Ram Ravan Yudh

राम और रावण का युद्ध (Ram aur Ravan yudh), जिसे राम-रावण युद्ध  (Ram Ravan yudh) भी कहा जाता है, हिन्दू महाकाव्य रामायण में वर्णित एक प्रमुख घटना है। इस युद्ध की शुरुआत तब हुई जब लंका के राजा रावण ने राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लिया। रावण ने सीता को धोखे से उनके वनवास स्थल से अपहरण किया और उन्हें लंका ले गया, जो उस समय एक दुर्गम द्वीप माना जाता था।

राम ने सीता को ढूँढने और वापस लाने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया। इस दौरान उन्होंने वानर सेना के साथ मित्रता की और हनुमान, सुग्रीव जैसे महत्वपूर्ण साथियों की मदद से लंका की ओर अग्रसर हुए। हनुमान ने सीता की खोज में लंका तक की यात्रा की और सीता को ढूँढ निकाला। उसके बाद, राम ने वानर सेना के साथ मिलकर लंका पर चढ़ाई की।

युद्ध का आरंभ राम के लंका पहुंचने और रावण को सीता को वापस करने के लिए चुनौती देने के बाद हुआ। रावण ने इस चुनौती को ठुकरा दिया, और इसके परिणामस्वरूप एक विशाल युद्ध का संचालन हुआ। यह युद्ध कई दिनों तक चला, जिसमें दोनों पक्षों के कई योद्धा मारे गए। अंततः, राम ने रावण को पराजित किया और सीता को मुक्त कराया।

Ram Ravan Yudh

मेघनाद, जिन्हें इंद्रजीत भी कहा जाता है, रावण के सबसे शक्तिशाली पुत्र थे। रामायण में उनकी मृत्यु को एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में दर्शाया गया है, जो लंका के राजा रावण के पतन का प्रतीक है। मेघनाद युद्ध में अपने असाधारण योद्धा कौशल और मायावी शक्तियों के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी मृत्यु ने रावण के मनोबल को गहरा आघात पहुँचाया।

रावण का शोक में डूबना और फिर क्रोध से लाल हो जाना, उसके चरित्र की जटिलता और उसकी भावनाओं की गहराई को दर्शाता है। उसकी शक्ल का डरावना हो जाना उसके अंतर्मन की पीड़ा और क्रोध का प्रतिबिंब है। उसका किसी को भी अपनी ओर आँख उठाकर न देख पाने का भय उसकी असहनीय दुःख और क्रोध की अवस्था को दिखाता है।

बची हुई राक्षस सेना को युद्ध के लिए चलने की आज्ञा देना रावण के उस निश्चय को दर्शाता है जिसमें वह हार मानने को तैयार नहीं था, भले ही उसके सामने अपने प्रिय पुत्र की मृत्यु जैसी भारी विपत्ति आ गई हो।

भगवान राम द्वारा श्री राम सेतु का निर्माण रामायण की एक प्रमुख और अद्भुत घटना है। जब राम की सेना लंका पहुँचने के लिए समुद्र पार करने का मार्ग खोज रही थी, तो उनके सामने समुद्र को पार करने की बड़ी चुनौती आई।

