Tilak Mantra – तिलक मंत्र

तिलक मंत्र हिन्दू धर्म में उस समय पढ़ा जाता है जब तिलक लगाया जाता है। तिलक एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथा है, जो आध्यात्मिक जागृति, पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक है। यह माथे पर विभिन्न प्रकार के चिन्हों के रूप में लगाया जाता है, जैसे कि उर्दू बिंदु, त्रिपुंड, चंदन, कुमकुम आदि।

तिलक लगाने के समय प्रयोग किए जाने वाले मंत्र में थोड़ी भिन्नता हो सकती है, जो व्यक्ति के संप्रदाय या परंपरा पर निर्भर करती है। एक सामान्य मंत्र जो अक्सर तिलक लगाते समय पढ़ा जाता है, वह है:

“ऊँ श्री गणेशाय नमः”

या

“ऊँ नमः शिवाय”

यह मंत्र भगवान गणेश या भगवान शिव के प्रति समर्पण और आदर को व्यक्त करता है, जिससे धार्मिक क्रिया की शुद्धता और सफलता की कामना की जाती है।

वैष्णव संप्रदाय में, जहाँ विष्णु या कृष्ण की उपासना की जाती है, तिलक लगाते समय वैष्णव मंत्रों का जप किया जाता है, जैसे कि:

और इसी तरह से विष्णु के विभिन्न नामों के साथ।

तिलक लगाते समय मंत्र

यह मंत्र वैष्णव तिलक धारण करते समय का एक विशेष मंत्र है, जो भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों के ध्यान और आह्वान को दर्शाता है। इस मंत्र में शरीर के विभिन्न भागों पर भगवान विष्णु के अवतारों या रूपों को ध्यान में रखते हुए तिलक लगाने की प्रक्रिया का वर्णन है। इसे विस्तार से समझते हैं:

  • ललाटे केशवं ध्यायेन्नारायणमथोदरे: माथे (ललाट) पर केशव (भगवान विष्णु का एक नाम) का ध्यान करते हुए और उदर (पेट) में नारायण का ध्यान करें।
  • वक्षःस्थले माधवं तु गोविन्दं कण्ठकूपके: छाती (वक्षस्थल) पर माधव और कण्ठ (गले) में गोविन्द का ध्यान करें।
  • विष्णुं दक्षिणे कुक्षौ बाहु मधुसूदनम्: दाहिनी ओर (दक्षिण कुक्ष) में विष्णु और बाहु (हाथ) में मधुसूदन का ध्यान करें।
  • त्रिविक्रमं कन्धरे तु वामनं वामपार्श्वके: कंधे (कंधर) में त्रिविक्रम और वाम पार्श्व (बाईं ओर) में वामन का ध्यान करें।
  • श्रीधरं वामबाहु तु हृषीकेशं तु कन्धरे: वाम बाहु (बाएँ हाथ) में श्रीधर और कंधर (कंधे) में हृषीकेश का ध्यान करें।
  • पृष्ठे पद्मनाभं कट्यां दामोदरं न्यसेत्: पीठ पर पद्मनाभ और कटि (कमर) में दामोदर का ध्यान करें।

इस मंत्र का उद्देश्य भक्त के शरीर को भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों और रूपों से युक्त करके पूजा या अनुष्ठान के लिए पवित्र और उत्तम बनाना है। यह मंत्र यह दर्शाता है कि भक्त का पूरा अस्तित्व भगवान विष्णु की दिव्यता से भरा हुआ है, और वह समर्पण भाव से अपने प्रत्येक कर्म को उनकी आराधना में समर्पित करता है।

यह मंत्र तिलक लगाने के समय का एक अन्य वैष्णव मंत्र है, जिसमें तिलक के माध्यम से पवित्रता, यश, और आयु की वृद्धि की कामना की जाती है। मंत्र का अर्थ निम्नलिखित है:

“केशवानन्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम । पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।”

  • केशव – भगवान विष्णु का एक नाम, जिसका अर्थ है जिन्होंने काली नाग का वध किया।
  • अनन्त – अनन्त, या अनंत, भगवान विष्णु के शेषनाग रूप को दर्शाता है, जो अनंतता का प्रतीक है।
  • गोविन्द – गोविन्द, जिसका अर्थ है गौओं का पालनहार, यह भी विष्णु या कृष्ण का एक नाम है।
  • बाराह – बाराह, या वराह, भगवान विष्णु के तीसरे अवतार का संदर्भ है, जिन्होंने सूअर का रूप लिया था।
  • पुरुषोत्तम – पुरुषोत्तम, या सर्वोत्तम पुरुष, भगवान विष्णु के लिए एक और नाम है।
  • पुण्यं – पुण्य, या पवित्रता।
  • यशस्यमायुष्यं – यश और आयु की वृद्धि।
  • तिलकं मे प्रसीदतु – मेरे तिलक को प्रसन्नता प्रदान करें।

