Ashtalakshmi Stotram

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावी और सिद्ध उपाय है। यह स्तोत्र विशेष रूप से शुक्रवार के दिन पढ़ने के लिए उपयुक्त माना जाता है। माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसे जीवन में सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है, साथ ही उसकी आर्थिक समस्याएं भी समाप्त हो जाती हैं।

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र में मां लक्ष्मी के आठ रूपों का वर्णन किया गया है, जिन्हें अष्टलक्ष्मी कहा जाता है। ये आठ रूप हैं – आदि लक्ष्मी, धन्य लक्ष्मी, धैर्य लक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी, विद्या लक्ष्मी, और धन लक्ष्मी। प्रत्येक रूप की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में अलग-अलग प्रकार की समृद्धि आती है।

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ और उसका प्रभाव

  • धन और समृद्धि की प्राप्ति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से घर में स्थिर धन का वास होता है और वित्तीय संकट समाप्त होते हैं।
  • व्यवसाय में सफलता: अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से व्यवसाय और नौकरी में सफलता पाने के लिए किया जाता है।
  • सुख और शांति का अनुभव: जब व्यक्ति इस स्तोत्र को श्रद्धा और भाव से पढ़ता है, तो उसे मानसिक शांति और सुख की प्राप्ति होती है।

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ विधिपूर्वक और सच्चे मन से किया जाना चाहिए। प्रत्येक शुक्रवार को इस स्तोत्र का पाठ करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। इस स्तोत्र को उच्चारित करते समय, घर में दीप जलाना और मां लक्ष्मी की पूजा करना अत्यंत फलदायक माना जाता है, तो आइए पढ़ते हैं अष्टलक्ष्मी स्तोत्र।

अष्ट लक्ष्मी स्तोत्रम्

अष्ट लक्ष्मी स्तोत्रम् का यह श्लोक आदि लक्ष्मी के गुणों और महिमा का वर्णन करता है। आइए प्रत्येक पंक्ति का अर्थ समझें:

आदिलक्ष्मि
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि, चन्द्र सहॊदरि हेममये
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायनि, मञ्जुल भाषिणि वेदनुते ।
पङ्कजवासिनि देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ॥ 1

व्याख्या और अर्थ:

सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि

  • सुमनस: अच्छे विचारों वाले व्यक्ति, संतजन।
  • वन्दित: वंदना करने योग्य।
  • सुन्दरि माधवि: सुंदर, वसंत की देवी के रूप में प्रसन्नचित्त।
    अर्थ: आप वह सुंदर देवी हैं, जिनकी संत और श्रद्धालु वंदना करते हैं।

चन्द्र सहॊदरि हेममये

  • चन्द्र सहॊदरि: चंद्रमा की बहन, शीतलता और सौंदर्य की प्रतीक।
  • हेममये: सोने के समान उज्ज्वल।
    अर्थ: आप चंद्रमा के समान शीतल और सोने के समान तेजस्वी हैं।

मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायनि

  • मुनिगण वन्दित: ऋषियों और मुनियों द्वारा पूजित।
  • मोक्षप्रदायनि: मोक्ष प्रदान करने वाली।
    अर्थ: मुनि और ऋषि आपकी पूजा करते हैं क्योंकि आप भक्तों को मोक्ष प्रदान करती हैं।

मञ्जुल भाषिणि वेदनुते

  • मञ्जुल भाषिणि: मधुर वाणी वाली।
  • वेदनुते: वेदों में वर्णित और प्रशंसित।
    अर्थ: आप मधुर वाणी वाली हैं और वेदों में आपकी स्तुति की गई है।

पङ्कजवासिनि देव सुपूजित

  • पङ्कजवासिनि: कमल पर निवास करने वाली।
  • देव सुपूजित: देवताओं द्वारा पूजित।
    अर्थ: आप कमल पर निवास करती हैं और देवताओं द्वारा पूजित हैं।

सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते

  • सद्गुण वर्षिणि: अच्छे गुणों की वर्षा करने वाली।
  • शान्तियुते: शांति से युक्त।
    अर्थ: आप अच्छे गुणों की वर्षा करती हैं और शांति प्रदान करती हैं।

