भगवान श्री राम: सनातन धर्म में ईश्वर के विविध स्वरूपों का अवलोकन
नमस्कार मित्रों, सनातन धर्म कितना पुराना है, त्रेता युग में भगवान श्री राम का जन्म हुआ था, जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। लेकिन भगवान विष्णु के चौथे अवतार का नाम भी राम ही था। किंतु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु (फरसा) शस्त्र प्रदान किया, तो उनका नाम परशुराम हो गया। भगवान श्री राम के बारे में अक्सर प्रश्न उठाया जाता है कि दशरथ पुत्र भगवान राम एक मनुष्य थे तो एक मनुष्य आखिर इस सृष्टि का कर्ता भगवान कैसे हो सकता है? और यदि भगवान राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था तो इससे पहले के युग, सतयुग में भी ऋषि राम का नाम कैसे जपते थे? क्या सतयुग में भी कोई राम नाम के भगवान थे? भगवान श्री राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था तो फिर सृष्टि के आरंभ से ही श्री राम को सनातनी हिंदुओं का भगवान क्यों माना जाता है? क्या कोई मनुष्य सर्वव्यापी भगवान या ईश्वर हो सकता है? दशरथ पुत्र राम, परशुराम, बलराम, आत्मा रूप श्रीराम, परम तत्व रूपी राम आखिर कितने प्रकार के हैं? मीरा बहुत बड़ी कृष्ण भक्ति थी, तो मीरा ने भी क्यों कहा कि “पायोजी मैंने राम रतन धन पायो“? उसे तो कहना चाहिए था कि “पायोजी मैंने कृष्ण रतन धन पायो”? आखिर मीरा ने भी राम का ही नाम क्यों लिया था? कौन है भगवान राम, जिन्हें अधिकतर लोग नहीं जानते हैं? आइए जानते हैं आज कि भगवान श्री राम का वास्तविक स्वरूप क्या है। ”राम ही सत्य है और जो मेरे राम करें वह सही” जैसे उदार एक हिंदू के मुख से आपको अक्सर सुनने को मिलेंगे।
राम एक ऐसा पवित्र नाम और शब्द है जो हर एक सनातनी हिंदू की आत्मा से जुड़ा हुआ है और जीवन पर आज अज्ञानता का आवरण पड़ गया है। अज्ञानता की मिट्टी चढ़ गई है और जिसका लाभ कई विधर्मी और विरोधी लोग हिंदुओं की आस्था को विचलित करने के लिए उपयोग करते हैं। “जो है ही नहीं भगवान, इंसान है तो उसके लिए मंदिर क्या बना रहे हो भाई? मंदिर तो देवी देवताओं की बनता है, इंसानों के नहीं। तो मेरा मंदिर बना भैया, क्योंकि हम राम को नहीं मानते हैं।” जब कोई व्यक्ति कहता है कि “मैं राम को नहीं मानता“ और “राम भगवान नहीं“, तो इसका अर्थ और वास्तविकता यह है कि वह अज्ञानता के बहुत गहरे अंधकार में जी रहा होता है। वह जानता ही नहीं कि ईश्वर कौन है। उसे लगता है कि ईश्वर का कोई एक खास स्वरूप है और इस रूप के अलावा ईश्वर का कोई दूसरा स्वरूप हो ही नहीं सकता और ऐसे ही मूढ़ अज्ञानी और दुर्भाग्यशाली लोग अक्सर हमें अपने जाल में फंसाते हैं।
ऐसा ही हुआ जब संत कबीर जी राम नाम का जप कर रहे थे, तो कुछ संशय डालने वाले लोग उनके पास आए और कहने लगे कि “क्या कर रहे हो?” तो कबीर जी ने कहा कि “राम का भजन कर रहा हूँ।” “अच्छा, कौन से राम का भजन कर रहे हो?” कबीर जी ने कहा, “राम क्या बहुत सारे हैं?” तो उन्होंने कहा कि लोग यह तो पता ही नहीं कि कौन से राम का भजन करते हैं और चले गए भजन करने। इन्हें यह भी पता नहीं कि राम कितने प्रकार के होते हैं, तो भजन करने का क्या फायदा? अब वे विचलित करने वाले लोग चले गए लेकिन अब कबीर जी सोचने लगे कि मुझे तो कुछ पता ही नहीं, की कितने राम है , मुझे तो बस यह पता है कि एक ही राम है। यह कैसा संशय मेरे मन में डाल गए? “कौन से राम का भजन करते हो?” और साथ में एक दोहा भी सुना गए कि “एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में लेटा, एक राम है जगत पसारा, एक राम है जगत से न्यारा” और इनमें से कौन सा राम तुम्हारा? हमें तो पता ही नहीं था, हम तो एक ही राम को जानते थे। यह लोग मन में संशय डाल गए।
पर गुरुजी ने कहा था कि कोई संशय हो तो निवारण कर लेना। तो कबीर जी ने सोचा कि गुरुजी के पास जाकर ही निवारण करता हूँ। तो कबीर जी पहुँचे संत स्वामी रामानंद के पास, गुरुजी को प्रणाम किया। संत स्वामी रामानंद बोले, “आओ, क्या बात है?” तो कहाँ कि “गुरु जी, एक अजीब सा संशय मन को विचलित कर रहा है। कुछ लोग मेरे पास आए थे, मुझे राम का भजन करते देख, कहने लगे कि ‘कौन से राम भजन कर रहे हो?’ तो मैंने कहा कि ‘मैं तो एक राम को ही जानता हूँ। क्या बहुत सारे राम होते हैं?’ तो उन्होंने कहा कि ‘हाँ, एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घाट घाट में लेट, एक राम का सकल पसारा, और एक राम सभी से न्यारा।’ बताओ, इनमें से कौन से राम का भजन कर रहे हो? और इनमें से कौन से राम तुम्हारे हैं?”
