श्री बगलामुखी स्तुति एक आध्यात्मिक प्रार्थना है जो देवी बगलामुखी, एक हिन्दू तंत्र देवता के सम्मान में की जाती है। देवी बगलामुखी को शक्ति, विजय, और स्तम्भन (दूसरों को निर्बल बनाने की शक्ति) की देवी माना जाता है। वे अक्सर पीत वस्त्र धारण किए हुए और एक स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान दिखाई देती हैं, जिनके हाथ में एक दमनकारी मुद्गर (हथौड़ा) होता है। इस स्तुति के माध्यम से, भक्त देवी की शक्ति की प्रशंसा करते हैं, उनसे बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करते हैं, और जीवन में सफलता, समृद्धि, और सुरक्षा की कामना करते हैं।
।। अथ श्री बगलामुखी स्तुति।।
नमो महाविधा बरदा, बगलामुखी दयाल।
स्तम्भन क्षण में करे, सुमरित अरिकुल काल।।
नमो नमो पीताम्बरा भवानी, बगलामुखी नमो कल्यानी।
भक्त वत्सला शत्रु नशानी, नमो महाविधा वरदानी।।
नमो महाविधा बरदा, बगलामुखी दयाल। इस पहले श्लोक में, देवी बगलामुखी की दयालुता, उनकी शक्ति और उनकी कृपा की स्तुति की गई है। यहाँ उन्हें ‘महाविधा बरदा’ के रूप में संबोधित किया गया है, जिसका अर्थ है कि वह ज्ञान और वरदानों की महान दात्री हैं। ‘बगलामुखी दयाल’ का अर्थ है कि वह अत्यंत दयालु हैं।
‘स्तम्भन क्षण में करे, सुमरित अरिकुल काल’ से पता चलता है कि देवी बगलामुखी की शक्ति से शत्रुओं का स्तंभन (रोक) तत्काल होता है, अर्थात वह भक्तों के शत्रुओं को क्षण मात्र में निष्क्रिय कर देती हैं।
‘नमो नमो पीताम्बरा भवानी, बगलामुखी नमो कल्यानी’ में देवी को पीताम्बरा (पीले वस्त्र धारण करने वाली), भवानी, और कल्याणी (कल्याणकारी) के रूप में नमन किया गया है, जो उनके विभिन्न दिव्य रूपों और गुणों को प्रकट करता है।
‘भक्त वत्सला शत्रु नशानी, नमो महाविधा वरदानी’ में देवी को भक्तों के प्रति स्नेहशील (भक्त वत्सला) और शत्रुओं का नाश करने वाली (शत्रु नशानी) के रूप में स्तुति की गई है। इसमें फिर से उन्हें ‘महाविधा वरदानी’ के रूप में नमन किया गया है, जो उनकी वरदान देने की महान शक्ति को दर्शाता है।
अमृत सागर बीच तुम्हारा, रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा।
स्वर्ण सिंहासन पर आसीना, पीताम्बर अति दिव्य नवीना।।
स्वर्णभूषण सुन्दर धारे, सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे।
तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, धारे मुद्गर पाश कराला।।
इस श्लोक में देवी बगलामुखी की दिव्यता और भव्यता का वर्णन किया गया है। देवी को अमृत सागर के मध्य में, रत्नों से जड़ित और मणियों से सजे हुए एक अत्यंत सुंदर स्थान पर विराजमान बताया गया है।
- अमृत सागर बीच तुम्हारा, रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा: देवी का स्थान अमृत सागर के बीचो-बीच है, जो दिव्यता और अमरत्व का प्रतीक है। उनका सिंहासन रत्नों और मणियों से सजा हुआ है, जो उनके दिव्य स्वरूप को दर्शाता है।
- स्वर्ण सिंहासन पर आसीना, पीताम्बर अति दिव्य नवीना: देवी सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं और पीले वस्त्र (पीताम्बर) धारण किए हुए हैं, जो उनके दिव्य और नवीन स्वरूप को प्रकट करता है।
- स्वर्णभूषण सुन्दर धारे, सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे: देवी स्वर्ण भूषणों से सजी हुई हैं और उनके सिर पर चन्द्रमा का मुकुट है, जो उनकी भव्यता और सौंदर्य को और भी बढ़ाता है।
- तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, धारे मुद्गर पाश कराला: देवी के तीन नेत्र और दो भुजाएँ हैं, जिनमें से एक में वे मुद्गर (एक प्रकार का हथियार) और दूसरे में पाश (फंदा) धारण किए हुए हैं। यह उनकी शक्ति और सामर्थ्य को दर्शाता है।
भैरव करे सदा सेवकाई, सिद्ध काम सब विघ्न नसाई।
तुम हताश का निपट सहारा, करे अकिंचन अरिकल धारा।।
तुम काली तारा भुवनेशी, त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी।
छिन्नभाल धूमा मातंगी, गायत्री तुम बगला रंगी।।
इस श्लोक में देवी बगलामुखी की शक्ति, सहायकता और उनके विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है।
- भैरव करे सदा सेवकाई, सिद्ध काम सब विघ्न नसाई: इस पंक्ति में बताया गया है कि भैरव (भगवान शिव का एक रूप) स्वयं देवी की सेवा करते हैं। देवी की कृपा से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और सभी विघ्न (बाधाएँ) दूर होते हैं।
- तुम हताश का निपट सहारा, करे अकिंचन अरिकल धारा: देवी निराशा में डूबे व्यक्तियों का सहारा बनती हैं और उन्हें अरिकल (शत्रुओं) से मुक्ति दिलाती हैं।
- तुम काली तारा भुवनेशी, त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी: देवी के कई रूपों का उल्लेख है जैसे काली, तारा, भुवनेशी, त्रिपुर सुन्दरी, और भैरवी। यह दर्शाता है कि वह सभी दिव्य शक्तियों का स्रोत हैं।
- छिन्नभाल धूमा मातंगी, गायत्री तुम बगला रंगी: यहाँ देवी के अन्य रूपों जैसे छिन्नमस्ता, धूमावती, मातंगी, और गायत्री का भी वर्णन है। ‘बगला रंगी’ उनके बगलामुखी रूप को उजागर करता है, जो सभी रूपों को समाहित करता है।
सकल शक्तियाँ तुम में साजें, ह्रीं बीज के बीज बिराजे।
दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, मारण वशीकरण सम्मोहन।।
दुष्टोच्चाटन कारक माता, अरि जिव्हा कीलक सघाता।
साधक के विपति की त्राता, नमो महामाया प्रख्याता।।
इस श्लोक में देवी बगलामुखी की अद्भुत शक्तियों और उनके द्वारा प्रदान किए गए विभिन्न आशीर्वादों की स्तुति की गई है। यह भक्तों को देवी के विविध रूपों और उनकी अनंत शक्तियों के बारे में बताता है।
- सकल शक्तियाँ तुम में साजें, ह्रीं बीज के बीज बिराजे: इस पंक्ति में देवी को सभी शक्तियों का आधार और ‘ह्रीं’ बीज मंत्र की शक्ति का स्रोत बताया गया है। ‘ह्रीं’ बीज मंत्र दिव्यता और शक्ति का प्रतीक है, जिसे देवी अपने में समाहित किए हुए हैं।
- दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, मारण वशीकरण सम्मोहन: यहाँ देवी की विभिन्न शक्तियों का वर्णन है, जैसे दुष्टों का स्तम्भन (रोकना), शत्रुओं का नाश करना, मारण (मृत्यु प्रयोग), वशीकरण (अधीन करना), और सम्मोहन (मोहित करना)।
- दुष्टोच्चाटन कारक माता, अरि जिव्हा कीलक सघाता: देवी दुष्टों का उच्चाटन (निकालना) करती हैं और शत्रुओं की जिह्वा (भाषण क्षमता) को कीलित (नियंत्रित) करती हैं, जो उनकी वाक् शक्ति और संचार को नियंत्रित करने की क्षमता को दर्शाता है।
- साधक के विपति की त्राता, नमो महामाया प्रख्याता: देवी अपने भक्तों की विपत्तियों से रक्षा करने वाली हैं और उन्हें महामाया के रूप में प्रसिद्ध किया गया है, जो उनकी अद्भुत और मायावी शक्तियों को प्रकट करता है।
