“सूर्य कवच” का अर्थ होता है एक ऐसा ढाल या सुरक्षात्मक परत जो सूर्य से संबंधित होता है। यह आध्यात्मिक या धार्मिक संदर्भ में प्रयोग हो सकता है, जैसे कि हिन्दू धर्म में सूर्य देवता के स्तोत्रों में सूर्य कवच का वर्णन मिलता है। इसका उद्देश्य होता है व्यक्ति को सूर्य देवता के आशीर्वाद से रोगों, दुर्भाग्य और अन्य नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षित रखना।
“सूर्य कवच स्तोत्र” हिन्दू धर्म में एक प्राचीन और पवित्र प्रार्थना है जिसे सूर्य देवता की स्तुति और उनसे सुरक्षा मांगने के लिए गाया जाता है। यह स्तोत्र सूर्य देवता के दिव्य गुणों और शक्तियों का वर्णन करता है और उनसे आरोग्य, समृद्धि, और सुरक्षा की प्रार्थना करता है।
सूर्य कवच स्तोत्र का पाठ करने से माना जाता है कि व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति आती है, साथ ही यह उसे नेगेटिविटी और बुरी शक्तियों से बचाता है। इसका पाठ आमतौर पर सुबह के समय किया जाता है, जब सूर्य उदय हो रहा होता है, क्योंकि इस समय सूर्य की किरणें मानी जाती हैं सबसे शक्तिशाली होती हैं।
सूर्य कवच
श्रीसूर्यध्यानम्
रक्तांबुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं
भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।
पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जैः
माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्॥
श्री सूर्यप्रणामः
जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥
। याज्ञवल्क्य उवाच ।
श्रुणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् ।
शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्व सौभाग्यदायकम् ॥ १॥
दैदिप्यमानं मुकुटं स्फ़ुरन्मकरकुण्डलम् ।
ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्॥२ ॥
शिरो मे भास्करः पातु ललाटे मेSमितद्दुतिः ।
नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः ॥३ ॥
घ्राणं धर्म धृणिः पातु वदनं वेदवाहनः ।
जिह्वां मे मानदः पातु कंठं मे सुरवंदितः ॥ ४ ॥
स्कंधौ प्रभाकरं पातु वक्षः पातु जनप्रियः ।
पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वागं सकलेश्वरः ॥५ ॥
सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके ।
दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्वसिद्धयः ॥६ ॥
सुस्नातो यो जपेत्सम्यक् योSधीते स्वस्थ मानसः ।
स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विंदति ॥ ७ ॥
॥ इति श्री माद्याज्ञवल्क्यमुनिविरचितं सूर्यकवचस्तोत्रं संपूर्णं ॥
सूर्य कवच अर्थ सहित
रक्तांबुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं
भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।
पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जैः
माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्॥
अर्थ: मैं भजन करता हूँ भानु (सूर्य) को, जो रक्ताम्बुज (लाल कमल) पर आसन लगाए हुए हैं और जो सभी गुणों के सागर हैं। वह समस्त जगत के स्वामी हैं। उनके हाथों में पद्म (कमल) हैं और वे अभय और वरदान का संकेत देते हुए प्रतीत होते हैं। उनके मस्तक पर माणिक्य का मुकुट है और उनकी देह का रंग अरुण (सूर्य की पहली किरणों का रंग) है। उनके तीन नेत्र हैं।
इस श्लोक के माध्यम से सूर्य देवता की महिमा का वर्णन किया गया है और उनकी दिव्यता एवं सर्वगुण सम्पन्नता को दर्शाया गया है। यह स्तुति उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करती है।
श्री सूर्यप्रणामः
जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥
अर्थ: मैं प्रणाम करता हूँ दिवाकर (सूर्य) को, जिनका रंग जपाकुसुम (हिबिस्कस फूल) के समान है, जो काश्यप ऋषि के वंशज हैं, और जिनकी महाद्युति (महान चमक) है। वे अंधकार को दूर करने वाले हैं और सभी पापों का नाश करने वाले हैं।
