काली चालीसा का पाठ मां काली की कृपा को प्राप्त करने का एक सशक्त माध्यम है। यह न केवल साधक के जीवन के सभी संकटों को दूर करता है, बल्कि उसे आत्मिक शांति और उन्नति की ओर भी अग्रसर करता है। मां काली की उपासना में समर्पित भाव से की गई साधना निश्चित ही साधक को अभूतपूर्व शक्ति और आनंद की प्राप्ति कराती है।
मां काली की आराधना में श्रद्धा, भक्ति, और समर्पण का होना अत्यंत आवश्यक है। जब हम पूर्ण समर्पण के साथ मां काली की पूजा करते हैं, तो उनका आशीर्वाद हमें हर क्षेत्र में सफलता और शांति प्रदान करता है इसलिए, प्रत्येक साधक को नियमित रूप से काली चालीसा का पाठ करना चाहिए और मां काली की कृपा को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
मां काली को शक्ति और साहस की देवी के रूप में पूजा जाता है। वे अपने त्रिनेत्रधारी और भयंकर रूप से पहचान बनाई हुई हैं, लेकिन उनके भीतर असीम करुणा और ममता भी है। मां काली दुष्टों का नाश करती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। मां काली की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और भक्त जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
इस लेख में, हम आपको काली चालीसा का सरल हिन्दी अनुवाद, उसके पाठ की विधि और ध्यान मंत्र के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। ताकि जिन भक्तों को केवल काली चालीसा का पाठ करना है, वे इसे अर्थ के साथ समझ कर पाठ कर सकें।
श्री काली चालीसा पाठ विधि
समय और स्थान का चयन: श्री काली चालीसा के पाठ के लिए प्रातःकाल का समय सर्वोत्तम माना जाता है। प्रातःकाल में, अपने नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजन के लिए एक साफ और शांत स्थान का चयन करें जहाँ माँ काली का चित्र या प्रतिमा स्थापित की जा सके। पूजा स्थल का शुद्ध और पवित्र होना अति आवश्यक है ताकि सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो सके।
पूजन सामग्री: पूजा के लिए आवश्यक सामग्रियों में माँ काली का चित्र या प्रतिमा, ताम्रपत्र पर खुदा हुआ पूजन यंत्र या भोजपत्र पर हल्दी से बना पूजन यंत्र, शुद्ध घी का दीपक, अगरबत्ती, चावल, पुष्प, सिंदूर, और नारियल शामिल हैं। इन सामग्रियों का प्रयोग करते हुए भक्त माँ काली की आराधना करते हैं। शुद्ध घी का दीपक जलाकर पूजा का आरम्भ किया जाता है, क्योंकि यह शुद्धता और प्रकाश का प्रतीक है।
पूजन प्रारम्भ: सबसे पहले मां काली के चित्र या प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं और अगरबत्ती प्रज्वलित करें। इसके बाद माँ काली को पुष्प, चावल, सिंदूर, और नारियल अर्पित करें। यह क्रियाएं माँ को प्रसन्न करने के लिए की जाती हैं। फिर, पूरे मनोभाव और श्रद्धा के साथ, निम्नलिखित मंत्र का जाप करें:
मंत्र जाप: ॐ ऐं क्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा।
इस मंत्र का जाप माँ काली की कृपा प्राप्त करने और उनकी शक्तियों का आह्वान करने के लिए किया जाता है। इस मंत्र का उच्चारण शांत मन और एकाग्रता के साथ करें।
“ॐ ऐं क्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा” एक महत्वपूर्ण तांत्रिक मंत्र है, जो देवी काली की उपासना के लिए प्रयोग किया जाता है। इस मंत्र में निम्नलिखित बीज मंत्रों का समावेश होता है:
- ॐ: यह ब्रह्मांड की ऊर्जा और परमात्मा का प्रतीक है।
- ऐं: यह ज्ञान और बुद्धि का बीज मंत्र है, जो देवी सरस्वती से जुड़ा होता है।
- क्रीं: यह शक्ति और काली का बीज मंत्र है, जो ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है।
- क्लीं: यह आकर्षण और प्रेम का बीज मंत्र है, जो देवी काली की शक्ति से जुड़ा है।
- कालिकायै: यह देवी काली को संबोधित करता है।
- स्वाहा: यह शब्द मंत्र के अंत में आता है और इसका अर्थ है “मैं इसे समर्पित करता हूं”।
ध्यान मंत्र:
शवारूढां महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम्
चतुर्भुजां खड्गमुण्डवराभयकरां शिवाम्।
मुण्डमालाधरां देवीं ललज्जिह्वां दिगम्बराम्।
एवं सञ्चिन्तयेत्कालीं श्मशानालयवासिनीम्॥
मंत्र का अर्थ:
- शवारूढां: जो शव पर विराजमान हैं।
- महाभीमां: जो अत्यंत भयानक हैं।
- घोरदंष्ट्रां: जिनके दांत बहुत ही भयानक हैं।
- हसन्मुखीम्: जिनका मुखमंडल हंसता हुआ है।
- चतुर्भुजां: जिनके चार भुजाएँ हैं।
- खड्गमुण्डवराभयकरां: जिनके हाथ में खड्ग (तलवार), मुण्ड (कटे हुए सिर), वर (आशीर्वाद देने की मुद्रा), और अभय (डर से मुक्त करने की मुद्रा) है।
- शिवाम्: जो कल्याणकारी हैं।
- मुण्डमालाधरां: जो मुण्डों की माला धारण करती हैं।
- देवीं: जो देवी हैं।
- ललज्जिह्वां: जिनकी जीभ लाल है।
- दिगम्बराम्: जो वस्त्रहीन (प्राकृतिक रूप से आवरणहीन) हैं।
- एवं सञ्चिन्तयेत्कालीं: इस प्रकार माँ काली का ध्यान करें।
