॥ दोहा ॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
चौपाई
जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भये प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै ॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥
मातु पिता भ्राता सब कोई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु अब संकट भारी ॥
धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । नारद शारद शीश नवावैं ॥
नमो नमो जय नमो शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पार होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्तवास शिवपुर में पावे ॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान । अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥
शिव चालीसा का अर्थ
शिव चालीसा का महत्व शिव चालीसा का पाठ करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। शिव की कृपा से सिद्धि-बुद्धि, धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है। शिव के प्रभाव से इंसान धनी बनता है, वो तरक्की करता है। वो हर तरह के सुख का भागीदार बनता है, उसे कष्ट नहीं होता। शिव अलौकिक शक्ति के मालिक है, उनकी कृपा मात्र से ही इंसान सारी तकलीफों से दूर हो जाता है।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
श्री अयोध्यादास जी ने शिव चालीसा की रचना की शुरुआत श्री गणेश की वंदना से की है, जो सभी मंगल कार्यों के आरंभ में की जाने वाली परंपरा का पालन करते हुए उन्होंने इसे अपनाया। गणेश जी, जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता के रूप में जाना जाता है, का आशीर्वाद प्राप्त करना, किसी भी नए उपक्रम या कार्य की सफलता के लिए शुभ माना जाता है। इस चौपाई के माध्यम से, श्री अयोध्यादास जी ने गणेश जी से निर्विघ्न और भयमुक्त वरदान प्राप्त करने की प्रार्थना की है, ताकि वे शिव चालीसा की रचना को बिना किसी बाधा के पूरा कर सकें और इसके माध्यम से भक्तों को भगवान शिव के दिव्य गुणों और लीलाओं का गान कर सकें। इस प्रार्थना में उन्होंने गणेश जी को ‘गौरीपुत्र’ और ‘मंगल मूल सुजान’ के रूप में संबोधित किया है, जो उनके दिव्य गुणों और महत्व को प्रदर्शित करता है।
जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥
इस चौपाई में, भगवान शिव की असीम कृपा और उनके दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। भगवान शिव, जो पार्वती (गिरिजा) के पति हैं, उन्हें दीन और संतों के प्रतिपालक के रूप में वर्णित किया गया है। उनकी कृपा से दीनों पर दया की जाती है और संतों की सदा ही रक्षा की जाती है। इसके साथ ही, उनके मस्तक पर विराजमान चंद्रमा और कानों में सुशोभित नागफनी के कुंडल उनके दिव्य रूप को और भी अधिक आकर्षक बनाते हैं।
अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥
भगवान शिव का गौर वर्ण और उनके सिर से बहती गंगा, गले में पहनी मुंडमाल और शरीर पर लगी भस्म उनके तपस्वी और आध्यात्मिक जीवन के प्रतीक हैं। शेर की खाल से बने वस्त्र उनके वीरता और राजसी गरिमा को दर्शाते हैं। उनकी यह वेषभूषा और दिव्य छवि देखकर सभी नर-नारी श्रद्धावश उनके सम्मुख शीश झुकाते हैं। इस चौपाई के माध्यम से, भगवान शिव के दिव्य स्वरूप और उनकी अनुकंपा की महिमा का गान किया गया है, जो भक्तों को उनके प्रति और भी अधिक श्रद्धा और भक्ति से भर देता है।
मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
इस चौपाई में भगवान शिव के परिवार की दिव्यता और उनकी अद्भुत छवि का वर्णन किया गया है। मैना, जो पार्वतीजी की माता हैं, की दुलारी पुत्री पार्वतीजी भगवान शिव के बाएं भाग में अपनी अनूठी छवि के साथ सुशोभित हैं। भगवान शिव के हाथ में विराजमान त्रिशूल, जो उनके विनाशकारी और शत्रुनाशक प्रकृति का प्रतीक है, उनकी दिव्यता को और भी बढ़ाता है। इस त्रिशूल के माध्यम से वे सदैव दुष्टों और शत्रुओं का संहार करते हैं।