इस श्लोक के माध्यम से सूर्य देवता की दिव्य ऊर्जा और उनकी पापनाशक क्षमताओं की स्तुति की गई है। यह विश्वास और भक्ति का प्रतीक है, जिसे व्यक्त करने के लिए भक्त अपनी विनम्रता और समर्पण का भाव प्रकट करते हैं।
। याज्ञवल्क्य उवाच ।
श्रुणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् ।
शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्व सौभाग्यदायकम् ॥ १॥
अर्थ: याज्ञवल्क्य कहते हैं, “हे मुनिशार्दूल (महान मुनि), सुनो सूर्य के शुभ कवच के बारे में, जो दिव्य है और शरीर को रोगमुक्त करता है तथा सर्वप्रकार की सौभाग्य प्रदान करता है।”
दैदिप्यमानं मुकुटं स्फ़ुरन्मकरकुण्डलम् ।
ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्॥२ ॥
अर्थ: एक चमकदार मुकुट और चमकते हुए मकर कुंडल (मछली के आकार के झुमके) के साथ, सूर्य के सहस्र (हजारों) किरणों का ध्यान करते हुए, इस स्तोत्र का उच्चारण किया जाना चाहिए।
शिरो मे भास्करः पातु ललाटे मेSमितद्दुतिः ।
नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः ॥३ ॥
अर्थ: मेरे सिर की रक्षा भास्कर (सूर्य) करे, मेरे ललाट (माथा) को अमित द्युति (अनंत चमक) वाले पातु, मेरी आँखों की रक्षा दिनमणि (सूर्य) करे, और मेरे कानों की रक्षा वासरेश्वर (सूर्य) करे।
घ्राणं धर्म धृणिः पातु वदनं वेदवाहनः ।
जिह्वां मे मानदः पातु कंठं मे सुरवंदितः ॥ ४ ॥
अर्थ: मेरी नाक की रक्षा धर्मधृणि (सूर्य, धर्म का संवाहक) करे, मेरे चेहरे की रक्षा वेदवाहन (सूर्य, वेदों को धारण करने वाला) करे, मेरी जिह्वा (जीभ) की रक्षा मानद (सम्मान देने वाला) करे, और मेरे कंठ की रक्षा सुरवंदित (देवताओं द्वारा पूजित) करे।
स्कंधौ प्रभाकरं पातु वक्षः पातु जनप्रियः ।
पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वागं सकलेश्वरः ॥५ ॥
अर्थ: मेरे कंधों की रक्षा प्रभाकर (सूर्य, प्रकाश का स्रोत) करे, मेरी छाती की रक्षा जनप्रिय (लोकप्रिय, सूर्य) करे, मेरे पैरों की रक्षा द्वादशात्मा (बारह रूपों वाला सूर्य) करे, और मेरे सम्पूर्ण शरीर की रक्षा सकलेश्वर (सभी ईश्वरों का स्वामी, सूर्य) करे।
सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके ।
दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्वसिद्धयः ॥६ ॥
अर्थ: जो कोई इस सूर्य रक्षात्मक स्तोत्र को भूर्जपत्र (बिर्च की छाल) पर लिखकर अपने हाथ में धारण करता है, उसे सभी सिद्धियाँ (दिव्य क्षमताएँ) प्राप्त होती हैं और वे उसके वश में होती हैं
सुस्नातो यो जपेत्सम्यक् योSधीते स्वस्थ मानसः ।
स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विंदति ॥ ७ ॥
अर्थ: जो व्यक्ति अच्छी तरह से स्नान करके, शांत मन से इस स्तोत्र का जप करता है या पढ़ता है, वह रोगों से मुक्त होता है, दीर्घायु प्राप्त करता है, और सुख तथा पुष्टि (अच्छी सेहत) प्राप्त करता है।
सूर्य कवच के फायदे
- रोगमुक्ति और स्वास्थ्य: इस स्तोत्र का पाठ करने से माना जाता है कि व्यक्ति शारीरिक बीमारियों से मुक्त हो सकता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: सूर्य देवता की कृपा से आत्मिक शांति और संतुष्टि मिल सकती है।
- दैनिक जीवन में शक्ति और सामर्थ्य: सूर्य देवता की दिव्य ऊर्जा का आह्वान करने से व्यक्ति में दैनिक कार्यों के लिए उत्साह और ऊर्जा का संचार होता है।
यह स्तोत्र न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन में व्यापक सकारात्मक प्रभाव भी डालता है। इसका नियमित पाठ एक शक्तिशाली आध्यात्मिक अनुष्ठान के रूप में किया जा सकता है।
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