गणेश वंदना एक विशेष प्रकार का स्तोत्र या प्रार्थना है, जो भगवान गणेश की स्तुति और आराधना के लिए किया जाता है। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को “विघ्नहर्ता” (विघ्नों को दूर करने वाला) और “सिद्धि-विनायक” (सफलता प्रदान करने वाला) माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश वंदना करने की परंपरा है ताकि कार्य में कोई बाधा न आए और सफलता प्राप्त हो।
गणनायकाय गणदेवताय गणाध्यक्षाय धीमहि । गुणशरीराय गुणमण्डिताय गुणेशानाय धीमहि । गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि। एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि। गजेशानाय भालचन्द्राय श्री गणेशाय धीमहि।
गानान्तरात्मने। गानचतुराय गानप्राणाय गानोत्सुकाय गानमत्ताय गानोत्सुकमनसा गुरुपूजिताय गुरूदेवताय गुरुकुलस्थायिने । गुरुविक्रमाय गुह्मप्रवराय गुरखे गुणगुरखे। गुरुदैत्यगलच्छेत्ते गुरुधर्मसदाराध्याय । गुरुपुत्रपरित्तात्ते गुरुपाखण्डखण्डकाय । गीतसाराय गीततत्वाय गीतगोत्राय धीमहि। गूढ़गुल्फाय गन्धमत्ताय गोजप्रदाय धीमहि। गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि। एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि। गजेशानाय भालचन्द्राय श्री गणेशाय धीमहि।
ग्रंथगीताद्य ग्रन्धगेयाय ग्रन्थान्तरात्मने। गीतलीनाय गीताश्रयाय गीतवाद्यपटवे । गेयचरिताय गायकवराय गन्धर्वप्रियकृते। गायकाधीनविग्रहाय गङ्गाजलप्रणयवते । गौरीस्तनन्धयाय गौरीहृदयनन्दनाय । गौरभानुसुताय गौरीगणेश्वराय । गौरीप्रणयाय गौरीप्रवणाय गौरभावाय धीमहि।
गोसहस्त्राय गोवर्धनाय गोपगोपाय धीमहि। गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि। नरह एकदंताय वकृतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहित गाय गजेशानाय भालचन्द्राय श्री गणेशाय धीमहि।
गणेश वंदना से भक्त को आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार की शक्ति प्राप्त होती है। यह आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ-साथ व्यक्ति को जीवन की बाधाओं का सामना करने की शक्ति देती है। गणेश वंदना के माध्यम से व्यक्ति की सोच सकारात्मक होती है और उसे समृद्धि, बुद्धि, और शांति प्राप्त होती है। गणेश वंदना के माध्यम से भगवान गणेश के प्रति समर्पण प्रकट करते हुए व्यक्ति अपने जीवन में सकारात्मकता, सफलता, और शांति ला सकता है।
गणनायकाय गणदेवताय गणाध्यक्षाय धीमहि । गुणशरीराय गुणमण्डिताय गुणेशानाय धीमहि । गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि। एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि। गजेशानाय भालचन्द्राय श्री गणेशाय धीमहि।
इस मंत्र में भगवान गणेश का गुणगान किया गया है और उनके विभिन्न स्वरूपों का ध्यान किया गया है। आइए इसका अर्थ विस्तार से समझते हैं:
- गणनायकाय गणदेवताय गणाध्यक्षाय धीमहि
- यहाँ भगवान गणेश को गणों का नायक, देवता और अध्यक्ष बताया गया है। गणेश सभी गणों के प्रमुख हैं, उनका नेतृत्व करते हैं, और देवताओं में श्रेष्ठ हैं। “धीमहि” शब्द का अर्थ है “हम उनका ध्यान करते हैं।”
- गुणशरीराय गुणमण्डिताय गुणेशानाय धीमहि
- इस पंक्ति में गणेश को “गुणशरीर” कहा गया है, यानी उनके शरीर में अनेक गुण समाहित हैं। “गुणमण्डित” का अर्थ है कि वे गुणों से मंडित या विभूषित हैं। गणेश को “गुणेशान” यानी गुणों के स्वामी के रूप में पूजा जाता है।
- गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि
- भगवान गणेश गुणातीत हैं, अर्थात वे सभी गुणों से परे हैं। वे “गुणाधीश” हैं, यानी गुणों के अधीश या ईश्वर हैं, और “गुणप्रविष्ट” का अर्थ है कि वे स्वयं सभी गुणों में प्रविष्ट भी हैं।
- एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि
- इस पंक्ति में गणेश के भौतिक स्वरूप का वर्णन है। “एकदंत” का अर्थ है एक दांत वाले, “वक्रतुण्ड” का अर्थ है टेढ़ी सूंड वाले, और “गौरीतनय” का अर्थ है माता गौरी के पुत्र। इस प्रकार, गणेश का ध्यान उनके विशेष प्रतीकों के साथ किया जा रहा है।
- गजेशानाय भालचन्द्राय श्री गणेशाय धीमहि
- यहाँ भगवान गणेश को “गजेशान” कहा गया है, अर्थात गज (हाथी) के ईश्वर। “भालचन्द्र” का अर्थ है उनके मस्तक पर चंद्रमा, जो उनकी सौम्यता और दिव्यता को दर्शाता है। अंत में, हम श्री गणेश का ध्यान करते हैं।
इस प्रकार, यह मंत्र भगवान गणेश के विभिन्न स्वरूपों, गुणों और दिव्य लक्षणों का ध्यान करते हुए उनकी कृपा पाने के लिए उच्चारित किया जाता है। यह मंत्र समर्पण, श्रद्धा और उनके आशीर्वाद के प्रति आभार प्रकट करता है।
गानान्तरात्मने। गानचतुराय गानप्राणाय गानोत्सुकाय गानमत्ताय गानोत्सुकमनसा गुरुपूजिताय गुरूदेवताय गुरुकुलस्थायिने । गुरुविक्रमाय गुह्मप्रवराय गुरखे गुणगुरखे। गुरुदैत्यगलच्छेत्ते गुरुधर्मसदाराध्याय । गुरुपुत्रपरित्तात्ते गुरुपाखण्डखण्डकाय । गीतसाराय गीततत्वाय गीतगोत्राय धीमहि। गूढ़गुल्फाय गन्धमत्ताय गोजप्रदाय धीमहि। गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि। एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि। गजेशानाय भालचन्द्राय श्री गणेशाय धीमहि।
इस मंत्र में भगवान गणेश के गुण, उनके स्वरूप, उनके चरित्र, और उनके प्रति आदर भाव को वर्णित किया गया है। इस विस्तृत स्तुति में उनके गान, गुणों और गुरु के रूप में उन्हें सम्मानित किया गया है। आइए इस मंत्र की गहराई में जाकर उसके अर्थ को समझें:
- गानान्तरात्मने
- यह पंक्ति भगवान गणेश को उनके भीतर के संगीत के रूप में देखती है, यानी उनके हृदय में संगीत का बसेरा है। “अन्तरात्मा” का अर्थ है आत्मा के भीतर स्थित, और यहाँ भगवान का ध्यान उनके भीतर की दिव्य ध्वनि के रूप में किया गया है।
- गानचतुराय गानप्राणाय गानोत्सुकाय गानमत्ताय गानोत्सुकमनसा
- भगवान गणेश को गान (संगीत) का चतुर, गान में प्राण रखने वाला, गान के प्रति उत्सुक, और गान में मत्त कहा गया है। यह उनके संगीतप्रेमी स्वरूप का वर्णन करता है, जो कि गान और ध्वनि के प्रति पूर्ण समर्पित हैं।
- गुरुपूजिताय गुरूदेवताय गुरुकुलस्थायिने
- गणेश को “गुरु” के रूप में दर्शाया गया है। वे पूजित हैं, देवता समान हैं, और सभी ज्ञान के स्रोत के रूप में देखे जाते हैं। “गुरुकुलस्थाय” का अर्थ है जो गुरुकुल में स्थिर है, यानी सभी शिक्षाओं के मूल में भगवान गणेश ही हैं।
- गुरुविक्रमाय गुह्मप्रवराय गुरखे गुणगुरखे
- यह भगवान गणेश को गुरु के रूप में उनकी महानता का वर्णन है, जो विक्रमशील, श्रेष्ठ, और सभी गुणों के स्वामी हैं।
- गुरुदैत्यगलच्छेत्ते गुरुधर्मसदाराध्याय
- गणेश उस शक्ति के प्रतीक हैं जो बुराई (दैत्य) का नाश करने में सक्षम है। साथ ही, वे धर्म का पालन करने वाले और उसे सदा प्रतिष्ठा देने वाले हैं।
- गुरुपुत्रपरित्तात्ते गुरुपाखण्डखण्डकाय