जय जयहे मधुसूदन कामिनि, आदिलक्ष्मि परिपालय माम्

  • जय जयहे: आपकी जय हो।
  • मधुसूदन कामिनि: भगवान विष्णु की प्रिय।
  • आदिलक्ष्मि: लक्ष्मी का आदि स्वरूप।
  • परिपालय माम्: मेरी रक्षा करें।
    अर्थ: हे विष्णु की प्रियतमा आदि लक्ष्मी, आपकी जय हो। कृपया मेरी रक्षा करें।

यह श्लोक आदिलक्ष्मी के सौंदर्य, तेज, गुण, और मोक्ष प्रदान करने की शक्ति की स्तुति करता है। आदिलक्ष्मी को शांतिदायिनी, गुणों की वर्षा करने वाली, और भक्तों की रक्षा करने वाली देवी के रूप में वर्णित किया गया है। यह श्लोक उनके प्रति भक्त का पूर्ण समर्पण व्यक्त करता है।

धान्यलक्ष्मि
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि, वैदिक रूपिणि वेदमये
क्षीर समुद्भव मङ्गल रूपिणि, मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धान्यलक्ष्मि सदापालय माम् ॥ 2 ॥

व्याख्या और अर्थ:

अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि

  • अयिकलि: कलियुग की बाधाएँ।
  • कल्मष नाशिनि: पापों और अशुद्धियों का नाश करने वाली।
  • कामिनि: कृपा और करुणा की मूर्ति।
    अर्थ: हे देवी, आप कलियुग के दोषों और पापों का नाश करने वाली हैं।

वैदिक रूपिणि वेदमये

  • वैदिक रूपिणि: वैदिक परंपरा में वर्णित दिव्य स्वरूप वाली।
  • वेदमये: वेदों में समाहित।
    अर्थ: आपका स्वरूप वैदिक है और आप वेदों की समस्त ऊर्जा का प्रतीक हैं।

क्षीर समुद्भव मङ्गल रूपिणि

  • क्षीर समुद्भव: समुद्र मंथन से प्रकट होने वाली।
  • मङ्गल रूपिणि: शुभ और कल्याणकारी स्वरूप वाली।
    अर्थ: आप समुद्र मंथन से उत्पन्न हुईं और आपका स्वरूप शुभता और मंगल का प्रतीक है।

मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते

  • मन्त्रनिवासिनि: मंत्रों में निवास करने वाली।
  • मन्त्रनुते: मंत्रों द्वारा स्तुति की जाने वाली।
    अर्थ: आप पवित्र मंत्रों में निवास करती हैं और उनकी शक्ति से आपकी स्तुति की जाती है।

मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि

  • मङ्गलदायिनि: शुभता और समृद्धि प्रदान करने वाली।
  • अम्बुजवासिनि: कमल पर निवास करने वाली।
    अर्थ: आप शुभता की स्रोत और कमल पर निवास करने वाली हैं।

देवगणाश्रित पादयुते

  • देवगणाश्रित: जिनके चरणों में देवता शरण लेते हैं।
  • पादयुते: चरणों की सेवा में लगे हुए।
    अर्थ: देवता आपके चरणों में श्रद्धापूर्वक आश्रय लेते हैं।

जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धान्यलक्ष्मि सदापालय माम्

  • जय जयहे: आपकी जय हो।
  • मधुसूदन कामिनि: भगवान विष्णु की प्रिय।
  • धान्यलक्ष्मि: अन्न और धन की देवी।
  • सदापालय माम्: सदा मेरी रक्षा करें।
    अर्थ: हे विष्णु की प्रिय धान्यलक्ष्मी, आपकी जय हो। कृपया सदा मेरी रक्षा करें।

यह श्लोक धान्यलक्ष्मी की महिमा का वर्णन करता है। वे कलियुग के दोषों को नष्ट करने वाली, शुभता और समृद्धि देने वाली, तथा वैदिक ज्ञान की प्रतीक हैं। उनकी कृपा से भक्तों को अन्न, धन, और पवित्रता प्राप्त होती है। श्लोक में प्रार्थना की गई है कि वे सदैव भक्तों की रक्षा करें और उन्हें शांति व समृद्धि प्रदान करें।

धैर्यलक्ष्मि
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि, मन्त्र स्वरूपिणि मन्त्रमये [जयवरवर्णिनि]
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचनि, साधु जनाश्रित पादयुते
जय जयहे मधु सूधन कामिनि, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥ 3

व्याख्या और अर्थ:

जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि

  • जयवरवर्षिणि: सर्वोत्तम विजय और वरदानों की वर्षा करने वाली।
  • वैष्णवि: भगवान विष्णु की शक्ति।
  • भार्गवि: भृगु ऋषि की वंशज, या उनसे संबंधित।
    अर्थ: हे देवी, आप वरदानों की वर्षा करती हैं, विष्णु की शक्ति हैं, और ऋषि भृगु से जुड़ी हैं।

मन्त्र स्वरूपिणि मन्त्रमये

  • मन्त्र स्वरूपिणि: जो स्वयं मंत्र का स्वरूप हैं।
  • मन्त्रमये: जो मंत्रों से व्याप्त हैं।
    अर्थ: आप स्वयं मंत्रों की शक्ति की मूर्ति हैं और उनमें निवास करती हैं।

सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद

  • सुरगण पूजित: देवताओं द्वारा पूजित।
  • शीघ्र फलप्रद: शीघ्र ही फल प्रदान करने वाली।
    अर्थ: देवता आपकी पूजा करते हैं, और आप शीघ्र ही अपने भक्तों को फल प्रदान करती हैं।

ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते

  • ज्ञान विकासिनि: ज्ञान को बढ़ाने वाली।
  • शास्त्रनुते: शास्त्रों में जिनकी स्तुति की गई है।
    अर्थ: आप ज्ञान का विकास करती हैं और शास्त्रों में आपकी स्तुति की गई है।

भवभयहारिणि पापविमोचनि

  • भवभयहारिणि: संसार के भय को हरने वाली।
  • पापविमोचनि: पापों से मुक्त करने वाली।
    अर्थ: आप संसार के दुखों और भय को हरती हैं और पापों से मुक्ति प्रदान करती हैं।

साधु जनाश्रित पादयुते

  • साधु जनाश्रित: संत और भक्त जिनके चरणों में शरण लेते हैं।
  • पादयुते: चरणों की सेवा करने वाले।
    अर्थ: संत और भक्त आपके चरणों में शरण लेते हैं और आपकी सेवा करते हैं।

जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम्

  • जय जयहे: आपकी जय हो।
  • मधुसूदन कामिनि: भगवान विष्णु की प्रिय।
  • धैर्यलक्ष्मी: धैर्य और सहनशीलता की देवी।
  • परिपालय माम्: मेरी रक्षा करें।
    अर्थ: हे विष्णु की प्रिय धैर्यलक्ष्मी, आपकी जय हो। कृपया मेरी रक्षा करें।

यह श्लोक धैर्यलक्ष्मी की महिमा का वर्णन करता है। वे धैर्य, ज्ञान, और सहनशीलता की प्रतीक हैं। उनकी पूजा से संसार के भय, पाप, और दुखों का नाश होता है। वे भक्तों को शीघ्र फल देती हैं और उन्हें शांति, धैर्य, और सफलता प्रदान करती हैं। श्लोक में प्रार्थना की गई है कि वे भक्तों की सदा रक्षा करें।

गजलक्ष्मि
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये
रधगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते ।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणि पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ॥ 4

व्याख्या और अर्थ:

जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि

  • जय जय: आपकी जय हो।
  • दुर्गति नाशिनि: कठिनाइयों और संकटों का नाश करने वाली।
  • कामिनि: कृपा और करुणा की मूर्ति।
    अर्थ: हे देवी, आपकी जय हो। आप भक्तों की दुर्गति और संकटों का नाश करती हैं।

सर्वफलप्रद शास्त्रमये

  • सर्वफलप्रद: सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली।
  • शास्त्रमये: शास्त्रों में वर्णित और उनकी सार शक्ति से युक्त।
    अर्थ: आप सभी को इच्छित फल प्रदान करती हैं और शास्त्रों में आपकी महिमा गाई गई है।

रथगज तुरगपदाति समावृत

  • रथगज: रथ और हाथियों से घिरी हुई।
  • तुरगपदाति: घोड़ों और पैदल सैनिकों से सुसज्जित।
    अर्थ: आप रथ, हाथियों, घोड़ों, और पैदल सैनिकों से घिरी हुई दिव्य सेना के साथ विराजमान हैं।

परिजन मण्डित लोकनुते

  • परिजन मण्डित: अपने अनुचरों और सेवकों से सुसज्जित।
  • लोकनुते: संसार के लोगों द्वारा प्रशंसित।
    अर्थ: आप अपने सेवकों और भक्तों से घिरी रहती हैं और संसार भर में आपकी स्तुति होती है।

हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित

  • हरिहर ब्रह्म: शिव, विष्णु और ब्रह्मा।
  • सुपूजित सेवित: जिनकी पूजा और सेवा तीनों देवताओं द्वारा की जाती है।
    अर्थ: आप त्रिदेवों—शिव, विष्णु और ब्रह्मा—द्वारा पूजित हैं।

ताप निवारिणि पादयुते

  • ताप निवारिणि: कष्टों और दुखों को हरने वाली।
  • पादयुते: चरणों की सेवा करने वाले भक्तों को आशीर्वाद देने वाली।
    अर्थ: आप भक्तों के दुखों को दूर करती हैं और चरण सेवा करने वालों को सुख प्रदान करती हैं।

जय जयहे मधुसूदन कामिनि, गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम्

  • जय जयहे: आपकी जय हो।
  • मधुसूदन कामिनि: भगवान विष्णु की प्रिय।
  • गजलक्ष्मी रूपेण: गजलक्ष्मी के स्वरूप में।
  • पालय माम्: मेरी रक्षा करें।
    अर्थ: हे विष्णु की प्रिय गजलक्ष्मी, आपकी जय हो। कृपया अपने गजलक्ष्मी रूप में मेरी रक्षा करें।

यह श्लोक देवी गजलक्ष्मी की महिमा को व्यक्त करता है। वे संकटों का नाश करती हैं, भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करती हैं, और दुखों को दूर करती हैं। उनकी पूजा त्रिदेव भी करते हैं। वे अपने अनुचरों और सेवकों से सुसज्जित होकर भक्तों को कृपा प्रदान करती हैं। श्लोक में प्रार्थना की गई है कि वे अपने गजलक्ष्मी स्वरूप में भक्तों की रक्षा करें और उन्हें सुख, समृद्धि, और विजय प्रदान करें।

सन्तानलक्ष्मि
अयिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि, रागविवर्धिनि ज्ञानमये
गुणगणवारधि लोकहितैषिणि, स्वरसप्त भूषित गाननुते । [सप्तस्वर]
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, सन्तानलक्ष्मी त्वं पालय माम् ॥ 5 ॥

व्याख्या और अर्थ:

अयिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि

  • अयिखग वाहिनि: पक्षी (गरुड़) पर सवार।
  • मोहिनि: मोहिनी रूप धारण करने वाली।
  • चक्रिणि: चक्र धारण करने वाली।
    अर्थ: हे देवी, आप गरुड़ पर सवार हैं, मोहिनी रूप में हैं, और चक्र धारण करती हैं।

रागविवर्धिनि ज्ञानमये

  • रागविवर्धिनि: प्रेम और सौहार्द बढ़ाने वाली।
  • ज्ञानमये: ज्ञान से परिपूर्ण।
    अर्थ: आप प्रेम और स्नेह बढ़ाती हैं और ज्ञान का प्रकाश फैलाती हैं।

गुणगणवारधि लोकहितैषिणि

  • गुणगणवारधि: गुणों की असीमित धारा।
  • लोकहितैषिणि: सभी का भला चाहने वाली।
    अर्थ: आप गुणों की स्रोत हैं और सदा लोक कल्याण में रत रहती हैं।

स्वरसप्त भूषित गाननुते

  • स्वरसप्त: सात सुरों से युक्त।
  • भूषित: अलंकृत।
  • गाननुते: गीतों के माध्यम से स्तुति की जाने वाली।
    अर्थ: आप सात सुरों से सजे गीतों द्वारा स्तुति की जाती हैं।

सकल सुरासुर देव मुनीश्वर

  • सकल सुरासुर: सभी देवता और दानव।
  • देव मुनीश्वर: ऋषि-मुनि।
    अर्थ: सभी देवता, दानव, और ऋषि-मुनि आपकी पूजा करते हैं।

मानव वन्दित पादयुते

  • मानव वन्दित: मनुष्यों द्वारा पूजित।
  • पादयुते: चरणों की सेवा करने वाले।
    अर्थ: मनुष्य आपके चरणों में श्रद्धा से वंदना करते हैं।

जय जयहे मधुसूदन कामिनि, सन्तानलक्ष्मी त्वं पालय माम्

  • जय जयहे: आपकी जय हो।
  • मधुसूदन कामिनि: भगवान विष्णु की प्रिय।
  • सन्तानलक्ष्मी: संतान की देवी।
  • त्वं पालय माम्: मेरी रक्षा करें।
    अर्थ: हे विष्णु की प्रिय सन्तानलक्ष्मी, आपकी जय हो। कृपया मेरी रक्षा करें और मुझे संतानों का सुख प्रदान करें।