सबसे पहले, भगवान राम ने समुद्र देव से सेतु निर्माण की अनुमति प्राप्त की। जब समुद्र देव प्रकट नहीं हुए, तो राम ने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया, जिससे समुद्र देव उनके समक्ष प्रकट हुए और सेतु निर्माण की अनुमति दी। राम की सेना में दो वानर, नल और नील थे, जिन्हें दिव्य शक्तियाँ प्राप्त थीं। इन्हें सेतु निर्माण की विशेष क्षमता प्राप्त थी। इनके नेतृत्व में वानर सेना ने पत्थरों और चट्टानों को एकत्रित किया। वानरों ने पत्थरों पर “राम” नाम लिखा। ऐसा माना जाता है कि इससे पत्थर पानी पर तैरने लगे, जिससे सेतु का निर्माण संभव हो सका। इसके बाद, वानर सेना ने इन पत्थरों और चट्टानों को समुद्र में डालकर एक पुल का निर्माण किया, जो भारत के दक्षिणी तट से लंका तक जाता था। इस प्रकार, रामेश्वरम (भारत) से लंका (वर्तमान श्रीलंका) तक एक विशाल सेतु का निर्माण किया गया, जिसे ‘राम सेतु’ या ‘एडम्स ब्रिज’ के नाम से जाना जाता है। राम सेतु के निर्माण में दिव्य शक्तियों का भी योगदान माना जाता है, जिससे यह कार्य सिर्फ पांच दिनों में पूरा हो गया। श्रीरामसेतु का निर्माण होने के बाद, भगवान राम ने समुद्र देव के साथ यज्ञ का आयोजन किया और उन्होंने यज्ञ से पहले शिवलिंग की स्थापना की। इससे भगवान शिव का आशीर्वाद मिला और उन्होंने सेना के साथ लंका के प्रति अपना यात्रा शुरू किया।

राम-रावण युद्ध  (Ram Ravan yudh) के विषय में विभिन्न पुराणों और रामायण के विभिन्न संस्करणों में विभिन्न तारीखें और विवरण हैं। यह तारीखों का विचार करना धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के अनुसार होता है और विभिन्न स्थानों और परंपराओं में भिन्नताओं का कारण हो सकता है। यहां विभिन्न संस्करणों के अनुसार दी गई तारीखों का संक्षेप है:

वाल्मीकि रामायण:

रामायण के अनुसार, युद्ध कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को शुरू हुआ था। यह तिथि दीपावली के त्योहार के साथ मेल खाती है।

तुलसीदास रामायण:

तुलसीदास के रामायण के अनुसार, युद्ध अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को शुरू हुआ था। यह तिथि नवरात्रि के त्योहार के साथ मेल खाती है।

आनंद रामायण:

आनंद रामायण के अनुसार, युद्ध आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शुरू हुआ था। यह तिथि नरक चतुर्दशी के त्योहार के साथ मेल खाती है।

इन विभिन्न संस्करणों में तारीखों में भिन्नता होती है, लेकिन सभी में यह समाप्ति दशमी तिथि पर ही हुई थी। इससे यह साफ होता है कि युद्ध का अवधि संबंधित परंपराओं के अनुसार अलग-अलग हो सकता है, लेकिन वह दशमी तिथि पर ही समाप्त हुआ था।

Ram Ravan Yudh

भगवान राम को रावण का वध करने के लिए जो दिव्यास्त्र प्राप्त हुआ था, वह एक विशेष बाण था जिसे ‘ब्रह्मास्त्र’ कहा जाता है। यह बाण विशेष रूप से रावण की नाभि में स्थित अमृत को काटने के लिए आवश्यक था, जिसके बारे में विभीषण ने भगवान राम को बताया था।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, हनुमानजी ने इस दिव्यास्त्र को मंदोदरी के महल से प्राप्त किया था। हनुमानजी ने ब्राह्मण भिक्षु का वेश धारण किया और चतुराई से मंदोदरी से इस बाण को प्राप्त कर लिया था। इसके बाद, हनुमानजी ने इस दिव्यास्त्र को भगवान राम को सौंप दिया, जिसका उपयोग करके उन्होंने रावण का वध किया।

इसके अतिरिक्त, भगवान राम के तरकश जिसके तीर कभी खाली नहीं होते थे, उसके बारे में भी पौराणिक कथाओं में वर्णन है। यह दिव्य तरकश और तीर भी उन्हें देवताओं द्वारा प्रदान किए गए थे, जो उनके दिव्य आयुधों का हिस्सा थे। ये दिव्य आयुध उन्हें उनके मिशन में सहायता प्रदान करने के लिए दिए गए थे।

