Ramayan Samput- संपुट

Table of Contents

रामचरितमानस में संपुट (Samput) का प्रयोग वास्तव में एक गहन आध्यात्मिक प्रथा का प्रतीक है, जिसका उद्देश्य भक्ति और ध्यान की गहराई को बढ़ाना है। तुलसीदास जी ने इसे भक्तों के लिए एक माध्यम के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे वे अपनी आराधना में अधिक संवेदनशीलता और गहनता का अनुभव कर सकें। संपुट (Samput) का प्रयोग न केवल भक्तों को अपनी भक्ति में और अधिक लीन होने में मदद करता है, बल्कि यह उनके आध्यात्मिक जीवन में एक सुरक्षित और संरक्षित मार्ग प्रदान करता है।

संपुट (Samput) शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘कवच’ या ‘आवरण’। आध्यात्मिक संदर्भ में, यह एक विशेष प्रक्रिया को दर्शाता है जिसमें किसी मुख्य मंत्र या प्रार्थना को विशेष शब्दों या वाक्यों से पहले और बाद में घेरा जाता है। इसका उद्देश्य मंत्र या प्रार्थना की आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाना और उसके प्रभाव को संकेंद्रित करना है।

  1. शक्ति संवर्धन: संपुट (Samput) के प्रयोग से मंत्र या प्रार्थना की शक्ति में वृद्धि होती है, जिससे उसका प्रभाव और अधिक संकेंद्रित और प्रभावशाली बनता है।
  2. एकाग्रता में वृद्धि: संपुट (Samput) के दोहराव से भक्त की एकाग्रता में वृद्धि होती है, जिससे वे अपनी प्रार्थना में और अधिक लीन हो पाते हैं।
  3. दिव्य आशीर्वाद: संपुट (Samput) का प्रयोग भक्तों को उनकी प्रार्थनाओं और मंत्रों के माध्यम से दिव्य आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करने का माध्यम प्रदान करता है।
  4. संकल्प की दृढ़ता: यह भक्त के संकल्प और ध्यान को दृढ़ करता है, जिससे उनके आध्यात्मिक प्रयासों में अधिक सफलता मिलती है।
मंगल भवन अमंगलहारी, द्रबहु सुदसरथ अजिर बिहारी।

“मंगल भवन अमंगल हारी” का अर्थ है “वह स्थान जो कल्याणकारी है और अशुभता को दूर करने वाला है”।

“द्रबहु सु दसरथ अजिर बिहारी” का अर्थ है “वह जो राजा दशरथ के घर में विहार (वास) करते हैं”। यहाँ ‘द्रबहु’ का अर्थ है ‘घर’ और ‘अजिर बिहारी’ का अर्थ है ‘विहार करने वाला’ यानि राजा दशरथ के महल में रहने वाले, अर्थात भगवान राम।

सुमिरि पवनसुत पावन नामु, अपने बस करि राखै रामु ।

“सुमिरि पवनसुत पावन नामु” का अर्थ है “पवन पुत्र (हनुमान जी) का पवित्र नाम स्मरण करो”। यहाँ ‘पवनसुत’ हनुमान जी को संबोधित करता है, जो वायु देवता पवन के पुत्र हैं, और ‘पावन नामु’ उनके पवित्र नाम की महत्ता को दर्शाता है।

“अपने बस करि राखै रामु” का अर्थ है “भगवान राम उसे अपने वश में रखते हैं”। यहाँ यह दर्शाया गया है कि जो भक्त हनुमान जी का स्मरण करते हैं, भगवान राम उन्हें अपनी शरण में ले लेते हैं और उनकी सभी समस्याओं का समाधान करते हैं।

