हनुमान प्रणाम: Hanuman Pranam

यह श्लोक भगवान हनुमान की स्तुति में है, जिसमें उनके अद्भुत गुणों और शक्तियों का वर्णन किया गया है। इस श्लोक का मूल अर्थ और व्याख्या इस प्रकार है:

श्लोक का अनुवाद और अर्थ

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शिरसा नमामि॥

अनुवाद:
“मैं अपने सिर से नमस्कार करता हूँ उन भगवान हनुमान को, जो मन के समान तीव्र हैं, वायु के समान वेगवान हैं, जिन्होंने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की है, जो बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, जो वायुपुत्र (वातात्मज) हैं, वानरों के समूह के प्रमुख हैं और श्रीराम के दूत हैं।”

व्याख्या

  • मनोजवं
    • “मनोजवं” का अर्थ है मन के समान वेगवान। यहाँ हनुमान जी की तीव्रता और उनकी गति का वर्णन किया गया है, जो विचारों की गति के समान है। जैसे मन किसी भी स्थान पर बहुत तेजी से जा सकता है, वैसे ही हनुमान जी का वेग भी अत्यंत तीव्र है।
  • मारुततुल्यवेगं
    • “मारुत” का अर्थ है वायु और “तुल्य” का अर्थ है समान। हनुमान जी वायु की गति के समान तीव्रगति वाले हैं। वे वायु देवता (मारुति) के पुत्र हैं, और उनकी गति उनके पिता के समान ही तीव्र है।
  • जितेन्द्रियं
    • “जितेन्द्रिय” का अर्थ है जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया हो। हनुमान जी ने अपनी सभी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की है, जिससे उनकी आत्म-नियंत्रण शक्ति का परिचय मिलता है। यह गुण उनकी साधना, तप और शक्ति का प्रमाण है।
  • बुद्धिमतां वरिष्ठम्
    • हनुमान जी को बुद्धिमानों में श्रेष्ठ कहा गया है। उनकी बुद्धि, विवेक और ज्ञान के कारण वे संकटमोचक और कार्यसाधक के रूप में पूजनीय हैं। लंका जाने और सीता माता का पता लगाने जैसी अनेक कठिन परिस्थितियों में उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया।
  • वातात्मजं
    • “वातात्मज” का अर्थ है वायु के पुत्र। हनुमान जी को “वातपुत्र” कहा गया है, क्योंकि उनके पिता वायु देवता हैं। उनके पास वायु देवता के सभी गुण हैं, जैसे कि गति, सहनशीलता, और शक्ति।
  • वानरयूथमुख्यं
    • हनुमान जी वानर सेना के नायक और प्रमुख हैं। वे अपनी शक्ति, साहस और नेतृत्व क्षमता के कारण सभी वानरों के प्रिय और आदर्श हैं।
  • श्रीरामदूतं
    • हनुमान जी को श्रीराम का दूत कहा गया है। उन्होंने श्रीराम के संदेश को सीता माता तक पहुँचाया और रामकथा को विस्तार से बताया। उनका कार्य केवल संदेश देना नहीं था, बल्कि संकट के समय श्रीराम का समर्थन करना और कार्य में सफलता दिलाना भी था।
  • शिरसा नमामि
    • अंत में, इस श्लोक के माध्यम से व्यक्ति अपने मस्तक को झुका कर हनुमान जी को प्रणाम करता है। यह उनकी महानता, बुद्धि, शक्ति और सेवा के प्रति सम्मान का भाव प्रकट करता है।

संक्षिप्त भावार्थ

इस श्लोक में हनुमान जी की शक्ति, बुद्धिमत्ता, स्वामीभक्ति, और गति का गुणगान किया गया है। वे श्रीराम के परम भक्त, उनके संदेशवाहक और असाधारण शक्ति के धनी हैं। हनुमान जी की भक्ति और उनके गुणों की स्मृति से व्यक्ति को आत्मविश्वास, साहस और समर्पण का संचार होता है।

शान्तं शाश्वतम प्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं,
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं,
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥

यह श्लोक भगवान राम की स्तुति में है, जिसमें उनके दिव्य गुणों और स्वरूप का सुंदर वर्णन किया गया है। श्लोक के हर अंश में भगवान राम की महानता, उनकी भक्ति के प्रति आस्था और उनकी कृपा के प्रति निष्ठा प्रकट की गई है। आइए इस श्लोक का अनुवाद और व्याख्या समझते हैं:

अनुवाद:
“मैं उन भगवान राम को नमन करता हूँ, जो शांति, शाश्वतता और अप्रमेय हैं; जो पापरहित और निर्वाण-शांति प्रदान करने वाले हैं। जिन्हें ब्रह्मा, शंकर और शेषनाग निरंतर सेवा करते हैं; जो वेदांत द्वारा जानने योग्य हैं और जो सम्पूर्ण विश्व में व्यापक हैं। वे जगत के ईश्वर, देवताओं के गुरु, और माया से मानव रूप धारण करने वाले विष्णु अवतार हैं। वे करुणा के सागर, रघुकुल के श्रेष्ठ और राजाओं के मस्तक की शोभा हैं।”

श्लोक का व्याख्या

  • शान्तं
    • भगवान राम का स्वभाव शांति और धैर्य का प्रतीक है। वे संसार को शांति प्रदान करते हैं और स्वयं भी शांति के परम स्वरूप हैं।
  • शाश्वतम
    • भगवान राम शाश्वत हैं, अर्थात वे अनादि और अनंत हैं। उनका अस्तित्व समय की सीमा से परे है और वे सृष्टि के अंत तक बने रहते हैं।
  • प्रमेयमनघं
    • “प्रमेय” का अर्थ है अप्रमेय, अर्थात जिनका सही रूप समझा नहीं जा सकता। “अनघ” का अर्थ है जो पापरहित और शुद्ध हैं। भगवान राम निर्मल, पवित्र और अपार हैं।
  • निर्वाणशान्तिप्रदं
    • भगवान राम मोक्ष और परम शांति के दाता हैं। जो लोग उनकी भक्ति करते हैं, उन्हें जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है और वे शाश्वत शांति का अनुभव करते हैं।
  • ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं
    • ब्रह्मा, शंकर और शेषनाग (फणीन्द्र) भगवान राम की अनवरत सेवा करते हैं। यह उनकी दिव्यता और देवताओं के प्रति उनकी श्रेष्ठता को दर्शाता है।
  • वेदान्तवेद्यं विभुम्
    • भगवान राम वेदांत द्वारा जानने योग्य हैं, अर्थात वेदांत शास्त्रों में उन्हें ही परम सत्य और ब्रह्म रूप में वर्णित किया गया है। “विभु” का अर्थ है कि वे सम्पूर्ण सृष्टि में व्यापक हैं।
  • रामाख्यं जगदीश्वरं
    • “राम” नाम का अर्थ है आनन्द स्वरूप। भगवान राम को जगदीश्वर कहा गया है, क्योंकि वे समस्त जगत के ईश्वर हैं और सब पर शासन करते हैं।
  • सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
    • वे देवताओं के गुरु हैं और विष्णु के अवतार होने के कारण हरि के रूप में माने जाते हैं। वे माया द्वारा मानव रूप धारण किए हुए हैं ताकि मानवों को धर्म का मार्ग दिखा सकें।
  • वन्देऽहं करुणाकरं
    • “करुणाकर” का अर्थ है दया के सागर। भगवान राम करुणा से परिपूर्ण हैं, वे अपने भक्तों पर अत्यधिक कृपा करते हैं और उन्हें कष्टों से मुक्त करते हैं।
  • रघुवरं भूपालचूडामणिम्
    • भगवान राम रघुकुल के सर्वश्रेष्ठ (रघुवर) हैं और राजाओं के मस्तक की शोभा, अर्थात “राजाओं में श्रेष्ठ” हैं। वे आदर्श राजा और गुणों के भूषण माने जाते हैं।

भावार्थ

इस श्लोक में भगवान राम की अपार महिमा और दिव्य गुणों का वर्णन है। वे परम शांति, शाश्वतता, अपार दया और धर्म का प्रतीक हैं। वे अपने जीवन और कार्यों द्वारा मानवता को सदाचार, धर्म और भक्ति का मार्ग दिखाते हैं। उनका रूप और स्वभाव दयालु, सबको शांति और मुक्ति प्रदान करने वाला है। उनकी भक्ति से भक्तों को सुख, शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।

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