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥
आगे चौपाई में भगवान शिव के समीप नंदी और गणेश जी के सुंदर वर्णन के साथ-साथ कार्तिकेय और गणपति की छवि को अवर्णनीय बताया गया है। नंदी और गणेश जी की उपस्थिति को सागर के मध्य में खिले कमल के समान बताया गया है, जो उनकी पवित्रता और सुंदरता को दर्शाता है। कार्तिकेय का श्याम वर्ण और गणेशजी का गौर वर्ण, उनकी विविधता और अनूठेपन को प्रकट करता है, जिसका वर्णन कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है।
देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
इस चौपाई में भगवान शिव की देवताओं के प्रति अनुकंपा और उनके द्वारा किए गए असुरों के विनाश की गाथाओं का वर्णन किया गया है। जब भी देवता किसी संकट में होते थे और उन्होंने भगवान शिव से सहायता की पुकार की, भगवान शिव ने उनके दुखों को दूर किया और उनकी रक्षा की। तारकासुर के अत्याचारों से पीड़ित होकर, जब सभी देवताओं ने भगवान शिव की शरण में आकर सहायता मांगी, तब भगवान शिव ने तत्काल स्वामी कार्तिकेय को उस दुष्ट असुर का वध करने के लिए भेजा। कार्तिकेय ने शिवजी द्वारा प्रदत्त शक्ति से ताड़कासुर को मार डाला।
तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
इसी प्रकार, जलंधर नामक एक अन्य भयानक असुर का वध भी भगवान शिव ने किया। जलंधर के विनाश से भगवान शिव की कीर्ति और भी अधिक फैली और संसार भर में उनका यश गूंज उठा। ये प्रसंग भगवान शिव की दैवी शक्ति, करुणा और असुरों के प्रति उनकी निर्ममता को प्रकट करते हैं। भगवान शिव का यह रूप दिखाता है कि वे न केवल संसार के पालनहार हैं बल्कि अधर्म और अत्याचार के विरुद्ध न्याय के प्रतीक भी हैं। उनकी यह कथा भक्तों को यह संदेश देती है कि धर्म की रक्षा के लिए भगवान सदैव तत्पर हैं और अधर्म का नाश करने में कोई संकोच नहीं करते।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
इन चौपाई में भगवान शिव के विभिन्न लीलाओं और उनके दिव्य गुणों का वर्णन किया गया है। भगवान शिव ने त्रिपुरासुर के साथ युद्ध करके न केवल देवताओं को बचाया बल्कि उन पर अपनी कृपा भी की। त्रिपुरासुर, जो तीन पुरों (नगरों) का असुर था, का वध भगवान शिव ने अपनी अद्वितीय शक्ति से किया था। इसी तरह, जब राजा भगीरथ ने गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तपस्या की, तब भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में संग्रहित कर पृथ्वी पर उन्हें अवतरित कर भगीरथ की प्रतिज्ञा को पूरा किया। यह घटना भगवान शिव की असीम कृपा और शक्ति का प्रतीक है।
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
इस चौपाई में भगवान शिव को सबसे महान दानी के रूप में वर्णित किया गया है। उनकी स्तुति सेवकों द्वारा सदैव की जाती है, और उनकी महिमा वेदों में भी गाई गई है। भगवान शिव का अनादि (प्राचीन) होना उनकी अनन्तता और अव्यक्तता को दर्शाता है, जिसका भेद कोई नहीं पा सका है। ये चौपाई भगवान शिव की दिव्यता, कृपा, शक्ति, और उनके भक्तों के प्रति असीम प्रेम को व्यक्त करते हैं।
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
इस चौपाई के माध्यम से, समुद्र मंथन की उस घटना का वर्णन किया गया है जब समुद्र से अमृत के साथ-साथ एक भयंकर विष भी प्रकट हुआ था। इस विष की ज्वाला इतनी प्रचंड थी कि इसके कारण देवता और असुर दोनों ही अत्यधिक पीड़ा और व्याकुलता महसूस करने लगे। इस संकट की घड़ी में, भगवान शिव ने अपनी असीम कृपा दिखाई और समस्त विष को पी लिया, जिससे समस्त सृष्टि को उस विनाशकारी विष से बचा लिया।
