संपूर्ण स्वस्तिवाचन मंत्र हिन्दू धर्म में एक पवित्र और शुभारंभ मंत्र है जिसे विवाह, पूजा, यज्ञ और अन्य शुभ कार्यों के प्रारंभ में उच्चारित किया जाता है। यह मंत्र भगवान गणेश, देवी सरस्वती, और अन्य देवताओं को समर्पित होता है और उनसे आशीर्वाद और सफलता की प्रार्थना करता है। स्वस्तिवाचन में कई मंत्र शामिल हो सकते हैं, जो संस्कृत में होते हैं और इनमें से प्रत्येक का अपना विशिष्ट अर्थ और महत्व होता है।
सटीक स्वस्तिवाचन मंत्र क्षेत्रीय परंपराओं और प्रथाओं के आधार पर भिन्न हो सकता है। इसलिए, यदि आप एक विशिष्ट स्वस्तिवाचन मंत्र की तलाश में हैं, तो यह सुझाव दिया जाता है कि आप अपनी सांस्कृतिक और क्षेत्रीय परंपराओं के अनुसार एक पंडित या धार्मिक गुरु से संपर्क करें। वे आपको सबसे उपयुक्त और पारंपरिक स्वस्तिवाचन मंत्र प्रदान कर सकते हैं।
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
यह मंत्र वैदिक ऋचाओं में से एक है जो समृद्धि, कल्याण और शांति की कामना करता है। इसका शाब्दिक अर्थ और व्याख्या इस प्रकार है:
- ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः: इस भाग में प्रार्थना की गई है कि इंद्र देवता, जो वीरता और शक्ति के प्रतीक हैं और जिनकी कीर्ति वृद्धि होती जा रही है, हमें स्वस्ति (कल्याण) प्रदान करें।
- स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः: इस अंश में पूषा देवता के लिए प्रार्थना की गई है, जो ज्ञान और विश्व के पोषक हैं, वे हमें स्वस्ति प्रदान करें।
- स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः: यहाँ गरुड़, जिन्हें तार्क्ष्य कहा जाता है, जो विष्णु के वाहन हैं और जिनका नेमि (चक्र) अरिष्ट (नाश नहीं होने वाला) है, से कल्याण की कामना की गई है।
- स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु: बृहस्पति, जो देवताओं के गुरु हैं और ज्ञान एवं बुद्धि के प्रतीक हैं, से यह प्रार्थना की गई है कि वे हमें स्वस्ति प्रदान करें।
- ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः: इसका अर्थ है “शांति, शांति, शांति।” इसे तीन बार दोहराया जाता है ताकि आद्यात्मिक, आधिभौतिक, और आधिदैविक स्तरों पर शांति स्थापित हो सके।
इस प्रकार, यह मंत्र भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह के कल्याण की कामना करता है, साथ ही साथ तीनों लोकों में शांति की प्रार्थना करता है। यह हमें याद दिलाता है कि प्रकृति और ब्रह्मांड के सभी तत्वों के साथ सामंजस्य और संतुलन में रहने का महत्व है।
स्वस्तिक मंत्र को जाप करने की विधि
स्वस्तिक मंत्र का जाप आपके आध्यात्मिक जीवन में शांति, समृद्धि और सकारात्मकता लाने के लिए किया जा सकता है। यहाँ एक सामान्य विधि दी गई है जिसका अनुसरण करके आप स्वस्तिक मंत्र का जाप कर सकते हैं:
- स्थान का चयन: एक शांत और पवित्र स्थान चुनें जहाँ आप बिना किसी बाधा के ध्यान केंद्रित कर सकें। यह आपके घर का एक विशेष कोना, पूजा कक्ष या कोई शांत बाहरी स्थान हो सकता है।
- स्वच्छता: जाप करने से पहले, स्नान करें और साफ सुथरे वस्त्र पहनें। यह आपके मन और शरीर को शुद्ध करने में मदद करेगा।
- आसन: एक आरामदायक आसन पर बैठें। आप कमल आसन, सुखासन या किसी भी ऐसे आसन में बैठ सकते हैं जिसमें आपको आराम महसूस हो। अपनी रीढ़ को सीधा रखें।
- प्रारंभिक ध्यान: कुछ मिनट के लिए गहरी सांसें लेकर अपने मन को शांत करें। अपने मन को शांत करें और सभी बाहरी चिंताओं को दूर करें।
- संकल्प: मन में या मौखिक रूप से अपने जाप का संकल्प लें। संकल्प में आपके जाप के उद्देश्य का उल्लेख होना चाहिए।
