विद्वानों के अनुसार ‘सरस्वती’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘सृ’ धातु और ‘असुन्’ प्रत्यय से मिलकर ‘सरस्’ शब्द बनता है। ‘सरस्’ का अर्थ है ‘गति’ या ‘प्रसारण’, और जो इस गति की अधिष्ठान देवी हैं, वही सरस्वती हैं। ‘सृ’ धातु का अर्थ गति है और गद्य-पद्य आदि के रूप में जिसका संसार में प्रसारण होता है, वह सरस्वती हैं। जहाँ छंद और गति है, वहाँ सरस्वती का वास है, और जहाँ यह नहीं है, वह अज्ञान का रूप है।
शास्त्रों के अनुसार, ‘सृ’ धातु का अर्थ प्रसारण और गति है। इस संसार में जो कुछ भी है, वह शब्द से उत्पन्न हुआ है। वाक्य की अधिष्ठात्री देवता सरस्वती सभी के लिए पूजनीय हैं। ब्रह्मा, शिव और अन्य देवताओं ने सरस्वती की उपासना करके विद्या प्राप्त की है। विद्वानों ने ब्रह्मवस्तु का आनन्दरूप प्रवाह ‘सरः’ कहा है, जिससे सरस्वती को ‘सरस्वती’ नाम से अलंकृत किया गया है।
यह उद्धरण यह बताता है कि सरस्वती विद्या और ज्ञान की देवी हैं, जिनका महत्व संसार में अत्यधिक है। ज्ञान और विद्या का प्रसार उन्हीं से होता है और सभी देवताओं ने भी उनकी उपासना करके ज्ञान प्राप्त किया है।
Saraswati Aarti lyrics
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
चंद्रवदनी पद्मासिनी, द्युतिमान रजनी माता।
भगती ज्ञान दायिनी, हम सब गुण आता॥
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
ज्योति स्वरूप निरंजनी, सुख संपत्ति दाता।
संसारिक दुःख हरता, तू भक्ति का साता॥
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार कीजै।
ज्ञान चक्षु दे मातु, विनय यह कीजै॥
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
मां सरस्वती की आरती, जो कोई जन गाता।
हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पाता॥
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
सरस्वती विद्या, ज्ञान और बुद्धि की देवी मानी जाती हैं। जिस मनुष्य के पास सरस्वती का आशीर्वाद नहीं होता, वह अन्य शिक्षित और ज्ञानी व्यक्तियों के बीच में अज्ञानी और असमर्थ प्रतीत होता है, जैसे हंसों के बीच बगुला। इसी कारण, हर वर्ण के लोग माता सरस्वती की उपासना करते हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रयास करते हैं। जब किसी व्यक्ति के भीतर सरस्वती का निवास हो जाता है, तब लक्ष्मी (धन और समृद्धि की देवी) स्वयं उस व्यक्ति के पास आ जाती हैं। लेकिन यदि किसी व्यक्ति के पास सरस्वती नहीं होती, तो वह इस दुनिया में केवल एक साधारण प्राणी की तरह भटकता रहता है, जैसे हिरण जंगल में भटकता है।
सरस्वती देवी का महत्व
- ज्ञान की देवी: सरस्वती को ज्ञान, विद्या और बुद्धि की देवी माना जाता है। उनकी आराधना करने से व्यक्ति को ज्ञान, शिक्षा और विद्या की प्राप्ति होती है। सरस्वती की कृपा से अज्ञान का अंधकार दूर होता है और जीवन में प्रकाश फैलता है।
- संगीत और कला की देवी: सरस्वती न केवल ज्ञान की बल्कि संगीत, कला, और साहित्य की भी देवी हैं। वे वीणा वादन करती हैं, जो संगीत का प्रतीक है। उनकी पूजा से व्यक्ति में रचनात्मकता और कला की भावना का विकास होता है।
- शांति और मानसिक स्थिरता: सरस्वती की उपासना से मानसिक शांति और स्थिरता मिलती है। वे बुद्धि को प्रखर बनाकर मन को शांत और स्थिर करती हैं।
- विद्या और संकल्प शक्ति: विद्या की देवी होने के कारण, उनकी पूजा से विद्यार्थियों को विशेष लाभ होता है। उनकी आराधना से संकल्प शक्ति बढ़ती है और अध्ययन में एकाग्रता आती है।
- अज्ञानता का नाश: सरस्वती की आराधना से जीवन में अज्ञानता का अंधेरा दूर होता है। वे व्यक्ति को सत्य का मार्ग दिखाती हैं और उसके जीवन को प्रकाशमान करती हैं।