भगवान शिव ने इस विष को अपने गले में ही रोक लिया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया। इसी कारण उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा जाने लगा। ‘नीलकंठ’ नाम का अर्थ है ‘नीला गला’। इस घटना ने भगवान शिव के त्याग और सृष्टि के प्रति उनकी करुणा को प्रकट किया, और यह दिखाया कि वे किस हद तक जाकर जीवों की रक्षा कर सकते हैं। इस कथा के माध्यम से भगवान शिव की महानता और उनके दिव्य गुणों का गुणगान किया जाता है।
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
इस चौपाई में भगवान राम द्वारा भगवान शिव की पूजा करने और उस पूजा के फलस्वरूप लंका पर विजय प्राप्त करने की कथा का वर्णन है। जब भगवान राम ने रामेश्वरम में भगवान शिव की आराधना की, तो उनकी असीम कृपा से उन्हें लंका पर विजय प्राप्त हुई और विभीषण को लंका का राजा बनाया गया।
इस दौरान, भगवान राम ने सहस्र कमलों का उपयोग करके भगवान शिव की पूजा की। लेकिन भगवान शिव ने अपनी माया का प्रयोग करके एक कमल का फूल गायब कर दिया, जिससे पूजा में एक कमल की कमी हो गई। इसे अपनी परीक्षा मानते हुए, भगवान राम ने अपनी आंखों में से एक कमल के समान नेत्र को अर्पित करने का निर्णय लिया, क्योंकि उन्हें ‘कमलनयन’ भी कहा जाता है। इस भावना को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और प्रकट होकर भगवान राम की पूजा को स्वीकार किया।
यह घटना भक्ति और देवत्व के बीच के अटूट संबंध को दर्शाती है, जिसमें भक्त की अगाध श्रद्धा और भगवान की असीम कृपा का सुंदर संगम होता है। यह भगवान राम की अटल भक्ति और भगवान शिव की असीम कृपा को भी प्रकट करता है।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भये प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
इस चौपाई के माध्यम से भगवान शिव और भगवान राम के बीच अनुपम भक्ति और दिव्य लीला की कथा को दर्शाया गया है। जब भगवान राम ने पाया कि उनकी पूजा में एक कमल का फूल कम है, तो उन्होंने अपनी आंखों में से एक को, जिसे ‘कमलनयन’ यानी कमल के समान सुंदर आंखें कहा जाता है, भगवान शिव की पूजा में अर्पित करने की ठानी।
भगवान शिव ने जब भगवान राम की इस अद्वितीय और अटूट भक्ति को देखा, तो वे अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें उनकी मनोवांछित वरदान प्रदान किया। यह घटना न केवल भगवान राम की असीम भक्ति और समर्पण को प्रकट करती है, बल्कि भगवान शिव की अनुकंपा और कृपा को भी दर्शाती है।
यह कथा यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण में किसी भी प्रकार की सीमाएं नहीं होतीं और भगवान अपने भक्तों की भावनाओं को समझते हैं और उनकी पुकार का उत्तर देते हैं। इस लीला में भक्त और भगवान के बीच के अद्वितीय और गहरे संबंध को भी प्रकशित किया गया है।
जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै ॥
इस चौपाई के माध्यम से भक्त भगवान शिव की महिमा का गान कर रहा है और उनकी अनंत और अविनाशी प्रकृति की प्रशंसा कर रहा है। भगवान शिव, जो सभी के हृदय में वास करते हैं और जिनकी कृपा सभी पर समान रूप से बरसती है, उनके प्रति भक्त अपनी अटूट आस्था और श्रद्धा व्यक्त कर रहा है। भक्त अपनी व्यथा भी प्रकट करता है कि किस प्रकार दुष्ट विचार उसे निरंतर सताते हैं और उसे अशांति में डाल देते हैं, जिससे उसे चैन का क्षण भी प्राप्त नहीं होता।
यहाँ, भक्त भगवान शिव से अपने मन की भ्रांतियों और दुष्ट विचारों से मुक्ति की प्रार्थना कर रहा है, ताकि वह आत्मिक शांति प्राप्त कर सके। यह चौपाई भक्त की गहरी भक्ति और विश्वास को दर्शाता है कि केवल भगवान शिव ही उसके दुखों को दूर कर सकते हैं और उसे जीवन में आध्यात्मिक शांति प्रदान कर सकते हैं।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥
इस चौपाई के माध्यम से, भक्त अपनी व्यग्रता और संकट की घड़ी में भगवान शिव से सहायता और रक्षा की याचना कर रहा है। भक्त अपनी पीड़ा और अशांति को व्यक्त करते हुए, भगवान शिव से “त्राहि त्राहि” अर्थात् “रक्षा करो, रक्षा करो” की पुकार लगा रहा है। इस चौपाई में भक्त की गहन आस्था और विश्वास को दिखाया गया है कि केवल भगवान शिव ही उसे इस संकट से उबार सकते हैं।
