Basant Panchami

बसंत पंचमी (Basant Panchami)

भारत में बसंत पंचमी (Basant Panchami) मनाए जाने वाले सबसे खूबसूरत और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है, जो आमतौर पर जनवरी के अंत या फरवरी की शुरुआत में पड़ता है। इस दिन को वसंत ऋतु की शुरुआत के रूप में भी जाना जाता है, जब प्रकृति खिल उठती है और चारों ओर खुशबू फैल जाती है।

भारतीय संस्कृति में बसंत पंचमी (Basant Panchami) का एक विशेष स्थान है। यह पर्व हिन्दू कैलेंडर के माघ मास की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। बसंत पंचमी (Basant Panchami), जिसे सरस्वती पूजा के रूप में भी जाना जाता है, ऋतुराज वसंत के आगमन का प्रतीक है। इस दिन विद्या की देवी, माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।

बसंत पंचमी (Basant Panchami) 2024 की तिथि और समय निम्नलिखित हैं:

तिथि: 13 फरवरी 2024 को दोपहर 2:41 बजे से शुरू, 14 फरवरी 2024 को दोपहर 12:09 बजे समाप्त मुहूर्त: 14 फरवरी 2024 को सुबह 7:00 बजे से दोपहर 12:35 बजे तक

हिंदू पंचांग के अनुसार, पंचमी तिथि 13 फरवरी को दोपहर 02 बजकर 41 मिनट पर प्रारंभ हो रही है, जो 14 फरवरी 2024 को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट पर समाप्त होगी। इस आधार पर, बसंत पंचमी (Basant Panchami) का पर्व 14 फरवरी 2024 को मनाया जाएगा।

बसंत पंचमी (Basant Panchami) 2024 पर सरस्वती पूजन मुहूर्त:

बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन, सरस्वती पूजन का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजे से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा।

सरस्वती पूजा (Saraswati Puja)

बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन माँ सरस्वती की विशेष पूजा की जाती है। माँ सरस्वती को विद्या, संगीत, कला और ज्ञान की देवी माना जाता है। स्कूलों, कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थानों में इस दिन विशेष आयोजन किए जाते हैं। बच्चे और विद्यार्थी अपनी पुस्तकें, वाद्ययंत्र आदि माँ सरस्वती के समक्ष रखकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

सरस्वती पूजा (Saraswati Puja) विधि

पूजा के लिए सुबह उठकर स्नानादि कर साफ कपड़े पहन लें. फिर मां सरस्वती की प्रतिमा या मूर्ति को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। अब रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले या सफेद रंग के पुष्प, पीली मिठाई और अक्षत अर्पित करें। पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबों को अर्पित करें। मां सरस्वती की वंदना का पाठ करें। विद्यार्थी चाहें तो इस दिन मां सरस्वती के लिए व्रत भी रख सकते हैं।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥ (1)

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।

वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥

हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥ (2)

पूजा में मां सरस्वती के इस श्लोक से मन से ध्यान करें. इसके पश्चात ’ओम् ऐं सरस्वत्यै  नम:’ का जाप करें और इसी लघु मंत्र को नियमित रूप से विद्यार्थी वर्ग प्रतिदिन मां सरस्वती का ध्यान करें. इस मंत्र के जाप से विद्या, बुद्धि, विवेक बढ़ता है.

यह स्तुति भगवती सरस्वती की महिमा का वर्णन करती है और उनसे रक्षा की प्रार्थना करती है।

पंक्ति दर पंक्ति अर्थ:

  • या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
    • जो कुंद के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं।
  • या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
    • जिनके हाथ में वीणा का दंड सुशोभित है और जो श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण करती हैं।
  • या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
    • जिन्हें सदा ब्रह्मा, विष्णु और शंकर आदि देवताओं द्वारा पूजा जाता है।
  • सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
    • वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर करने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें।

सार :

