सप्तश्लोकी दुर्गा, दुर्गा सप्तशती का एक संक्षिप्त रूप है, जिसमें माता दुर्गा की स्तुति के सात श्लोक होते हैं। यह सात श्लोक भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने के लिए और संकटों से रक्षा के लिए पाठ किये जाते हैं।
यह देवी महात्म्य का एक छोटा संस्करण है जो मार्कण्डेय पुराण में पाया जाता है। इसे पढ़ने या जप करने से भक्तों को दुर्गा माँ की कृपा प्राप्त होती है और उनके सभी दुख और संकट दूर होते हैं।
॥ अथ सप्तश्लोकी दुर्गा ॥
शिव उवाच:
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥
देव्युवाच:
शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ॥
विनियोग:
ॐ अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः ।
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥2॥
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥3॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ॥5॥
रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा
तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम् ॥7॥
॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम् ॥
सप्तश्लोकी दुर्गा की अर्थ सहित व्याख्या
शिव उवाच:
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥
सप्तश्लोकी दुर्गा के प्रारंभिक दो श्लोकों में भगवान शिव और देवी दुर्गा के बीच एक संवाद प्रस्तुत किया गया है। आइए इन श्लोकों की अर्थ सहित व्याख्या करते हैं:
पहला श्लोक (शिव उवाच):
श्लोक: देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी । कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥
अर्थ: भगवान शिव कहते हैं, “हे देवी! तुम भक्तों के लिए सुलभ हो और सभी कार्यों को सिद्ध करने वाली हो। कलियुग में सभी कार्यों की सिद्धि के लिए कृपया कोई उपाय बताओ।”
इस श्लोक में भगवान शिव देवी दुर्गा की स्तुति करते हुए उनसे अनुरोध कर रहे हैं कि वे कलियुग के दौरान भक्तों के कल्याण और कार्य सिद्धि के लिए कोई सरल और प्रभावी उपाय प्रदान करें।
देव्युवाच:
शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ॥
अर्थ: देवी दुर्गा उत्तर देती हैं, “हे देव (शिव)! सुनो, मैं आपको कलियुग में सभी इच्छाओं की साधना (पूर्ति) के लिए विधि बताऊंगी। मेरे प्रति आपके स्नेह के कारण ही यह अम्बा (माँ) की स्तुति प्रकट की जाएगी।”
इस श्लोक में देवी दुर्गा भगवान शिव के अनुरोध का उत्तर देती हैं और कहती हैं कि वे उन्हें और सभी भक्तों को कलियुग में सभी इच्छाओं की पूर्ति का उपाय बताएंगी। यहाँ देवी अपने भक्तों के प्रति अपने स्नेह को प्रकट करती हैं और उनकी सहायता करने के लिए तत्पर होती हैं।
ये श्लोक भक्ति और शक्ति के बीच के अटूट संबंध को दर्शाते हैं, जहां देवी दुर्गा अपने भक्तों की सहायता के लिए सदैव उपस्थित रहती हैं।
विनियोग:
ॐ अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः ।
विनियोग का भाग एक प्रार्थना या संकल्प होता है जिसे किसी भी स्तोत्र, मंत्र या अनुष्ठान के प्रारंभ में पढ़ा जाता है। इसका उद्देश्य यह स्पष्ट करना होता है कि यह पाठ या अनुष्ठान किस उद्देश्य से, किसके लिए और किस विधि से किया जा रहा है। यहाँ दिए गए विनियोग की व्याख्या निम्नलिखित है:
विनियोग का श्लोक:
श्लोक: ॐ अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः ।
विनियोग का अर्थ:
- ॐ अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य: इस सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम के मंत्र का,
- नारायण ऋषिः: ऋषि नारायण हैं,
- अनुष्टुप छन्दः: इसकी छंद अनुष्टुप है,
- श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः: इस स्तोत्र के देवता श्री महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती हैं,
- श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं: यह सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ श्री दुर्गा की प्रीति के लिए किया जा रहा है,
- सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः: इस सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ के लिए विनियोग (समर्पण) किया जाता है।