कबीर जी की बात सुन, संत स्वामी रामानंद मुस्कुराए और खूब हँसे। और हँसकर कबीर जी से कहने लगे कि “बेटा, ऐसी बात करने वाले तुम्हारे पास एक बार नहीं, जीवन भर आएँगे। ऐसे लोगों का काम ही होता है तुम्हें विचलित करना और सही रास्ते से भटकाना। अब तुम्हें सजग रहना होगा। देखो, यह सृष्टि विविधमाई है, जिसकी आँख पर जैसा चश्मा चढ़ा होता है, उनको ईश्वर वैसे ही दिखाई देते हैं। कोई परमात्मा को ब्रह्मा कहता है, कोई ईश्वर कहता है, कोई भगवान कहता है। लेकिन अलग-अलग नाम से वह परमात्मा अलग-अलग नहीं जाता।
और इस दोहे में एक बात है कि “एक राम दशरथ का बेटा, एक रामघाट घाट में लेट, एक राम का सकल पसारा, और एक राम सभी से न्यारा।“ पर इसी में एक राम, एक राम चारों पंक्तियों में हैं। तो बेटा, इस पंक्ति का अर्थ है, बोले वही राम दशरथ का बेटा, वही राम घाट घाट में लेट, इस राम का सकल पसारा, वही राम है सभी से न्यारी। जब वही राम सब जीवों के भीतर विराजमान रहते हैं, तो सबके घाट में लेते हुए सर्वव्यापक राम है। जब वही राम इस सृष्टि को रचते हैं, तो यह सब पसारा उन्हीं का है। लेकिन सृष्टि की रचना करने के बाद भी वे इस सृष्टि में फाँसे नहीं हैं, इसीलिए वह सबसे न्यारे भी हैं। लेकिन जब भक्त रो-रो कर उनको पुकारता है और जब मनुष्य प्रार्थना निवेदन करते हैं, तो वहीं निराकार राम साकार रूप धारण कर दशरथ जी के घर प्रकट हो जाते हैं। तो इन चारों में कोई भेद नहीं है, बेटा, ये चारों एक ही हैं।
अब कबीर जी को सब कुछ समझ में आ गया था। उन्होंने कहा कि “गुरु जी, आपने बहुत कृपा की। अब इस विषय में मेरा कभी संशय नहीं होगा।” कबीर जी वापस आकर फिर से राम का भजन करने लगे। तो फिर वह तार्किक लोग आए, उन्होंने देखा कि कबीर जी अभी भी राम की माला जाप रहे थे, सोचने लगे कि कबीर जी के मन में संशय डाल गए थे और अब तक तो उनकी माला छूट जानी चाहिए थी, लेकिन अभी तक उनकी माला छूटी क्यों नहीं? उन्होंने सोचा कि थोड़ा ज्यादा जोर लगाना पड़ेगा। उन्होंने कबीर जी से पूछा कि “भाई, तुम्हें पता चल गया कि तुम कौन से राम का भजन कर रहे हो? तुमने हमारे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया था।” अब कबीर जी तो पक्के गुरुजी के शिष्य थे, तो कबीर जी ने कहा कि “हम आपको उत्तर अवश्य देंगे, लेकिन उससे पहले आपको हमारे प्रश्न का उत्तर देना होगा।” बोले “पूछो।” कबीर जी कहने लगे कि “हमारा भी एक दोहा है, इसका उत्तर बताओ।” बोले “क्या?” कबीर जी ने कहा “एक बाप तेरी दादी का छोरा, एक बाप तेरी बुवा का भाई l एक बाप तेरे माँ का पति, एक बाप तेरी नानी का जमाई, बतावो कितने बाप तेरे भाई ?” ऐसा दोहा सुनते ही वे दुम दबाकर भागे। कबीर जी ने आवाज लगाई कि “बताते तो जाओ कि तुम्हारे एक बाप है ” वे बोले कि “हद हो गई, यह क्या पूछने की बात है?”