भक्त भगवान शिव से अनुरोध करता है कि वे अपने त्रिशूल का उपयोग करके उसके शत्रुओं का नाश करें और उसे संकट से मुक्ति दिलाएं। यहाँ, त्रिशूल भगवान शिव की शक्ति और न्याय का प्रतीक है, जिसके माध्यम से वे अधर्म और बुराई का विनाश करते हैं।
यह चौपाई भक्तों को यह संदेश देता है कि जीवन के कठिन समय में भगवान की शरण में जाने पर वे निश्चित ही रक्षा और सहायता प्रदान करते हैं। यह भक्ति के मार्ग पर चलने वालों के लिए आस्था और विश्वास की गहराई को भी दर्शाता है।
मातु पिता भ्राता सब कोई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु अब संकट भारी ॥
इस चौपाई के माध्यम से, भक्त अपनी व्यथा और संकट के समय में अकेलेपन की भावना को व्यक्त कर रहा है। भक्त कहता है कि सुख के समय में तो माता, पिता, भाई इत्यादि सम्बन्धी सभी साथ होते हैं, लेकिन जब संकट का समय आता है, तब कोई भी सहायता के लिए आगे नहीं आता।
इस स्थिति में, भक्त अपनी एकमात्र आशा और विश्वास को भगवान में रखता है। वह भगवान से प्रार्थना करता है कि वे उसके संकटों को दूर करें। भक्त भगवान को जगत का स्वामी मानता है और उनसे अपने घोर संकट को हर लेने की याचना करता है।
यह चौपाई यह दर्शाता है कि जीवन की कठिनाइयों और संकटों के समय, भगवान ही एकमात्र ऐसे हैं जिन पर व्यक्ति अपनी निर्भरता और विश्वास रख सकता है। यह भक्ति और शरणागति के मार्ग को भी प्रकट करता है, जहाँ भक्त अपने सभी संकटों और पीड़ाओं को भगवान के चरणों में अर्पित करता है, उन्हें ही अपना एकमात्र सहारा मानता है।
धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
इस चौपाई में भक्त भगवान की कृपा और दयालुता का गुणगान कर रहा है। भक्त उल्लेख करता है कि भगवान सदैव निर्धन और गरीब लोगों की सहायता करते हैं, उन्हें धन प्रदान करते हैं और उनकी जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। यह भी कहा गया है कि जो भी व्यक्ति भगवान से कुछ मांगता है, उसे वह फल प्राप्त होता है, यानी भगवान उसकी प्रार्थना का उत्तर देते हैं।
आगे भक्त अपनी विनम्रता और अनिश्चितता को प्रकट करते हुए कहता है कि वह कैसे भगवान की सही ढंग से पूजा और अर्चना कर सकता है, इसका ज्ञान उसे नहीं है। इसलिए, अगर उससे पूजन में कोई त्रुटि या चूक हो जाए तो वह भगवान से क्षमा याचना करता है।
यह चौपाई भक्त की गहरी आस्था और भगवान के प्रति समर्पण की भावना को दर्शाता है। भक्त अपने निर्धनता और अपर्याप्तता को स्वीकार करते हुए भी भगवान की शरण में आता है और उनसे गाइडेंस और क्षमा की प्रार्थना करता है। यह भगवान की असीम कृपा और उनके भक्तों के प्रति उनके प्रेम को भी दर्शाता है।
शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । नारद शारद शीश नवावैं ॥
इस चौपाई में भगवान शिव को संकटों का नाश करने वाले और मंगल कारण, विघ्न विनाशक के रूप में स्तुति की गई है। भगवान शिव, जिन्हें शंकर और भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है, उन्हें सभी प्रकार के विघ्नों और संकटों को दूर करने वाला माना गया है। उनका नाम लेने मात्र से ही भक्तों के सभी शुभ कार्य सिद्ध हो जाते हैं।
चौपाई में आगे बताया गया है कि योगी, यति और मुनि जैसे आध्यात्मिक साधक भी भगवान शिव का ध्यान लगाते हैं और उनकी आराधना करते हैं। इसके साथ ही, देवर्षि नारद और देवी सरस्वती, जो ज्ञान और संगीत की देवी हैं, भी भगवान शिव को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
यह चौपाई भगवान शिव की उनकी दिव्यता, शक्ति और उनके प्रति समर्पण की भावना को प्रकट करता है। यह दर्शाता है कि भगवान शिव की महिमा न केवल भक्तों में बल्कि देवताओं और आध्यात्मिक साधकों में भी समान रूप से प्रचलित है। उनकी आराधना से जीवन में शांति, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
