महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् – अयि गिरिनन्दिनि (Mahishasura Mardini Stotram- Aigiri Nandini)

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् हिन्दू धर्म में एक प्रमुख स्तोत्र है, जो देवी दुर्गा की महिमा का गान करता है। इसे आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र देवी दुर्गा के महिषासुर, एक महान असुर के वध की कथा को समर्पित है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् अपनी शक्तिशाली और भावपूर्ण भाषा के लिए प्रसिद्ध है, जो भक्तों को देवी के प्रति अपार भक्ति और समर्पण की भावना से ओत-प्रोत करती है।

इस स्तोत्रम् में देवी की विभिन्न रूपों और उनके द्वारा किए गए विभिन्न लीलाओं का वर्णन है। यह स्तोत्र देवी की वीरता, सौंदर्य, शक्ति और करुणा की स्तुति करता है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि और अन्य देवी पूजा के अवसरों पर किया जाता है। इसका पाठ करने से भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति और आत्मिक संतोष की प्राप्ति होती है।

  • अयि गिरिनंदिनि नंदितमेदिनि: यहाँ देवी को पर्वतराज हिमालय की पुत्री और पृथ्वी को प्रसन्न करने वाली कहा गया है। “गिरिनंदिनि” का अर्थ है पर्वतों की पुत्री, यानी पार्वती।
  • विश्वविनोदिनि नंदनुते: देवी को विश्व का आनंद देने वाली और देवताओं द्वारा पूजित कहा गया है।
  • गिरिवरविंध्यशिरोधिनिवासिनि: विंध्य पर्वत के शिखर पर निवास करने वाली के रूप में देवी का वर्णन किया गया है।
  • विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते: देवी को विष्णु की प्रिय और विजयी देवी के रूप में स्तुति की गई है।
  • भगवति हे शितिकण्ठकुटुंबिनि: भगवान शिव की पत्नी और उनके परिवार की सदस्य के रूप में देवी की स्तुति की गई है।
  • भूरिकुटुंबिनि भूरिकृते: देवी को बहुत सारे परिवारों की देखभाल करने वाली और बहुत से कार्यों को संपादित करने वाली के रूप में वर्णित किया गया है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा की महानता, उनकी दिव्यता, और उनकी शक्ति की स्तुति करता है। इसे पढ़ने या सुनने से भक्तों में आध्यात्मिक ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का दूसरा श्लोक है जो देवी दुर्गा की विजयी शक्ति और उनके दिव्य गुणों की स्तुति करता है।

व्याख्या:

  • सुरवरवर्षिणि: देवी को देवताओं पर कृपा बरसाने वाली के रूप में वर्णित किया गया है।
  • दुर्धरधर्षिणि: जिनका सामना करना कठिन है, और जो अदम्य हैं।
  • दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते: दुष्टों को नष्ट करने वाली और इसमें आनंद लेने वाली।
  • त्रिभुवनपोषिणि: तीनों लोकों को पोषित करने वाली।
  • शंकर तोषिणि: भगवान शिव को संतुष्ट करने वाली।
  • किल्बिषमोषिणि घोषरते: पापों को दूर करने वाली और उसमें उल्लास महसूस करने वाली।
  • दनुज निरोषिणि: असुरों के क्रोध को शांत करने वाली।
  • दितिसुत रोषिणि: दिति के पुत्रों (असुरों) को क्रोधित करने वाली।
  • दुर्मद शोषिणि: अहंकारियों का घमंड नष्ट करने वाली।
  • सिन्धुसुते: सागर की पुत्री, यानी लक्ष्मी देवी के रूप में भी देवी की प्रशंसा की गई है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है, जो महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं।

यह श्लोक देवी की शक्ति, करुणा, और उनके द्वारा धर्म की रक्षा के लिए असुरों के विनाश की महिमा को दर्शाता है। इसके माध्यम से भक्त देवी की उपासना करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का तीसरा श्लोक है जो देवी दुर्गा की स्तुति करता है और उनकी विभिन्न भूमिकाओं और शक्तियों का वर्णन करता है।

व्याख्या:

  • अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरते: देवी को जगत की माँ, कदंब वन की प्रिय और हमेशा प्रसन्न रहने वाली के रूप में संबोधित किया गया है।
  • शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय श्रृंग निजालय मध्यगते: उन्हें हिमालय पर्वत, जिसे शिखरों का रत्न कहा गया है, के मध्य में निवास करने वाली के रूप में वर्णित किया गया है।
  • मधु मधुरे मधु कैटभ गंजिनि कैटभ भंजिनि रासरते: देवी को मधु और कैटभ, दो असुरों को पराजित करने वाली और उस कार्य में आनंद लेने वाली कहा गया है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी की विविध भूमिकाओं और उनके द्वारा असुरों के वध की महिमा को दर्शाता है। देवी दुर्गा की स्तुति में यह श्लोक भक्तों को उनकी दिव्यता और शक्ति का स्मरण कराता है और उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का चौथा श्लोक है, जो देवी दुर्गा की असुरों के विरुद्ध उनकी वीरता और शक्ति की महिमा का वर्णन करता है।

व्याख्या:

  • अयि शतखण्डविखण्डितरुण्डवितुण्डितशुण्डगजाधिपते: देवी को सौ टुकड़ों में काटे गए, उखाड़े गए मुख और सूंड के साथ हाथियों के राजा के रूप में संबोधित किया गया है, जो उनकी शक्ति का प्रतीक है।
  • रिपु गजगण्डविदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते: देवी शत्रुओं के हाथियों के गणों को नष्ट करने वाली, चण्ड पराक्रमी, मृगों के राजा के रूप में वर्णित हैं।
  • निजभुजदण्डनिपातितखण्डविपातितमुण्ड भटाधिपते: देवी को अपने हाथों से दंडित करके शत्रुओं के सिर को काटने वाली और योद्धाओं के राजा के रूप में संबोधित किया गया है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा की युद्ध में उनकी असाधारण शक्ति और वीरता को प्रदर्शित करता है, जो असुरों और उनकी सेनाओं का निर्णायक रूप से नाश करती हैं। इसके माध्यम से भक्तों को देवी की अद्वितीय शक्ति का स्मरण कराया जाता है और उनकी दिव्यता की पूजा की जाती है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का पांचवाँ श्लोक है, जो देवी दुर्गा के वीरता, ज्ञान, और शिव के प्रति उनकी भक्ति की स्तुति करता है।

व्याख्या:

  • अयि रणदुर्मदशत्रुवधोदितदुर्धरनिर्जरशक्तिभृते: देवी को युद्ध में उन्मत्त शत्रुओं को वध करने वाली और अदम्य शक्ति धारण करने वाली के रूप में संबोधित किया गया है।
  • चतुरविचारधुरीणमहाशिवदूतकृतप्रमथाधिपते: देवी को बुद्धिमानी से विचार करने वाली, महाशिव के दूतों द्वारा प्रमोट की गई, और गणों की अध्यक्षा के रूप में वर्णित किया गया है।
  • दुरित दुरीहदुराशयदुर्मतिदानवदूतकृतांतमते: देवी को पाप, कठिनाइयों, बुरे इरादों, और दुष्ट मनस्वी असुरों का अंत करने वाली के रूप में संबोधित किया गया है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा के बहुआयामी स्वरूप का वर्णन करता है, जिनकी शक्तियाँ न केवल युद्ध में बल्कि ज्ञान, भक्ति, और दुर्गुणों के विनाश में भी प्रकट होती हैं। इस स्तोत्र का पाठ भक्तों को देवी की असीम शक्तियों और उनके दिव्य गुणों का स्मरण दिलाता है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का छठा श्लोक है, जो देवी दुर्गा की वीरता, शक्ति, और युद्ध में उनकी भयावहता की स्तुति करता है।

व्याख्या:

  • अयि शरणागत वैरि वधूवर वीरवार भयदायकरे: देवी को शरण में आए शत्रुओं के प्रति भयानक और वीरों के लिए सम्मानित के रूप में वर्णित किया गया है।
  • त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधि शिरोधिकृतामल शूलकरे: तीनों लोकों के शत्रुओं के सिर पर विजय पाने वाली और शूल धारण करने वाली के रूप में देवी की महिमा का वर्णन किया गया है।
  • दुमिदुमितामरदुंदुभिनादमहोमुखरीकृततिग्मकरे: युद्ध के दौरान देवताओं के डमरू की ध्वनि से उत्पन्न तीव्र और भयानक नाद करने वाली के रूप में देवी की स्तुति की गई है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा की युद्ध में उनकी अपार शक्ति और वीरता का वर्णन करता है। उनकी उपस्थिति शत्रुओं के लिए भयानक है और उनके भक्तों के लिए सुरक्षा का स्रोत है। इस स्तोत्र का पाठ भक्तों को देवी की असीम शक्तियों और उनके दिव्य गुणों का स्मरण दिलाता है और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करता है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का सातवाँ श्लोक है, जो देवी दुर्गा की अद्वितीय शक्तियों और उनकी विजयी उपलब्धियों की स्तुति करता है।