मुद्गर शिला लिये अति भारी, प्रेतासन पर किये सवारी।
तीन लोक दस दिशा भवानी, बिचरहु तुम हित कल्यानी।।
अरि अरिष्ट सोचे जो जन को, बुध्दि नाशकर कीलक तन को।
हाथ पांव बाँधहु तुम ताके, हनहु जीभ बिच मुद्गर बाके।।
इस श्लोक में देवी बगलामुखी की शक्ति और कृपा का गुणगान किया गया है। यह वर्णन करता है कि कैसे देवी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उन्हें विपत्तियों से बचाती हैं।
- मुद्गर शिला लिये अति भारी, प्रेतासन पर किये सवारी: देवी एक भारी मुद्गर (हथौड़ा) धारण किए हुए हैं, जिसका प्रयोग वह दुष्टों के विनाश के लिए करती हैं। वे प्रेतासन (प्रेतों का आसन) पर विराजमान हैं, जो उनकी यम के समान शक्ति को दर्शाता है।
- तीन लोक दस दिशा भवानी, बिचरहु तुम हित कल्यानी: देवी तीनों लोकों और दसों दिशाओं में विचरण करती हैं, जिससे वह सभी का कल्याण कर सकें। यह उनकी सर्वव्यापकता और कल्याणकारी स्वभाव को दर्शाता है।
- अरि अरिष्ट सोचे जो जन को, बुध्दि नाशकर कीलक तन को: देवी उन लोगों के लिए विपत्ति लाती हैं जो उनके भक्तों के लिए अरिष्ट (अशुभ) सोचते हैं। वह उनकी बुद्धि को नष्ट कर देती हैं और उनके शरीर को कीलक (कील) द्वारा बाँध देती हैं।
- हाथ पांव बाँधहु तुम ताके, हनहु जीभ बिच मुद्गर बाके: देवी दुष्टों के हाथ-पाँव बाँध देती हैं और उनकी जीभ को मुद्गर से मारती हैं, जिससे वह उनके द्वारा अधिक अनिष्ट न कर सकें।
चोरो का जब संकट आवे, रण में रिपुओं से घिर जावे।
अनल अनिल बिप्लव घहरावे, वाद विवाद न निर्णय पावे।।
मूठ आदि अभिचारण संकट, राजभीति आपत्ति सन्निकट।
ध्यान करत सब कष्ट नसावे, भूत प्रेत न बाधा आवे।।
इस श्लोक में देवी बगलामुखी के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा की भावना को व्यक्त किया गया है, साथ ही यह बताया गया है कि कैसे देवी की उपासना और ध्यान से विभिन्न प्रकार की समस्याओं और संकटों से मुक्ति पाई जा सकती है।
- “चोरो का जब संकट आवे, रण में रिपुओं से घिर जावे।” यह लाइनें बताती हैं कि जब चोरी या शत्रुओं से संकट आता है, तो देवी बगलामुखी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
- “अनल अनिल बिप्लव घहरावे, वाद विवाद न निर्णय पावे।” इसमें वर्णित है कि प्राकृतिक आपदाओं या विवादों के समय भी देवी की उपासना से शांति मिलती है।
- “मूठ आदि अभिचारण संकट, राजभीति आपत्ति सन्निकट।” यह लाइनें कहती हैं कि तंत्र-मंत्र या राजनीतिक भय से उत्पन्न संकटों में भी देवी का स्मरण करने से राहत मिलती है।
- “ध्यान करत सब कष्ट नसावे, भूत प्रेत न बाधा आवे।” इसका अर्थ है कि देवी का ध्यान करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और भूत-प्रेत जैसी बाधाएं नहीं आतीं।
सुमरित राजव्दार बंध जावे, सभा बीच स्तम्भवन छावे।
नाग सर्प ब्रर्चिश्रकादि भयंकर, खल विहंग भागहिं सब सत्वर।।
सर्व रोग की नाशन हारी, अरिकुल मूलच्चाटन कारी।
स्त्री पुरुष राज सम्मोहक, नमो नमो पीताम्बर सोहक।।
यह श्लोक देवी बगलामुखी की शक्तियों और उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले आशीर्वादों का वर्णन करता है। इसमें उल्लेखित है कि देवी की उपासना से कैसे विभिन्न प्रकार के भय और बाधाओं का निवारण होता है।