देवि पूज्य पद कमल तुम्हारे, सुर नर मुनि सब होही सुखारे।

“देवि पूज्य पद कमल तुम्हारे” का अर्थ है “ओ देवी, तुम्हारे पूजनीय कमल के समान पवित्र चरण हैं”। यहाँ ‘देवि’ देवी माँ को संबोधित करता है, ‘पूज्य पद कमल’ से उनके पूजनीय और पवित्र चरणों की तुलना कमल के फूल से की गई है, जो शुद्धता और दिव्यता का प्रतीक है।

“सुर नर मुनि सब होही सुखारे” का अर्थ है “देवता, मनुष्य और संत सभी आपके चरणों में आकर सुखी होते हैं”। इसमें ‘सुर’ से देवता, ‘नर’ से मनुष्य और ‘मुनि’ से संत या ऋषि का बोध होता है। ‘सब होही सुखारे’ से यह दर्शाया गया है कि सभी देवी की आराधना से सुख और शांति प्राप्त करते हैं।

विश्वनाथ मम् नाथ पुरारी, त्रिभुवन महिमा विदित तुम्हारी ।

“विश्वनाथ मम् नाथ पुरारी” का अर्थ है “हे विश्वनाथ (विश्व के स्वामी), मेरे स्वामी, पुरारी (दैत्य पुर का विनाश करने वाले)”। ‘विश्वनाथ’ और ‘पुरारी’ दोनों ही भगवान शिव के नाम हैं, जहाँ ‘विश्वनाथ’ का अर्थ है विश्व के नाथ या स्वामी, और ‘पुरारी’ उस देवता को कहते हैं जिसने त्रिपुरासुर (तीन पुरों के दैत्य) का वध किया।

“त्रिभुवन महिमा विदित तुम्हारी” का अर्थ है “तीनों लोकों में तुम्हारी महिमा जानी जाती है”। ‘त्रिभुवन’ से आशय तीन लोकों – स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल से है, और यहाँ यह कहा गया है कि भगवान शिव की महिमा इन सभी लोकों में विख्यात है।

सो तुम्ह जान्हउ अन्तर्यामी, पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी ।

“सो तुम्ह जान्हउ अन्तर्यामी” का अर्थ है “वह तुम जानते हो, हे अंतर्यामी”। यहाँ ‘अंतर्यामी’ शब्द का उपयोग भगवान के लिए किया गया है, जिसका अर्थ है वह जो सभी के हृदय में विद्यमान हैं और सभी के मन की बात जानते हैं।

“पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी” का अर्थ है “मेरे मनोरथों को पूर्ण करो, हे स्वामी”। यहाँ ‘मनोरथ’ से आशय है भक्त की इच्छाएँ या आकांक्षाएँ, और ‘स्वामी’ भगवान को संबोधित करते हैं। इस पंक्ति में भक्त भगवान से अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति की प्रार्थना कर रहे हैं।

सखा सोच त्यागहु बल मोरे, सब बिधि घटब काज मैं तोरे ।

“सखा सोच त्यागहु बल मोरे” का अर्थ है “हे मित्र, मेरे बल पर अपनी सोच और चिंता को छोड़ दो”।

“सब बिधि घटब काज मैं तोरे” का अर्थ है “मैं हर तरह से तेरे कार्यों में सहायता करूँगा”। यहाँ ‘सब बिधि’ का अर्थ है सभी तरीकों से, और ‘घटब काज’ का अर्थ है कार्यों को पूरा करना या सहायता करना।

मोर सुधारिहि सो सब भाँती, जासु कृपा नहीं कृपा अघाती ।

“मोर सुधारिहि सो सब भाँती” का अर्थ है “वह मेरे सभी प्रकार से सुधार करेंगे”। यहाँ ‘मोर सुधारिहि’ का अर्थ है मेरे सुधार की प्रक्रिया, और ‘सो सब भाँती’ से आशय है सभी संभव तरीकों से। इस पंक्ति में भक्त यह व्यक्त कर रहे हैं कि ईश्वर की कृपा से उनके जीवन में सभी प्रकार के सुधार संभव हैं।