व्याख्या:

  • अयि निजहुँकृतिमात्रनिराकृतधूम्रविलोचनधूम्रशते: देवी को अपनी केवल दृष्टि से ही धूम्रविलोचन जैसे असुरों को निराकृत करने वाली के रूप में संबोधित किया गया है।
  • समरविशोषितशोणितबीजसमुद्भवशोणितबीजलते: युद्ध में रक्त से सने बीज से उत्पन्न होने वाली और उसी रक्त से सिंचित होने वाली वीरता के रूप में देवी की स्तुति की गई है।
  • शिवशिव शुंभनिशुंभमहाहवतर्पितभूतपिशाचरते: शुंभ और निशुंभ, दो शक्तिशाली असुरों, के विरुद्ध महायुद्ध में अर्पित और भूत-पिशाचों को वश में करने वाली के रूप में देवी की स्तुति की गई है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा के अद्भुत कर्मों और उनकी दैवीय शक्तियों का वर्णन करता है, जिससे वे असुरों को पराजित करती हैं और धर्म की रक्षा करती हैं। इसके पाठ से भक्तों में आध्यात्मिक शक्ति और साहस का संचार होता है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का आठवाँ श्लोक है, जो देवी दुर्गा की युद्ध कौशल, वीरता और उनकी विजयी शक्तियों की स्तुति करता है।

व्याख्या:

  • धनुरनुसंगरणक्षण संगपरिस्फुर दंगनटत्कटके: धनुष की तन्यता और उसके छोड़े जाने पर होने वाली ध्वनि का वर्णन करते हुए देवी के युद्ध कौशल का वर्णन किया गया है।
  • कनक पिशंगपृषत्कनिषंगरसद्भटशृंगहता वटुके: सुनहरे बाणों से शत्रुओं को पराजित करने वाली और उनके सिरों को धराशायी करने वाली देवी की महिमा का वर्णन।
  • कृतचतुरङ्गबलक्षितिरङ्गघटद्बहुरङ्गरटद्बटुके: चार तरह की सेनाओं (पैदल, घुड़सवार, रथ और हाथी) को नष्ट करने वाली और उन्हें विभाजित करने वाली देवी का वर्णन।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा की अद्वितीय युद्ध कौशल और उनके द्वारा शत्रुओं के विनाश की महिमा को दर्शाता है। उनकी विजयी शक्तियाँ और उनके द्वारा स्थापित न्याय भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति और साहस प्रदान करता है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का नौवाँ श्लोक है, जो देवी दुर्गा की आनंदमयी लीलाओं, उनके नृत्य और संगीत में लीनता, साथ ही उनके भक्तों के प्रति उनके अपार प्रेम की स्तुति करता है।

व्याख्या:

  • सुरललनात तथेयित थेयित थाभिनयोत्तर नृत्यरते: देवी को सुरों के साथ ताल और लय में नृत्य करने वाली के रूप में वर्णित किया गया है, जहाँ वे अभिनय और भाव के साथ नृत्य करती हैं।
  • हासविलास हुलास मयि प्रणतार्तजनेऽमितप्रेमभरे: देवी की हंसी, खुशी और उल्लास का वर्णन है, जो उनके समर्पित भक्तों को असीम प्रेम प्रदान करती हैं।
  • धिमिकिट धिक्कट धिकट धिमिध्वनि घोरमृदंग निनादरते: यहाँ देवी के नृत्य के साथ मृदंग की ध्वनि का वर्णन किया गया है, जो उनके नृत्य को और भी दिव्य बना देती है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी के विभिन्न रूपों और उनकी लीलाओं का वर्णन करता है, जिसमें वे नृत्य, संगीत और अपने भक्तों के साथ अपार प्रेम का आदान-प्रदान करती हैं। इसके पाठ से भक्तों में आध्यात्मिक आनंद और देवी के प्रति गहरी भक्ति का संचार होता है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का दसवाँ श्लोक है, जो देवी दुर्गा के जयघोष, उनके नृत्य और संगीत में उनकी दिव्यता की स्तुति करता है।