- “सुमरित राजव्दार बंध जावे, सभा बीच स्तम्भवन छावे।” इसमें कहा गया है कि देवी के स्मरण से राजद्वार (राजा के दरबार) में बंधन आ जाते हैं, यानि समस्याओं का समाधान हो जाता है, और सभा में स्तंभन (शांति) का वातावरण बनता है।
- “नाग सर्प ब्रर्चिश्रकादि भयंकर, खल विहंग भागहिं सब सत्वर।” इस लाइन में वर्णित है कि नाग, सर्प, और अन्य भयंकर जीव-जंतु तथा दुष्ट व्यक्ति भी तेजी से भाग जाते हैं, यानी देवी भक्तों की सभी प्रकार की बाधाओं से रक्षा करती हैं।
- “सर्व रोग की नाशन हारी, अरिकुल मूलच्चाटन कारी।” यहाँ कहा गया है कि देवी सभी प्रकार के रोगों का नाश करने वाली हैं और शत्रुओं के कुल को मूल से उखाड़ फेंकने में सक्षम हैं।
- “स्त्री पुरुष राज सम्मोहक, नमो नमो पीताम्बर सोहक।” इसमें देवी को स्त्री और पुरुष, दोनों के लिए राजसी सम्मोहन प्रदान करने वाली और पीताम्बर (पीले वस्त्र) धारण करने वाली के रूप में नमन किया गया है।
तुमको सदा कुबेर मनावे, श्री समृद्धि सुयश नित गावें।
शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता, दुःख दारिद्र विनाशक माता।।
यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता, शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता।
पीताम्बरा नमो कल्यानी, नमो माता बगला महारानी।।
इस श्लोक में देवी बगलामुखी को समृद्धि, शौर्य और सिद्धि की देवी के रूप में स्तुति की गई है। यह उनके दिव्य गुणों और भक्तों के प्रति उनकी कृपा का वर्णन करता है।
- “तुमको सदा कुबेर मनावे, श्री समृद्धि सुयश नित गावें।” इस पंक्ति का अर्थ है कि धन के देवता कुबेर भी देवी बगलामुखी की पूजा करते हैं, और वे धन, समृद्धि, और ख्याति की देवी हैं।
- “शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता, दुःख दारिद्र विनाशक माता।” देवी शक्ति और शौर्य की स्रोत हैं, और वे दुख और गरीबी को नष्ट करने वाली माँ हैं।
- “यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता, शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता।” यह पंक्ति बताती है कि देवी ख्याति, समृद्धि, और सिद्धियों को प्रदान करती हैं, और शत्रुओं का नाश करके विजय प्रदान करती हैं।
- “पीताम्बरा नमो कल्यानी, नमो माता बगला महारानी।” इसमें देवी को पीताम्बरा (पीले वस्त्र धारण करने वाली), कल्याणी (कल्याण करने वाली), और महारानी बगलामुखी के रूप में नमन किया गया है।
जो तुमको सुमरै चितलाई, योग क्षेम से करो सहाई।
आपत्ति जन की तुरत निवारो, आधि व्याधि संकट सब टारो।।
पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, अर्थ न आखर करहूँ निहोरी।
मैं कुपुत्र अति निवल उपाया, हाथ जोड़ शरणागत आया।।
इस श्लोक में भक्त देवी बगलामुखी के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और विनम्रता का प्रकटीकरण कर रहा है। यह श्लोक भक्ति और समर्पण की भावना को व्यक्त करता है, जिसमें भक्त अपनी सीमाओं और अज्ञानता को स्वीकार करते हुए, देवी की शरण में आता है।
- “जो तुमको सुमरै चितलाई, योग क्षेम से करो सहाई।” इसमें भक्त यह कह रहा है कि जो कोई भी देवी का स्मरण करता है, देवी उसे योग (प्राप्ति) और क्षेम (संरक्षण) में सहायता करती हैं।
- “आपत्ति जन की तुरत निवारो, आधि व्याधि संकट सब टारो।” यहाँ भक्त देवी से प्रार्थना करता है कि वे सभी प्रकार की आपत्तियों, व्याधियों और संकटों को तुरंत दूर करें।