“जासु कृपा नहीं कृपा अघाती” का अर्थ है “जिनकी कृपा न हो, उनके लिए वह कृपा ही नाशक है”। ‘जासु कृपा नहीं’ से यह दर्शाया गया है कि जिन लोगों पर ईश्वर की कृपा नहीं होती, उनके लिए अनुकंपा का अभाव ही उनके लिए हानिकारक सिद्ध होता है। ‘कृपा अघाती’ से आशय है कि ईश्वर की कृपा के बिना, जीवन में सुधार और प्रगति अधिक कठिन हो जाती है।

दीन दयाल बिरिदु समभारी, हरहु नाथ मम् संकट भारी ।

“दीन दयाल बिरिदु समभारी” का अर्थ है “हे दयालु, जो दीनों पर दया करने के लिए विख्यात हैं, उस गुण को स्मरण करते हुए”। यहाँ ‘दीन दयाल’ ईश्वर के उस गुण को दर्शाता है जिसमें वह दुःखी और निर्धन लोगों पर विशेष दया और कृपा करते हैं, और ‘बिरिदु समभारी’ का अर्थ है उस प्रसिद्ध गुण को ध्यान में रखते हुए।

“हरहु नाथ मम् संकट भारी” का अर्थ है “हे स्वामी, मेरे गंभीर संकटों को दूर करो”। ‘हरहु’ का अर्थ है दूर करना या हर लेना, ‘नाथ’ ईश्वर या स्वामी को संबोधित करता है, और ‘मम् संकट भारी’ से आशय भक्त के गहन और भारी संकटों से है।

प्रभु की कृपा भयवु सब काजू, जन्म हमार सुफल भा आजू ।

“प्रभु की कृपा भयवु सब काजू” का अर्थ है “प्रभु की कृपा से सभी कार्य सफल हो गए”। यहाँ ‘प्रभु की कृपा’ से ईश्वर की अनुकंपा और आशीर्वाद को दर्शाया गया है, और ‘भयवु सब काजू’ से यह अभिव्यक्त होता है कि उस अनुकंपा से सभी कार्य सिद्ध और सफल हो गए हैं।

“जन्म हमार सुफल भा आजू” का अर्थ है “हमारा जन्म आज सफल हो गया”। ‘जन्म हमार’ से भक्त के जीवन की बात की गई है, और ‘सुफल भा आजू’ से यह व्यक्त होता है कि ईश्वर की कृपा से उनका जीवन सार्थक और फलदायी बन गया है।

सीताराम चरन रति मोरे, अनुदिन बढ़वु अनुग्रह तोरे ।

“सीताराम चरन रति मोरे” का अर्थ है “मेरी रुचि और प्रेम भगवान सीताराम के चरणों में है”। यहाँ ‘सीताराम’ भगवान राम और माता सीता को संयुक्त रूप से संबोधित करता है, और ‘चरन रति’ से उनके चरणों के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम को व्यक्त किया गया है।

“अनुदिन बढ़वु अनुग्रह तोरे” का अर्थ है “प्रतिदिन आपका अनुग्रह मुझ पर बढ़ता रहे”। ‘अनुदिन’ का अर्थ है प्रतिदिन या हर दिन, और ‘अनुग्रह तोरे’ से भक्त भगवान से अपनी कृपा और आशीर्वाद को निरंतर बढ़ाने की प्रार्थना कर रहे हैं।

सिया राम मैं सब जग जानी, करहु प्रनाम जोरि जुग पाणी ।

“सिया राम मैं सब जग जानी” का अर्थ है “मैं सभी जगह में सिया (माता सीता) और राम को जानता हूँ”। यहाँ ‘सिया राम’ से भगवान राम और माता सीता को संयुक्त रूप से संबोधित किया गया है, और यह व्यक्त करता है कि भक्त के लिए उनकी उपस्थिति समस्त सृष्टि में विद्यमान है।