यह श्लोक देवी सन्तानलक्ष्मी की महिमा को व्यक्त करता है। वे गरुड़ पर सवार, ज्ञान और प्रेम की मूर्ति, और सभी जीवों के कल्याण की प्रतीक हैं। उनकी कृपा से भक्तों को संतान सुख, परिवार में प्रेम, और जीवन में शांति प्राप्त होती है। श्लोक में प्रार्थना की गई है कि वे भक्तों की रक्षा करें और संतान व परिवार का कल्याण करें।

विजयलक्ष्मि
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि, ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर, भूषित वासित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शङ्करदेशिक मान्यपदे
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विजयलक्ष्मी सदा पालय माम्॥ 6 ॥

व्याख्या और अर्थ:

जय कमलासिनि सद्गति दायिनि

  • जय कमलासिनि: कमल पर विराजमान देवी, लक्ष्मी।
  • सद्गति दायिनि: सद्गति और मोक्ष प्रदान करने वाली।
    अर्थ: हे देवी, जो कमल पर विराजमान हैं और अपने भक्तों को सद्गति प्रदान करती हैं, आपकी जय हो।

ज्ञानविकासिनि गानमये

  • ज्ञानविकासिनि: ज्ञान का विकास करने वाली।
  • गानमये: संगीत और स्तुति से युक्त।
    अर्थ: आप ज्ञान का प्रसार करती हैं और संगीत एवं स्तुति द्वारा आपकी पूजा होती है।

अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर

  • अनुदिन मर्चित: प्रतिदिन पूजा की जाने वाली।
  • कुङ्कुम धूसर: कुमकुम से सुसज्जित।
    अर्थ: आप प्रतिदिन भक्तों द्वारा कुमकुम और पूजा के अन्य सामग्रियों से अर्चित होती हैं।

भूषित वासित वाद्यनुते

  • भूषित: सुंदर आभूषणों से सुसज्जित।
  • वासित: सुगंधित।
  • वाद्यनुते: वाद्य यंत्रों के माध्यम से स्तुति की जाने वाली।
    अर्थ: आप सुंदर आभूषणों से सजी हैं, सुगंधित हैं, और वाद्य यंत्रों के माध्यम से आपकी स्तुति की जाती है।

कनकधरास्तुति वैभव वन्दित

  • कनकधरा स्तुति: स्वर्ण वर्षा की स्तुति के लिए विख्यात।
  • वैभव वन्दित: वैभव और ऐश्वर्य से वंदित।
    अर्थ: आपका वैभव अद्वितीय है, और कनकधारा स्तुति के रूप में आपकी महिमा का गान किया गया है।

शङ्करदेशिक मान्यपदे

  • शङ्करदेशिक: शंकराचार्य द्वारा आदृत।
  • मान्यपदे: पूजनीय चरणों वाली।
    अर्थ: आप शंकराचार्य द्वारा सम्मानित और पूजनीय हैं।

जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विजयलक्ष्मी सदा पालय माम्

  • जय जयहे: आपकी जय हो।
  • मधुसूदन कामिनि: भगवान विष्णु की प्रिय।
  • विजयलक्ष्मी: विजय की देवी।
  • सदा पालय माम्: सदा मेरी रक्षा करें।
    अर्थ: हे विष्णु की प्रिय विजयलक्ष्मी, आपकी जय हो। कृपया सदा मेरी रक्षा करें और मुझे विजय प्रदान करें।

यह श्लोक देवी विजयलक्ष्मी की महिमा का वर्णन करता है। वे भक्तों को विजय, ज्ञान और समृद्धि प्रदान करती हैं। उनकी पूजा प्रतिदिन कुमकुम, संगीत और वाद्य यंत्रों द्वारा की जाती है। वे शंकराचार्य द्वारा सम्मानित हैं और कनकधारा स्तुति के माध्यम से उनके वैभव का वर्णन किया गया है। श्लोक में प्रार्थना की गई है कि वे भक्तों की सदा रक्षा करें और उन्हें सफलता और विजय प्रदान करें।

विद्यालक्ष्मि
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि, शोकविनाशिनि रत्नमये
मणिमय भूषित कर्णविभूषण, शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि, कामित फलप्रद हस्तयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥ 7

व्याख्या और अर्थ:

प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि

  • प्रणत सुरेश्वरि: देवताओं द्वारा प्रणम्य।
  • भारति: वाणी और विद्या की देवी सरस्वती।
  • भार्गवि: भृगु ऋषि के वंश से संबंधित।
    अर्थ: हे देवी, आप देवताओं द्वारा प्रणाम की जाती हैं, विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री हैं, और भृगु वंश की गौरव हैं।

शोकविनाशिनि रत्नमये

  • शोकविनाशिनि: दुख और शोक का नाश करने वाली।
  • रत्नमये: रत्नों से शोभित।
    अर्थ: आप अपने भक्तों के दुखों का नाश करती हैं और दिव्य रत्नों से सुसज्जित हैं।

मणिमय भूषित कर्णविभूषण

  • मणिमय भूषित: रत्नों से सुसज्जित।
  • कर्णविभूषण: कानों में दिव्य आभूषण धारण करने वाली।
    अर्थ: आपके कान रत्नजड़ित आभूषणों से शोभायमान हैं।

शान्ति समावृत हास्यमुखे

  • शान्ति समावृत: शांति से परिपूर्ण।
  • हास्यमुखे: मुस्कान से आलोकित मुख।
    अर्थ: आपका मुख शांति और मधुर मुस्कान से परिपूर्ण है।

नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि

  • नवनिधि दायिनि: नौ प्रकार की निधियों (धन-संपत्ति) को प्रदान करने वाली।
  • कलिमलहारिणि: कलियुग के दोषों को नष्ट करने वाली।
    अर्थ: आप नौ प्रकार की निधियों की दाता हैं और कलियुग के पापों का हरण करती हैं।

कामित फलप्रद हस्तयुते

  • कामित फलप्रद: इच्छित फल प्रदान करने वाली।
  • हस्तयुते: जिनके हाथों में वरदान देने की शक्ति है।
    अर्थ: आपके हाथों में भक्तों को इच्छित फल प्रदान करने की अद्भुत शक्ति है।

जय जयहे मधुसूदन कामिनि, विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम्

  • जय जयहे: आपकी जय हो।
  • मधुसूदन कामिनि: भगवान विष्णु की प्रिय।
  • विद्यालक्ष्मी: विद्या और ज्ञान की देवी।
  • सदा पालय माम्: सदा मेरी रक्षा करें।
    अर्थ: हे विष्णु की प्रिय विद्यालक्ष्मी, आपकी जय हो। कृपया सदा मेरी रक्षा करें और मुझे ज्ञान व विद्या का आशीर्वाद दें।

यह श्लोक देवी विद्यालक्ष्मी की महिमा का वर्णन करता है। वे विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं। वे शांति और मधुरता की प्रतीक हैं, भक्तों के दुखों का नाश करती हैं, और इच्छित फल प्रदान करती हैं। उनकी कृपा से कलियुग के दोष दूर होते हैं और नवनिधियों की प्राप्ति होती है। श्लोक में प्रार्थना की गई है कि देवी विद्यालक्ष्मी सदा भक्तों की रक्षा करें और ज्ञान का प्रकाश फैलाएं।

धनलक्ष्मि
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमि, दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम, शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पूराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते
जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धनलक्ष्मि रूपेणा पालय माम् ॥ 8

व्याख्या और अर्थ:

धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमि, दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये

  • धिमिधिमि धिन्धिमि: नगाड़ों और वाद्य यंत्रों की गूंज।
  • दुन्धुभि नाद: दुंदुभी (विशेष ढोल) की आवाज।
  • सुपूर्णमये: ध्वनि से परिपूर्ण।
    अर्थ: हे देवी, आपके दिव्य प्रकट होने पर नगाड़ों और दुंदुभी की मधुर गूंज वातावरण को भर देती है।

घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम, शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते

  • घुमघुम घुङ्घुम: शंख और अन्य वाद्य यंत्रों की ध्वनि।
  • शङ्ख निनाद: शंख की पवित्र गूंज।
  • सुवाद्यनुते: दिव्य वाद्य यंत्रों द्वारा स्तुति।
    अर्थ: शंख और वाद्य यंत्रों की दिव्य ध्वनि आपके आगमन पर स्तुति के रूप में गूंजती है।