- यहाँ गणेश को असत्य और पाखंड को दूर करने वाला बताया गया है। वे सच्चे ज्ञान के रक्षक हैं और झूठ को समाप्त करने में समर्थ हैं।
- गीतसाराय गीततत्वाय गीतगोत्राय धीमहि
- भगवान गणेश को “गीतसार” और “गीततत्व” का प्रतीक माना गया है। वे गीत के सार (अर्थात गहरे रहस्य) का प्रतिनिधित्व करते हैं और गीत के गोत्र (उत्पत्ति) का स्रोत हैं।
- गूढ़गुल्फाय गन्धमत्ताय गोजप्रदाय धीमहि
- यहाँ गणेश को “गूढ़गुल्फ” (गहरे रहस्यों में लीन) और “गन्धमत्त” (सुगंध में मत्त) कहा गया है। “गोजप्रद” का अर्थ है गोवंश और संपत्ति का दाता।
- गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि
- भगवान गणेश गुणातीत हैं, गुणों के अधिपति हैं, और गुणों में प्रविष्ट भी हैं। यह उनके दैवीय गुणों का वर्णन करता है।
- एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि
- एक दांत वाले, वक्र तुंड (टेढ़ी सूंड) वाले, और माँ गौरी के पुत्र के रूप में गणेश का ध्यान किया जाता है।
- गजेशानाय भालचन्द्राय श्री गणेशाय धीमहि
- इस पंक्ति में गणेश को गजेशान (हाथी के राजा) और भालचन्द्र (मस्तक पर चंद्रमा) के रूप में वर्णित किया गया है।
यह मंत्र भगवान गणेश के विभिन्न गुणों, स्वरूपों, और महिमा का गान करता है। इसमें उन्हें संगीत, गुरु, धर्म रक्षक, और ज्ञान का प्रतीक बताया गया है। इस मंत्र का उच्चारण उनके आशीर्वाद, ज्ञान, और सकारात्मक ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
ग्रंथगीताद्य ग्रन्धगेयाय ग्रन्थान्तरात्मने। गीतलीनाय गीताश्रयाय गीतवाद्यपटवे । गेयचरिताय गायकवराय गन्धर्वप्रियकृते। गायकाधीनविग्रहाय गङ्गाजलप्रणयवते । गौरीस्तनन्धयाय गौरीहृदयनन्दनाय । गौरभानुसुताय गौरीगणेश्वराय । गौरीप्रणयाय गौरीप्रवणाय गौरभावाय धीमहि।
इस मंत्र में भगवान गणेश के गुणों, स्वरूप, और उनके प्रति श्रद्धा को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक पंक्ति में उनकी विशेषताओं और विशेष उपाधियों का वर्णन है। आइए इस मंत्र की पंक्तियों का अर्थ समझते हैं:
- ग्रंथगीताद्य ग्रन्धगेयाय ग्रन्थान्तरात्मने
- यहाँ गणेश को “ग्रंथ” और “गीत” का आधार माना गया है। वे ग्रंथों में गेय (गाने योग्य) हैं, अर्थात वे शास्त्रों में स्तुति के योग्य हैं। “ग्रन्थान्तरात्मने” का अर्थ है कि वे शास्त्रों की आत्मा हैं, जो हर ग्रंथ में स्थित हैं और उनका सार हैं।
- गीतलीनाय गीताश्रयाय गीतवाद्यपटवे
- भगवान गणेश को “गीतलीन” कहा गया है, अर्थात वे गीतों में लीन हैं। “गीताश्रय” का अर्थ है कि वे संगीत का आधार हैं। “गीतवाद्यपटु” का अर्थ है कि वे संगीत और वाद्ययंत्रों के ज्ञाता हैं।
- गेयचरिताय गायकवराय गन्धर्वप्रियकृते
- गणेश के चरित्र का वर्णन करते हुए उन्हें “गेयचरित” कहा गया है, जिसका अर्थ है उनका चरित्र गाया जाने योग्य है। वे “गायकवर” हैं, यानी सर्वोत्तम गायक हैं, और “गन्धर्वप्रियकृते” का अर्थ है कि वे गन्धर्वों (संगीत-प्रेमी देवता) को प्रिय हैं।
- गायकाधीनविग्रहाय गङ्गाजलप्रणयवते
- यहाँ भगवान गणेश को गायक की तरह आदरणीय माना गया है, यानी उनका रूप संगीत की उपासना में लीन है। “गङ्गाजलप्रणयवत” का अर्थ है कि उन्हें गंगा जल से प्रेम है, जो उनकी पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है।
- गौरीस्तनन्धयाय गौरीहृदयनन्दनाय
- यह पंक्ति माता पार्वती (गौरी) के पुत्र होने का वर्णन करती है। “गौरीस्तनन्धय” का अर्थ है वे जो माता गौरी के स्तनपान से पोषित हुए हैं। “गौरीहृदयनन्दन” का अर्थ है वे गौरी के हृदय का आनंद हैं, अर्थात् अपनी माता के लिए अत्यंत प्रिय हैं।