- “पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, अर्थ न आखर करहूँ निहोरी।” इस लाइन में भक्त अपनी अज्ञानता को स्वीकार करता है, कहता है कि वह देवी की पूजा की सही विधि या मंत्रों के अर्थ को नहीं जानता।
- “मैं कुपुत्र अति निवल उपाया, हाथ जोड़ शरणागत आया।” यहाँ भक्त खुद को कुपुत्र और निम्न स्तर का कहता है, जो विनम्रता के साथ देवी की शरण में आया है।
जग में केवल तुम्हीं सहारा, सारे संकट करहुँ निवारा।
नमो महादेवी हे माता, पीताम्बरा नमो सुखदाता।।
सोम्य रूप धर बनती माता, सुख सम्पत्ति सुयश की दाता।
रोद्र रूप धर शत्रु संहारो, अरि जिव्हा में मुद्गर मारो।।
इस श्लोक में देवी बगलामुखी को सर्वोच्च सहायक और संकटों के निवारण में सक्षम देवी के रूप में वर्णित किया गया है। यह श्लोक देवी की स्तुति करते हुए उनकी विभिन्न शक्तियों और रूपों का उल्लेख करता है।
- “जग में केवल तुम्हीं सहारा, सारे संकट करहुँ निवारा।” यह लाइनें देवी को इस जगत में एकमात्र सहारा बताती हैं, जो सभी संकटों को दूर करती हैं।
- “नमो महादेवी हे माता, पीताम्बरा नमो सुखदाता।” इसमें देवी को महादेवी और सुखदाता के रूप में नमन किया गया है, जो पीताम्बरा (पीले वस्त्रों में सुशोभित) हैं।
- “सोम्य रूप धर बनती माता, सुख सम्पत्ति सुयश की दाता।” देवी के सौम्य रूप का वर्णन है जो सुख, समृद्धि और यश प्रदान करते हैं।
- “रोद्र रूप धर शत्रु संहारो, अरि जिव्हा में मुद्गर मारो।” देवी के रौद्र रूप का वर्णन है जो शत्रुओं का संहार करते हैं और उनकी जिह्वा में मुद्गर से प्रहार करते हैं।
नमो महाविधा आगारा, आदि शक्ति सुन्दरी आपारा।
अरि भंजक विपत्ति की त्राता, दया करो पीताम्बरी माता।।
रिद्धि सिद्धि दाता तुम्हीं, अरि समूल कुल काल।
मेरी सब बाधा हरो, माँ बगले तत्काल।।
इस श्लोक में, भक्त देवी बगलामुखी की महिमा और उनके दिव्य गुणों की स्तुति कर रहे हैं। देवी को ज्ञान का भंडार, आदि शक्ति, और असीम सौंदर्य की देवी के रूप में वर्णित किया गया है। भक्त उनसे विपत्तियों से रक्षा करने और रिद्धि-सिद्धि (समृद्धि और आध्यात्मिक शक्तियाँ) प्रदान करने की प्रार्थना कर रहे हैं।
- “नमो महाविधा आगारा, आदि शक्ति सुन्दरी आपारा।” देवी को महाविद्याओं की आधारशिला, आदिम शक्ति, और अनुपम सौंदर्य की धारक के रूप में नमन किया गया है।
- “अरि भंजक विपत्ति की त्राता, दया करो पीताम्बरी माता।” यहाँ देवी से शत्रुओं और विपत्तियों का नाश करने और दया करने की प्रार्थना की गई है। ‘पीताम्बरी माता’ उनके पीले वस्त्रों की ओर संकेत करता है।
- “रिद्धि सिद्धि दाता तुम्हीं, अरि समूल कुल काल।” देवी को समृद्धि और आध्यात्मिक शक्तियों की प्रदाता बताया गया है, जो शत्रुओं के कुल के लिए काल (मृत्यु) समान हैं।
- “मेरी सब बाधा हरो, माँ बगले तत्काल।” भक्त देवी से अपनी सभी बाधाओं को तत्काल दूर करने की प्रार्थना कर रहे हैं।
इस स्तुति में देवी को विभिन्न नामों और रूपों में संबोधित किया जाता है, जैसे कि पीताम्बरा (पीले वस्त्र वाली), ब्रह्मास्त्र रूपिणी (ब्रह्मास्त्र की शक्ति वाली), और महाविद्या (महान ज्ञान वाली)। यह स्तुति भक्तों को एक गहरी आध्यात्मिक शांति और संतोष प्रदान करती है, साथ ही उन्हें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने के लिए देवी की असीम शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।