नमो नमो जय नमो शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पार होत है शम्भु सहाई ॥
इस चौपाई में भगवान शिव के महामंत्र “ऊं नमः शिवाय” की महिमा का वर्णन किया गया है। यह मंत्र भगवान शिव के प्रति समर्पण और आराधना का सार है। इस मंत्र की शक्ति इतनी अद्भुत है कि ब्रह्मा और अन्य देवता भी इसके जरिए भगवान शिव की अनंतता का पूर्ण रूप से पार नहीं पा सके हैं, यानी उनके दिव्य स्वरूप की गहराई को पूर्णतः समझ नहीं पाए हैं।
आगे चौपाई में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति इस शिव चालीसा का पाठ मन लगाकर और निष्ठा के साथ करता है, भगवान शिव उसकी सहायता अवश्य ही करते हैं। यह चौपाई भक्तों को प्रेरित करता है कि वे भगवान शिव की आराधना में अपनी श्रद्धा और भक्ति को लगाएं, और इस विश्वास के साथ कि भगवान शिव उनके संकटों का निवारण करेंगे।
यह चौपाई भक्ति की शक्ति और आध्यात्मिक प्रयासों में ईश्वर की कृपा के महत्व को रेखांकित करता है। भगवान शिव की भक्ति में समर्पित व्यक्ति को जीवन के कठिन समय में भी उनका साथ मिलता है, और उनकी कृपा से वह सभी बाधाओं को पार कर सकता है।
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
इस चौपाई में भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति और उनकी दिव्य कृपा के प्रभाव का वर्णन किया गया है। यह बताया गया है कि जो भी व्यक्ति ऋण (कर्ज) के बोझ से दबा हुआ है और वह यदि सच्चे मन से भगवान शिव के नाम का जाप करता है, तो वह जल्द ही उस ऋण से मुक्त हो जाएगा। इसी प्रकार, यदि कोई पुत्रहीन व्यक्ति पुत्र की प्राप्ति की इच्छा से भगवान शिव की स्तुति करता है, तो निश्चय ही भगवान शिव की कृपा से उसकी इच्छा पूरी होगी।
यह चौपाई भगवान शिव की असीम कृपा और सहायता को दर्शाता है, जो वे अपने भक्तों को प्रदान करते हैं। यह यह भी दिखाता है कि कैसे भक्ति और ईश्वर में अटूट विश्वास, व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं और उसे उसकी समस्याओं और कठिनाइयों से मुक्ति दिला सकते हैं। इस प्रकार, भगवान शिव की आराधना और स्तुति न केवल आध्यात्मिक संतुष्टि देती है बल्कि भौतिक और सांसारिक समस्याओं के समाधान में भी सहायक होती है।
पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥
इस चौपाई में त्रयोदशी व्रत और पूजा के महत्व को बताया गया है। त्रयोदशी, जो कि हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक मास के तेरहवें दिन आती है, को भगवान शिव की आराधना के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से पंडितों को बुलाकर घर पर ध्यानपूर्वक पूजा और हवन करने की परंपरा है।
जो भक्त प्रत्येक मास की त्रयोदशी पर व्रत रखता है और भगवान शिव की आराधना करता है, उसे शारीरिक और मानसिक क्लेशों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत और पूजा के द्वारा न केवल भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और मन की शांति भी मिलती है।
यह चौपाई भक्तों को इस बात की प्रेरणा देता है कि वे त्रयोदशी के दिन भगवान शिव की विशेष आराधना करें और उनके प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को और अधिक गहरा करें। इससे न केवल उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आएगा बल्कि उन्हें भगवान शिव की असीम कृपा और आशीर्वाद भी प्राप्त होगा।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्तवास शिवपुर में पावे ॥