“करहु प्रनाम जोरि जुग पाणी” का अर्थ है “दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ”। ‘जोरि जुग पाणी’ से अभिप्राय है दोनों हाथों को जोड़कर, जो प्रणाम या नमस्कार करने की एक पारंपरिक मुद्रा है। इस पंक्ति में भक्त अपनी विनम्रता और श्रद्धा के साथ भगवान राम और माता सीता को नमन कर रहे हैं।

मोरे हित हरि सम नहीं कोउ, यहि अवसर सहाय सोई होउ ।

“मोरे हित हरि सम नहीं कोउ” का अर्थ है “मेरे हित के लिए हरि के समान कोई नहीं”। यहाँ ‘हरि’ ईश्वर के एक नाम का उपयोग किया गया है, और यह पंक्ति व्यक्त करती है कि भक्त के लिए ईश्वर से बढ़कर और कोई नहीं है, जो उनके हित में सोच सके या उनकी सहायता कर सके।

“यहि अवसर सहाय सोई होउ” का अर्थ है “इस अवसर पर वही मेरी सहायता करें”। ‘यहि अवसर’ से अभिप्राय है वर्तमान परिस्थिति या समय, और ‘सहाय सोई होउ’ से यह आशय है कि भक्त की प्रार्थना है कि ईश्वर उस समय उनकी सहायता करें।

महवीर बिनवउँ हनुमाना, राम जासु जस आप बखाना ।

“महवीर बिनवउँ हनुमाना” का अर्थ है “हे महावीर हनुमान, मैं आपसे विनती करता हूँ”। यहाँ ‘महवीर’ शब्द हनुमान जी के लिए एक उपाधि है, जो उनके असीम साहस और वीरता को दर्शाता है, और ‘बिनवउँ’ का अर्थ है विनती करना या प्रार्थना करना।

“राम जासु जस आप बखाना” का अर्थ है “जिनकी जय आप स्वयं बखानते हैं, वह राम हैं”। यहाँ ‘राम जासु’ से भगवान राम की जय या महिमा का संकेत है, और ‘जस आप बखाना’ से यह व्यक्त होता है कि हनुमान जी स्वयं भगवान राम की महिमा को गाते हैं और उनकी जय की बात करते हैं।

जेहि बिधि प्रभु प्रसन्न मन होई, करुणा सागर कीजै सोई ।

“जेहि बिधि प्रभु प्रसन्न मन होई” का अर्थ है “जिस प्रकार से प्रभु का मन प्रसन्न होता है”। यहाँ ‘जेहि बिधि’ का अर्थ है जिस तरह से या जिस विधि से, और ‘प्रसन्न मन होई’ से यह द्योतित होता है कि भक्त चाहते हैं कि उनके कार्यों से प्रभु का मन प्रसन्न हो।

“करुणा सागर कीजै सोई” का अर्थ है “हे करुणा के सागर, वही कीजिए”। ‘करुणा सागर’ ईश्वर के लिए एक उपाधि है, जो उनकी असीम करुणा और दया को दर्शाता है। ‘कीजै सोई’ से भक्त ईश्वर से विनती करते हैं कि वह ऐसे कार्य करें जिससे उनका मन प्रसन्न हो।

राम कृपा नासहि सब रोगा , जो एहि भाँति बनै संयोगा ।

“राम कृपा नासहि सब रोगा” का अर्थ है “भगवान राम की कृपा से सभी रोग नष्ट हो जाते हैं”। यहाँ ‘राम कृपा’ भगवान राम की दिव्य कृपा या अनुकंपा को दर्शाता है, और ‘नासहि सब रोगा’ से यह व्यक्त होता है कि उनकी कृपा से सभी प्रकार के दुःख और रोग दूर हो जाते हैं।

