगाहे सवसति सवलः पातु वः चंद्रचूडः”: यहाँ भक्तों को भगवान शिव (चंद्रचूड़) का ध्यान करने के लिए कहा गया है। विप्रगाहे अर्थात् गहराई से, सवसति और सवलः उनकी संपूर्णता और शक्ति को दर्शाते हैं। इस श्लोक के माध्यम से यह प्रार्थना की गई है कि भगवान शिव अपने भक्तों की रक्षा करें और उन्हें सभी बाधाओं से मुक्ति दिलाएं।

व्याख्या: यह श्लोक भगवान शिव की विशाल शक्तियों और उनके भक्तों के प्रति उनकी सुरक्षात्मक प्रवृत्ति को प्रकट करता है। चंद्रचूड़, जिसे शिव जी के नामों में से एक है क्योंकि उनके सिर पर चंद्रमा स्थित है, का ध्यान करने से भक्तों को आत्मिक शांति और दैवीय संरक्षण प्राप्त होता है। इस श्लोक के माध्यम से भक्तों को भगवान शिव के निरंतर ध्यान और स्मरण की महत्ता को समझाया गया है, जिससे वे सभी प्रकार के भौतिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकें।

इस श्लोक में भगवान शिव के भक्तों का विवरण और उनके धारण किए गए अनेक चिह्नों का उल्लेख किया गया है। इसका अर्थ और व्याख्या निम्नलिखित है:

अर्थ:

  • गात्रं भस्मसितं सितं च हसितं हस्ते कपालं सितम्: इस भाग में, भगवान शिव के भक्तों का विवरण दिया गया है। उनके शरीर पर भस्म से धारण किये गए चिन्ह (त्रिपुण्ड्र) हैं और उनके हाथों में हंस का हस्तक्षेप है। उनके कपाल पर भी भस्म लगा हुआ है।
  • खट्वांग च सितं सितश्च भृषभः, कर्णेसिते कुण्डले: यहाँ वर्णित है कि उनके हाथ में खट्वांग है, जो एक प्रकार की यात्रा के संकेत के रूप में है। उनके कानों में भी कुंडल धारण किया गया है।

व्याख्या: यह श्लोक भगवान शिव के भक्तों के विशेष चिह्नों और उनके धारण किए गए अलग-अलग आभूषणों का वर्णन करता है। भगवान शिव के भक्त अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं, जो उनके त्याग और संयम का प्रतीक है। उनके हाथ में खट्वांग होती है, जो उनके ध्यान और तप के प्रतीक हैं, और उनके कानों में कुण्डल होते हैं, जो उनकी भक्ति और समर्पण का प्रतीक होते हैं। इस रूप में, श्लोक भगवान शिव के भक्तों के उनके धारण किए गए अनेक चिह्नों की महिमा को स्तुति करता है।

इस श्लोक में भगवान शिव के सिर पर विराजमान गंगा और चंद्रमा के द्वारा उनकी दिव्यता और कृपा का वर्णन किया गया है। यह भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण का एक उदाहरण है। आइए इसके अर्थ और व्याख्या को समझें:

अर्थ:

  • गंगाफनेसिता जटापशुपतेश्चनद्रः सितो मुर्धनी: भगवान शिव के जटाओं में विराजमान गंगा और उनके सिर पर धारण किया गया चंद्रमा, दोनों ही उनकी दिव्यता और शक्ति को दर्शाते हैं। ‘पशुपति’ शिव का एक नाम है जिसका अर्थ है ‘पशुओं के स्वामी’ या ‘जीवों के स्वामी’। गंगा को उनके जटाओं में बसाकर उन्होंने पृथ्वी पर गंगा के अवतरण को संभव बनाया, और चंद्रमा को धारण करके उन्होंने संपूर्ण सृष्टि के संतुलन में अपनी भूमिका को प्रकट किया।
  • सोऽयं सर्वसितो ददातु विभवं, पापक्षयं सर्वदा: यह भाग प्रार्थना करता है कि भगवान शिव अपने भक्तों को समृद्धि प्रदान करें और उनके सभी पापों का नाश करें। ‘सर्वसितो’ यहाँ उनके द्वारा धारण किए गए सफेद (शुभ) चिह्नों का उल्लेख है, जो शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक हैं।

व्याख्या: यह श्लोक भगवान शिव की महिमा और उनके द्वारा प्रदान किए गए आशीर्वाद को स्तुति करता है। गंगा और चंद्रमा, दोनों ही उनके दिव्य गुणों और उनके ब्रह्मांडीय कर्तव्यों के प्रतीक हैं। भक्तों की प्रार्थना है कि भगवान शिव उन्हें समृद्धि प्रदान करें और उनके जीवन से सभी पापों को दूर करें, जिससे वे एक शुद्ध और पवित्र जीवन जी सकें। यह श्लोक भगवान शिव के प्रति अगाध भक्ति और समर्पण की भावना को व्यक्त करता है।

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शिवजी से संबंधित आरंभ में उल्लिखित ध्वनियों का क्या महत्व है?

“ऊं डिं डिं डिंकत डिम्ब डिम्ब डमरु” जैसी ध्वनियाँ ब्रह्मांड से जुड़ी शिवजी की ध्वनियों को दर्शाती हैं, जो उनके सृजन और ब्रह्मांड की लय के साथ उनके संबंध को प्रतिबिंबित करती हैं। डमरू की ध्वनि सृजन की आदिम ध्वनि, “ऊं” (Om) का प्रतीक है।

“वं वं वंकत वम्ब वम्ब वहनं” का शिवजी के संदर्भ में क्या अर्थ है?

यह वाक्य शिवजी के वाहन, नंदी (वृषभ) से संबंधित ध्वनियों का प्रतीक है, जो सेवा और भक्ति का सूचक है। यह नंदी की अटूट भक्ति के महत्व को दर्शाता है।

“भं भं भंकत भम्ब भम्ब नयनं” का क्या अर्थ है?

यह पंक्ति भगवान शिव की तीसरी आंख से निकलने वाली ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है, जो ज्ञान और आंतरिक दृष्टि को दर्शाता है। यह भक्तों को शिव का ध्यान करने के लिए प्रेरित करता है ताकि वे अंतर्दृष्टि और ज्ञान प्राप्त कर सकें।

“द्राट द्राट द्रुट द्रुट ममलं” जैसी गतिशील ध्वनियाँ पाठ में क्या दर्शाती हैं?

ये ध्वन्यात्मक शब्द किसी विशिष्ट, संभवतः दैवीय गतिविधि या प्रक्रिया की तीव्रता और गति को प्रकट करते हैं, पाठकों को क्रिया की कल्पना करने का आमंत्रण देते हैं।

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