- मंत्र जाप: अब, धीरे-धीरे और एकाग्रता के साथ स्वस्तिक मंत्र का जाप शुरू करें। आप इसे मानसिक रूप से या धीरे-धीरे मौखिक रूप से दोहरा सकते हैं। जाप की संख्या आमतौर पर 108 या उसके गुणक होती है, जैसे कि 216, 324, आदि। इसके लिए आप माला का उपयोग कर सकते हैं।
- ध्यान और समर्पण: मंत्र जाप के बाद, कुछ समय के लिए ध्यान में बैठें और उस दिव्य ऊर्जा को महसूस करें जो आपने जाप के माध्यम से आकर्षित की है। अपने आप को उस ऊर्जा के प्रति समर्पित करें।
- समापन: अंत में, अपने हाथों को जोड़कर और अपने दिल में आभार की भावना के साथ, इस ध्यान सत्र के समापन के लिए धन्यवाद दें।
यह विधि आपको स्वस्तिक मंत्र का जाप करने में मदद कर सकती है। नियमित अभ्यास से आपको इसके लाभों का अनुभव होगा।
स्वस्तिक मंत्र के लाभ
स्वस्तिक मंत्र, जिसे स्वस्तिवाचन मंत्र भी कहा जाता है, के कई लाभ हैं। ये मंत्र न केवल व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति लाते हैं, बल्कि कई अन्य पहलुओं पर भी सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यहाँ कुछ मुख्य लाभ दिए गए हैं:
- मानसिक शांति: स्वस्तिक मंत्र का जाप करने से मन को शांति मिलती है। यह चिंता, तनाव, और अवसाद से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: इस मंत्र का जाप करने से आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे नकारात्मकता कम होती है।
- सफलता और समृद्धि: स्वस्तिक मंत्र के जाप से कार्यों में सफलता और जीवन में समृद्धि आने की मान्यता है। यह व्यक्ति को उनके प्रयासों में सहायता प्रदान करता है।
- रक्षा और सुरक्षा: यह मंत्र व्यक्ति को बुरी शक्तियों और नकारात्मक प्रभावों से बचाने में सहायक होता है, जिससे वे अधिक सुरक्षित और संरक्षित महसूस करते हैं।
- शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: स्वस्तिक मंत्र का नियमित जाप शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक हो सकता है, जैसे कि बेहतर नींद और ऊर्जा का स्तर।
- आध्यात्मिक उन्नति: स्वस्तिक मंत्र का जाप आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है। यह व्यक्ति को उच्चतर चेतना के स्तर तक पहुँचने में मदद करता है और दिव्य ऊर्जाओं के साथ संबंध स्थापित करने में सहायता करता है।
स्वस्तिवाचन मंत्र क्या है?
स्वस्तिवाचन मंत्र हिन्दू धर्म में एक पवित्र और शुभारंभ मंत्र है, जिसे विवाह, पूजा, यज्ञ और अन्य शुभ कार्यों के प्रारंभ में उच्चारित किया जाता है। यह भगवान गणेश, देवी सरस्वती और अन्य देवताओं को समर्पित होता है और उनसे सफलता के लिए आशीर्वाद की प्रार्थना करता है।
स्वस्तिवाचन मंत्र का अभ्यास कैसे किया जाता है?
मंत्र का जाप एक शांत और पवित्र स्थान पर किया जाता है, स्नान करके और साफ कपड़े पहनकर। आरामदायक मुद्रा में बैठकर, मन को शांत करने के लिए गहरी सांसें लेकर शुरू किया जाता है, जाप के लिए एक संकल्प बनाया जाता है, और फिर मंत्र का जाप किया जाता है, आमतौर पर 108 बार या इसके गुणकों में, माला का उपयोग करके गिनती के लिए।
स्वस्तिवाचन मंत्र का जाप करने के लाभ क्या हैं?
मंत्र का जाप करने से मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा, सफलता, सुरक्षा मिलती है, और शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह आध्यात्मिक उन्नति में भी सहायक होता है, व्यक्ति को उच्चतर चेतना के स्तर तक पहुँचने में मदद करता है।
स्वस्तिवाचन मंत्र शांति कैसे प्रोत्साहित करता है?
मंत्र “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः” के साथ समाप्त होता है, जो आध्यात्मिक, भौतिक, और दैविक स्तरों पर शांति की कामना का प्रतीक है, प्रकृति और ब्रह्मांड के सभी तत्वों के साथ सामंजस्य और संतुलन के महत्व पर जोर देता है।
1 thought on “स्वस्तिवाचन मंत्र, स्वस्ति वाचन मंत्र- अर्थ और उसकी ब्याख्या”