“जो एहि भाँति बनै संयोगा” का अर्थ है “जब इस प्रकार का संयोग बनता है”। ‘एहि भाँति’ का अर्थ है इस तरह से, और ‘बनै संयोगा’ से आशय है कि जब ऐसी स्थिति या संयोग बनता है जिसमें भक्त भगवान राम की कृपा को प्राप्त करता है।

होय विवेक मोह भ्रम भागा , तव रघुनाथ चरन अनुरागा ।

“होय विवेक मोह भ्रम भागा” का अर्थ है “जब विवेक आता है, तो मोह और भ्रम भाग जाते हैं”। ‘विवेक’ से आशय है वह बुद्धिमत्ता या भेददृष्टि जो सही और गलत के बीच का अंतर समझने में सहायक होती है, ‘मोह’ से आशय है वह आसक्ति जो हमें सांसारिक चीजों से बांधे रखती है, और ‘भ्रम’ से आशय है वह भूल या गलतफहमी जो हमारी वास्तविकता की समझ को विकृत करती है।

“तव रघुनाथ चरन अनुरागा” का अर्थ है “तब रघुनाथ (भगवान राम) के चरणों में अनुराग होता है”। ‘रघुनाथ’ भगवान राम का एक नाम है, और ‘चरन अनुरागा’ से आशय है कि व्यक्ति का हृदय और मन भगवान राम के चरणों के प्रति पूर्ण प्रेम और भक्ति में लीन हो जाते हैं।

गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥

श्री महेश और पार्वती को मैं प्रणाम करता हूँ, जो मेरे गुरु और माता-पिता हैं, जो दीनबन्धु और नित्य दान करने वाले हैं।

राम सरिस बरू दुलहिन सीता। समधी दशरथु जनकु पुनीता॥

इस चौपाई में तुलसीदास जी भगवान राम और सीता के विवाह का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि राम जैसे दूल्हे और सीता जैसी दुल्हन हैं। समधी दशरथ और जनक पवित्र हैं। यह चौपाई राम और सीता के विवाह की पवित्रता और दिव्यता को दर्शाती है।

संपुट (Samput) के द्वारा मंत्र या प्रार्थना की शक्ति में वृद्धि और उसके प्रभाव को संकेंद्रित करने का विचार एक अत्यंत महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अवधारणा है। यह प्रथा न केवल भक्ति मार्ग में बल्कि व्यक्तिगत आध्यात्मिक अभ्यास में भी अपनी प्रार्थनाओं और मंत्रों को अधिक सशक्त बनाने के लिए एक उपकरण के रूप में काम करती है।

रामचरितमानस में संपुट (Samput) के प्रयोग से यह स्पष्ट होता है कि तुलसीदास जी ने न केवल भगवान राम की महिमा को वर्णित किया है, बल्कि उन्होंने भक्तों को उनकी भक्ति को और अधिक प्रभावशाली और फलदायी बनाने के लिए एक आध्यात्मिक उपकरण भी प्रदान किया है। इस प्रकार, संपुट (Samput) का प्रयोग रामचरितमानस को केवल एक काव्य ग्रंथ से अधिक बनाता है; यह उसे एक आध्यात्मिक मार्गदर्शिका के रूप में स्थापित करता है जो भक्तों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा में सहायता प्रदान करती है।

सुंदरकांड किताब यहाँ खरीदें

Sudarshan Kriya

Sudarshan Kriya

सुदर्शन क्रिया एक शक्तिशाली प्राणायाम तकनीक है, जो श्वास और…

Read More
Ganesh Vandana

गणेश वंदना

गणेश वंदना एक विशेष प्रकार का स्तोत्र या प्रार्थना है,…

Read More
Bhai Dooj

Bhai Dooj

भैया दूज का पर्व भाई-बहन के अनमोल रिश्ते का प्रतीक…

Read More
Durga Suktam

Durga Suktam

दुर्गा देवी की स्तुति से संबंधित अधिकांश मंत्र 7वीं शताब्दी…

Read More

Leave a comment