Pavitra Mantra: पवित्रीकरण मंत्र

पवित्रीकरण भारतीय संस्कृति और धर्म में एक ऐसा महत्वपूर्ण कर्मकांड है, जो आत्मा और शरीर की शुद्धि के लिए किया जाता है। यह न केवल भौतिक शुद्धि का प्रतीक है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का भी आधार है। जब हम पवित्रीकरण की प्रक्रिया को अपनाते हैं, तो यह हमें बाहरी और आंतरिक अशुद्धियों से मुक्त करता है।

पवित्रीकरण मंत्र अत्यंत शक्तिशाली और सरल है। यह मंत्र इस प्रकार है:

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥

अर्थ:

चाहे कोई अपवित्र हो या पवित्र, चाहे वह किसी भी अवस्था में हो,
यदि वह भगवान पुण्डरीकाक्ष (कमलनयन भगवान विष्णु) का स्मरण करता है, तो वह बाहरी और आंतरिक रूप से शुद्ध हो जाता है।

व्याख्या:

यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि भगवान विष्णु का नाम या स्मरण करने से किसी भी प्रकार की अशुद्धता (चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक) समाप्त हो जाती है। भगवान का नाम आत्मा को पवित्र करता है और साधक को बाह्य (शरीर) और आंतरिक (मन और आत्मा) दोनों स्तरों पर शुद्धता प्रदान करता है।

  • अपवित्रः पवित्रो वा”:
    यहाँ यह कहा गया है कि चाहे व्यक्ति किसी भी स्थिति में हो – पवित्रता या अपवित्रता में – भगवान का स्मरण उसे शुद्ध कर देता है।
  • सर्वावस्थां गतोऽपि वा”:
    चाहे व्यक्ति किसी भी अवस्था में हो, जैसे दुःख, अशुद्धता, भय, या किसी भौतिक समस्या में, भगवान का नाम उसे शुद्ध और शांत करता है।
  • पुण्डरीकाक्षं”:
    यह भगवान विष्णु के लिए प्रयुक्त एक नाम है, जिसका अर्थ है “कमल के समान नेत्रों वाले।” भगवान विष्णु यहाँ ईश्वर के सर्वव्यापी और करूणामयी रूप का प्रतीक हैं।
  • बाह्याभ्यन्तरः शुचिः”:
    भगवान का स्मरण करने से साधक केवल शरीर से ही नहीं, बल्कि मन और आत्मा से भी पवित्र हो जाता है।

The mantra ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥” emphasizes the transformative power of divine remembrance. Originating from the Vedic traditions, it holds a central place in rituals and spiritual practices, often recited during purification ceremonies or before initiating sacred acts.

Spiritual Significance:

This mantra reminds us that purity transcends physical conditions or external situations. Whether a person is pure or impure, in any state of existence, meditating upon the Lord with devotion purifies both inner and outer realms. The term “पुण्डरीकाक्ष” (Pundarikaksha) refers to Lord Vishnu, the one with lotus-like eyes, symbolizing compassion and divine beauty.

“Om apavitrah pavitro vaa sarvaavasthaam gato’pi vaa,
Yah smaret pundareekaaksham sa baahyaabhyantarah shuchih.”

Translation in English:
Whether one is impure or pure, regardless of their state or condition,
If they remember Pundarikaksha (Lord Vishnu, the lotus-eyed one), they become purified both externally and internally.

Explanation:
This verse emphasizes the transformative power of remembering and invoking Lord Vishnu’s name. It teaches that divine remembrance cleanses all impurities, whether physical or mental. It purifies both the body and the soul, leading to holistic spiritual cleansing.

  • “Apavitrah pavitro vaa”:
    The verse states that irrespective of whether a person is pure or impure, the remembrance of God can cleanse them.
  • “Sarvaavasthaam gato’pi vaa”:
    This phrase acknowledges that a person might be in any condition—sorrow, impurity, fear, or worldly troubles—yet the Lord’s name can bring them peace and purity.
  • “Pundarikaksham”:
    This refers to Lord Vishnu, whose eyes resemble the lotus flower. It symbolizes the universal, compassionate nature of God, who is ever-ready to purify and uplift devotees.
  • “Baahyaabhyantarah shuchih”:
    This signifies that remembering the Lord purifies not only the external body but also the internal self (mind and soul).

Spiritual Message:

  • This verse highlights the power of divine remembrance in purifying and uplifting one’s being.
  • Chanting the Lord’s name eradicates all forms of impurities and obstacles, bringing peace and sanctity.
  • It underscores the importance of devotion and surrender to the divine.


This shloka is often recited before prayers, meditation, or any sacred activity to attain purity of mind, body, and soul. It prepares an individual for spiritual practices by invoking divine energy and blessings

पवित्रीकरण की विधि

पवित्रीकरण के लिए सबसे पहले दाहिने हाथ में शुद्ध जल लें; यदि गंगाजल उपलब्ध हो, तो यह सर्वोत्तम है, अन्यथा सामान्य शुद्ध जल का उपयोग करें। इसके बाद, शांत मन से दाहिने हाथ में जल लेकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए पवित्रीकरण मंत्र का उच्चारण करें। मंत्र पढ़ने के पश्चात, जल को अपने सिर, आसन, और आसपास के स्थल पर छिड़कें, जिससे सभी स्थान शुद्ध हो जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु को जगत का पालनहार माना गया है, और उनका स्मरण व्यक्ति को हर प्रकार की बाधा से बचाता है। यह मंत्र किसी भी स्थान और स्थिति में उपयोगी है और इसके जाप से अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है, जो जीवन को सार्थक बनाती है।

पवित्रीकरण मंत्र से संबंधित धार्मिक मान्यताएं

पवित्रीकरण मंत्र से संबंधित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु को धार्मिक ग्रंथों में जगत का पालनहार माना गया है, और उनका स्मरण व्यक्ति को हर प्रकार की बाधा से बचाता है। यह मंत्र केवल धार्मिक स्थलों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे किसी भी स्थान और स्थिति में उपयोग किया जा सकता है। इसके नियमित जाप से व्यक्ति को अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है, जो न केवल जीवन को शुद्ध और सकारात्मक बनाती है, बल्कि उसे सार्थकता और आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी ले जाती है।

पवित्रीकरण मंत्र केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं है; यह जीवन को शुद्ध और सकारात्मक बनाने का साधन है। इसका नियमित अभ्यास न केवल आत्मा को शुद्ध करता है, बल्कि जीवन में शांति, समृद्धि, और संतोष भी लाता है।

जब भी आप अशुद्ध महसूस करें या मानसिक शांति की आवश्यकता हो, इस मंत्र का स्मरण करें। यह न केवल आपके जीवन को पवित्र बनाएगा, बल्कि आपको भगवान के निकट भी ले जाएगा।

आइए, पवित्रीकरण मंत्र को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और आध्यात्मिक उन्नति की ओर कदम बढ़ाएं।”

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