सरस्वती स्तोत्र का पहला श्लोक देवी सरस्वती की स्तुति करता है। इस श्लोक में, देवी सरस्वती को एक सुंदर और गरिमामय देवी के रूप में चित्रित किया गया है। उनका रंग कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल है। वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, उनके हाथ में वीणा और पुस्तक है, और वे श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण करती हैं। सभी देवता उनकी पूजा करते हैं।

इस स्तुति में सरस्वती को सफेद कमल, चांद, बर्फ और मोतियों से तुलना की गई है, जो उनकी पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक है। उनकी वीणा संगीत और कला का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि श्वेत कमल पर उनका आसन सदाचार और शुद्धता का प्रतीक है। यह स्तुति देवताओं द्वारा की जाने वाली उनकी पूजा का भी उल्लेख करती है, और अंत में उनसे जड़ता और अज्ञान से रक्षा करने की प्रार्थना की जाती है।

इस श्लोक का अर्थ यह है कि देवी सरस्वती हमें ज्ञान, बुद्धि, कला, संगीत, साहित्य और सभी प्रकार की कलाओं में सफलता प्रदान करें। वे हमारी सभी जड़ता और अज्ञान को दूर करें।

यह श्लोक छात्रों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। वे इस श्लोक का पाठ करके देवी सरस्वती से ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति की प्रार्थना कर सकते हैं।

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।

  • शुक्लां श्वेत वर्ण वाली
  • ब्रह्मविचार सार परमाम् ब्रह्म के विचारों का सार रूप परम उत्कर्ष वाली
  • आद्यां आदिशक्ति
  • जगद्व्यापिनीम् संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त

वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥

  • वीणापुस्तकधारिणी हाथों में वीणा और पुस्तक धारण करने वाली
  • अभयदां अभय प्रदान करने वाली
  • जाड्यान्धकारापहाम्‌ मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करने वाली

हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।

  • हाथे स्फटिकमालिकां विदधतीम् हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहने वाली
  • पद्मासने संस्थिताम्‌ कमल के आसन पर विराजमान

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥

  • वन्दे तां उनको मैं वन्दना करता हूँ
  • परमेश्वरीं परमेश्वरी
  • भगवतीं भगवती
  • बुद्धिप्रदां बुद्धि देने वाली
  • शारदाम्‌ सरस्वती

अर्थ :

जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ।

इस मंत्र में सरस्वती देवी की दिव्य रूप और शक्तियों का वर्णन किया गया है। वे ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, यानी वे ज्ञान और विद्या की देवी हैं। वे संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त हैं, यानी वे हर जगह मौजूद हैं। वे वीणा और पुस्तक धारण करती हैं, जो कला और ज्ञान का प्रतीक हैं। वे अभय प्रदान करती हैं, यानी वे भय को दूर करती हैं। वे अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर करती हैं, यानी वे ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं। वे स्फटिकमणि की माला धारण करती हैं, जो पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है। वे कमल के आसन पर विराजमान हैं, जो पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक है। वे बुद्धि प्रदान करती हैं, यानी वे हमें ज्ञान और विद्या का मार्ग दिखाती हैं।

यह मंत्र सरस्वती देवी की उपासना के लिए एक शक्तिशाली मंत्र है। इस मंत्र का जाप करने से हम ज्ञान, विद्या, बुद्धि, साहित्य, संगीत, कला और सभी प्रकार की कलाओं में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

बसंत पंचमी (Basant Panchami) त्योहार मनाने की विधि

बसंत पंचमी (Basant Panchami) हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। यह दिन ज्ञान और संगीत की देवी मां सरस्वती की पूजा का दिन है। इस दिन को वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक माना जाता है।

बसंत पंचमी (Basant Panchami) को मनाने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते हैं:

  • सुबह जल्दी उठें और स्नान करें।
  • पीले वस्त्र धारण करें।
  • अपने घर को पीले फूलों और आम के पत्तों से सजाएं।
  • मां सरस्वती की प्रतिमा बनाएं या उनकी तस्वीर लगाएं।
  • उन्हें पीले फूल, चंदन, अगरबत्ती और मिठाई चढ़ाएं।
  • मंत्रों का जाप करें और उनका ध्यान करें।
  • विद्या और संगीत में सफलता के लिए उनका आशीर्वाद लें।
  • पतंग उड़ाएं और अपने प्रियजनों के साथ मिठाई खाएं।

बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन किए जाने वाले कुछ विशेष कार्य

  • मां सरस्वती की पूजा: बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन मां सरस्वती की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर मां सरस्वती की पूजा करते हैं। पूजा में मां सरस्वती की प्रतिमा को पीले वस्त्र पहनाकर, चंदन, अक्षत, फूल, माला, धूप, दीप आदि से सजाया जाता है। इसके बाद मां सरस्वती को वीणा, पुस्तक, माला, वरमुद्रा आदि अर्पित किए जाते हैं। पूजा के बाद मां सरस्वती की आरती की जाती है।
  • पतंग उड़ाना: बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन पतंग उड़ाना एक लोकप्रिय रिवाज है। इस दिन लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर पतंग उड़ाते हैं। पतंगबाजी का यह उत्सव खुशी और उत्साह का प्रतीक है।
  • मिठाई खाना: बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन पीले रंग की मिठाइयाँ खाने का भी चलन है। इस दिन खीर, मालपुआ, गुजिया आदि मिठाइयाँ विशेष रूप से बनाई जाती हैं।

बसंत पंचमी (Basant Panchami): ज्ञान, संगीत और बुद्धि की देवी सरस्वती के अवतरण की कथा

बसंत पंचमी (Basant Panchami) के पौराणिक वृत्तांत में, यह कहा गया है कि जब सृष्टि के निर्माणकर्ता भगवान ब्रह्मा ने संसार की रचना की, तो उन्हें प्रकृति में कुछ खास कमी महसूस हुई। इस कमी को दूर करने हेतु उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे एक भव्य देवी का आविर्भाव हुआ।

इस देवी के एक हाथ में वीणा थी, दूसरे में ग्रंथ, तीसरे में जपमाला और चौथे हाथ में आशीर्वाद की मुद्रा थी। वे मां सरस्वती के रूप में प्रकट हुईं। मां सरस्वती के वीणा वादन से संपूर्ण सृष्टि में नाद और संगीत का संचार हुआ। यही वह दिन था जिसे बसंत पंचमी (Basant Panchami) के रूप में जाना जाता है, और तभी से मां सरस्वती की उपासना प्रारंभ हुई।

बसंत पंचमी (Basant Panchami) पर्व की विशेषता मां सरस्वती की आराधना में निहित है। छात्र, कलाकार, साहित्यकार और संगीतज्ञ इस दिवस पर देवी सरस्वती की पूजा कर उनसे ज्ञान और संगीत का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसे विद्यारंभ का शुभ अवसर भी माना जाता है।

समस्त छात्र एवं विद्यार्थी गढ़ विद्या आरंभ करने से पहले निम्न मंत्र का उच्चारण अवश्य करें-

सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा

हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण और प्रचलित है। यह श्लोक माँ सरस्वती की स्तुति करता है, जो ज्ञान, संगीत, कला और बुद्धि की देवी मानी जाती हैं।

इस श्लोक का अर्थ है: “हे माता सरस्वती, जो सबकी कामनाओं को पूर्ण करने वाली हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। मैं अपनी विद्या की शुरुआत कर रहा हूँ, कृपया मुझे इस कार्य में सफलता प्रदान करें।”

यह श्लोक अक्सर विद्यारम्भ (शिक्षा की शुरुआत) के अवसर पर पढ़ा जाता है, जिससे शिक्षा के क्षेत्र में सफलता और प्रगति की कामना की जाती है। यह विद्यार्थियों को प्रेरणा और ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।

