माँ बगलामुखी (Maa Baglamukhi) अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम् देवी बगलामुखी की 108 नामों से संबंधित एक दिव्य स्तोत्र है। देवी बगलामुखी हिन्दू धर्म में दश महाविद्याओं में से एक हैं और उन्हें शत्रुओं को स्तंभित करने, भ्रांतियों को दूर करने, और वाणी व ज्ञान की शक्ति प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। उनका नाम और रूप वाक्-स्तंभन (वाणी को नियंत्रित करने), दुष्टों को दंडित करने, और भक्तों की रक्षा करने की उनकी शक्ति को दर्शाता है।
ओम् ब्रह्मास्त्र-रुपिणी देवी,
माता श्रीबगलामुखी ।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च,
ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी ॥ 1 ॥
महा-विद्या महा-लक्ष्मी,
श्रीमत् -त्रिपुर-सुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता,
पार्वती सर्व-मंगला ॥ 2 ॥
ललिता भैरवी शान्ता,
अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छिन्नमस्ता च,
तारा काली सरस्वती ॥ 3 ॥
जगत् -पूज्या महा-माया,
कामेशी भग-मालिनी ।
दक्ष-पुत्री शिवांकस्था,
शिवरुपा शिवप्रिया ॥ 4 ॥
सर्व-सम्पत्-करी देवी,
सर्व-लोक वशंकरी ।
वेद-विद्या महा-पूज्या,
भक्ताद्वेषी भयंकरी ॥ 5 ॥
स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च,
दुष्ट-स्तम्भन-कारिणी ।
भक्त-प्रिया महा-भोगा,
श्रीविद्या ललिताम्बिका ॥ 6 ॥
मेना-पुत्री शिवानन्दा,
मातंगी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च,
नृपाराध्या नरोत्तमा ॥ 7 ॥
नागिनी नाग-पुत्री च,
नगराज-सुता उमा ।
पीताम्बरा पीत-पुष्पा च,
पीत-वस्त्र-प्रिया शुभा ॥ 8 ॥
पीत-गन्ध-प्रिया रामा,
पीत-रत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्ध-चन्द्र-धरी देवी,
गदा-मुद्-गर-धारिणी ॥ 9 ॥
सावित्री त्रि-पदा शुद्धा,
सद्यो राग-विवर्द्धिनी ।
विष्णु-रुपा जगन्मोहा,
ब्रह्म-रुपा हरि-प्रिया ॥ 10 ॥
रुद्र-रुपा रुद्र-शक्तिद्दिन्मयी,
भक्त-वत्सला ।
लोक-माता शिवा सन्ध्या,
शिव-पूजन-तत्परा ॥ 11 ॥
धनाध्यक्षा धनेशी च,
धर्मदा धनदा धना ।
चण्ड-दर्प-हरी देवी,
शुम्भासुर-निवर्हिणी ॥ 12 ॥
राज-राजेश्वरी देवी,
महिषासुर-मर्दिनी ।
मधु-कैटभ-हन्त्री च,
रक्त-बीज-विनाशिनी ॥ 13 ॥
धूम्राक्ष-दैत्य-हन्त्री च,
भण्डासुर-विनाशिनी ।
रेणु-पुत्री महा-माया,
भ्रामरी भ्रमराम्बिका ॥ 14 ॥
ज्वालामुखी भद्रकाली,
बगला शत्र-ुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्र-पूज्या च,
गुह-माता गुणेश्वरी ॥ 15 ॥
वज्र-पाश-धरा देवी,
जिह्वा-मुद्-गर-धारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी,
बगला परमेश्वरी ॥ 16 ॥
फल- श्रुति
अष्टोत्तरशतं नाम्नां,
बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिप-ुबाधा-विनिर्मुक्तः,
लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात्॥ 1 ॥
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च,
ग्रह-पीड़ा-निवारणम् ।
राजानो वशमायाति,
सर्वैश्वर्यं च विन्दति ॥ 2 ॥
नाना-विद्यां च लभते,
राज्यं प्राप्नोति निश्चितम् ।
भुक्ति-मुक्तिमवाप्नोति,
साक्षात् शिव-समो भवेत् ॥ 3 ॥
॥ श्रीरूद्रयामले सर्व-सिद्धि-प्रद श्री बगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ॥