व्याख्या:

  • जय जय जप्य जये जयशब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार और उनकी स्तुति के जयशब्दों को समर्पित किया गया है, जिसे पूरा विश्व गाता है।
  • झणझण झिञ्झिमि झिंकृत नूपुरसिंजित मोहित भूतपते: देवी के नूपुर (पायल) की झंकार से उत्पन्न संगीतमय ध्वनि का वर्णन किया गया है, जिससे सभी मोहित होते हैं, यहाँ तक कि भूतों के स्वामी भी।
  • नटितन टार्धन टीनटनायक नाटित नाट्य सुगानरते: देवी के नृत्य और संगीत में उनकी कला का वर्णन किया गया है, जिसमें वे विभिन्न तालों और लयों के साथ नृत्य करती हैं।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा की जयघोष, उनके नृत्य और संगीत की कला में उनकी दिव्यता को प्रकट करता है। उनकी उपस्थिति और उनके कार्य सभी को मोहित करते हैं, और इसके पाठ से भक्तों में देवी के प्रति गहरी भक्ति और आदर का संचार होता है।


यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का ग्यारहवाँ श्लोक है, जो देवी दुर्गा की सौंदर्य, आकर्षण, और उनके दिव्य गुणों की स्तुति करता है।

व्याख्या:

  • अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कांतियुते: देवी को सुगंधित फूलों के समान आकर्षक और मनमोहक कांति वाली के रूप में संबोधित किया गया है।
  • श्रितरजनी रजनी रजनी रजनी रजनी करवक्त्रवृते: देवी को रात्रि के समय शरण लेने वाले और कमल के समान चेहरे वाली के रूप में वर्णित किया गया है, जिसका चेहरा रात की रानी कमल की तरह खिलता है।
  • सुनयन भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते: देवी को सुंदर आँखों वाली और मधुमक्खियों की रानी के रूप में वर्णित किया गया है, जिसकी आँखें भ्रमर (मधुमक्खियों) को आकर्षित करती हैं।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा के सौंदर्य और उनके दिव्य आकर्षण का वर्णन करता है। उनकी दिव्यता और सौंदर्य न केवल उनके भक्तों को आकर्षित करती है बल्कि समस्त ब्रह्मांड को भी मोहित करती है। इसके पाठ से भक्तों में देवी के प्रति अगाध प्रेम और भक्ति का संचार होता है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का बारहवाँ श्लोक है, जिसमें देवी दुर्गा की महान युद्ध कौशल, उनके द्वारा सृजित प्राकृतिक सौंदर्य और उनकी दिव्यता की स्तुति की गई है। इस श्लोक में प्रयुक्त कुछ शब्द अत्यंत काव्यात्मक हैं और सीधे अर्थ की अपेक्षा कविता की ध्वनि और लय पर जोर देते हैं, जो इसे संस्कृत साहित्य में विशेष बनाता है।

व्याख्या:

  • सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्ल कमल्लरते: इस भाग में देवी की युद्ध में महानता और उनके द्वारा विरोधियों को पराजित करने के कौशल का वर्णन किया गया है।
  • विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते: यहाँ देवी के द्वारा सृजित प्राकृतिक सौंदर्य और विविध प्रकृति के तत्वों की सुंदरता का वर्णन है।
  • सितकृत फुल्लि समुल्ल सितारुण तल्ल जपल्ल वसल्ललिते: इस भाग में देवी के द्वारा उत्पन्न किए गए शुभ और सौम्य प्रभाव, और उनके जप और स्मरण से प्राप्त होने वाले आशीर्वाद की बात कही गई है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी की दिव्यता, उनकी विजयी शक्तियों, और उनके द्वारा सृजित प्राकृतिक सौंदर्य की महिमा को प्रकट करता है। इसके पाठ से भक्तों में देवी के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना जागृत होती है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का तेरहवाँ श्लोक है, जिसमें देवी दुर्गा की अद्वितीय सौंदर्य, उनकी दिव्यता और उनके द्वारा आकर्षित किए जाने वाले शक्तिशाली प्रभाव की स्तुति की गई है।