इस मंत्र के माध्यम से, भक्त तिलक लगाते समय भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों को याद करते हुए उनसे पवित्रता, यश, और लंबी आयु की कामना करता है। यह मंत्र दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा को आकर्षित करने और भक्त के जीवन को इन गुणों से समृद्ध करने का एक माध्यम है।

तिलक लगाने की प्रथा हिन्दू धर्म में गहरी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है। यह केवल शारीरिक सजावट नहीं है, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक क्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को प्रकट करता है।

तिलक लगाना निम्नलिखित उद्देश्यों को सेवा प्रदान करता है:

  • आध्यात्मिक चेतना की याद दिलाना: तिलक लगाने से व्यक्ति को दैनिक जीवन में अपनी आध्यात्मिक जड़ों की याद दिलाई जाती है। यह उसे यह याद दिलाता है कि जीवन में आध्यात्मिक विकास और धर्म का पालन करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि शारीरिक और मानसिक विकास।
  • दिव्य ऊर्जा से जुड़ाव: तिलक लगाने से व्यक्ति ईश्वरीय ऊर्जा और दिव्य शक्तियों के साथ एक गहरा संबंध महसूस करता है। यह उसे ईश्वर के निकटता का अहसास कराता है और उसकी आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है।
  • भक्ति और समर्पण: तिलक लगाना ईश्वर के प्रति भक्ति और समर्पण की भावना को दृढ़ करता है। यह व्यक्ति को अपने दैनिक कार्यों में ईश्वर के प्रति अपनी आस्था और भक्ति को प्रकट करने का एक अवसर प्रदान करता है।
  • संरक्षण और शक्ति: कुछ परंपराओं में, तिलक लगाने को ईश्वरीय संरक्षण और आशीर्वाद प्राप्त करने के एक माध्यम के रूप में देखा जाता है। यह व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षित रखने और उसे आंतरिक शक्ति प्रदान करने का एक साधन माना जाता है।

इस प्रकार, तिलक लगाना एक गहन आध्यात्मिक प्रक्रिया है जो व्यक्ति को दैनिक जीवन में आध्यात्मिक मार्गदर्शन और शक्ति प्रदान करती है।

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तिलक क्या है और हिंदू धर्म में इसका महत्व क्या है?

हिंदू धर्म में तिलक एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथा है जो आध्यात्मिक जागृति, पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक है। भक्ति और दैवीय ऊर्जा की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसे उर्ध्व पुंड्र, त्रिपुंड्र, चंदन का पेस्ट, या कुमकुम जैसे विभिन्न रूपों में माथे पर लगाया जाता है।

हिंदू रीति-रिवाजों में तिलक लगाने में मंत्रों की क्या भूमिका होती है?

तिलक लगाने के दौरान पढ़े जाने वाले मंत्र दैवीय आशीर्वाद का आह्वान करते हैं और अनुष्ठान की शुद्धता और सफलता के उद्देश्य से भगवान गणेश या भगवान शिव जैसे देवताओं के प्रति भक्ति व्यक्त करते हैं। वैष्णववाद में, भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों का उल्लेख करने वाले विशिष्ट मंत्रों का जाप किया जाता है, जो भक्त को दैवीय गुणों से जोड़ता है।

हिंदू धर्म में तिलक लगाने के क्या लक्ष्य हैं?

तिलक लगाने से कई आध्यात्मिक उद्देश्य पूरे होते हैं: यह भक्तों को उनकी आध्यात्मिक जड़ों और धार्मिक प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता की याद दिलाता है, उन्हें दैवीय ऊर्जा के साथ गहराई से जोड़ता है, भगवान के प्रति उनकी भक्ति और समर्पण को मजबूत करता है, और इसे दिव्य सुरक्षा और आंतरिक शक्ति के साधन के रूप में देखा जाता है। . यह पूजा और दैनिक जीवन के लिए स्वयं को पवित्र करने, परमात्मा से संबंध बनाए रखने के कार्य का प्रतीक है।





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