केदारनाथ मंदिर: यात्रा, इतिहास, और महत्वपूर्ण जानकारी | Kedarnath Temple: Yatra, History, and Important Details

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केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है, जो हिमालय की गोद में बसा एक पवित्र तीर्थस्थल है। यह मंदिर हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण शिव तीर्थों में से एक है और चार धाम यात्रा का भी एक हिस्सा है। इसकी स्थापना के बारे में निश्चित तिथि का उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन यह मंदिर कई सदियों पुराना माना जाता है और इसका इतिहास हिंदू पुराणों और शास्त्रों में दर्ज है।

केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला और स्थापत्य कला अत्यंत प्राचीन और अद्वितीय है। इसे बड़े-बड़े पत्थरों को काटकर और उन्हें एक-दूसरे के ऊपर रखकर बनाया गया है। मंदिर का मुख्य गर्भगृह भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहां ‘केदारनाथ’ के रूप में पूजा जाता है। भगवान शिव की यहां एक विशाल शिला के रूप में पूजा की जाती है, जिसे शिवलिंग कहा जाता है।

केदारनाथ मंदिर की यात्रा करना काफी कठिन है क्योंकि यह समुद्र तल से लगभग 3,583 मीटर (11,755 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यहां तक पहुँचने के लिए यात्रियों को कई किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। हालांकि, यह यात्रा अपने सुंदर नजारों और आध्यात्मिक महत्व के कारण यात्रियों के लिए अत्यंत विशेष और यादगार बन जाती है।

केदारनाथ मंदिर का इतिहास और रहस्य वास्तव में गहन और आकर्षक है। इस मंदिर के निर्माण के पीछे की कथाएं और मिथक इसे और भी रोचक बना देते हैं।

पांडवों का संबंध:

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, महाभारत के युद्ध के बाद, पांडव अपने किए गए अधर्मों और अपने स्वजनों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की खोज में निकले। लेकिन भगवान शिव, पांडवों से नाराज होकर, उनसे छुपने के लिए एक भैंस में बदल गए और गुप्तिका (आज का गुप्तकाशी) में छिप गए। जब पांडव उन्हें खोजने में सफल हुए, तो भगवान शिव भैंस के रूप में धरती में समा गए। जब वे धरती में समा रहे थे, तब उनके शरीर के विभिन्न अंग अलग-अलग स्थानों पर प्रकट हुए। शिव का कूबड़ (पीठ) केदारनाथ में प्रकट हुआ, और इस प्रकार यहाँ एक शिवलिंग के रूप में पूजा जाने लगा।

आदि शंकराचार्य का योगदान:

एक अन्य कहानी के अनुसार, आदि शंकराचार्य, जो एक महान हिंदू धर्मगुरु और दार्शनिक थे, ने 8वीं शताब्दी में केदारनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया। उन्होंने इस स्थल को हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक के रूप में पुनः स्थापित किया। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने अपने जीवन के अंतिम दिन यहां बिताए थे।

मंदिर की वास्तुकला भी एक रहस्य है। यह मंदिर विशाल पत्थरों से निर्मित है और इसका निर्माण ऐसे समय में किया गया था जब आधुनिक उपकरण और तकनीकी उपलब्ध नहीं थी। इस मंदिर का संरक्षण और उसके खड़े रहने की क्षमता, खासकर भारी बर्फबारी और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद, वास्तुशिल्प और इंजीनियरिंग की दृष्टि से एक चमत्कार है।

केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला और विशेषताएं इसे भारत के सबसे अद्वितीय और प्रभावशाली पवित्र स्थलों में से एक बनाती हैं।