इस स्तोत्र के माध्यम से देवी बगलामुखी के विभिन्न दिव्य स्वरूपों और गुणों का वर्णन किया गया है, जैसे कि वे ब्रह्मांड के विभिन्न पहलुओं की स्वामिनी हैं, और वे भक्तों को नाना प्रकार की सिद्धियाँ और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
फल श्रुति में इस स्तोत्र का पाठ करने के लाभों का वर्णन किया गया है, जैसे कि शत्रुओं से मुक्ति, धन और समृद्धि की प्राप्ति, नकारात्मक ऊर्जाओं और ग्रह पीड़ा से मुक्ति, राजा के समान वैभव प्राप्ति, विभिन्न विद्याओं में दक्षता, और अंततः मोक्ष की प्राप्ति। यह स्तोत्र भक्तों को शिव के समान आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाने का वादा करता है।
देवी बगलामुखी का यह स्तोत्र उनके भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक साधना है, जिसे पढ़ने और सुनने से उन्हें जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और आध्यात्मिक शक्ति की अनुभूति होती है।
माँ बगलामुखी अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम् (Maa Baglamukhi Ashtottara Shatnam Stotram)
ओम् ब्रह्मास्त्र-रुपिणी देवी,
माता श्रीबगलामुखी ।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च
,ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी ॥ 1 ॥
- “ओम् ब्रह्मास्त्र-रुपिणी देवी,” – इस लाइन में देवी बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र के समान शक्तिशाली बताया गया है। ब्रह्मास्त्र, हिन्दू मिथकों में एक दिव्य और अत्यंत शक्तिशाली अस्त्र है। इस तरह, देवी को अतुलनीय शक्ति वाली बताया गया है।
- “माता श्रीबगलामुखी” – यहाँ पर देवी को संबोधित किया गया है, जिससे उनके प्रति आदर और भक्ति का भाव प्रकट होता है।
- “चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च,” – इस भाग में देवी को चेतना और ज्ञान का स्वरूप बताया गया है। यानी देवी ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं और उनके आशीर्वाद से भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है।
- “ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी” – अंत में, देवी को ब्रह्मानंद (अलौकिक आनंद) प्रदान करने वाली कहा गया है। यह दर्शाता है कि देवी की कृपा से भक्तों को आत्मिक शांति और आनंद की अनुभूति होती है।
महा-विद्या महा-लक्ष्मी,
श्रीमत् -त्रिपुर-सुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता,
पार्वती सर्व-मंगला ॥ 2 ॥
- महा-विद्या महा-लक्ष्मी: यहाँ ‘महा-विद्या’ शब्द का प्रयोग दिव्य ज्ञान और शक्ति के उच्चतम स्वरूपों को दर्शाता है, और ‘महा-लक्ष्मी’ धन, समृद्धि, और कल्याण की हिन्दू देवी हैं। इस पंक्ति में देवी लक्ष्मी को सभी विद्याओं और समृद्धियों की स्रोत माना गया है।
- श्रीमत् -त्रिपुर-सुन्दरी: त्रिपुर सुंदरी या श्री विद्या की उपासना की जाने वाली देवी हैं, जो सौंदर्य, ज्ञान, और पूर्णता की प्रतीक हैं। उन्हें सभी तीन लोकों में सबसे सुंदर माना जाता है।
- भुवनेशी जगन्माता: ‘भुवनेशी’ नाम से देवी को संपूर्ण ब्रह्मांड की रानी और जगत की माता के रूप में संबोधित किया गया है। यह उनके सर्वव्यापी और पालनहार के रूप को दर्शाता है।