बसंत पंचमी (Basant Panchami) का महत्व

बसंत पंचमी (Basant Panchami) का महत्व इसके द्वारा प्रकृति और संस्कृति के संगम को दर्शाने में निहित है। यह पर्व नवीनता, उल्लास और ज्ञान का प्रतीक है। इस दिन लोग पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं, जो बसंत की सरसता और उल्लास को दर्शाता है।

बसंत पंचमी (Basant Panchami) का दिन ज्ञान, कला और बुद्धि की प्राप्ति का दिन है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से सभी को इनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन वसंत ऋतु का आगमन भी होता है। इस दिन प्रकृति में चारों ओर खुशी और उत्साह का माहौल होता है।

इस अवसर पर लोग पीले वस्त्र पहनते हैं जो वसंत ऋतु के प्रतीक होते हैं। घरों को पीले फूलों और आम के पत्तों से सजाया जाता है। पतंगबाजी का भी चलन है, जो खुशियों और उत्साह का प्रतीक है। इस दिन विशेष व्यंजन जैसे खीर, मालपुआ और गुजिया बनाए जाते हैं और उनका प्रसाद स्वरूप चढ़ाया जाता है।

बसंतोत्सव नवीन ऊर्जा देने वाला उत्सव है। इस दिन से शिशिर ऋतु के असहनीय सर्दी से मुक्ति मिलने का मौसम आरंभ हो जाता है। प्रकृति में परिवर्तन आता है और जो पेड़-पौधे शिशिर ऋतु में अपने पत्ते खो चुके थे वे पुनः नव-नव पल्लव और कलियों से युक्त हो जाते हैं।

बसंतोत्सव माघ शुक्ल पंचमी से आरंभ होकर होलिका दहन तक चलता है। कहा जाता है कि वसंत पंचमी के दिन जैसा मौसम होता है, होली तक ठीक ऐसा ही मौसम रहता है।

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बसंत पंचमी क्या है?

बसंत पंचमी, हिंदू कैलेंडर के माघ मास की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहर है। यह वसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है और माँ सरस्वती की पूजा के रूप में भी जाना जाता है।

बसंत पंचमी की तारीख और समय क्या है 2024 में?

बसंत पंचमी 2024 की तिथि 13 फरवरी है, जो दोपहर 2:41 बजे से शुरू होकर 14 फरवरी को दोपहर 12:09 बजे समाप्त होगी। सरस्वती पूजा का मुहूर्त सुबह 7 बजे से दोपहर 12:35 बजे तक रहेगा।

सरस्वती पूजा क्यों मनाई जाती है?

सरस्वती पूजा बसंत पंचमी के दिन मनाई जाती है, जब माँ सरस्वती की पूजा कर विद्या, संगीत, कला, और ज्ञान की देवी से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

सरस्वती पूजा कैसे की जाती है?

सरस्वती पूजा के लिए, सुबह उठकर स्नान करना और साफ कपड़े पहनना चाहिए। माँ सरस्वती की प्रतिमा को पीले रंग के वस्त्र से सजाना चाहिए, और उन्हें रोली, चंदन, हल्दी, केसर, पुष्प, मिठाई, और अक्षतों से अर्पित करना चाहिए। पूजा के स्थान पर वाद्ययंत्र और किताबें रखना भी उत्तम है।

कौन-कौन सी आदतें बसंत पंचमी पर मानी जाती हैं?

बसंत पंचमी पर लोग वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए सुरक्षित स्थान पर पिकनिक करने, बसंती रंगों के कपड़े पहनने, सरस्वती माँ की पूजा करने और विद्या क्षेत्र में आरंभिक शिक्षा का आरंभ करने की आदतें मानते हैं।

बच्चे बसंत पंचमी पर क्या कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं?

बच्चे इस दिन अपनी पुस्तकें और वाद्ययंत्रों को सरस्वती माँ के समक्ष रखकर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। स्कूल और कॉलेजों में विशेष प्रोग्राम्स और पूजा आयोजित की जाती है।

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