व्याख्या:

  • अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्ग जराजपते: देवी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वे हाथियों के राजा को भी मोहित कर सकती हैं, जो उनकी उपस्थिति में मदमस्त हो जाते हैं।
  • त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते: देवी को तीनों लोकों की शोभा, कला की खान और रूप की समुद्र की पुत्री के रूप में संबोधित किया गया है।
  • अयि सुदती जनलाल समान समोहन मन्मथ राजसुते: देवी को सुंदर दांतों वाली, लोगों को आकर्षित करने वाली और मनमथ (कामदेव) की तरह मोहक के रूप में वर्णित किया गया है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा की असीम सौंदर्य और उनके द्वारा सृष्टि पर डाले गए प्रभाव का वर्णन करता है। उनकी दिव्यता और सौंदर्य सभी को मोहित करता है, और इसके पाठ से भक्तों में देवी के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना जागृत होती है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का चौदहवाँ श्लोक है, जिसमें देवी दुर्गा के सौंदर्य, उनकी दिव्य कला और प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध की स्तुति की गई है।

व्याख्या:

  • कमल दलामल कोमल कांति कलाकलितामल भाललते: देवी के कोमल और निर्मल कांति की तुलना कमल के पत्तों से की गई है, जो उनके भाल पर आभूषण की तरह शोभित होती है।
  • सकल विलास कलानिलयक्रम केलिचलत्क लहंसकुले: देवी को सभी प्रकार के विलास और कलाओं के अधिष्ठाता के रूप में वर्णित किया गया है, जिनकी उपस्थिति में हंसों का समूह भी खेलता हुआ प्रतीत होता है।
  • अलिकुल संकुल कुवलय मंडल मौलि मिलद्भ कुलालिकुले: देवी के आस-पास मधुमक्खियों के समूह और कमलों के जलाशय का वर्णन है, जिससे उनके प्राकृतिक सौंदर्य और जीवन के साथ गहरा संबंध दर्शाया गया है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी के सौंदर्य और उनके द्वारा प्रकट किए गए प्राकृतिक आनंद का वर्णन करता है। उनकी उपस्थिति सभी जीवन रूपों में सौंदर्य और हर्ष भर देती है, और इसके पाठ से भक्तों में देवी के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना जागृत होती है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का पंद्रहवाँ श्लोक है, जिसमें देवी दुर्गा की संगीतमयता, उनकी सौंदर्य, और उनके दिव्य गुणों की स्तुति की गई है।

व्याख्या:

  • करमुरली रववीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते: देवी के मुरली की मधुर ध्वनि की तुलना में कोकिल (कोयल) भी लज्जित हो जाती है, जिससे उनकी संगीतमयता और मधुरता का वर्णन किया गया है।
  • मिलित पुलिन्द मनोहर गुंजित रञ्जित शैलनि कुञ्जगते: देवी की उपस्थिति में प्रकृति और पर्वतों के कुंजों में भी सौंदर्य और हर्ष की गुंजार होती है, जिससे उनके सौंदर्य का वर्णन किया गया है।
  • निजगुण भूत महाशबरी गण सद्गुण संभृतकेलितले: देवी के दिव्य गुणों और उनकी लीलाओं की उपस्थिति में सभी शुभ गुणों से भरपूर और आनंदित होते हैं।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी के संगीतमय सौंदर्य, उनकी प्रकृति के साथ सहज संबंध, और उनके दिव्य गुणों की महिमा का वर्णन करता है। उनकी उपस्थिति सभी के लिए आनंद और हर्ष का स्रोत है, और इसके पाठ से भक्तों को आध्यात्मिक प्रेरणा और शक्ति प्राप्त होती है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का सोलहवाँ श्लोक है, जिसमें देवी दुर्गा के सौंदर्य, उनके दिव्य प्रभाव, और उनकी विजयी महिमा की स्तुति की गई है।

व्याख्या:

  • कटि तट पीत दुकूल विचित्र मयूख तिरस्कृत चंद्र रुचे: देवी का कमर क्षेत्र पीले वस्त्र में लिपटा है, जिसकी चमक चंद्रमा की रोशनी को भी मात देती है।
  • प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चंद्ररुचे: देवी की भव्यता के सामने देवता और असुर दोनों नतमस्तक होते हैं, उनके मुकुटों के मणि उनकी चमक से प्रतिस्पर्धा करते हैं।
  • जित कनकाचल मौलि पदोर्जित निर्झर कुंजर कुंभ कुचे: देवी के चरणों ने सोने के पर्वतों और निर्झर (झरनों) को जीत लिया है, और उनकी शोभा हाथियों के मस्तक जैसी दिव्य है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा के अपार सौंदर्य, उनके दिव्य प्रभाव, और उनकी विजयी महिमा का गुणगान करता है। देवी की महिमा इतनी अद्भुत है कि वह स्वयं प्रकृति और देवताओं के सौंदर्य को भी पीछे छोड़ देती हैं। इसके पाठ से भक्तों में देवी के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना जागृत होती है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का सत्रहवाँ श्लोक है, जिसमें देवी दुर्गा की विजयी शक्ति, उनकी दिव्यता, और समाधि की गहराई की स्तुति की गई है।

व्याख्या:

  • विजित सहस्र करैक सहस्र करैक सहस्र करैक नुते: देवी की स्तुति हजारों हाथों वाले देवताओं द्वारा की जाती है, जो उनकी विजयी शक्ति को दर्शाता है।
  • कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनु सुते: देवी को युद्ध में विजयी सितारों के निर्माता और युद्ध के सितारों के पुत्र के रूप में स्तुति की गई है, जिससे उनकी युद्ध में अपार शक्ति का वर्णन होता है।
  • सुरथ समाधि समान समाधि समाधि समाधि सुजा तरते: देवी की समाधि को सुरों की समाधि के समान बताया गया है, जिसका अर्थ है उनकी ध्यान की गहराई और उसकी दिव्यता।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा की अपार शक्ति, उनकी विजयी उपलब्धियों, और उनके ध्यान की गहराई की स्तुति करता है। इसके पाठ से भक्तों में देवी के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना जागृत होती है, और उन्हें आध्यात्मिक शक्ति और प्रेरणा प्राप्त होती है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का अठारहवाँ और अंतिम श्लोक है, जिसमें देवी दुर्गा की करुणा, उनके दिव्य निवास, और उनके चरणों की शक्ति की स्तुति की गई है।

व्याख्या:

  • पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं शिवे: जो कोई भी देवी दुर्गा के कमल के समान चरणों में, जो करुणा के निवास हैं, रोजाना निवास करता है, वह शिव (कल्याण) प्राप्त करता है।
  • अयि कमले कमला निलये कमला निलयः कथं भवेत्: ओह कमल! तुम्हारे निवास स्थान में कमला (लक्ष्मी) का निवास है, तो वह व्यक्ति कैसे कमला (समृद्धि) का निवास नहीं बन सकता?
  • तव पदमेव परंपद मित्यनु शील यतो मम किं शिवे: यदि तुम्हारे चरण ही सर्वोच्च स्थान हैं, तो मेरे लिए और क्या कल्याण हो सकता है?
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा के चरणों में समर्पण की महत्वपूर्णता, उनकी अपार करुणा, और उनके दिव्य स्थान की महिमा को उजागर करता है। यह संदेश देता है कि देवी के चरणों में निवास करने से जीवन में शिव (कल्याण) और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का उन्नीसवाँ श्लोक है, जिसमें देवी दुर्गा की करुणा, उनके चरणों की शरण, और उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले आध्यात्मिक सुख की स्तुति की गई है।

व्याख्या:

  • कनकल सत्कल सिन्धुजलैरनु सिञ्चिनुते गुण रङ्गभुवं: जो अपने गुणों को समुद्र के जल से सोने की तरह संवारता है, वह व्यक्ति नैतिक और आध्यात्मिक सुंदरता को प्राप्त करता है।
  • भजति किं शची कुचकुंभ तटी परिरंभ सुखानु भवम्: जो देवी की उपासना करता है, वह शची (इंद्राणी, देवराज इंद्र की पत्नी) के समान सुख का अनुभव क्यों न करे।
  • तव चरणं शरणं करवाणि नतामर वाणि निवासि शिवं: मैं तुम्हारे चरणों में शरण लेता हूँ, जो सभी देवताओं द्वारा वंदित हैं और जहाँ शिव (कल्याण) निवास करता है।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा के चरणों में शरण लेने की महत्वपूर्णता और उससे प्राप्त होने वाले आध्यात्मिक सुख और कल्याण का वर्णन करता है। देवी के प्रति समर्पण और भक्ति से जीवन में अद्वितीय शांति और संतोष की प्राप्ति होती है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का बीसवाँ श्लोक है, जिसमें देवी दुर्गा के दिव्य चरणों की महिमा, उनके द्वारा प्रदान किए गए शुद्धता और कल्याण का वर्णन किया गया है।