इस चौपाई के माध्यम से, भगवान शिव की आराधना की प्रक्रिया और उसके फलों का वर्णन किया गया है। भक्तों को यह सिखाया गया है कि धूप, दीप और नैवेद्य (प्रसाद) के साथ भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए और शंकरजी की प्रतिमा के सम्मुख बैठकर शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए। इस प्रकार की पूजा और पाठ से न केवल व्यक्ति के जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं, बल्कि उसे अंततः शिवपुर यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह चौपाई भगवान शिव की भक्ति के मार्ग की महिमा को प्रकट करता है और भक्तों को यह सिखाता है कि सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ किया गया पाठ और पूजा उन्हें आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष की ओर ले जाता है। इस प्रकार, भगवान शिव की भक्ति में समर्पित भक्त को उनकी असीम कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो उसे इस संसारिक जीवन के बंधन से मुक्त करता है और उसे दिव्य लोक में स्थान दिलाता है।
कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
इस चौपाई में अयोध्या दास जी, भक्ति काव्य के रचयिता, भगवान शिव से अपने दुखों को हरने और अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने की प्रार्थना कर रहे हैं। वे भगवान शिव को अपनी आशा और शरण के रूप में पुकार रहे हैं, जो सभी दुखों और कष्टों को दूर करने की शक्ति रखते हैं।
यह चौपाई भक्त और भगवान के बीच के अटूट विश्वास और समर्पण को दर्शाता है। यह यह भी बताता है कि कैसे भक्त अपने सभी संकटों और पीड़ाओं को भगवान के चरणों में रखकर उनसे मुक्ति की कामना करते हैं। अयोध्या दास जी की यह प्रार्थना एक उदाहरण है कि कैसे सच्ची भक्ति और शरणागति के माध्यम से भक्त भगवान की अनुकंपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार, भगवान शिव के प्रति निष्ठा और समर्पण भक्त को जीवन के कठिनाइयों से उबारने में सहायक होता है।
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥
इस दोहे के माध्यम से शिव चालीसा के पाठ की महत्ता और उसके फलों को व्यक्त किया गया है। पहले दोहे में भक्त यह व्यक्त करता है कि वह प्रतिदिन प्रातःकाल में शिव चालीसा का पाठ करता है और भगवान शिव से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की याचना करता है।
दूसरे दोहे में उल्लेख है कि हेमंत ऋतु के मार्गशीर्ष मास की छठी तिथि, संवत चौंसठ में, यह शिव चालीसा पूर्ण हुई थी, जो लोक कल्याण के लिए समर्पित है। यह दोहा शिव चालीसा के लेखन और समापन के समय को दर्शाता है और इसे लोक कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण स्तुति के रूप में प्रस्तुत करता है।
इन दोहों के माध्यम से शिव चालीसा की विशेषता और उसके पाठ से होने वाले लाभों को स्पष्ट किया गया है। यह भक्तों को प्रेरित करता है कि वे नियमित रूप से शिव चालीसा का पाठ करें और भगवान शिव की कृपा से अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और आध्यात्मिक उन्नति का अनुभव करें।
गीता प्रेस शिव चालीसा यहाँ से खरीदें
- Sudarshan Kriyaसुदर्शन क्रिया एक शक्तिशाली प्राणायाम तकनीक है, जो श्वास और ध्यान के संयोजन से शरीर, मन और आत्मा को संतुलित … Read more
- राम रामेति रामेति का अर्थ“राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे।राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे।सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने॥” यह मंत्र भगवान श्री राम के … Read more
- गणेश वंदनागणेश वंदना एक विशेष प्रकार का स्तोत्र या प्रार्थना है, जो भगवान गणेश की स्तुति और आराधना के लिए किया … Read more
- नजर उतारने के प्राचीन उपायबच्चों को नजर लगने से बचाने के प्रभावी उपाय बच्चों को नजर लगने का डर अक्सर माता-पिता के लिए चिंता … Read more
- Bhai Doojभैया दूज का पर्व भाई-बहन के अनमोल रिश्ते का प्रतीक है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया … Read more
- Durga Suktamदुर्गा देवी की स्तुति से संबंधित अधिकांश मंत्र 7वीं शताब्दी के बाद के हैं, लेकिन दुर्गा सूक्तम वैदिक काल का … Read more
1 thought on “शिव चालीसा और उसका महत्व”