Vishwakarma Puja

भारतीय संस्कृति में पूजा-अर्चना का महत्व अत्यधिक है, और जब बात देवताओं की पूजा की होती है, तो आरती का विशेष स्थान होता है। आरती के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। विश्वकर्मा पूजा का पर्व उन महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, जहां औजारों, मशीनों, और दुकानों की पूजा की जाती है। विश्वकर्मा जी को देवताओं के वास्तुकार के रूप में पूजा जाता है, जिन्होंने देवताओं के महल, भवन, और हथियारों का निर्माण किया था।

विश्वकर्मा जी का महत्त्व और पूजा का उद्देश्य

भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि के निर्माणकर्ता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने रावण की लंका, कृष्ण नगरी द्वारिका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगरी, और हस्तिनापुर का निर्माण किया था। भारतीय पौराणिक कथाओं में, विश्वकर्मा जी का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और उनका पूजा का उद्देश्य सृष्टि की संरचना और निर्माण में उनकी भूमिका को सम्मानित करना है।

विश्वकर्मा पूजा विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण है जो निर्माण, इंजीनियरिंग, वास्तु, और तकनीकी कार्यों में संलग्न होते हैं। इस दिन, लोग अपने औजारों और मशीनों की पूजा करते हैं, जिससे वे उन्हें शक्ति और सुरक्षा प्रदान करते हैं।

विश्वकर्मा पूजा 2024: कब है और शुभ मुहूर्त

विश्वकर्मा पूजा हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। इस साल कन्या संक्रांति 16 सितंबर 2024 को पड़ रही है। इस प्रकार, विश्वकर्मा पूजा इस साल 16 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी। इसी दिन भगवान विश्वकर्मा समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुए थे। इस साल विश्वकर्मा पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 16 सितंबर 2024 को अभिजीत मुहूर्त के दौरान रहेगा, जो सुबह 11 बजकर 51 मिनट से 12 बजकर 40 मिनट तक है। इसके साथ ही इस दिन रवि योग भी बन रहा है, इसलिए विश्वकर्मा पूजा को अभिजीत मुहूर्त में करना अत्यंत शुभ माना जाएगा।

विश्वकर्मा पूजा के लाभ

  • व्यवसाय में वृद्धि: विश्वकर्मा पूजा से व्यापार में वृद्धि होती है। पूजा के बाद कार्यक्षेत्र में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • सुरक्षा और स्थिरता: माना जाता है कि पूजा से उपकरण और मशीनों की सुरक्षा होती है और वे लंबे समय तक स्थिर रहते हैं।
  • श्रद्धा और भक्ति: विश्वकर्मा पूजा से भक्ति और श्रद्धा की भावना बढ़ती है, जिससे मानसिक शांति मिलती है।
  • कौशल और कला में निपुणता: इस दिन पूजा करने से व्यक्ति की कला और कौशल में वृद्धि होती है।

विश्वकर्मा पूजा विधि

विश्वकर्मा पूजा का आरंभ प्रातःकाल में होता है। पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:

  • एक साफ और स्वच्छ स्थान
  • एक सफेद कपड़ा
  • भगवान विश्वकर्मा जी की प्रतिमा या चित्र
  • चंदन, हल्दी, कुमकुम, और फूल
  • धूप, दीपक, और अगरबत्ती
  • प्रसाद (लड्डू, नारियल, और अन्य मिठाइयाँ)
  • औजारों और मशीनों का निरीक्षण और सफाई

पूजा की प्रक्रिया में सर्वप्रथम भगवान विश्वकर्मा जी की प्रतिमा को एक साफ स्थान पर स्थापित किया जाता है। इसके बाद, चंदन, हल्दी, और कुमकुम से तिलक किया जाता है और फूल अर्पित किए जाते हैं। पूजा के दौरान मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, और अंत में आरती की जाती है।

विश्वकर्मा जी की आरती

ॐ जय श्री विश्वकर्मा,  प्रभु जय श्री विश्वकर्मा ।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक स्तुति धर्मा ।। 1 ।।

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
जीव मात्र का जग में, ज्ञान विकास किया।। 2।। 

ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नहीं पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्ध आई ।। 3 ।।

रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रय लीना ।
संकट मोचन बन कर दूर दुःख कीना ।। 4 ।।

 जब रथकार दम्पति, तुम्हारी टेर करी ।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी ।। 5 ।।

 एकानन चतुरानन, पंचानन राजे ।
द्विभुज, चतुर्भुज, दसभुज, सकल रूप साजे ।। 6 ।।

ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जाये, अटल शांति पावे ।। 7 ।।

 श्री विश्वकर्मा जी की आरती जो कोई जन गावे ।।
कहत गजानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे ।। 8 ।।

विश्वकर्मा जी की आरती का महत्त्व

आरती को पूजा का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। यह पूजा के अंत में की जाती है और इसे भगवान के प्रति समर्पण और श्रद्धा के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। विश्वकर्मा जी की आरती विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पूजा को पूर्णता प्रदान करती है। धार्मिक मान्यता है कि बिना आरती के पूजा अधूरी मानी जाती है।

आरती के दौरान दीपक जलाया जाता है और उसे भगवान की प्रतिमा के सामने घुमाया जाता है। इसे भगवान के प्रति आभार प्रकट करने का तरीका माना जाता है। आरती के समय भक्तजन मिलकर गाते हैं और इस प्रकार से भगवान का गुणगान करते हैं। यह आरती भक्तों में उत्साह, समर्पण और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करती है।

आरती के बाद की विधि

आरती के बाद, प्रसाद का वितरण किया जाता है। यह प्रसाद भगवान को भोग लगाया जाता है और फिर इसे सभी उपस्थित लोगों में बांटा जाता है। प्रसाद वितरण के दौरान भक्तजन आपस में विश्वकर्मा जी की महिमा का गुणगान करते हैं और उनकी कृपा की कामना करते हैं।

पूजा और आरती के बाद, विश्वकर्मा पूजा का समापन किया जाता है। इस दौरान सभी औजारों और मशीनों का निरीक्षण किया जाता है और उन्हें उचित रूप से रखा जाता है। विश्वकर्मा पूजा का यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह तकनीकी और औद्योगिक क्षेत्रों में कार्यरत लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है।

विश्वकर्मा पूजा और आरती भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पूजा न केवल भगवान विश्वकर्मा के प्रति श्रद्धा और समर्पण को दर्शाती है, बल्कि यह हमें अपने कार्यक्षेत्र में सफलता और समृद्धि की कामना करने के लिए प्रेरित करती है। इस दिन की गई पूजा और आरती हमें हमारी तकनीकी और औद्योगिक दक्षताओं का सम्मान करने और उन्हें विकसित करने की प्रेरणा देती है।

विश्वकर्मा पूजा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक आयोजन भी है। इस दिन विभिन्न क्षेत्रों के कारीगर और श्रमिक एकत्र होते हैं और सामूहिक रूप से पूजा करते हैं। इससे समाज में एकता और भाईचारा की भावना बढ़ती है।

इस प्रकार, विश्वकर्मा पूजा आरती केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में सफलता, समृद्धि, और खुशहाली लाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। इस ब्लॉग के माध्यम से, हमने विश्वकर्मा पूजा और आरती के महत्व, विधि, और इसके पीछे की धार्मिक मान्यताओं पर विस्तार से चर्चा की है। आशा है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी और आपको विश्वकर्मा पूजा के महत्व को समझने में सहायता करेगी।

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