वास्तुकला:
  • पत्थरों की संरचना: केदारनाथ मंदिर विशाल पत्थरों से बना है जिसे इंटरलॉकिंग तकनीक से एक-दूसरे के साथ जोड़ा गया है, जो इसे भूकंपों के दौरान भी स्थिर रखता है।
  • पारंपरिक हिमालयी शैली: इसकी वास्तुकला पारंपरिक हिमालयी शैली में है, जिसमें भारी पत्थरों का उपयोग किया गया है, और इसकी छत पर बड़े शिलाखंडों का उपयोग किया गया है।
  • गर्भगृह: मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का एक विशाल शिवलिंग है, जो केदारनाथ के रूप में पूजित है।
विशेषताएं:
  • बर्फ में ढका इतिहास: मंदिर कई महीनों तक बर्फ से पूरी तरह ढका रहता है, जिसके कारण प्राचीन समय में इसका पता लगाना और भी कठिन हो जाता था। यह स्थल साल में केवल कुछ महीनों के लिए यात्रियों के लिए खुलता है।
  • पुजारियों की अलौकिक शक्तियां: केदारनाथ के पुजारियों को, जिन्हें ‘रावल’ कहा जाता है, पवित्र और अलौकिक शक्तियों का वाहक माना जाता था। ये पुजारी विशेष धार्मिक अनुष्ठानों और कर्मकांडों को संपन्न करते हैं।
अद्वितीय परंपराएं और रिवाज:
  • केदारनाथ मंदिर में अनेक परंपराएँ और रिवाज हैं जो इसे अन्य धार्मिक स्थलों से अलग बनाते हैं।
  • मंदिर के द्वार सर्दियों में बंद हो जाते हैं और वसंत ऋतु में फिर से खोले जाते हैं, जिसे खास धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है।

केदारनाथ मंदिर की ये विशेषताएं और इसकी वास्तुकला इसे केवल एक पवित्र तीर्थस्थल ही नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी बनाती हैं, जो विश्व भर के श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करती है।

केदारनाथ मंदिर की महिमा और पौराणिक कथाएँ हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए गहरी आस्था और श्रद्धा का स्रोत हैं।

पौराणिक कथाएँ:
  • देवता और गंधर्वों की पूजा: पुराणों के अनुसार, केदारनाथ मंदिर में, जब मंदिर के कपाट सर्दियों के दौरान बंद होते हैं, तो देवता और गंधर्व यहाँ आकर भगवान शिव की आराधना करते हैं। यह माना जाता है कि इस समय में भगवान शिव देवताओं और गंधर्वों के साथ स्वयं उपस्थित रहते हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि मंदिर की पवित्रता और शिव की उपस्थिति सभी लोकों में व्याप्त है, और यह स्थल दिव्य ऊर्जा से भरा हुआ माना जाता है।
  • पांडवों द्वारा निर्माण: केदारनाथ मंदिर के निर्माण की कथा महाभारत से जुड़ी हुई है। पांडवों ने, महाभारत के युद्ध के बाद, अपने किए गए पापों का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव से मिलने का निर्णय लिया। जब वे भगवान शिव से मिलने में असफल रहे, तो उन्होंने उनकी खोज में हिमालय पर्वत पर एक लंबी यात्रा की। जब भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया, तो पांडवों ने उनकी पूजा के लिए इस मंदिर का निर्माण किया।
मंदिर की महिमा:
  • केदारनाथ मंदिर की महिमा इसके दिव्य और चमत्कारिक प्रभावों में निहित है। श्रद्धालु और तीर्थयात्री इस स्थल पर अपनी आस्था और भक्ति के साथ आते हैं, और मान्यता है कि भगवान शिव उनकी सभी प्रार्थनाओं को सुनते हैं और उनके संकटों को दूर करते हैं।
  • मंदिर की यात्रा को आत्मिक शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक महत्वपूर्ण यात्रा माना जाता है। इस तीर्थस्थल की यात्रा करने वाले भक्तों का मानना है कि वे अपने जीवन की सभी परेशानियों और बाधाओं से मुक्त हो जाते हैं।

केदारनाथ मंदिर की पौराणिक कथाएँ और महिमा इसे केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक शक्ति केंद्र भी बनाती हैं, जो विश्व भर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

केदारनाथ मंदिर और पंच केदार की कथा पांडवों के अध्यात्मिक यात्रा और उनके भगवान शिव से जुड़े अनूठे संबंध को दर्शाती है। महाभारत युद्ध के बाद, पांडवों को अपने कर्मों का प्रायश्चित करने की इच्छा हुई, और वे भगवान शिव की खोज में निकल पड़े। भगवान शिव, पांडवों की अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर, उन्हें दर्शन देने के लिए प्रकट हुए, लेकिन उन्होंने भैंस का रूप धारण किया। जब वे भूमि में समाने लगे, तो उनके शरीर के विभिन्न भाग विभिन्न स्थानों पर प्रकट हुए। इसी कथा के आधार पर पंच केदार की स्थापना हुई।

पंच केदार का अर्थ है शिव के पांच स्थान, जहाँ उनके शरीर के पांच भाग प्रकट हुए थे:

  1. केदारनाथ (कूबड़): यहाँ भगवान शिव के कूबड़ का दर्शन होता है, और यह सबसे प्रमुख केदार माना जाता है।
  2. तुंगनाथ (बाहें): तुंगनाथ में भगवान शिव की बाहों का प्राकट्य हुआ था। यह विश्व का सबसे ऊँचाई पर स्थित शिव मंदिर है।
  3. मद्महेश्वर (नाभि): मद्महेश्वर में भगवान शिव की नाभि का प्राकट्य हुआ था।
  4. रुद्रनाथ (मुख): रुद्रनाथ में भगवान शिव के मुख का प्राकट्य हुआ था। यहाँ शिव की पूजा आकाशीय रूप में की जाती है।
  5. कल्पेश्वर (जटा): कल्पेश्वर में भगवान शिव की जटा (बाल) का प्राकट्य हुआ था। यह स्थान पंच केदार में सबसे सुगमता से पहुँचा जा सकने वाला स्थान है।

पंच केदार की यात्रा एक आध्यात्मिक अनुष्ठान मानी जाती है, जो भक्तों को शिव के विभिन्न स्वरूपों से परिचित कराती है और उन्हें आत्मिक शांति प्रदान करती है। केदारनाथ मंदिर इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे आस्था का अद्भुत संगम माना जाता है, जहाँ देवत्व और प्रकृति का अद्भुत मिलन होता है।

लेकिन दोस्तों, क्या आपने कभी गौर किया है किभगवान शिव का दूरदराज और एकांत स्थानों में निवास करना, और ज्योतिर्लिंगों का भौगोलिक रूप से एक सीधी रेखा में होना, वास्तव में भारतीय आध्यात्मिकता और प्राचीन विज्ञान की गहराई को दर्शाता है। यह विश्वास किया जाता है कि शिव तपस्या, ध्यान, और आत्म-अन्वेषण के देवता हैं, और इसीलिए उनके स्थल ऐसे स्थानों पर हैं जहां प्रकृति अपने सबसे शुद्ध रूप में है, जिससे भक्तों और साधकों को ध्यान और तपस्या में गहराई तक जाने में सहायता मिलती है।

ज्योतिर्लिंग, जिसका अर्थ है “प्रकाश का स्तंभ”, भगवान शिव के वे शिवलिंग हैं जिन्हें स्वयंभू (स्वयं प्रकट हुए) माना जाता है। भारत में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं, और एक विचार यह भी है कि इन्हें भौगोलिक रूप से एक सीधी रेखा में बनाया गया है, जो कि भारतीय प्राचीन ज्ञान और स्थापत्य कौशल का परिचायक है। इस सीधी रेखा का निर्माण शायद आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रवाह को दिखाने के लिए किया गया था, या यह खगोलीय और भूगोलिक संरचनाओं के साथ उनके संरेखण को दर्शाता है।

केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक, यह संरेखण भारतीय उपमहाद्वीप की भौगोलिक विविधता के साथ-साथ आध्यात्मिकता के गहन संबंध को भी दर्शाता है। यह योजना और विचारशीलता भारतीय प्राचीन ज्ञान और अध्यात्मिक प्रथाओं की गहराई को दिखाती है, जिसमें धरती, आकाश, और दिव्यता के बीच एक सजीव संबंध को पहचाना गया है।

इन ज्योतिर्लिंगों की यात्रा करना न केवल भौतिक यात्रा है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा भी है, जो साधकों को आत्मा की गहराइयों तक पहुँचने में मदद करती है और उन्हें दिव्यता के साथ एक गहरे संबंध में ले जाती है।

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2013 में, उत्तराखंड में आई भयानक बाढ़ ने व्यापक विनाश किया था। इस प्राकृतिक आपदा ने हजारों जीवनों को छीन लिया और अनगिनत संपत्तियों को नष्ट कर दिया। इस त्रासदी के बीच, केदारनाथ मंदिर के आस-पास का क्षेत्र भी गंभीर रूप से प्रभावित हुआ था। लेकिन, एक चमत्कारिक घटना ने अनेक लोगों की आस्था और विश्वास को और मजबूत कर दिया।

बाढ़ के पानी और मलबे के प्रवाह ने जब केदारनाथ मंदिर की ओर अपना रुख किया, तब एक बड़ा पत्थर मंदिर के पीछे की ओर आकर रुक गया। इस पत्थर ने मंदिर को सीधे प्रवाह से बचाया, जिससे मंदिर को काफी हद तक क्षति से बचाया जा सका। यह पत्थर मानो भगवान शिव की दिव्य शक्ति का प्रतीक बन गया, जिसने अपने भक्तों के विश्वास और समर्पण की रक्षा की।