- पार्वती सर्व-मंगला: देवी पार्वती, शिव की पत्नी, को ‘सर्व-मंगला’ यानी सभी के लिए शुभ और मंगलकारी माना गया है। उन्हें प्रेम, पारिवारिक सुख, और आध्यात्मिक विकास की देवी के रूप में पूजा जाता है।
ललिता भैरवी शान्ता,
अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छिन्नमस्ता च,
तारा काली सरस्वती ॥ 3 ॥
- ललिता भैरवी शान्ता:यहां, ‘ललिता’ देवी का उपासन किया जा रहा है, जो देवी शक्ति के अन्तर्मुखी रूप को प्रतिनिधित्व करती हैं। ‘भैरवी’ उनकी क्रोध स्वरूपता का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो भगवान शिव की रूपा भी हैं। ‘शान्ता’ उनकी शांति स्वरूपता को दर्शाता हैं।
- अन्नपूर्णा कुलेश्वरी:देवी अन्नपूर्णा को अन्न (भोजन) की देवी के रूप में पूजा जाता हैं, जो सम्पूर्ण जीवों को उनकी प्रत्येक जरूरत के अनुसार भोजन प्रदान करती हैं। ‘कुलेश्वरी’ उन्हें कुल और परिवार की प्रभुता के रूप में स्थापित करता है।
- वाराही छिन्नमस्ता च:‘वाराही’ देवी का उपासन शास्त्रीय परंपरा में किया जाता है, जो भगवान विष्णु की अवतारिणी रूप हैं। ‘छिन्नमस्ता’ उनकी भयानक रूपता का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो समय के प्रत्येक में अपने भक्तों के शत्रुओं को नष्ट करती हैं।
- तारा काली सरस्वती:‘तारा’ देवी का उपासन उन्नति और संरक्षण के लिए किया जाता हैं, जो संग्रह, शक्ति, और शांति की देवी हैं। ‘काली’ उनकी भयानक रूपता को दर्शाता हैं, जो अंधकार को नष्ट कर ज्ञान की प्रकाश का मार्ग प्रदर्शित करती हैं। ‘सरस्वती’ उनकी ज्ञान स्वरूपता को दर्शाती हैं, जो विद्या, कला, और संवेदनशीलता की देवी हैं।
जगत् –पूज्या महा-माया,
कामेशी भग-मालिनी ।
दक्ष-पुत्री शिवांकस्था,
शिवरुपा शिवप्रिया ॥ 4 ॥
- जगत्-पूज्या महा-माया: ‘जगत्-पूज्या’ का अर्थ है जिसकी पूजा पूरे जगत में की जाती है। ‘महा-माया’ देवी को सृष्टि की इल्ल्यूजन और आद्य शक्ति के रूप में दर्शाता है, जो समस्त जगत को मोहित करने वाली हैं।
- कामेशी भग-मालिनी: ‘कामेशी’ देवी को इच्छाओं और कामनाओं की अधिपति के रूप में दर्शाता है। ‘भग-मालिनी’ उन्हें समस्त सृष्टि की नियंत्रण करने वाली और सभी प्रकार के भोगों की देवी के रूप में व्यक्त करता है।
- दक्ष-पुत्री शिवांकस्था: ‘दक्ष-पुत्री’ देवी सती को संदर्भित करता है, जो प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं और बाद में देवी पार्वती के रूप में जानी जाती हैं। ‘शिवांकस्था’ उनके शिव के साथ अभेद्य संबंध को दर्शाता है, अर्थात् वह शिव की अर्धांगिनी हैं।
- शिवरुपा शिवप्रिया: ‘शिवरुपा’ देवी को शिव के समान और उनकी शक्ति के रूप में दर्शाता है, जो शिव की आध्यात्मिक और दिव्य शक्ति की प्रतीक हैं। ‘शिवप्रिया’ उन्हें शिव की सबसे प्रिय और उनके साथ गहरे प्रेम में जुड़ी हुई देवी के रूप में व्यक्त करता है।
सर्व-सम्पत्-करी देवी,
सर्व-लोक वशंकरी ।
वेद-विद्या महा-पूज्या,
भक्ताद्वेषी भयंकरी ॥ 5 ॥
- सर्व-सम्पत्-करी देवी:इस पंक्ति में देवी को सभी प्रकार की समृद्धियाँ और सौभाग्य प्रदान करने वाली के रूप में वर्णित किया गया है। वे सभी प्रकार की समृद्धियों का स्रोत हैं।
- सर्व-लोक वशंकरी:यहाँ देवी को सभी लोकों को वश में करने वाली के रूप में वर्णित किया गया है, जिसका अर्थ है कि उनकी शक्ति सर्वव्यापी है और सभी जीवों पर उनका अधिकार है।