भगवान राम के पास जो विशेष तरकश था, जिसके बाण कभी खाली नहीं होते थे, वह उन्हें महान ऋषि अगस्त्य से प्राप्त हुआ था। गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस में इसका वर्णन है। अगस्त्य ऋषि ने भगवान राम को यह दिव्य तरकश प्रदान किया था जो अनंत बाणों से भरा रहता था। इस तरकश से निकाले गए बाण अपने लक्ष्य को सटीक भेदने में सक्षम थे और यह स्वयं को फिर से बाणों से भर लेता था।

इसके अलावा, भगवान राम के पास ‘कोदंड’ नामक एक दिव्य धनुष भी था, जिसे उन्होंने विश्वामित्र के साथ यात्रा के दौरान प्राप्त किया था और जिसका उपयोग उन्होंने विभिन्न अवसरों पर किया, जिसमें सीता स्वयंवर में शिव धनुष को तोड़ना भी शामिल है। ‘कोदंड’ धनुष पर चढ़ाया गया हर बाण अपने लक्ष्य को भेदकर ही वापस लौटता था, जिससे उनकी वीरता और योग्यता में वृद्धि हुई।

जब भगवान राम और रावण के बीच अंतिम युद्ध होने वाला था, तब भगवान ब्रह्मा ने देवराज इंद्र को अपना दिव्य रथ भगवान राम की सहायता के लिए भेजने का आदेश दिया।

देवराज इंद्र के सारथी मातली, इंद्र के दिव्य रथ को लेकर भगवान राम के पास पहुंचे। शुरुआत में, लक्ष्मण ने इस रथ को देखकर शंका व्यक्त की कि कहीं यह शत्रु की कोई चाल तो नहीं है। हालांकि, मातली ने रथ का दिव्य वर्णन किया और बताया कि यह रथ भगवान ब्रह्मा और देवराज इंद्र की ओर से भेजा गया है, जिससे लक्ष्मण और अन्य सभी की शंकाएं दूर हो गईं।

भगवान राम ने इस दिव्य रथ को स्वीकार किया और देवराज इंद्र तथा भगवान ब्रह्मा का धन्यवाद किया। इस दिव्य रथ पर सवार होकर, भगवान राम ने रावण के खिलाफ युद्ध में भाग लिया और अंततः उसका वध किया। इस दिव्य रथ ने भगवान राम को युद्ध में अपार शक्ति और सहायता प्रदान की, जिससे वे अजेय बने और अधर्म पर धर्म की विजय प्राप्त की। यह घटना दिखाती है कि किस तरह दिव्य शक्तियां धर्म की स्थापना में सहायता करती हैं।

राम-रावण के युद्ध का वर्णन एक गहन और उत्तेजक घटनाक्रम है, जिसमें वीरता, शक्ति, और दिव्य अस्त्रों का प्रदर्शन होता है। यह कहानी न केवल अच्छाई और बुराई के बीच के संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि भाईचारे, साहस, और त्याग की कहानियाँ भी प्रस्तुत करती है।

युद्ध की शुरुआत राम और रावण के बीच दिव्य अस्त्रों के प्रयोग से होती है, जहाँ दोनों अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं। रणभूमि में विद्युत् की चमक के साथ अस्त्रों का आदान-प्रदान होता है। इस युद्ध में लक्ष्मण और विभीषण का भी महत्वपूर्ण योगदान है, जहाँ विभीषण रावण के सारथी और घोड़ों को मारते हैं, और लक्ष्मण विभीषण की रक्षा करते हुए शक्ति बाण को काट देते हैं लेकिन अंततः वे अचेत हो जाते हैं। श्रीराम लक्ष्मण को पुनः सजीव करने के लिए उस शक्ति को निकाल देते हैं।

राम और रावण के बीच युद्ध चरम पर पहुँच जाता है, जहाँ राम रावण को अंतिम चुनौती देते हैं। इस दौरान, हनुमान संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण का उपचार करते हैं, जिससे वे पुनः युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं। राम, इंद्र के रथ पर सवार होकर, रावण के विरुद्ध अधिक शक्तिशाली बन जाते हैं। दोनों के बीच घमासान युद्ध होता है, भगवान श्रीराम ने रावण की मृत्यु का उपाय अपने बाणों के प्रयोग से नहीं, बल्कि विभीषण द्वारा दिए गए एक रहस्यमय भेद के माध्यम से किया। जब श्रीराम अपने दिव्य बाणों से बार-बार रावण का सिर काटते हैं और वह पुनः उत्पन्न हो जाता है  तब विभीषण ने बताया कि रावण की मृत्यु का रहस्य उनकी नाभि में छिपा हुआ है और वह नाभि पर बाणों की वर्षा करने से ही उसका वध संभव है। रावण के अमरत्व का रहस्य उसकी नाभि में छिपा अमृत के कारण था, जिसे भगवान ब्रह्मा के वरदान के रूप में प्राप्त था। विभीषण द्वारा इस गुप्त जानकारी को श्रीराम के साथ साझा करना और उनके द्वारा रावण की नाभि पर प्रहार करना, यह दर्शाता है कि ज्ञान और रणनीति युद्ध में कितनी महत्वपूर्ण होती है।

श्रीराम के द्वारा रावण की नाभि पर प्रहार करने के बाद, रावण की मृत्यु हो जाती है, जो न केवल युद्ध का अंत है बल्कि धर्म और न्याय की विजय भी है। रावण की मृत्यु अधर्म, अहंकार और बुराई के अंत का प्रतीक है, और यह दिखाता है कि सत्य और धर्म की राह पर चलने वालों की अंततः विजय होती है।

राम और रावण के युद्ध की कहानी न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में भी लोकप्रिय है और इसे साहित्य, कला, संगीत और नाटक में व्यापक रूप से चित्रित किया गया है। यह कहानी नैतिकता, धर्म, वीरता, और प्रेम के मूल्यों को दर्शाती है।

राम-रावण युद्ध  (Ram Ravan yudh) क्या है, और यह क्यों शुरू हुआ?

राम-रावण युद्ध  (Ram Ravan yudh), हिन्दू महाकाव्य रामायण में एक प्रमुख घटना है, जो तब शुरू हुआ जब लंका के राजा रावण ने भगवान राम की पत्नी माता सीता का अपहरण किया। इस कार्य ने भगवान राम को माता सीता को खोजने और वापस लाने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया, जिसका परिणाम युद्ध था।

रावण के खिलाफ युद्ध में भगवान राम के प्रमुख सहयोगी कौन थे?

भगवान राम के प्रमुख सहयोगी हनुमान जी, सुग्रीव जी और वानर सेना थे। हनुमान जी ने लंका में माता सीता को खोजने और वानर सेना के साथ गठबंधन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राम-रावण युद्ध  (Ram Ravan yudh) कितने दिनों तक चला, और इसकी अवधि में विभिन्न पाठों के अनुसार अंतर है?

राम-रावण युद्ध  (Ram Ravan yudh) की अवधि विभिन्न पाठों और परंपराओं में भिन्न होती है। हालांकि, यह सहमति है कि युद्ध लूनर महीने के दसवें दिन समाप्त हुआ, जो दिवाली के त्योहार के साथ मेल खाती है।

रावण को हराने के लिए भगवान राम ने कौन सा दिव्यास्त्र का उपयोग किया?

भगवान राम ने रावण को हराने के लिए ‘ब्रह्मास्त्र’ नामक एक दिव्य बाण का उपयोग किया। इस बाण का उपयोग विशेष रूप से रावण की नाभि में स्थित अमृत को काटने के लिए किया गया था।

भगवान राम की विजय में दिव्य हस्तक्षेप और अस्त्रों की क्या भूमिका थी?

दिव्य हस्तक्षेप और अस्त्रों ने भगवान राम की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भगवान राम के पास एक अक्षय तरकश और एक धनुष, कोदंड थे, जो दिव्य उपहार थे। इसके अलावा, अंतिम युद्ध के लिए भगवान राम को इंद्र का दिव्य रथ प्राप्त हुआ, जिसने रावण के खिलाफ अत्यधिक शक्ति और सहायता प्रदान की।

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