- पुराणों में सरस्वती: विभिन्न पुराणों में सरस्वती की महिमा का वर्णन किया गया है। ब्रह्मा, विष्णु, और महेश जैसे प्रमुख देवताओं ने भी सरस्वती की आराधना कर ज्ञान और विद्या की प्राप्ति की है।
सरस्वती पूजन का महत्व
सरस्वती पूजन वसंत पंचमी के दिन विशेष रूप से किया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में और शिक्षण संस्थानों में सरस्वती की मूर्ति स्थापित करके उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। विद्यार्थी अपनी पुस्तकों और लेखन सामग्रियों को सरस्वती के चरणों में रखकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
सरस्वती पूजा विधि:
- स्नान और स्वच्छता: सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजन स्थल की सफाई: पूजा स्थल को साफ करके वहाँ सरस्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- संकल्प और आह्वान: संकल्प लेकर देवी सरस्वती का आह्वान करें।
- अर्चना और आरती: सरस्वती जी की फूल, अक्षत, धूप, दीप, और नैवेद्य से अर्चना करें और अंत में आरती करें।
- प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें।
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‘माँ सरस्वती’ शब्द की व्युत्पत्ति और अर्थ क्या है?
विद्वानों के अनुसार ‘माँ सरस्वती’ शब्द ‘सृ’ धातु और ‘असुन्’ प्रत्यय से मिलकर बना है। ‘सरस्’ का अर्थ है ‘प्रवाह’ या ‘गति’। माँ सरस्वती इस प्रवाह या गति की अधिष्ठात्री देवी हैं। वह ज्ञान और कला की देवी मानी जाती हैं, जहाँ छंद और गति है, वहाँ माँ सरस्वती का वास होता है और जहाँ यह नहीं है, वह अज्ञान का रूप है।
माँ सरस्वती को महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है?
माँ सरस्वती को ज्ञान, विद्या और बुद्धि की देवी माना जाता है। उनकी आराधना करने से अज्ञान का अंधकार दूर होता है और जीवन में प्रकाश फैलता है। वे संगीत, कला और साहित्य की देवी भी हैं, जो बौद्धिक और रचनात्मक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
माँ सरस्वती किन क्षेत्रों की देवी हैं?
माँ सरस्वती ज्ञान, शिक्षा और बुद्धि की देवी हैं। वे संगीत, कला और साहित्य की भी देवी हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति की रचनात्मकता और बौद्धिकता में वृद्धि होती है।
माँ सरस्वती की पूजा करने से क्या लाभ होते हैं?
माँ सरस्वती की पूजा करने से ज्ञान, शिक्षा और विद्या प्राप्त होती है। यह मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करती है, एकाग्रता और संकल्प शक्ति को बढ़ाती है, और अज्ञान का नाश करती है। उनकी कृपा से रचनात्मक और कलात्मक क्षमताओं में भी वृद्धि होती है।
माँ सरस्वती की पूजा का महत्व क्या है?
माँ सरस्वती पूजा विशेष रूप से वसंत पंचमी के दिन मनाई जाती है। इस दिन लोग माँ सरस्वती की पूजा करके उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं। विद्यार्थी अपनी पुस्तकों और लेखन सामग्री को उनके चरणों में रखकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पूजा ज्ञान प्राप्ति और अज्ञानता के नाश का प्रतीक है।
माँ सरस्वती की पूजा कैसे की जाती है?
स्नान और स्वच्छता: सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थल की सफाई: पूजा स्थल को साफ करके वहाँ माँ सरस्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
संकल्प और आह्वान: संकल्प लेकर देवी माँ सरस्वती का आह्वान करें।
अर्चना और आरती: माँ सरस्वती जी की फूल, अक्षत, धूप, दीप, और नैवेद्य से अर्चना करें और अंत में आरती करें।
प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें।