Navratri

चैत्र नवरात्रि (Navratri): आध्यात्मिक उत्कर्ष का उत्सव

नवरात्रि (Navratri) का शाब्दिक अर्थ है “नौ रातें”। ये नौ रातें माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करने के लिए समर्पित हैं। प्रत्येक स्वरूप शक्ति, साहस, करुणा और ज्ञान जैसे विभिन्न गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। नवरात्रि (Navratri) हमें इन गुणों को अपने जीवन में आत्मसात करने और आंतरिक शक्ति का विकास करने का अवसर प्रदान करता है। चैत्र नवरात्रि (Navratri), हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है, जो नवरात्रि (Navratri) के नौ दिनों के दौरान माता दुर्गा की उपासना के लिए समर्पित होता है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से आरंभ होकर यह त्योहार नवमी तिथि तक चलता है। इस वर्ष, चैत्र नवरात्रि (Navratri) का आरंभ 9 अप्रैल से हो रहा है। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह आध्यात्मिक शुद्धि और आत्म-साक्षात्कार के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।

चैत्र नवरात्रि (Navratri) का महत्व

चैत्र नवरात्रि (Navratri) का आयोजन प्राचीन काल से होता आ रहा है और इसे हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा बड़े ही श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। इस दौरान, देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। प्रत्येक दिन, एक विशेष रूप की पूजा की जाती है, जिसमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री शामिल हैं।

कलश स्थापना के लिए मुहूर्त:

पंचांग के अनुसार, कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 9 अप्रैल को सुबह 6:02 बजे से 10:16 बजे तक है। इसके अतिरिक्त, इसे अभिजित मुहूर्त में भी किया जा सकता है जो कि 11:57 a.m से 12:48 p.m तक है।

चैत्र नवरात्रि (Navratri) के दौरान, भक्त देवी दुर्गा की आराधना और पूजा करते हैं, जिसमें विशेष अनुष्ठान और पूजा विधियाँ शामिल होती हैं। कलश स्थापना के दिन, जो नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन होता है, एक पवित्र कलश स्थापित किया जाता है जो पूरे नवरात्रि (Navratri) उत्सव के दौरान पूजनीय होता है। इस शुभ मुहूर्त में घटस्थापना करने से माना जाता है कि भक्तों को देवी की अनुकंपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

इस पावन अवसर पर, भक्तों को शुद्ध और सच्चे मन से देवी दुर्गा की आराधना करनी चाहिए, ताकि उनके जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति का वास हो। चैत्र नवरात्रि (Navratri) का यह उत्सव हमें आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की ओर अग्रसर करता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आत्मबल को बढ़ाता है।

नवरात्रि (Navratri) की पूजा के लिए सामग्री में आमतौर पर निम्नलिखित चीजें शामिल होती हैं:

  1. आम के पत्ते (Mango Leaves): पूजा स्थल को सजाने के लिए आम के पत्ते का उपयोग किया जाता है।
  2. कलश (Kalash): पूजा के लिए एक पवित्र कलश स्थापित किया जाता है।
  3. पंचरत्न – पंचरत्न का अर्थ है पांच प्रकार के रत्न। नवरात्रि (Navratri) पूजा में देवी दुर्गा को पंचरत्न अर्पित किया जाता है।
  4. पंचमेवा – पंचमेवा का अर्थ है पांच प्रकार के मेवे। नवरात्रि (Navratri) पूजा में देवी दुर्गा को पंचमेवा अर्पित किया जाता है।
  5. अष्टगंध (Astagandha): अष्टगंध एक प्रकार का सुगंधित पाउडर है जो पूजा में उपयोग किया जाता है।
  6. घी (Ghee):घी का उपयोग पूजा में दीपक जलाने, हवन करने, और आरती करने के लिए किया जाता है
  7. नैवेद्य (nayvadya): नैवेद्य का अर्थ है भोग। नवरात्रि (Navratri) पूजा में देवी दुर्गा को नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं। आमतौर पर मिठाई, फल, और मिष्ठान का उपयोग किया जाता है।
  8. नारियल (Coconut): कलश पर नारियल रखा जाता है।
  9. चुनरी (Chunri): देवी की मूर्ति या तस्वीर पर चुनरी चढ़ाई जाती है।
  10. धूप (Incense Sticks): पूजा के दौरान धूप जलाई जाती है।
  11. दीपक (Diya): पूजा के लिए दीपक जलाया जाता है।
  12. फूल (Flowers): देवी को फूल अर्पित किए जाते हैं।
  13. फल (Fruits): पूजा में विभिन्न प्रकार के फल चढ़ाए जाते हैं।
  14. सिंदूर (Sindoor): देवी को सिंदूर अर्पित किया जाता है।
  15. रोली (Roli): तिलक के लिए रोली का उपयोग किया जाता है।
  16. चावल (Rice): अक्षत के रूप में चावल अर्पित किए जाते हैं।
  17. प्रसाद (Prasad): पूजा के बाद प्रसाद के रूप में मिठाई, हलवा, पूरी आदि बनाया जाता है।
  18. कपूर (Camphor): आरती के लिए कपूर का इस्तेमाल होता है।
  19. घंटी (Bell): पूजा के दौरान घंटी बजाई जाती है।

ये सामग्री क्षेत्रीय रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार भिन्न हो सकती हैं। इसके अलावा, कुछ विशेष सामग्रियां जैसे कि विशेष पूजा की किताबें या सामग्री, कुछ विशेष देवी-देवताओं के लिए विशेष चीजें भी हो सकती हैं।

नवरात्रि (Navratri) की पूजा विधि हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है और इसमें कई परंपरागत अनुष्ठान शामिल होते हैं। नवरात्रि (Navratri) में दुर्गा माता की आराधना की जाती है और यह त्योहार नौ रातों और दस दिनों तक चलता है। यहाँ नवरात्रि (Navratri) की पूजा विधि के कुछ सामान्य चरण दिए गए हैं:

नवरात्रि (Navratri) की पूजा कैसे की जाती है?

  1. घटस्थापना (कलश स्थापना): नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसमें एक पवित्र कलश को मिट्टी के बर्तन में स्थापित किया जाता है, और इसमें जौ बोये जाते हैं। कलश को एक चौकी पर रखा जाता है और उसके ऊपर नारियल रखा जाता है। कलश में आम के पत्ते, दूर्वा, पंचामृत, और पवित्र सामग्री भरी जाती है।
  2. प्रतिदिन की पूजा: प्रत्येक दिन मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। पूजा में देवी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाना, फूल, अक्षत, रोली, सिंदूर, धूप, अगरबत्ती, नैवेद्य (भोग) आदि चढ़ाना शामिल होता है। गणेश पूजन नवरात्रि (Navratri) की पूजा का एक अन्य महत्वपूर्ण हिस्सा है। गणेश को सभी बाधाओं का नाश करने वाला माना जाता है।
  3. आरती और भजन: दुर्गा सप्तशती एक संस्कृत ग्रंथ है जो मां दुर्गा की महिमा का वर्णन करता है। नवरात्रि (Navratri) के दौरान, भक्त दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। पूजा के बाद देवी मां की आरती की जाती है और भक्त भजन गाते हैं।
  4. फलाहार और उपवास: नवरात्रि (Navratri) के दौरान अनेक भक्त उपवास रखते हैं। उपवास के दौरान कुछ विशेष प्रकार के फलाहार खाए जाते हैं।
  5. कन्या पूजन: नवरात्रि (Navratri) के अंतिम दो दिनों में कन्या पूजन की परंपरा है, जिसमें कन्याओं को भोजन कराया जाता है और उन्हें उपहार दिए जाते हैं। नवरात्रि (Navratri) के दौरान, भक्त कन्याओं को भोजन कराते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं।
  6. विसर्जन: नवरात्रि (Navratri) के समापन पर घटस्थापना के लिए उपयोग किए गए जौ और कलश को विसर्जित किया जाता है।

आइये  अब जान लेते हैं नवरात्रि (Navratri)  क दौरान किये जाने वाले विभिन्न अनुष्ठानों के बारे में-

नवरात्रि (Navratri) के दौरान कन्या पूजन कैसे करें?

नवरात्रि (Navratri) के दौरान कन्या पूजन एक अनुष्ठान है जिसमें छोटी लड़कियों (कन्याओं) की पूजा देवी के रूप में की जाती है। यह आमतौर पर नवरात्रि (Navratri) के अंतिम दिन या अष्टमी और नवमी तिथि को किया जाता है। निम्नलिखित चरणों में कन्या पूजन की प्रक्रिया बताई गई है:

  1. कन्याओं का चयन: परंपरागत रूप से, नौ कन्याओं को चुना जाता है जो नवदुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये कन्याएं आमतौर पर 2 से 10 वर्ष के बीच की उम्र की होती हैं।
  2. पूजा की तैयारी: पूजा स्थान को साफ करें और वहां एक चौकी या आसन बिछाएं। कन्याओं को बैठाने के लिए उनके आसनों को तैयार करें।
  3. पूजा और आरती: कन्याओं के पैर धोएं और उन्हें आसन पर बिठाएं। फिर, उन्हें फूल, रोली, चावल, और अन्य पूजा सामग्री अर्पित करें। देवी दुर्गा की आरती और मंत्रों का पाठ करें।
  4. भोजन और दक्षिणा: कन्याओं को प्रसाद और भोजन परोसें, जिसमें हलवा, पूरी और चना शामिल हो सकता है। इसके बाद, उन्हें दक्षिणा (आमतौर पर उपहार और पैसे) दें।
  5. आशीर्वाद प्राप्त करना: कन्याओं का आशीर्वाद प्राप्त करें। उन्हें सम्मान के साथ विदा करें।

कन्या पूजन भक्ति, समर्पण और देवी के प्रति आदर की भावना से किया जाना चाहिए। यह अनुष्ठान देवी मां की शक्ति और कृपा को मान्यता देने का एक तरीका है, और यह बालिकाओं के प्रति सम्मान और प्यार को भी प्रदर्शित करता है।

नवरात्रि (Navratri) के दौरान नवदुर्गा का विसर्जन कैसे करें?

नवरात्रि (Navratri) में नवदुर्गा का विसर्जन एक धार्मिक और पारंपरिक अनुष्ठान है, जो नवरात्रि (Navratri) के अंतिम दिन या नवमी के दिन किया जाता है। नवदुर्गा का विसर्जन इस प्रकार किया जा सकता है:

  1. पूजा और आरती: नवदुर्गा की मूर्ति की पूजा करें और आरती उतारें। पूजा में फूल, रोली, चावल, और प्रसाद चढ़ाएं। नवदुर्गा की मूर्ति को विसर्जित करने के लिए सबसे पहले एक सान्यासी या पंडित से सहायता प्राप्त करें। विसर्जन के लिए स्थान और समय का चयन करें, जो धार्मिक परंपरा के अनुसार हो।
  2. विदाई की रस्में: मूर्ति को विदाई देते हुए, मूर्ति के सामने कुछ समय के लिए ध्यान और प्रार्थना करें।
  3. प्रसाद वितरण: पूजा के बाद, प्रसाद को भक्तों में बांट दें।

मूर्ति का विसर्जन: नवदुर्गा की मूर्ति को एक पवित्र नदी, तालाब या किसी जल स्रोत में विसर्जित करें। विसर्जन से पहले, मूर्ति के चरणों में पुनः पूजा और आरती करें। यह सिंबोलिक रूप से देवी को अपने आदिकालिक स्वरूप में वापस लौटने का प्रतीक होता है। विसर्जन करते समय निम्न मंत्र का जाप करें:

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि। पूजाराधनकाले पुनरागमनाय च।।

इस मंत्र का अर्थ है, “हे देवी, आप अपने लोक लौट जाएं। पूजा के समय फिर से लौटकर आएं।”

  1. पर्यावरण का ध्यान रखें: विसर्जन करते समय पर्यावरण का ख्याल रखें। प्रयास करें कि मूर्ति प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल सामग्री से बनी हो।
  2. अंतिम प्रार्थना: विसर्जन के समय, अंतिम प्रार्थना करें और मां दुर्गा से आशीर्वाद मांगें कि वह सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाएं।

नवरात्रि (Navratri) के नौ दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा के माध्यम से, हम मां दुर्गा की शक्ति और कृपा प्राप्त करते हैं। विसर्जन के माध्यम से, हम मां दुर्गा को वापस उनके लोक लौटने के लिए कहते हैं। यह ध्यान रखें कि विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में विसर्जन की रस्में और परंपराएं भिन्न हो सकती हैं, इसलिए अपने स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार भी विचार करें।

नवरात्रि (Navratri) के उपवास के दौरान, आमतौर पर निम्नलिखित प्रकार के फल और भोजन खाए जाते हैं:

फल: सेब, केला, पपीता, अनार, नारियल, आम, और अन्य मौसमी फल।

साबुदाना: साबुदाना खिचड़ी, साबुदाना वड़ा, और साबुदाना की खीर उपवास के दौरान लोकप्रिय हैं।

सिंघाड़ा आटा (वाटर चेस्टनट फ्लोर): सिंघाड़े के आटे से रोटी, पूरी या पकोड़े बनाए जाते हैं।

कुट्टू का आटा (बकव्हीट फ्लोर): कुट्टू की पूरी, परांठा, और पकोड़े।

समाक के चावल (बार्नयार्ड मिलेट): समाक की खिचड़ी या पुलाव।

मखाना (फॉक्सनट्स): मखाने की खीर या रोस्टेड मखाना।

डेयरी उत्पाद: दूध, दही, पनीर, और घी।

शकरकंदी (स्वीट पोटैटो): शकरकंदी की चाट या हलवा।

आलू: आलू की सब्जी, आलू का हलवा।

नट्स और सूखे मेवे: बादाम, काजू, किशमिश, और अखरोट।

नवरात्रि (Navratri) के उपवास में, प्याज, लहसुन, नॉन-वेजेटेरियन भोजन, अनाज जैसे गेहूं, चावल और दालों का सेवन आमतौर पर नहीं किया जाता है। यह भी ध्यान दें कि परंपराएं और व्यक्तिगत आस्थाएं भिन्न हो सकती हैं, इसलिए कुछ लोगों के उपवास के नियम अलग हो सकते हैं।

दुर्गा जी के नौ रूप

सनातन धर्म में देवी दुर्गा को शक्ति और भक्ति की प्रतीक माना जाता है। वे आदिशक्ति के नाम से भी प्रसिद्ध हैं, जो समस्त ब्रह्मांड की मूल ऊर्जा हैं। दुर्गा माता के नौ स्वरूपों को नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है, और ये नौ रूप नवरात्रि (Navratri) के पवित्र अवसर पर विशेष रूप से आराध्य होते हैं। इन “नवदुर्गा” नामक नौ रूपों का हिन्दू धर्म में गहरा महत्व है। ये नौ स्वरूप देवी दुर्गा की अलग-अलग शक्तियों और गुणों को दर्शाते हैं। इनकी पूजा और उपासना मुख्यतः नवरात्रि (Navratri) के समय की जाती है। हर एक रूप की अपनी विशिष्टता है और वह एक विशेष शक्ति तथा गुण का प्रतीक होता है।

शैलपुत्री (Shailaputri): नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन पूजी जाने वाली देवी, जो हिमालय की पुत्री हैं। इनका वाहन बैल है और इनके दो हाथ हैं जिनमें वे त्रिशूल और कमल का फूल धारण करती हैं। शैलपुत्री देवी पार्वती का रूप हैं, जो भगवान शिव की पत्नी हैं। शैलपुत्री के हाथों में कमल का फूल और त्रिशूल है।
ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini): दूसरे दिन पूजी जाने वाली देवी, जो तपस्या और साधना की प्रतीक हैं।ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा का रूप हैं, जो तपस्या और साधना में लीन हैं। उनके हाथों में कमल का फूल और जप माला है। ब्रह्मचारिणी देवी का रंग सफेद है।
चंद्रघंटा (Chandraghanta): तीसरे दिन पूजी जाने वाली देवी, जो शांति और कल्याण की प्रतीक हैं। चंद्रघंटा देवी दुर्गा का रूप हैं, जिनके मस्तक पर अर्धचंद्र है। उनके हाथों में गदा, कमल और शंख है और वह युद्ध के लिए तैयार दिखती हैं। चंद्रघंटा देवी का रंग नीला है।

कुष्मांडा (Kushmanda): चौथे दिन पूजी जाने वाली देवी, जो सृष्टि की रचना करने वाली हैं। इस रूप में, देवी दुर्गा आठ हाथों वाली होती हैं और उनकी सवारी सिंह है। यह रूप सृष्टि की उत्पत्ति का प्रतीक है। उनके हाथों में कमल का फूल और त्रिशूल है। कूष्मांडा देवी का रंग पीला है।

स्कंदमाता (Skandamata): पांचवें दिन पूजी जाने वाली देवी, स्कंदमाता देवी दुर्गा का रूप हैं, जो भगवान कार्तिकेय की माता हैं। उनके हाथों में कमल का फूल, त्रिशूल और तलवार है। स्कंदमाता देवी का रंग लाल है। यह रूप मातृत्व की पवित्रता का प्रतीक है।
कात्यायनी (Katyayani): छठे दिन पूजी जाने वाली देवी, जो योद्धा रूप में हैं। इस रूप में देवी का वाहन सिंह है और वे चार हाथों वाली होती हैं। यह रूप शक्ति और साहस का प्रतीक है। कात्यायनी देवी दुर्गा का रूप हैं, जिन्हें महर्षि कात्यायन ने प्रकट किया था। उनके हाथों में कमल का फूल, तलवार और धनुष है। कात्यायनी देवी का रंग हरा है।
कालरात्रि (Kalaratri): सातवें दिन पूजी जाने वाली देवी, जो अंधकार और नकारात्मक शक्तियों का नाश करने वाली हैं। इस रूप में देवी बहुत भयानक और शक्तिशाली होती हैं। यह रूप अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। कालरात्रि देवी दुर्गा का रूप हैं, जो अंधकार और मृत्यु की देवी हैं। उनके हाथों में खड्ग, त्रिशूल और डमरू है। कालरात्रि देवी का रंग काला है।
महागौरी (Mahagauri): आठवें दिन पूजी जाने वाली देवी, जो शांति और पवित्रता की प्रतीक हैं। महागौरी देवी दुर्गा का रूप हैं, जिनका रंग सफेद है। उनके हाथों में कमल का फूल और त्रिशूल है। महागौरी देवी का रंग सफेद है। इस रूप में देवी बेहद शांत और सौम्य दिखती हैं। यह रूप शांति और धैर्य का प्रतीक है।
सिद्धिदात्री (Siddhidatri): नवरात्रि (Navratri) के नौवें और अंतिम दिन पूजी जाने वाली देवी, जो सभी प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं। इस रूप में देवी सभी प्रकार की सिद्धियों की दाता मानी जाती हैं। यह रूप सर्वश्रेष्ठ और सर्वगुण संपन्न माना जाता है। सिद्धिदात्री देवी दुर्गा का रूप हैं, जो सभी सिद्धियों की दात्री हैं। उनके हाथों में कमल का फूल, चक्र और शंख है। सिद्धिदात्री देवी का रंग पीला है।

नवदुर्गा की पूजा नवरात्रि (Navratri) के दौरान की जाती है, और प्रत्येक देवी का अपना एक विशेष महत्व और शक्ति होती है।

नवरात्रि (Navratri) पूजा के लाभ

नवरात्रि (Navratri) पूजा के लाभ वास्तव में बहुत व्यापक और सार्थक हैं। इस त्योहार के दौरान, लोग अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति, मन की शांति, और परिवारिक सुख-समृद्धि का अनुभव करते हैं। सच्चे मन से की गई पूजा से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है, जो हमारी इच्छाओं की पूर्ति में सहायक होती है। इसके अलावा, नवरात्रि (Navratri) समाजिक समरसता और एकता को भी बढ़ावा देती है।

नवरात्रि (Navratri) का समापन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान का समापन होता है, बल्कि यह हमारे जीवनशैली का भी शुद्धिकरण होता है। नौ दिनों तक नियमों का पालन करके हम अपने शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करते हैं। इस त्योहार के माध्यम से हमें यह भी सिखने को मिलता है कि सत्य, धर्म और न्याय का साथ देने से हम अपने जीवन में और भी अधिक समृद्धि और सुख प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए, नवरात्रि (Navratri) के समापन पर हमें इन मूल्यों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेना चाहिए।

चैत्र नवरात्रि (Navratri) में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त क्या है?

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त चैत्र नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन, यानी 9 अप्रैल, सुबह 6:02 बजे से 10:16 बजे तक है। इसके अतिरिक्त, अभिजित मुहूर्त में भी किया जा सकता है, जो 11:57 a.m से 12:48 p.m तक है।

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