घर में मंदिर की दिशा वास्तु शास्त्र में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। सही दिशा और स्थान का चयन न केवल ऊर्जा के सही प्रवाह को सुनिश्चित करता है, बल्कि यह घर के निवासियों की मानसिक और आध्यात्मिक शांति को भी प्रभावित करता है। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि घर में मंदिर किस दिशा में होना चाहिए, साथ ही इसके लाभ और विभिन्न दिशा-निर्देशों के बारे में भी चर्चा करेंगे।
मंदिर की सही दिशा
1. उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण)
वास्तु शास्त्र में उत्तर-पूर्व दिशा को सबसे पवित्र और शुभ माना गया है। इसे ईशान कोण भी कहा जाता है, जो भगवान शिव और भगवान विष्णु का स्थान माना जाता है। इस दिशा में मंदिर स्थापित करने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और घर के सभी सदस्यों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।
2. पूर्व दिशा
पूर्व दिशा भी मंदिर के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यह दिशा भगवान सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है और इस दिशा में पूजा करने से घर में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है। यदि उत्तर-पूर्व दिशा में मंदिर स्थापित करना संभव न हो, तो पूर्व दिशा को प्राथमिकता दी जा सकती है।
3. उत्तर दिशा
उत्तर दिशा को भी मंदिर के लिए अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह दिशा धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी का स्थान है। इस दिशा में मंदिर स्थापित करने से घर में धन और सुख-समृद्धि का वास होता है।
मंदिर के स्थान का चयन
1. घर के भीतर
यदि घर के भीतर मंदिर स्थापित करना हो, तो इसे हमेशा ग्राउंड फ्लोर पर ही स्थापित करना चाहिए। मंदिर को बेडरूम, किचन या बाथरूम के समीप नहीं रखना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि मंदिर का स्थान शांत और स्वच्छ हो।
2. अलग पूजा कक्ष
यदि संभव हो, तो एक अलग पूजा कक्ष बनाना सबसे अच्छा होता है। इससे पूजा के समय किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती और एक पवित्र वातावरण बना रहता है। पूजा कक्ष में पर्याप्त वेंटिलेशन और प्राकृतिक रोशनी का ध्यान रखना चाहिए।
यदि घर के भीतर मंदिर स्थापित करना हो, तो इसे हमेशा ग्राउंड फ्लोर पर ही स्थापित करना चाहिए। मंदिर को बेडरूम, किचन या बाथरूम के समीप नहीं रखना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि मंदिर का स्थान शांत और स्वच्छ हो।
यदि संभव हो, तो एक अलग पूजा कक्ष बनाना सबसे अच्छा होता है। इससे पूजा के समय किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती और एक पवित्र वातावरण बना रहता है। पूजा कक्ष में पर्याप्त वेंटिलेशन और प्राकृतिक रोशनी का ध्यान रखना चाहिए।
मंदिर का आकार और स्थान ऐसा होना चाहिए कि वह घर के वातावरण के साथ समन्वय में हो। यह ध्यान रखना चाहिए कि मंदिर का स्थान मुख्य प्रवेश द्वार के सामने न हो।
मंदिर में रखी जाने वाली धार्मिक चित्र और मूर्तियां साफ और सुंदर होनी चाहिए। इन्हें हमेशा सही स्थान पर और सही दिशा में स्थापित करना चाहिए।
यदि संभव हो, तो मंदिर में संगमरमर का प्रयोग करना चाहिए। यह न केवल मंदिर की सुंदरता बढ़ाता है, बल्कि इसके पवित्रता और शुद्धता को भी बनाए रखता है।
मंदिर की स्थापना के अन्य महत्वपूर्ण बिंदु
देवताओं की मूर्तियों की दिशा
मंदिर में स्थापित देवताओं की मूर्तियों का मुख हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। इससे पूजा करते समय आपका मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर होगा, जो वास्तु के अनुसार शुभ माना जाता है।
मंदिर की ऊंचाई
मंदिर की ऊंचाई सामान्य रूप से घर के अन्य स्थानों की तुलना में थोड़ी अधिक होनी चाहिए। इससे मंदिर का स्थान विशिष्ट और प्रमुख बनता है।
मंदिर का रंग
मंदिर के रंग का चयन करते समय हल्के और शांत रंगों का प्रयोग करना चाहिए। सफेद, क्रीम, हल्का पीला या हल्का गुलाबी रंग मंदिर के लिए सबसे अच्छे माने जाते हैं।
दीपक और अगरबत्ती
मंदिर में रोजाना दीपक और अगरबत्ती जलाना अनिवार्य है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
सफाई और सजावट
मंदिर को हमेशा स्वच्छ और सजा-धजा रखना चाहिए। पूजा के स्थान पर गंदगी या अव्यवस्था नहीं होनी चाहिए। मंदिर में ताजे फूलों और पवित्र जल का प्रयोग करना चाहिए।
घर में मंदिर की स्थापना
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में मंदिर की सही स्थापना का विशेष महत्व है। यह न केवल घर के वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाता है, बल्कि घर के सभी सदस्यों के लिए मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का स्रोत भी बनता है।
मंदिर की स्थापना के लिए उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) को सबसे शुभ माना जाता है। यह दिशा भगवान शिव और विष्णु का स्थान है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यदि यह संभव न हो, तो पूर्व दिशा या उत्तर दिशा को प्राथमिकता दी जा सकती है।
मंदिर में स्थापित देवताओं की मूर्तियों का मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। इससे पूजा करते समय आपका मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर होगा, जो शुभ माना जाता है।
मंदिर की ऊंचाई सामान्य रूप से घर के अन्य स्थानों की तुलना में थोड़ी अधिक होनी चाहिए। इससे मंदिर का स्थान विशिष्ट और प्रमुख बनता है।
यदि संभव हो, तो एक अलग पूजा कक्ष बनाना सबसे अच्छा होता है। इससे पूजा के समय किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती और एक पवित्र वातावरण बना रहता है।
मंदिर के रंग का चयन करते समय हल्के और शांत रंगों का प्रयोग करना चाहिए। सफेद, क्रीम, हल्का पीला या हल्का गुलाबी रंग मंदिर के लिए सबसे अच्छे माने जाते हैं। मंदिर को सादगी और पवित्रता के साथ सजाना चाहिए।
मंदिर के लाभ
मंदिर में पूजा और ध्यान करने से मानसिक शांति मिलती है। यह तनाव और चिंता को कम करता है और मन को स्थिर और शांत बनाता है।
मंदिर से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा पूरे घर में फैलती है। यह ऊर्जा घर के वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाती है।
मंदिर में नियमित पूजा और ध्यान करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह आत्मा की शुद्धि और आत्मबोध के मार्ग पर अग्रसर करता है।
मंदिर में पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है। इससे पारिवारिक संबंध मजबूत होते हैं और सदस्यों के बीच प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।
मंदिर में ध्यान और साधना से आत्मिक संतुलन प्राप्त होता है। यह आत्मिक जागरूकता को बढ़ाता है और जीवन में संतुलन लाने में मदद करता है।
मंदिर की देखभाल
मंदिर की नियमित सफाई बहुत महत्वपूर्ण है। मंदिर में धूल और गंदगी नहीं जमने देनी चाहिए। इसके लिए रोजाना मंदिर की सफाई करें और अगरबत्ती, दीपक आदि के अवशेष हटाएं।
मंदिर में ताजे फूलों का प्रयोग करें। बासी और मुरझाए हुए फूलों को तुरंत हटा दें। ताजे फूल मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।
मंदिर में उपयोग होने वाली पूजा सामग्री जैसे धूप, दीपक, अगरबत्ती आदि को सुव्यवस्थित तरीके से रखें। यह ध्यान रखें कि यह सामग्री हमेशा पवित्र और स्वच्छ रहे।
मंदिर में रखे धार्मिक ग्रंथों का सम्मान करें। इन्हें हमेशा साफ-सुथरे स्थान पर रखें और नियमित रूप से इनका पाठ करें।
मंदिर में नियमित रूप से पूजा और ध्यान करना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहता है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
मंदिर में रोजाना दीपक और अगरबत्ती जलाना अनिवार्य है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
निष्कर्ष
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में मंदिर की दिशा और स्थान का सही चयन बहुत महत्वपूर्ण है। उत्तर-पूर्व दिशा को सबसे शुभ माना जाता है, लेकिन पूर्व और उत्तर दिशा भी मंदिर के लिए उपयुक्त हैं। मंदिर का स्थान शांत, स्वच्छ और विशेष होना चाहिए। नियमित पूजा, सफाई और ध्यान से मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा पूरे घर में फैलती है और घर के सभी सदस्यों को मानसिक शांति, सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। यदि इन सभी बिंदुओं का ध्यान रखा जाए, तो निश्चित रूप से घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होगा। नियमित पूजा, ध्यान और मंदिर की सही देखभाल से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है और जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त होती है।
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घर में मंदिर की दिशा क्यों महत्वपूर्ण है?
वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में मंदिर की सही दिशा और स्थान का चयन ऊर्जा के सही प्रवाह को सुनिश्चित करता है और निवासियों की मानसिक और आध्यात्मिक शांति को प्रभावित करता है।
मंदिर के लिए सबसे शुभ दिशा कौन सी है?
उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) को सबसे शुभ माना जाता है। यदि यह संभव न हो, तो पूर्व दिशा या उत्तर दिशा को प्राथमिकता दी जा सकती है।
क्या घर के भीतर मंदिर स्थापित करना चाहिए?
हां, घर के भीतर मंदिर स्थापित किया जा सकता है, लेकिन इसे हमेशा ग्राउंड फ्लोर पर ही स्थापित करना चाहिए। मंदिर को बेडरूम, किचन या बाथरूम के समीप नहीं रखना चाहिए।
मंदिर में पूजा करने के लाभ क्या हैं?
मंदिर में पूजा करने से मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा का संचार, आध्यात्मिक उन्नति, पारिवारिक सुख-समृद्धि और आत्मिक संतुलन प्राप्त होता है।
मंदिर का स्थान मुख्य प्रवेश द्वार के सामने क्यों नहीं होना चाहिए?
मंदिर का स्थान मुख्य प्रवेश द्वार के सामने नहीं होना चाहिए ताकि घर का वातावरण समन्वय में रहे और पूजा का स्थान विशेष और पवित्र बना रहे।
मंदिर को स्वच्छ और सजा-धजा कैसे रखें?
मंदिर को हमेशा स्वच्छ और सजा-धजा रखना चाहिए। पूजा के स्थान पर गंदगी या अव्यवस्था नहीं होनी चाहिए। मंदिर में ताजे फूलों और पवित्र जल का प्रयोग करना चाहिए।
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