- श्मशानालयवासिनीम्: जो श्मशान में निवास करती हैं।
मंत्र का महत्व:
माँ काली के इस ध्यान मंत्र का जाप करने से साधक को शक्ति, साहस, और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। यह मंत्र साधक को नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है। माँ काली का ध्यान करने से मन की शुद्धि होती है और साधक को आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।
इस ध्यान मंत्र के माध्यम से माँ काली की महिमा का गुणगान किया जाता है। माँ काली को शमशान में निवास करने वाली देवी के रूप में वर्णित किया गया है, जो अपने रौद्र रूप में सभी नकारात्मकताओं का नाश करती हैं और भक्तों को अभय प्रदान करती हैं। उनका स्वरूप भयानक और उग्र होते हुए भी, भक्तों के लिए अत्यंत दयालु और करुणामय है। जब हम उनका ध्यान करते हैं, तो यह मंत्र हमारे मन को शांति, सुरक्षा, और आध्यात्मिक शक्ति से भर देता है।
श्री काली चालीसा का पाठ और उपरोक्त विधि से माँ काली की आराधना करने से जीवन में सभी प्रकार की बाधाओं का नाश होता है, नकारात्मक शक्तियों का अंत होता है, और माँ काली की कृपा से साधक के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
माँ काली चालीसा
॥दोहा॥
जयकाली कलिमलहरण,
महिमा अगम अपार ।
महिष मर्दिनी कालिका,
देहु अभय अपार ॥
॥ चौपाई ॥
अरि मद मान मिटावन हारी ।
मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता ।
दुष्टदलन जग में विख्याता ॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै ।
कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला ।
हाथ तीसरे सोहत भाला ॥4॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे ।
छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी ।
शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता ।
जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी ।
निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥8॥
महशक्ति अति प्रबल पुनीता ।
तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक ।
कल्याणी पापी कुल घालक ॥
शेष सुरेश न पावत पारा ।
गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा ।
विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥12॥
रूप भयंकर जब तुम धारा ।
दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे ।
भक्तजनों के संकट टारे ॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी ।
भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं ।
नारद शारद पार न पावैं ॥16॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी ।
तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता ।
विश्वविदित भव संकट त्राता ॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा ।
उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा ।
काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥20॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे ।
अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी ।
चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥
त्रेता में रघुवर हित आई ।
दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला ।
भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥24॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे ।
कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो ।
स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥
ये बालक लखि शंकर आए ।
राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई ।
यही रूप प्रचलित है माई ॥28॥
बाढ्यो महिषासुर मद भारी ।
पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की ।
पीर मिटावन हित जन-जन की ॥
तब प्रगटी निज सैन समेता ।
नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं ।
तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥32॥
मान मथनहारी खल दल के ।
सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा ।
पावैं मनवांछित फल मेवा ॥
संकट में जो सुमिरन करहीं ।
उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं ।
भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥36॥
काली चालीसा जो पढ़हीं ।
स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा ।
केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥
करहु मातु भक्तन रखवाली ।
जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी ।
भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥40॥
॥दोहा॥
प्रेम सहित जो करे,
काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना,
होय सकल जग ठाठ ॥
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