इस घटना को अनेक भक्त और यात्री भगवान शिव के चमत्कार और कृपा के रूप में देखते हैं। इस पत्थर को “दिव्य शिला” या “भीमशिला” के नाम से जाना जाता है, और यह आज भी केदारनाथ मंदिर के पास स्थापित है, जहाँ यह आस्था और चमत्कार का प्रतीक बना हुआ है। यह घटना न केवल भक्तों के लिए आस्था की एक मिसाल है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण की भावना को भी प्रेरित करती है।

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केदारनाथ में “स्वर्ग से हवा आती है” यह वाक्यांश आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सुंदरता की भावना को व्यक्त करता है जो इस पवित्र स्थल की यात्रा के साथ जुड़ी हुई है। केदारनाथ धाम, जो हिमालय की ऊँची चोटियों में स्थित है, न केवल हिन्दू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है बल्कि यह एक ऐसा स्थान भी है जहाँ प्रकृति की अद्भुत और अनुपम सुंदरता देखने को मिलती है।

इसका अर्थ है कि केदारनाथ की यात्रा के दौरान, भक्तों और यात्रियों को ऐसा अनुभव होता है मानो वे स्वर्ग के करीब पहुँच गए हों। यहाँ की शुद्ध और ताज़ा हवा, चारों ओर फैली हरी-भरी वादियाँ, बर्फ से ढके पर्वत, और आध्यात्मिक ऊर्जा यात्रियों को एक दिव्य और ऊर्जावान अनुभव प्रदान करती है।

केदारनाथ मंदिर की यात्रा आत्मिक शुद्धि और आत्म-साक्षात्कार की यात्रा मानी जाती है। यहाँ की यात्रा करने वाले भक्त मानते हैं कि इस पवित्र स्थान पर भगवान शिव के दर्शन और उनकी आराधना से उनके सभी पाप धुल जाते हैं और आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार, केदारनाथ धाम न केवल एक तीर्थ स्थल है बल्कि यह एक ऐसा स्थान है जहाँ प्रकृति और दिव्यता का अद्भुत मेल होता है, जो यात्रियों को एक अविस्मरणीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।


केदारनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन या पंजीकरण एक आवश्यक प्रक्रिया है जिसे सभी तीर्थयात्रियों को पूरा करना होता है। उत्तराखंड सरकार और उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद (UTDB) द्वारा इस पंजीकरण प्रक्रिया को अनिवार्य बनाया गया है ताकि यात्रियों की सुरक्षा और यात्रा की बेहतर निगरानी सुनिश्चित की जा सके।

ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन:

  1. वेबसाइट पर जाएँ: उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद् की आधिकारिक वेबसाइट या चार धाम यात्रा की समर्पित वेबसाइट पर जाएँ।
  2. रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरें: यात्री पंजीकरण फॉर्म में आवश्यक जानकारियाँ भरें, जिसमें व्यक्तिगत विवरण, यात्रा की तिथि, और अन्य आवश्यक जानकारियाँ शामिल हैं।
  3. भुगतान करें: पंजीकरण शुल्क का भुगतान ऑनलाइन करें।
  4. पंजीकरण पास प्राप्त करें: पंजीकरण पूरा होने के बाद, आपको एक पंजीकरण पास प्राप्त होगा जिसे आपको यात्रा के दौरान साथ रखना होगा।

ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन:

  1. रजिस्ट्रेशन केंद्र: यात्रियों के लिए उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों पर रजिस्ट्रेशन केंद्र उपलब्ध हैं, जहाँ वे ऑफलाइन पंजीकरण कर सकते हैं।
  2. जानकारी प्रदान करें: व्यक्तिगत और यात्रा से संबंधित जानकारी रजिस्ट्रेशन केंद्र पर प्रदान करें।
  3. पंजीकरण पास प्राप्त करें: ऑफलाइन पंजीकरण के बाद, आपको एक पंजीकरण पास मिलेगा।
  • यात्रा के लिए समय से पहले पंजीकरण करना सुनिश्चित करें, विशेषकर यात्रा के मौसम के दौरान, जब भीड़ अधिक होती है।
  • यात्रा के दौरान अपने पंजीकरण पास और वैध आईडी प्रूफ को साथ रखें।

केदारनाथ यात्रा रजिस्ट्रेशन सुरक्षा और सुविधा को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है। इसलिए, यात्रा की योजना बनाते समय इस प्रक्रिया को पूरा करना न भूलें।