- वेद-विद्या महा-पूज्या:इस पंक्ति में देवी को वेदों और विद्या की महान पूज्यनीय के रूप में वर्णित किया गया है। यह उन्हें ज्ञान की देवी के रूप में स्थापित करता है।
- भक्ताद्वेषी भयंकरी:यहाँ देवी को अपने भक्तों के दुश्मनों के लिए भयंकर के रूप में वर्णित किया गया है। यह दर्शाता है कि देवी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनके दुश्मनों को नष्ट करती हैं।
स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च,
दुष्ट-स्तम्भन-कारिणी ।
भक्त-प्रिया महा-भोगा,
श्रीविद्या ललिताम्बिका ॥ 6 ॥
- स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च:‘स्तम्भ-रुपा’ और ‘स्तम्भिनी’ शब्द देवी को एक ऐसी शक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं जो स्थिरता और अचलता का प्रतीक है। इसका अर्थ है कि वह संकट के समय में अपने भक्तों को दृढ़ता प्रदान करती हैं। ‘स्तम्भिनी’ यह भी दर्शाता है कि वह दुष्टों की गतिविधियों को स्थिर करने में सक्षम हैं।
- दुष्ट-स्तम्भन-कारिणी:यह विशेषण देवी की उस शक्ति को व्यक्त करता है जो दुष्टों की नकारात्मक शक्तियों और क्रियाओं को रोकने में सक्षम है। यह बताता है कि वह अपने भक्तों की रक्षा कैसे करती हैं।
- भक्त-प्रिया महा-भोगा:‘भक्त-प्रिया’ से पता चलता है कि देवी अपने भक्तों से अत्यधिक प्रेम करती हैं और उनके कल्याण की इच्छा रखती हैं। ‘महा-भोगा’ देवी के उस पहलू को उजागर करता है जो संसार के सुखों और आनंद का आनंद लेती हैं, और साथ ही अपने भक्तों को भी उसी आनंद का अनुभव कराती हैं।
- श्रीविद्या ललिताम्बिका:‘श्रीविद्या’ एक उच्चतम आध्यात्मिक पथ है जो समस्त सृष्टि की आधारभूत शक्ति की साधना करता है, और ‘ललिताम्बिका’ देवी ललिता या त्रिपुरसुंदरी का एक रूप है, जो सौंदर्य, समृद्धि, और दिव्य ज्ञान की देवी हैं।
मेना-पुत्री शिवानन्दा,
मातंगी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च,
नृपाराध्या नरोत्तमा ॥ 7 ॥
- मेना-पुत्री शिवानन्दा:‘मेना-पुत्री’ का अर्थ है पर्वत राज हिमालय और माता मेना की पुत्री, जो देवी पार्वती को संदर्भित करता है। ‘शिवानन्दा’ से अभिप्राय है वह जो भगवान शिव को आनंद प्रदान करती हैं, उनकी आराध्या और जीवन संगिनी हैं।
- मातंगी भुवनेश्वरी:‘मातंगी’ देवी महाविद्याओं में से एक हैं, जो ज्ञान, संगीत, और वाक् शक्ति की देवी हैं। ‘भुवनेश्वरी’ संपूर्ण ब्रह्मांड और सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिसे समस्त लोकों की रानी माना जाता है।
- नारसिंही नरेन्द्रा च:‘नारसिंही’ देवी का वह रूप है जो भगवान नृसिंह की शक्ति को प्रतिबिंबित करता है, जो बुराई पर विजय पाने वाली और धर्म की रक्षा करने वाली हैं। ‘नरेन्द्रा’ का अर्थ है राजाओं की रानी, जो उनके दिव्य संरक्षण और शासन को दर्शाता है।
- नृपाराध्या नरोत्तमा:‘नृपाराध्या’ का अर्थ है राजाओं द्वारा पूजनीय, जो उनके उच्च स्थान और समाज में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। ‘नरोत्तमा’ से अभिप्राय है उत्कृष्ट मानवों में श्रेष्ठ, जो उनके दिव्य गुणों और आध्यात्मिक उत्कर्ष को संदर्भित करता है।
नागिनी नाग-पुत्री च,
नगराज-सुता उमा ।
पीताम्बरा पीत-पुष्पा च,
पीत-वस्त्र-प्रिया शुभा ॥ 8 ॥
