Shri Vishnu Stuti

विष्णु मंत्र स्तुति

विष्णु मंत्र स्तुति भगवान विष्णु की महिमा और उनके प्रति भक्ति को व्यक्त करने के लिए की जाने वाली प्रार्थनाएँ, मंत्र, और स्तोत्रों का संग्रह है। ये स्तुतियाँ भगवान विष्णु की विभिन्न लीलाओं, उनके स्वरूपों, और गुणों का वर्णन करती हैं। विष्णु मंत्र स्तुति का नियमित जाप और पाठ भक्तों को भगवान की कृपा प्राप्त करने, जीवन के संकटों से मुक्ति पाने, और आत्मिक शांति की ओर अग्रसर होने में सहायता करता है।

शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये।।

शब्द-शब्द अर्थ:

  • शुक्लाम्बरधरं: श्वेत (सफेद) वस्त्र धारण करने वाले
  • विष्णुं: भगवान विष्णु
  • शशिवर्णं: चंद्रमा के समान वर्ण वाले
  • चतुर्भुजम्: चार भुजाओं वाले
  • प्रसन्नवदनं: प्रसन्न मुख वाले
  • ध्यायेत्: ध्यान करें
  • सर्वविघ्नोपशान्तये: सभी विघ्नों (बाधाओं) की शांति के लिए

अर्थ: श्वेत वस्त्र धारण करने वाले, चंद्रमा के समान तेजस्वी, चार भुजाओं वाले भगवान विष्णु का ध्यान करें। वे प्रसन्न मुखमंडल वाले हैं। उनके ध्यान से सभी विघ्नों का नाश होता है और शांति प्राप्त होती है।

मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥

शब्द-शब्द अर्थ:

  • मङ्गलम्: शुभ, कल्याणकारी
  • भगवान विष्णुः: भगवान विष्णु
  • गरुणध्वजः: जिनका ध्वज गरुण है
  • पुण्डरीकाक्षः: जिनकी आँखें कमल के समान हैं
  • तनो हरिः: जिनका शरीर भगवान हरि (विष्णु) है

अर्थ: भगवान विष्णु, जो गरुड़ध्वज (गरुड़ को ध्वज के रूप में धारण करने वाले) हैं, जो कमल के समान नेत्रों वाले हैं, और जो मंगलमयी शरीर वाले हरि हैं, वे सबके लिए मंगलकारी हैं। उनकी उपस्थिति ही सबके लिए मंगलमय है।

सार:

इन श्लोकों में भगवान विष्णु की प्रशंसा और उनके मंगलमयी स्वरूप का वर्णन किया गया है। पहले श्लोक में उनके श्वेत वस्त्र, चंद्रमा के समान वर्ण, और चार भुजाओं के साथ उनके ध्यान करने का महत्व बताया गया है, जिससे सभी विघ्नों का नाश होता है। दूसरे श्लोक में भगवान विष्णु की उपासना करते हुए कहा गया है कि वे स्वयं मंगलमय हैं, और उनकी पूजा से जीवन में सभी प्रकार की शुभता प्राप्त होती है।

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।

शब्द-शब्द अर्थ:

  • शान्ताकारं: शांत स्वभाव वाले
  • भुजगशयनं: जो शेषनाग पर शयन करते हैं
  • पद्मनाभं: जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है
  • सुरेशं: देवताओं के राजा
  • विश्वाधारं: जो समस्त विश्व का आधार हैं
  • गगनसदृशं: जो आकाश के समान व्यापक हैं
  • मेघवर्णं: जिनका रंग मेघ (बादल) के समान है
  • शुभाङ्गम्: जिनके अंग शुभ हैं
  • लक्ष्मीकान्तं: लक्ष्मी के पति
  • कमलनयनं: जिनकी आँखें कमल के समान हैं
  • योगिभिः ध्यानगम्यं: जो योगियों के ध्यान में आने योग्य हैं
  • वन्दे: मैं वंदना करता हूँ
  • विष्णुं: भगवान विष्णु
  • भवभयहरं: जो जन्म-मृत्यु के भय को हरते हैं
  • सर्वलोकैकनाथम्: जो सभी लोकों के एकमात्र स्वामी हैं

अर्थ: मैं भगवान विष्णु की वंदना करता हूँ, जो शांति के स्वरूप हैं, जो शेषनाग पर शयन करते हैं, जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जो देवताओं के ईश्वर हैं, जो सम्पूर्ण विश्व के आधार हैं, जो आकाश के समान व्यापक और मेघ के समान वर्ण वाले हैं, जिनका शरीर शुभ है। वे लक्ष्मी के पति हैं, जिनके नेत्र कमल के समान हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान में धारण किए जाते हैं, और जो संसार के सभी भयों को हरने वाले तथा सभी लोकों के एकमात्र स्वामी हैं।

सार:

इस श्लोक में भगवान विष्णु के शांत और सौम्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। वे शेषनाग पर शयन करते हैं, उनकी नाभि से कमल की उत्पत्ति होती है, और वे देवताओं के स्वामी हैं। उनका रंग मेघ के समान है, और वे लक्ष्मी के पति हैं। उनके नेत्र कमल के समान हैं, और वे योगियों के ध्यान में धारण किए जाते हैं। भगवान विष्णु सभी जीवों के लिए भय को दूर करने वाले हैं और सम्पूर्ण संसार के स्वामी हैं। इस श्लोक के माध्यम से भक्त भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करते हुए उनकी कृपा की कामना करता है।

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै:
वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो
यस्यान्तं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।

शब्द-शब्द अर्थ:

  • यं: जिनकी (भगवान की)
  • ब्रह्मा: ब्रह्मा जी
  • वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: वरुण, इन्द्र, रुद्र (शिव) और मरुत (वायुदेव)
  • स्तुन्वन्ति: स्तुति करते हैं
  • दिव्यैः: दिव्य
  • स्तवैः: स्तोत्रों से
  • वेदैः: वेदों से
  • साङ्गपदक्रमोपनिषदैः: अंग, पदक्रम और उपनिषदों के साथ
  • गायन्ति: गाते हैं
  • यं: जिनकी (भगवान की)
  • सामगा: सामवेद गाने वाले (गायक)
  • ध्यानावस्थिततद्गतेन: ध्यान में स्थित, उस (भगवान) तक पहुँचे हुए मन से
  • मनसा: मन से
  • पश्यन्ति: देखते हैं
  • यं: जिनकी
  • योगिनः: योगी
  • यस्य: जिनका
  • अंतं: अंत
  • न विदुः: नहीं जानते
  • सुरासुरगणाः: देवता और असुरगण
  • देवाय: देवता को (यहाँ भगवान विष्णु को)
  • तस्मै: उन्हें
  • नमः: नमस्कार

अर्थ: मैं उस देवता (भगवान विष्णु) को प्रणाम करता हूँ, जिसकी स्तुति ब्रह्मा, वरुण, इंद्र, रुद्र और मरुतगण दिव्य स्तोत्रों द्वारा करते हैं। जिनका गायन वेद, उसके अंग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष), पदक्रम और उपनिषदों के साथ सामवेद के गायक करते हैं। योगीजन ध्यानावस्थित होकर जिनका मन से दर्शन करते हैं, और जिनका अंत न देवता जानते हैं, न असुर। ऐसे देवता को मैं प्रणाम करता हूँ।

सार:

इस श्लोक में भगवान विष्णु की अपार महिमा का वर्णन किया गया है। भगवान विष्णु की स्तुति स्वयं ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र और अन्य देवता करते हैं। वेद और उपनिषदों में उनकी महिमा का गायन किया जाता है। योगीजन मन को स्थिर कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं, और उनके दिव्य स्वरूप का दर्शन करते हैं। इस श्लोक के माध्यम से भक्त भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करता है और उन्हें नमस्कार करता है।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव॥

शब्द-शब्द अर्थ:

  • त्वम्: आप (यहाँ भगवान को संबोधित करते हुए)
  • एव: ही
  • माता: माता (मां)
  • च: और
  • पिता: पिता
  • त्वमेव: आप ही (हो)
  • बन्धुः: बन्धु (रिश्तेदार)
  • सखा: मित्र
  • विद्या: ज्ञान, शिक्षा
  • द्रविणम्: धन-सम्पत्ति
  • सर्वम्: सब कुछ
  • मम: मेरा
  • देव: देवता (यहाँ भगवान)

अर्थ: हे भगवान! आप ही मेरी माता हैं, आप ही मेरे पिता हैं, आप ही मेरे बंधु (संबंधी) हैं, और आप ही मेरे सखा (मित्र) हैं। आप ही मेरी विद्या (ज्ञान) हैं, आप ही मेरी संपत्ति हैं। हे देवों के देव! आप ही मेरे सब कुछ हैं।

सार:

इस श्लोक में भक्त भगवान को अपने जीवन का सर्वस्व मानते हुए कहता है कि भगवान ही उसके माता-पिता, मित्र, संबंधी, ज्ञान और धन हैं। इस श्लोक के माध्यम से भगवान के प्रति समर्पण की भावना प्रकट होती है, जहाँ भक्त कहता है कि उसके जीवन का प्रत्येक पहलू भगवान से ही संबंधित है। यह श्लोक भक्ति, श्रद्धा, और समर्पण की चरम सीमा को व्यक्त करता है, जहाँ भक्त अपने जीवन की हर आवश्यकता और हर संबंध के लिए केवल भगवान पर ही निर्भर करता है।

औषधे चिंतये विष्णुम भोजने च जनार्धनम्
शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिम्।
युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमम्
नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे।।

दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम्
कानने नारसिंहं च पावके जलाशयिनम्।
जलमध्ये वराहं च पर्वते रघुनन्दनम्
गमने वामनं चैव सर्व कार्येषु माधवम्।।

शब्द-शब्द अर्थ:

  • औषधे: औषधि लेते समय
  • चिंतये: स्मरण करें
  • विष्णुं: भगवान विष्णु को
  • भोजने: भोजन करते समय
  • जनार्धनम्: जनार्दन (भगवान विष्णु का एक नाम)
  • शयने: शयन (सोते समय)
  • पद्मनाभं: पद्मनाभ (भगवान विष्णु का एक नाम जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है)
  • विवाहे: विवाह करते समय
  • प्रजापतिम्: प्रजापति (सृष्टि के निर्माता)
  • युद्धे: युद्ध करते समय
  • चक्रधरं: चक्रधारी (भगवान विष्णु)
  • देवं: देवता (भगवान)
  • प्रवासे: प्रवास (यात्रा) करते समय
  • त्रिविक्रमम्: त्रिविक्रम (भगवान विष्णु का वामन अवतार)
  • नारायणं: नारायण (भगवान विष्णु)
  • तनु त्यागे: शरीर त्यागते समय
  • श्रीधरं: श्रीधर (भगवान विष्णु)
  • प्रिय संगमे: प्रियजन के संगम (मिलन) के समय
  • दुःस्वप्ने: दुःस्वप्न (बुरे सपने) में
  • स्मर: स्मरण करें
  • गोविन्दं: गोविन्द (भगवान कृष्ण)
  • संकटे: संकट (कठिनाई) में
  • मधुसूदनम्: मधुसूदन (भगवान विष्णु का एक नाम)
  • कानने: वन (जंगल) में
  • नारसिंहं: नृसिंह (भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार)
  • पावके: अग्नि में
  • जलाशायिनम्: जलाशय (सागर) में शयन करने वाले भगवान
  • जलमध्ये: जल (पानी) के बीच
  • वराहम्: वराह (भगवान विष्णु का वराह अवतार)
  • पर्वते: पर्वत पर
  • रघुनन्दनम्: रघुनन्दन (भगवान राम)
  • गमने: यात्रा (चलते समय) में
  • वामनं: वामन (भगवान विष्णु का वामन अवतार)
  • चैव: और
  • सर्व कार्येषु: सभी कार्यों में
  • माधवम्: माधव (भगवान कृष्ण)

अर्थ:

  1. औषध (दवाई) लेते समय भगवान विष्णु का चिंतन करें, भोजन करते समय जनार्दन का स्मरण करें, शयन करते समय पद्मनाभ का ध्यान करें, और विवाह के समय प्रजापति का स्मरण करें।
  2. युद्ध के समय चक्रधारी भगवान का ध्यान करें, यात्रा करते समय त्रिविक्रम का स्मरण करें, शरीर छोड़ने के समय नारायण का ध्यान करें, और प्रिय संगति के समय श्रीधर का स्मरण करें।
  3. दुःस्वप्न आने पर गोविन्द को स्मरण करें, संकट के समय मधुसूदन का ध्यान करें, जंगल में नारसिंह का स्मरण करें, और अग्नि के समय जलाशयिन (भगवान विष्णु का समुद्र में निवास रूप) का ध्यान करें।
  4. जल के मध्य में वराह का स्मरण करें, पर्वत पर रघुनन्दन (राम) का ध्यान करें, यात्रा के समय वामन का स्मरण करें, और सभी कार्यों में माधव का स्मरण करें।

सार:

यह श्लोक हमें बताता है कि जीवन के हर क्षण में, हर परिस्थिति में भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों का स्मरण करना चाहिए। उनके विविध रूप हमें हर स्थिति में संबल प्रदान करते हैं, चाहे वह स्वास्थ्य, भोजन, युद्ध, यात्रा, या संकट हो। इस श्लोक का अनुसरण करके, हम अपने जीवन में भगवान की उपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं और उनके संरक्षण में सुरक्षित रह सकते हैं।

षोडशैतानी नमानी प्रातरुत्थाय य: पठेत्
सर्वपापा विर्निमुक्तो विष्णुलोके महीयते ॥

शब्द-शब्द अर्थ:

  • षोडशैतानि: ये सोलह (नाम)
  • नमानि: नाम
  • प्रातरुत्थाय: प्रातःकाल उठकर
  • यः: जो (व्यक्ति)
  • पठेत्: पाठ करता है
  • सर्वपाप: सभी पाप
  • विर्निमुक्तः: मुक्त (हो जाता है)
  • विष्णुलोके: विष्णु के लोक में (विष्णुधाम में)
  • महीयते: सम्मानित होता है

अर्थ: जो व्यक्ति प्रतिदिन सुबह उठकर भगवान विष्णु के इन 16 नामों का पाठ करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और विष्णुलोक में सम्मानपूर्वक स्थान प्राप्त करता है।

सार:

इस श्लोक में भगवान विष्णु के 16 नामों का स्मरण करने का महत्व बताया गया है। यह माना जाता है कि भगवान विष्णु के इन पवित्र नामों का जाप करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और मृत्यु के बाद उसे विष्णुलोक में स्थान मिलता है। यह श्लोक भक्तों को प्रेरित करता है कि वे प्रतिदिन सुबह भगवान विष्णु के इन नामों का जाप करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

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1 thought on “Shri Vishnu Stuti”

  1. बहोत अच्छे स्तोत्र अर्थो सहीत उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद! हरी ओम!

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