कबीर जी बोले कि “वही बाप तेरी दादी का छोरा, वही बाप तेरी बुवा का भाई l वही बाप तेरे माँ का पति, वही, एक बाप तेरी नानी का जमाई, सब एक है भाई l”
भागते हुए मूर्खों को उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर भी मिल गया “वही राम दशरथ का बेटा, वही राम घाट घाट में लेट, वही राम का सकल पसारा, वही राम है सभी से न्यारा।”
तो दोस्तों, आपने देखा कि कैसे हमारे सनातन धर्म में ईश्वर का स्वरूप कितना विराट है। वे सनातन हैं, वे सर्वव्यापक हैं, वे निराकार हैं तो साकार भी हैं, अदृश्य भी हैं तो दृश्य भी हैं, वे सगुण हैं तो निर्गुण भी हैं, और जब यह बात अज्ञानी लोग समझ नहीं पाते हैं, तो वे लोग प्रश्न करते हैं कि “आपके तो इतने सारे भगवान हैं, इनमें से बड़ा कौन है? यह भगवान तो मनुष्य थे, तो वह भगवान कैसे हो सकते हैं? शिव बड़े हैं, विष्णु बड़े हैं या ब्रह्मा बड़े हैं?” उनके लिए यह समझ पाना मुश्किल है कि राम, कृष्ण, शिव, विष्णु, ब्रह्मा सभी एक ही परम तत्व के स्वरूप हैं। और जब मीरा को भी उनके गुरु ने यह बात समझाई कि कृष्ण, राम और ईश्वर के जितने भी स्वरूप हैं, वे सभी एक ही परमेश्वर के स्वरूप हैं, सिर्फ उनके नाम, रूप और गुण अलग-अलग हैं, तो मीरा ने भी कहा कि “पायोजी मैंने राम रतन धन पायो, वास्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, कर कृपा अपनायो।“ त्रेता युग में श्री राम के जन्म से पहले भी लोग उसे परमेश्वर के रूप में राम शब्द का ही प्रयोग करते थे और इस परमतत्व के स्वरूप भगवान विष्णु ने मनुष्य रूप में जन्म लिया, तो उनके अंश अवतार परशुराम का नाम भी राम था। और समस्त जगत के सामने आदर्श पुरुष का उदाहरण रखने के लिए दशरथ जी के घर जन्म लिया, तो उसे परमेश्वर का नाम भी राम रखा गया।
अब जब नई पीढ़ी के लोग दशरथ जी के पुत्र भगवान श्री राम को एक व्यक्ति के रूप में देखते हैं, तो उनके मन में संशय पैदा होता है कि “राम एक व्यक्ति है तो वह भगवान कैसे हो सकते हैं?” लेकिन जब उन्हें ज्ञान होता है कि साक्षात उसे सर्वव्यापक परमेश्वर रूपी राम ने एक व्यक्ति के रूप में जन्म लिया है, तो उनका सारा संशय दूर हो जाता है।
तो मित्रों, अब जब भी आप भगवान श्री राम के बारे में सोचो या उनके दर्शन करने जाओ, तो आपके मन में यह अवश्य होना चाहिए कि यह वही परमेश्वर राम हैं, जिन्होंने आकर धरा पर हमें कृतार्थ किया है। हम मनुष्यों पर बड़ी कृपा की है। आप साकार को मानते हैं तो भी आपके भगवान राम हैं, आप निराकार को मानते हैं तो भी आपके भगवान राम हैं, आप साकार और निराकार को छोड़कर उसे अस्तित्वहीन अस्तित्व को मानते हैं तो भी आपके भगवान राम हैं।
भगवान राम कौन हैं?
भगवान राम को त्रेता युग में भगवान विष्णु के सातवें अवतार के रूप में माना जाता है और सनातन धर्म में उन्हें दिव्य गुणों और धर्म के सिद्धांत का प्रतीक माना जाता है।
भगवान विष्णु के चौथे अवतार के बारे में क्या कहा गया है?
हाँ, भगवान विष्णु का चौथा अवतार भी राम नाम से था। बाद में जब भगवान शिव ने उन्हें परशु (फरसा) प्रदान किया, तो उनका नाम परशुराम हो गया।
एक मनुष्य को भगवान कैसे माना जा सकता है?
पाठ सुझाव देता है कि भगवान राम, मनुष्य के रूप में जन्मे होने के बावजूद, ईश्वरीय सार और गुणों को धारण करते हैं, यह दर्शाता है कि दिव्यता मानव रूप में प्रकट हो सकती है ताकि मानवता का मार्गदर्शन और उत्थान कर सके।
कृष्ण भक्ति के अनुयायी, मीरा ने भी राम को क्यों माना?
मीरा की राम के प्रति भक्ति, कृष्ण भक्ति होने के बावजूद, उस विश्वास को दर्शाती है कि ईश्वर के सभी रूप, चाहे वह राम हों या कृष्ण, एक ही सर्वोच्च दिव्य सार के अभिव्यक्तियाँ हैं।
कितने प्रकार के राम हैं?
राम के विभिन्न रूपों का उल्लेख है, जिसमें दशरथ के पुत्र राम, परशुराम, बलराम, और सर्वव्यापी दिव्य रूप शामिल हैं। ये विभिन्न भूमिकाओं और संदर्भों में राम की दिव्यता के विभिन्न प्रकटीकरणों को दर्शाते हैं।