- नागिनी नाग-पुत्री च:‘नागिनी’ और ‘नाग-पुत्री’ का उल्लेख देवी को सर्पों के संरक्षण और संबंध के रूप में प्रस्तुत करता है। यह संभवतः उनके प्रकृति के साथ गहरे संबंध और सर्पों के प्रति उनकी दिव्य शक्ति को दर्शाता है।
- नगराज-सुता उमा:‘नगराज-सुता’ का अर्थ है पर्वतराज हिमालय की पुत्री, जो ‘उमा’ के नाम से भी जानी जाती हैं। यह देवी पार्वती के लिए एक और नाम है, जो भगवान शिव की पत्नी हैं।
- पीताम्बरा पीत-पुष्पा च:‘पीताम्बरा’ का अर्थ है पीले वस्त्र धारण करने वाली, जबकि ‘पीत-पुष्पा’ का अर्थ है पीले फूलों से संबंधित। ये विशेषण देवी के प्रिय रंग और प्रकृति के साथ उनके संबंध को दर्शाते हैं।
- पीत-वस्त्र-प्रिया शुभा:‘पीत-वस्त्र-प्रिया’ से पता चलता है कि देवी को पीले वस्त्र विशेष रूप से प्रिय हैं, और ‘शुभा’ उन्हें शुभता और कल्याणकारी के रूप में प्रस्तुत करता है।
पीत-गन्ध-प्रिया रामा,
पीत-रत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्ध-चन्द्र-धरी देवी,
गदा-मुद्-गर-धारिणी ॥ 9 ॥
- पीत-गन्ध-प्रिया रामा:यह कहता है कि देवी पीली गंध की प्रिय हैं, जो उनके विशेष रूप को दर्शाता है। ‘रामा’ का अर्थ है धर्म का पालन करने वाला, यहाँ देवी को धार्मिकता की प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- पीत-रत्नार्चिता शिवा:यह कहता है कि देवी को पीले रत्नों से पूजित किया जाता है, जो उनकी महिमा और दिव्यता को प्रकट करता है। ‘शिवा’ का अर्थ है भगवान शिव की पत्नी, जो देवी को भोलेनाथ के साथ साक्षात्कार करती है।
- अर्द्ध-चन्द्र-धरी देवी:यह कहता है कि देवी का मुख है अर्धचंद्र के समान, जो उनके सौंदर्य और शान्ति को प्रकट करता है।
- गदा-मुद्गर-धारिणी:यह कहता है कि देवी एक गदा और मुद्गर धारण करती हैं, जो उनके शक्ति और साहस को प्रतिनिधित्त करता है।
सावित्री त्रि-पदा शुद्धा,
सद्यो राग-विवर्द्धिनी ।
विष्णु-रुपा जगन्मोहा,
ब्रह्म-रुपा हरि-प्रिया ॥ 10 ॥
- सावित्री त्रि-पदा शुद्धा:यह कहता है कि देवी सावित्री के रूप में शुद्ध त्रिपदा हैं, जो जीवन की प्राप्ति और समृद्धि की देवी हैं।
- सद्यो राग-विवर्द्धिनी:यह कहता है कि देवी सद्यों में ही रोगों को नष्ट करने वाली हैं और विवर्धन के साधने की देवी हैं।
- विष्णु-रुपा जगन्मोहा:यह कहता है कि देवी का स्वरूप है विष्णु का रूप, जो विश्व को मोहित करने वाला है।
- ब्रह्म-रुपा हरि-प्रिया:यह कहता है कि देवी का स्वरूप है ब्रह्म का रूप और हरि को प्रिय हैं, जो सृष्टि के पालनकर्ता और जीवन के संरक्षक हैं।
रुद्र-रुपा रुद्र-शक्तिद्दिन्मयी,
भक्त-वत्सला ।
लोक-माता शिवा सन्ध्या
,शिव-पूजन-तत्परा ॥ 11 ॥
- रुद्र-रुपा रुद्र-शक्तिद्दिन्मयी, भक्त-वत्सला:यहाँ देवी को ‘रुद्र-रुपा’ और ‘रुद्र-शक्तिद्दिन्मयी’ के रूप में वर्णित किया गया है, जो भगवान शिव के रूद्र रूप की शक्ति को दर्शाता है। ‘भक्त-वत्सला’ से उनके भक्तों के प्रति उनकी अगाध प्रेम और स्नेह को दर्शाया गया है।
- लोक-माता शिवा सन्ध्या, शिव-पूजन-तत्परा:यहाँ देवी को ‘लोक-माता’ और ‘सन्ध्या’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो संपूर्ण विश्व की माता और संध्या काल की देवी हैं। ‘शिव-पूजन-तत्परा’ से उनकी भगवान शिव के प्रति अनन्य भक्ति और समर्पण को दर्शाया गया है।
धनाध्यक्षा धनेशी च,