- गौरभानुसुताय गौरीगणेश्वराय
- यहाँ गणेश को “गौरभानुसुत” कहा गया है, अर्थात वे गौरी (पार्वती) के पुत्र हैं। “गौरीगणेश्वर” का अर्थ है कि वे गौरी के पुत्र और उनके गणों के ईश्वर हैं।
- गौरीप्रणयाय गौरीप्रवणाय गौरभावाय धीमहि
- इस पंक्ति में गणेश को गौरी के प्रति प्रेम और श्रद्धा से युक्त बताया गया है। “गौरीप्रणय” का अर्थ है वे गौरी के प्रेम से ओत-प्रोत हैं। “गौरीप्रवण” का अर्थ है कि उनका झुकाव माता गौरी की ओर है। “गौरभाव” का अर्थ है वे माता के प्रेमपूर्ण भाव से जुड़े हुए हैं।
यह मंत्र भगवान गणेश की महिमा का गान है, जिसमें उन्हें शास्त्रों का सार, संगीत के ज्ञाता, और माता गौरी के प्रिय पुत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें उनके प्रति भक्ति और श्रद्धा की भावना व्यक्त की गई है, जो उनके दिव्य गुणों और माता-पुत्र के प्रेम को दर्शाती है।
गोसहस्त्राय गोवर्धनाय गोपगोपाय धीमहि। गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि। नरह एकदंताय वकृतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहित गाय गजेशानाय भालचन्द्राय श्री गणेशाय धीमहि।
इस मंत्र में भगवान गणेश के विभिन्न स्वरूपों, गुणों और उनके प्रति आदर भाव का सुंदर वर्णन किया गया है। प्रत्येक पंक्ति में उनकी महिमा को उच्चारित किया गया है। आइए इस मंत्र के हर अंश का अर्थ समझते हैं:
- गोसहस्त्राय गोवर्धनाय गोपगोपाय धीमहि
- यहाँ भगवान गणेश को “गोसहस्त्र” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे हजारों गायों के रक्षक और पोषक हैं। “गोवर्धन” का अर्थ है वे जो गायों का पालन-पोषण करते हैं। “गोपगोप” से उनका प्रेम और सुरक्षा भाव गायों और ग्वालों (गोपों) के प्रति दर्शाया गया है। इन गुणों का ध्यान करते हुए उनकी पूजा की जाती है।
- गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि
- भगवान गणेश को “गुणातीत” कहा गया है, जिसका अर्थ है वे सभी गुणों से परे हैं। “गुणाधीश” का अर्थ है कि वे सभी गुणों के स्वामी हैं, और “गुणप्रविष्ट” का अर्थ है कि वे स्वयं सभी गुणों में प्रविष्ट हैं। यह भगवान गणेश के दैवीय और सर्वव्यापक स्वरूप का वर्णन है।
- एकदंताय वकृतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि
- यहाँ गणेश के भौतिक स्वरूप का ध्यान किया गया है। “एकदंत” का अर्थ है एक दांत वाले, “वक्रतुण्ड” का अर्थ है टेढ़ी सूंड वाले, और “गौरीतनय” का अर्थ है माता गौरी (पार्वती) के पुत्र। इन विशेषताओं से गणेश का एक विशिष्ट रूप बनता है, जो पूजनीय है।
- गजेशानाय भालचन्द्राय श्री गणेशाय धीमहि
- इस पंक्ति में भगवान गणेश को “गजेशान” यानी हाथियों के ईश्वर और “भालचन्द्र” यानी मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाले के रूप में वर्णित किया गया है। अंत में उन्हें श्री गणेश के रूप में संबोधित किया गया है, जो सभी विघ्नों का नाश करने वाले हैं।
- इस प्रकार, यह मंत्र भगवान गणेश के भौतिक और दैवीय स्वरूपों, गुणों और उनके प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। इसका उच्चारण भगवान गणेश की कृपा पाने और उनसे शांति, समृद्धि, और विघ्नविनाश की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
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