व्याख्या:

  • तव विमलेन्दु कुलं वदनेन्दु मलं सकलं ननु कूलयते: तुम्हारा चंद्रमा के समान निर्मल चेहरा सभी के मल और दोषों को दूर करता है, जैसे चंद्रमा की शीतलता सब कुछ शांत कर देती है।
  • किमु पुरुहूत पुरीन्दु मुखी सुमुखी भिरसौ विमुखी क्रियते: इंद्र के पुरी (स्वर्ग) में रहने वाली सुंदर मुख वाली देवियाँ भी तुम्हारी सुंदरता के सामने कैसे विमुख हो सकती हैं?
  • मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते: मेरी धारणा है कि तुम्हारी कृपा से, जो शिव (कल्याण) के नाम का धन है, मेरे लिए और क्या किया जा सकता है?
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा के दिव्य चेहरे और उनके चरणों की महिमा को प्रकट करता है, जो सभी के पापों और दोषों को दूर करते हैं। देवी की भक्ति और उनके प्रति समर्पण भक्तों को आध्यात्मिक शांति और कल्याण प्रदान करता है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का इक्कीसवाँ और अंतिम श्लोक है, जिसमें देवी दुर्गा से दया और कृपा की प्रार्थना की गई है, और उनकी विजयी और करुणामयी प्रकृति की स्तुति की गई है।

व्याख्या:

  • अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्य मुमे: ओह माँ, मुझ दीन पर अपनी दयालुता से कृपा करें, मुझे आपकी कृपा की आवश्यकता है।
  • अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुमितासि रते: ओह जगत की माँ, जैसी आप कृपालु हैं, उसी प्रकार आपको अनुमानित किया जाता है, और आपके द्वारा प्रदान की गई खुशी में लीन हूँ।
  • यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुता दुरुतापम पाकुरुते: जो भी उचित है, वह मेरे लिए करें, मेरे दुःख और पीड़ा को दूर करें।
  • जय जय हे श्री महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते: इस लाइन में देवी की जय-जयकार की गई है। उन्हें महिषासुर का वध करने वाली, सुंदरता से सजी हुई, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में स्तुति की गई है।

यह श्लोक देवी दुर्गा से दया, कृपा, और संरक्षण की प्रार्थना करता है, और उनके द्वारा जीवन में लाई गई शांति, कल्याण, और खुशी की सराहना करता है। यह श्लोक भक्तों को देवी के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना से भर देता है।

यह श्लोक महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् का बाईसवाँ और समापन श्लोक है, जो स्तोत्र के नियमित पाठ के महत्व और उससे प्राप्त होने वाले लाभों को बताता है।

व्याख्या:

  • स्तुतिमिमां स्तिमितः सुसमाधिना नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत्: जो कोई भी इस स्तुति को शांत चित्त और समाधि की गहराई में, नियमित रूप से और अनुशासन के साथ प्रतिदिन पढ़ता है,
  • प्रिया रम्या निषेवते परिजनोऽरिजनोऽपि तं भजेत्: वह व्यक्ति प्रिय और रमणीय होता है, उसके परिजन और शत्रु भी उसकी सेवा करते हैं और उसकी भक्ति करते हैं।

इस श्लोक के माध्यम से, भक्तों को स्तोत्र के नियमित पाठ की महत्वपूर्णता और उससे होने वाले आध्यात्मिक लाभों का संदेश दिया गया है। यह बताता है कि समर्पण और श्रद्धा के साथ स्तोत्र का पाठ करने से न केवल आध्यात्मिक उन्नति होती है, बल्कि इससे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन आता है। भक्त न केवल अपने परिवार और मित्रों में प्रिय बनता है, बल्कि उसके प्रति शत्रुओं का भाव भी बदल जाता है।

॥ महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र सम्पूर्णं॥


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