धर्मदा धनदा धना ।
चण्ड-दर्प-हरी देवी,
शुम्भासुर-निवर्हिणी ॥ 12 ॥
- धनाध्यक्षा धनेशी च, धर्मदा धनदा धना:इस भाग में देवी को धन और समृद्धि की देवी के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो अपने भक्तों को धर्म, धन, और समृद्धि प्रदान करती हैं।
- चण्ड-दर्प-हरी देवी, शुम्भासुर-निवर्हिणी:यहाँ देवी को चण्ड दर्प (घमंड) को हरने वाली और शुम्भासुर का नाश करने वाली के रूप में वर्णित किया गया है, जो उनकी अद्वितीय शक्ति और असुरों पर विजय प्राप्त करने की क्षमता को दर्शाता है।
राज-राजेश्वरी देवी,
महिषासुर-मर्दिनी ।
मधु-कैटभ-हन्त्री च,
रक्त-बीज-विनाशिनी ॥ 13 ॥
- राज-राजेश्वरी देवी, महिषासुर-मर्दिनी:‘राज-राजेश्वरी’ देवी को सभी देवी-देवताओं की रानी के रूप में स्थापित करता है। ‘महिषासुर-मर्दिनी’ उन्हें महिषासुर, एक शक्तिशाली असुर के वध करने वाली के रूप में प्रस्तुत करता है।
- मधु-कैटभ-हन्त्री च, रक्त-बीज-विनाशिनी:यह देवी को मधु और कैटभ, दो अन्य असुरों के हनन करने वाली और रक्त-बीज, जिसके हर खून की बूँद से एक नया असुर उत्पन्न होता था, उसके विनाश करने वाली के रूप में वर्णित करता है।
धूम्राक्ष-दैत्य-हन्त्री च,
भण्डासुर-विनाशिनी ।
रेणु-पुत्री महा-माया,
भ्रामरी भ्रमराम्बिका ॥ 14 ॥
- धूम्राक्ष-दैत्य-हन्त्री च, भण्डासुर-विनाशिनी:‘धूम्राक्ष-दैत्य-हन्त्री’ और ‘भण्डासुर-विनाशिनी’ देवी को धूम्राक्ष और भण्डासुर नामक असुरों के नाश करने वाली के रूप में दिखाते हैं, जो उनकी असीम शक्ति और युद्ध कौशल को प्रकट करता है।
- रेणु-पुत्री महा-माया, भ्रामरी भ्रमराम्बिका:‘रेणु-पुत्री’ और ‘महा-माया’ देवी को महान भ्रम और इल्ल्यूजन की रचयिता के रूप में प्रस्तुत करते हैं। ‘भ्रामरी’ और ‘भ्रमराम्बिका’ उनके भ्रमर (भौंरा) रूप को दर्शाते हैं, जिसमें वह भण्डासुर के वध के लिए भौंरों की एक सेना का निर्माण करती हैं।
ज्वालामुखी भद्रकाली,
बगला शत्र-ुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्र-पूज्या च,
गुह-माता गुणेश्वरी ॥ 15 ॥
- ज्वालामुखी भद्रकाली, बगला शत्र-ुनाशिनी:‘ज्वालामुखी’ और ‘भद्रकाली’ देवी को एक विनाशकारी शक्ति के रूप में दर्शाते हैं, जो उनकी विशेषताओं में शामिल है। ‘बगला’ देवी को शत्रुओं का नाश करने वाली के रूप में वर्णित करता है, जो उनकी रक्षा करने वाली शक्ति को दर्शाता है।
- इन्द्राणी इन्द्र-पूज्या च, गुह-माता गुणेश्वरी:‘इन्द्राणी’ और ‘इन्द्र-पूज्या’ देवी को देवराज इंद्र द्वारा पूजित के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो उनकी देवताओं में उच्च स्थिति को दर्शाता है। ‘गुह-माता’ और ‘गुणेश्वरी’ उनके गुणों और मातृत्व की महिमा को व्यक्त करते हैं।
वज्र-पाश-धरा देवी,
जिह्वा-मुद्-गर-धारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी,
बगला परमेश्वरी ॥ 16 ॥
- वज्र-पाश-धरा देवी, जिह्वा-मुद्-गर-धारिणी: यह देवी को वज्र और पाश (फंदा) धारण करने वाली, और जिह्वा से मुद्गर (हथौड़ा) धारण करने वाली के रूप में प्रस्तुत करता है, जो उनकी युद्ध कौशल और शक्ति को दर्शाता है।
- भक्तानन्दकरी देवी, बगला परमेश्वरी:‘भक्तानन्दकरी’ देवी को अपने भक्तों को आनंद प्रदान करने वाली के रूप में दर्शाता है। ‘बगला परमेश्वरी’ उन्हें सर्वोच्च देवी के रूप में स्थापित करता है, जो सभी की रक्षा करती हैं और उन्हें शक्ति प्रदान करती हैं।