केदारनाथ धाम पहुंचने के लिए विभिन्न मार्गों और माध्यमों का विकल्प होता है, जिसमें सड़क मार्ग, हवाई यात्रा, और हेलीकॉप्टर सेवाएँ शामिल हैं। यात्रियों की सुविधा और आवश्यकताओं के अनुसार, वे निम्नलिखित में से किसी भी विकल्प का चयन कर सकते हैं:

हवाई मार्ग से:
  • निकटतम हवाई अड्डा: जॉली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून है, जो गौरीकुंड से लगभग 239 किलोमीटर दूर है। देहरादून हवाई अड्डा भारत के प्रमुख शहरों से उड़ानों द्वारा जुड़ा हुआ है। यहाँ से यात्री गौरीकुंड के लिए टैक्सी या बस सेवाएं ले सकते हैं।
रेल मार्ग से:
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: ऋषिकेश है, जो गौरीकुंड से लगभग 210 किलोमीटर दूर है। ऋषिकेश भारत के मुख्य शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश से गौरीकुंड के लिए टैक्सी या बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग से:
  • दिल्ली से केदारनाथ: दिल्ली से केदारनाथ तक की दूरी लगभग 450 किलोमीटर है। यात्री दिल्ली से हरिद्वार/ऋषिकेश के लिए बस या टैक्सी ले सकते हैं, और फिर ऋषिकेश से गौरीकुंड के लिए यात्रा कर सकते हैं।
हेलीकॉप्टर सेवाएँ:
  • हेलीकॉप्टर सेवा: फाटा, गुप्तकाशी, और सेरसी जैसे स्थानों से केदारनाथ के लिए हेलीकॉप्टर सेवाएं उपलब्ध हैं। यह सेवा यात्रा को अधिक सुविधाजनक और तेज़ बनाती है। यात्रा के मौसम में इन सेवाओं के लिए पहले से बुकिंग करनी पड़ती है।

केदारनाथ धाम यात्रा की योजना बनाते समय, मौसम की स्थिति, स्वास्थ्य संबंधी तैयारियाँ, और आवास की व्यवस्था के बारे में पहले से जानकारी एकत्र करना आवश्यक है। इस यात्रा को सुखद और सुरक्षित बनाने के लिए उचित तैयारी और योजना महत्वपूर्ण है।

केदारनाथ यात्रा का खर्च विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि यात्रा के माध्यम, आवास का प्रकार, भोजन, और अन्य व्यक्तिगत खर्च। यहाँ एक अनुमानित खर्च का विवरण दिया जा रहा है, जो आपको केदारनाथ यात्रा की योजना बनाते समय मदद कर सकता है:

1. यात्रा का खर्च:
  • हवाई यात्रा: यदि आप हवाई मार्ग से यात्रा कर रहे हैं, तो आपके शहर से देहरादून की हवाई यात्रा का खर्च लगभग 3,000 से 10,000 रुपये (वन-वे) तक हो सकता है, जो बुकिंग के समय और सीजन पर निर्भर करता है।
  • रेल यात्रा: दिल्ली से ऋषिकेश तक की रेल यात्रा का खर्च आरक्षण श्रेणी पर निर्भर करते हुए लगभग 250 से 1,500 रुपये (वन-वे) तक हो सकता है।
  • सड़क यात्रा: दिल्ली से ऋषिकेश/गौरीकुंड तक बस या टैक्सी का खर्च लगभग 500 से 5,000 रुपये (वन-वे) तक हो सकता है।
2. आवास:
  • गौरीकुंड और केदारनाथ मार्ग पर आवास का खर्च लगभग 500 से 5,000 रुपये प्रति रात हो सकता है, जो आवास के प्रकार और सेवाओं पर निर्भर करता है।
3. भोजन और अन्य खर्च:
  • यात्रा के दौरान भोजन और अन्य व्यक्तिगत खर्च लगभग 300 से 1,000 रुपये प्रति दिन हो सकते हैं।
4. हेलीकॉप्टर सेवा:
  • यदि आप हेलीकॉप्टर सेवा का उपयोग कर रहे हैं, तो इसका खर्च लगभग 7,000 से 8,000 रुपये (वन-वे) प्रति व्यक्ति हो सकता है।

ये अनुमानित खर्च हैं और वास्तविक खर्च विभिन्न कारकों के आधार पर बदल सकते हैं। यात्रा की योजना बनाते समय, आवश्यक सेवाओं और बुकिंग के लिए पहले से जांच करना और आरक्षण करना सुनिश्चित करें।

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