भगवान धन्वंतरि- Dhanvantari को आयुर्वेद का जनक और चिकित्सा शास्त्र के देवता माना जाता है। इस धन्वंतरि में उनके दिव्य स्वरूप और गुणों का वर्णन किया गया है।
भगवान धन्वंतरि चिकित्सा के प्रतीक हैं और जीवन को स्वास्थ्य और सुख देने वाले देवता माने जाते हैं। यह श्लोक उनके दिव्य स्वरूप और उनकी रोगहरण क्षमता का गुणगान करता है।
उनकी पूजा विशेष रूप से धन्वंतरि जयंती और आयुर्वेद से जुड़े लोग करते हैं।
श्लोक के माध्यम से यह भावना व्यक्त की गई है कि भगवान धन्वंतरि के आशीर्वाद से सभी प्रकार के रोग, कष्ट और दुख नष्ट हो जाएं और जीवन में शांति और स्वास्थ्य प्राप्त हो।
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः । सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम ॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम। वन्दे धन्वंतरि तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम ॥
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरायेः अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः ॥
इति श्रीधन्वन्तरिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
इस मंत्र में भगवान धन्वंतरि का गुणगान किया गया है और उनके विभिन्न स्वरूपों का ध्यान किया गया है। आइए इसका अर्थ विस्तार से समझते हैं:
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम्॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरि तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम्॥
- शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः
- भगवान धन्वंतरि चार भुजाओं वाले हैं। वे अपने हाथों में शंख, चक्र, जलौका (लीच), और अमृत का घट धारण करते हैं।
- अमृतघट का अर्थ है अमरता का प्रतीक, जो यह दर्शाता है कि वे आरोग्य और जीवन प्रदान करने वाले हैं।
- सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम्
- भगवान का रूप अत्यंत सूक्ष्म, स्वच्छ, और मन को प्रसन्न करने वाला है। उनके वस्त्र चमकदार और मनमोहक हैं।
- उनकी आँखें कमल के समान सुंदर और शांत हैं। उनके सिर पर दिव्य मुकुट सुशोभित है।
- कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम
- उनका शरीर काले बादल की चमक जैसा है, जो तेजस्विता और गहनता का प्रतीक है।
- उनकी कमर पर सुंदर पीतांबर (पीले वस्त्र) शोभायमान हैं।
- वन्दे धन्वंतरि तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम्
- मैं उन धन्वंतरि भगवान को प्रणाम करता हूँ, जो सभी रोगों (गद) के वन को जलाने के लिए दावानल (वनाग्नि) के समान हैं।
- यहाँ भगवान की शक्ति का वर्णन है कि वे समस्त रोगों और दुखों को नष्ट कर देते हैं।
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरायेः
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
- ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरायेः
- “ॐ” का उच्चारण ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है।
- मैं भगवान महासुदर्शन (विशाल और दिव्य दृष्टि के स्वामी), वासुदेव (भगवान विष्णु), और धन्वंतरि (चिकित्सा के देवता) को प्रणाम करता हूँ।
- अमृतकलश हस्ताय
- जो अपने हाथों में अमृत का कलश धारण करते हैं। यह अमृत दीर्घायु और अमरत्व का प्रतीक है।
- सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
- वे सभी प्रकार के भय को नष्ट करने वाले और समस्त रोगों का निवारण करने वाले हैं।
- भगवान धन्वंतरि की कृपा से शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय
- भगवान धन्वंतरि त्रिलोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) के पथदर्शी और उनके स्वामी हैं।
- वे समस्त लोकों के नाथ और संरक्षक हैं।
- श्री महाविष्णुस्वरूप श्री धनवंतरी स्वरूप
- भगवान धन्वंतरि को महाविष्णु का अवतार माना गया है।
- उनका स्वरूप चिकित्सा, स्वास्थ्य, और आयुर्वेद का प्रतीक है।
- श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः
- “श्री श्री श्री” का तात्पर्य है कि वे अत्यधिक सम्माननीय, पूजनीय और मंगलकारी हैं।
- वे औषधियों और चिकित्सा के अधिपति हैं, जो समस्त रोगों का नाश करते हैं।
- “नारायण” का अर्थ है सभी जीवों के भीतर स्थित दिव्य शक्ति।
यह श्लोक रोगमुक्ति, स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना के लिए पढ़ा जाता है। नियमित रूप से इसका जाप करने से मानसिक शांति और शारीरिक आरोग्य की प्राप्ति होती है। इसमें भगवान धन्वंतरि के स्वरूप, शक्ति, और कृपा का वर्णन किया गया है। यह श्लोक रोगों के नाश, भय के विनाश, और जीवन में आरोग्य व शांति के लिए अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली माना जाता है।
यह स्तोत्र भगवान धन्वंतरि की महिमा और उनके औषधि विज्ञान के प्रति योगदान का गुणगान करता है। इस स्तोत्र का जाप करने से व्यक्ति रोग, भय और मानसिक क्लेशों से मुक्त होता है और दीर्घायु तथा सुख-शांति की प्राप्ति करता है।
धनवंतरि मंत्र
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरये, अमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय सर्वरोगनिवारणाय। त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूपाय, श्रीधन्वतंरीस्वरुपाय श्रीश्रीश्री औषधचक्राय नारायणाय नमः ॥
धन्वंतरि मंत्र पूर्ण रूप से भगवान धन्वंतरि को समर्पित है और आयुर्वेद तथा चिकित्सा विज्ञान के प्रति हमारी आस्था को मजबूत करता है। इसे पढ़ने से मानसिक और शारीरिक आरोग्य की प्राप्ति होती है।
धन्वंतरि मंत्र दिव्य शक्ति और स्वास्थ्य का प्रतीक है। इसका नियमित जाप शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति प्रदान करता है और जीवन में सकारात्मकता और शांति लाता है।
धन्वंतरि मंत्र का अर्थ और व्याख्या–
- ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय
- मैं भगवान को प्रणाम करता हूँ, जो ‘महासुदर्शन’ स्वरूप हैं।
- वासुदेवाय धन्वंतरये
- भगवान वासुदेव के स्वरूप धन्वंतरि को नमन करता हूँ।
- अमृतकलशहस्ताय
- जिनके हाथों में अमृत का कलश है।
- सर्वभयविनाशाय
- जो सभी प्रकार के भय को समाप्त करते हैं।
- सर्वरोगनिवारणाय
- जो सभी रोगों को हरने वाले हैं।
- त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय
- जो तीनों लोकों के मार्गदर्शक और स्वामी हैं।
- श्री महाविष्णुस्वरूपाय
- जो स्वयं श्री महाविष्णु के स्वरूप हैं।
- श्रीधन्वतंरीस्वरुपाय
- जो आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि के रूप में प्रकट हुए हैं।
- श्रीश्रीश्री औषधचक्राय नारायणाय नमः
- मैं नारायण को प्रणाम करता हूँ, जो औषधि और जीवन चक्र के स्वामी हैं।
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