फल- श्रुति
अष्टोत्तरशतं नाम्नां,
बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिप-ुबाधा-विनिर्मुक्तः,
लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात्॥ 1 ॥
अष्टोत्तरशतं नाम्नां, बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिपु-बाधा-विनिर्मुक्तः, लक्ष्मीस्थैर्यम- यहाँ प्रस्तुत ‘फल-श्रुति’ भाग देवी बगलामुखी के अष्टोत्तर शतनाम (108 नामों) के पाठ के लाभों का वर्णन करता है। यह भक्तों को बताता है कि इस स्तोत्र के पाठ से क्या फल प्राप्त होते हैं:
वाप्नुयात्:जो व्यक्ति देवी बगलामुखी के 108 नामों का पाठ करता है, वह शत्रुओं के बाधाओं से मुक्त हो जाता है और लक्ष्मी (धन और समृद्धि) की स्थिरता प्राप्त करता है।
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च,
ग्रह-पीड़ा-निवारणम् ।
राजानो वशमायाति,
सर्वैश्वर्यं च विन्दति ॥ 2 ॥
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च, ग्रह-पीड़ा-निवारणम्:इस पाठ से भूत, प्रेत, पिशाच और ग्रहों की पीड़ा से रक्षा होती है, यानी नकारात्मक ऊर्जा और ग्रहों के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
राजानो वशमायाति, सर्वैश्वर्यं च विन्दति:पाठ करने वाला राजाओं या उच्च अधिकारियों को अपने वश में कर लेता है और सभी प्रकार की ऐश्वर्य (समृद्धि) प्राप्त करता है।
नाना-विद्यां च लभते,
राज्यं प्राप्नोति निश्चितम् ।
भुक्ति-मुक्तिमवाप्नोति,
साक्षात् शिव-समो भवेत् ॥ 3 ॥
नाना-विद्यां च लभते, राज्यं प्राप्नोति निश्चितम्:इससे विभिन्न प्रकार की विद्याएँ प्राप्त होती हैं और राज्य (शासन या महत्वपूर्ण पद) की प्राप्ति निश्चित होती है।
भुक्ति-मुक्तिमवाप्नोति, साक्षात् शिव-समो भवेत्:पाठ करने वाला भौतिक सुखों का भोग और मोक्ष (आत्मिक मुक्ति) दोनों प्राप्त करता है, और भगवान शिव के समान बन जाता है।
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Maa Baglamukhi Ashtottara Shatnam Stotram क्या है?
Maa Baglamukhi Ashtottara Shatnam Stotram देवी बगलामुखी के 108 नामों से संबंधित एक दिव्य स्तोत्र है, जो उनके विभिन्न दिव्य स्वरूपों और गुणों का वर्णन करता है। यह हिन्दू धर्म में देवी बगलामुखी के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक साधना है।
Maa Baglamukhi Ashtottara Shatnam Stotram के पाठ से क्या लाभ होते हैं?
स्तोत्र के पाठ से अनेक लाभ होते हैं, जिनमें शत्रुओं और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा, ग्रह पीड़ा से मुक्ति, धन और समृद्धि की प्राप्ति, विभिन्न ज्ञान की प्राप्ति, महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होना, सांसारिक सुखों का भोग, और आत्मिक मुक्ति शामिल हैं।
देवी बगलामुखी अपने भक्तों की रक्षा कैसे करती है?
देवी बगलामुखी अपने भक्तों की रक्षा उनके शत्रुओं को स्तंभित कर, भ्रांतियों को दूर कर, और नकारात्मक ऊर्जाओं और शक्तियों को नष्ट करके करती हैं। वे अपने भक्तों के प्रति स्नेही हैं लेकिन उनके दुश्मनों के लिए क्रूर हैं, उनकी कल्याण और आध्यात्मिक प्रगति सुनिश्चित करती हैं।
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