वेद पूराणेतिहास सुपूजित

  • वेद पूराणेतिहास: वेद, पुराण और इतिहास में वर्णित।
  • सुपूजित: पूजनीय।
    अर्थ: आप वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में वर्णित और पूजनीय हैं।

वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते

  • वैदिक मार्ग: वैदिक धर्म और नीति का मार्ग।
  • प्रदर्शयुते: प्रदर्शित और निर्देशित करने वाली।
    अर्थ: आप वैदिक धर्म और नीति का मार्ग दिखाती हैं और धर्म के पालन का संदेश देती हैं।

जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धनलक्ष्मि रूपेणा पालय माम्

  • जय जयहे: आपकी जय हो।
  • मधुसूदन कामिनि: भगवान विष्णु की प्रिय।
  • धनलक्ष्मि: धन और ऐश्वर्य की देवी।
  • पालय माम्: मेरी रक्षा करें।
    अर्थ: हे विष्णु की प्रिय धनलक्ष्मी, आपकी जय हो। कृपया मेरी रक्षा करें और मुझे धन और ऐश्वर्य प्रदान करें।

यह श्लोक देवी धनलक्ष्मी की महिमा का वर्णन करता है। वे धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की देवी हैं। उनके आगमन पर वाद्य यंत्रों, शंख और नगाड़ों की दिव्य गूंज होती है। वेद, पुराण और इतिहास में उनकी महिमा का उल्लेख है। वे वैदिक धर्म का मार्ग दिखाती हैं और अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं। श्लोक में प्रार्थना की गई है कि देवी धनलक्ष्मी भक्तों की रक्षा करें और उन्हें धन-समृद्धि का आशीर्वाद दें।

फलशृति
श्लो॥ अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विष्णुवक्षः स्थला रूढे भक्त मोक्ष प्रदायिनि ॥

श्लो॥ शङ्ख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलं शुभ मङ्गलम् ॥

व्याख्या और अर्थ:

  • अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं: हे अष्टलक्ष्मी, आपको नमन है।
  • वरदे कामरूपिणि: आप वरदान देने वाली और सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली हैं।
  • विष्णुवक्षः स्थला रूढे: आप भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर विराजित हैं।
  • भक्त मोक्ष प्रदायिनि: आप अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करती हैं।

अर्थ: अष्टलक्ष्मी को नमन है, जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं, भगवान विष्णु के हृदय में निवास करती हैं और भक्तों को मोक्ष का आशीर्वाद देती हैं।

व्याख्या और अर्थ:

  • शङ्ख चक्रगदाहस्ते: जिनके हाथों में शंख, चक्र और गदा हैं।
  • विश्वरूपिणि: जो पूरे ब्रह्मांड का रूप धारण करती हैं।
  • जयः: आपकी जय हो।
  • जगन्मात्रे: जो संपूर्ण सृष्टि की माता हैं।
  • मोहिन्यै: मोहिनी रूप धारण करने वाली।
  • मङ्गलं शुभ मङ्गलम्: आपके लिए शुभता और कल्याण हो।

अर्थ: हे देवी, जिनके हाथों में शंख, चक्र और गदा हैं, जो ब्रह्मांड के हर रूप में विद्यमान हैं, आपकी जय हो। आप जगत की माता और कल्याणकारी हैं। आपके लिए शुभ और मंगल कामनाएं हैं।

यह फलश्रुति देवी अष्टलक्ष्मी की स्तुति का समापन करती है और उनके भक्तों को उनके अनुग्रह का अनुभव करने का आश्वासन देती है। इसका पाठ करने से भक्तों को धन, ऐश्वर्य, शांति, मोक्ष और सभी इच्छाओं की पूर्ति का वरदान प्राप्त होता है। देवी की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति होती है।

मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ अत्यंत प्रभावी और लाभकारी माना जाता है। दीपावली के दिन विशेष रूप से इस स्तोत्र का पाठ करके हम मां लक्ष्मी से आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं और जीवन में समृद्धि, सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति कर सकते हैं। साथ ही, यह स्तोत्र हमें न केवल धन की प्राप्ति के लिए बल्कि मानसिक शांति और जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए भी मदद करता है।

इसलिए, दीपावली पर इस स्तोत्र का पाठ करना और मां लक्ष्मी की पूजा करना निश्चित रूप से एक शुभ अवसर है, जो आपके जीवन को समृद्ध बना सकता है।

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