इस विनियोग में, ऋषि, छंद, देवता और पाठ के उद्देश्य का वर्णन किया गया है। यह भक्तों को इस बात का संकेत देता है कि वे जिस पाठ को कर रहे हैं, वह श्री दुर्गा की प्रीति और उनके आशीर्वाद के लिए किया जा रहा है, और इसमें तीन प्रमुख देवियों – महाकाली, महालक्ष्मी, और महासरस्वती की शक्तियों का आह्वान किया जाता है। अनुष्टुप छंद इस पाठ की रचनात्मक लय और गति को दर्शाता है, जो पाठ को और भी अधिक प्रभावशाली और सुगम बनाता है।
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥
यह श्लोक सप्तश्लोकी दुर्गा का पहला श्लोक है जिसमें माँ दुर्गा की महामाया की शक्ति का वर्णन किया गया है। इसकी व्याख्या निम्नलिखित है:
श्लोक:
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा । बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥
व्याख्या:
- ॐ: प्रारंभिक ध्वनि जो सृष्टि के आदि से जुड़ी है और एक पवित्र प्रतीक है।
- ज्ञानिनामपि चेतांसि: यहाँ बताया गया है कि देवी महामाया की शक्ति इतनी अद्भुत है कि वे ज्ञानी लोगों के मन को भी आकर्षित कर लेती हैं।
- देवी भगवती हिसा: देवी भगवती, जो हिंसा (शक्ति) का स्वरूप हैं। यहाँ हिंसा शब्द का अर्थ शक्ति से है, जो दुर्गा की विशेषता है।
- बलादाकृष्य मोहाय: वे अपनी शक्ति से सभी को आकर्षित करती हैं और मोहित कर देती हैं।
- महामाया प्रयच्छति: महामाया अपनी माया के माध्यम से सभी को वश में कर लेती हैं।
इस श्लोक में, माँ दुर्गा को महामाया के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिनकी शक्ति इतनी विशाल है कि वे ज्ञानी लोगों के मन को भी अपने मोह में बाँध सकती हैं। यह उनकी अद्भुत शक्ति और प्रभाव को दर्शाता है। भक्त इस श्लोक का पाठ करके माँ दुर्गा की उस महामाया की शक्ति का स्मरण करते हैं जो समस्त जगत को नियंत्रित करती है।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥2॥
यह श्लोक सप्तश्लोकी दुर्गा का दूसरा श्लोक है, जिसमें माँ दुर्गा की भक्तों के प्रति करुणा और उनके जीवन में लाभकारी प्रभावों की स्तुति की गई है। आइए इस श्लोक की व्याख्या करते हैं:
श्लोक:
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि । दारिद्र्यदुःखभयहारिणि त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥2॥
व्याख्या:
- दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः: हे दुर्गे! जब तुम्हें स्मरण किया जाता है, तो तुम सभी प्राणियों के असीमित भय को हर लेती हो। यहाँ पर “दुर्गे” देवी दुर्गा को संबोधित किया गया है, जो भक्तों के डर और चिंताओं को दूर करती हैं।
- स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि: जब भक्त स्वस्थ मन से तुम्हारा स्मरण करते हैं, तब तुम उन्हें अत्यंत शुभ और सकारात्मक बुद्धि प्रदान करती हो। यह भाग दर्शाता है कि देवी दुर्गा की भक्ति और स्मरण से भक्तों की बुद्धि शुद्ध और सकारात्मक हो जाती है।
- दारिद्र्यदुःखभयहारिणि त्वदन्या: तुम दारिद्र्य, दुःख और भय को दूर करने वाली हो, तुम्हारे समान अन्य कोई नहीं है। यहाँ देवी दुर्गा को ऐसी शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है जो दुःख, दरिद्रता, और भय को हरने की क्षमता रखती हैं।
- सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता: तुम हमेशा सभी का उपकार करने के लिए तैयार रहती हो, तुम्हारा हृदय सदैव करुणा से भरा रहता है। इस भाग में देवी की करुणामयी प्रकृति का वर्णन किया गया है जो हमेशा भक्तों के हित में काम करती हैं।
इस श्लोक में माँ दुर्गा की असीम करुणा, उनकी शक्ति और भक्तों के जीवन में उनके प्रभाव को दर्शाया गया है। भक्तों के डर, दुख, और चिंताओं को दूर करने में उनकी अद्वितीय भूमिका को रेखांकित किया गया है।
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥3॥
यह श्लोक सप्तश्लोकी दुर्गा का तीसरा श्लोक है, जो माँ दुर्गा की सर्वोच्च मंगलकारी शक्तियों की स्तुति करता है। आइए इस श्लोक की व्याख्या करें:
श्लोक:
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥3॥
व्याख्या:
- सर्वमंगलमंगल्ये: जो सभी मंगलों में सबसे अधिक मंगलकारी हैं, यानी कि जो सभी प्रकार के शुभ और कल्याणकारी कार्यों का स्रोत हैं।
- शिवे: शिव की संगिनी, शांति और कल्याण की प्रतीक। यहाँ शिव का अर्थ सिर्फ भगवान शिव नहीं है, बल्कि शुभ और कल्याणकारी शक्ति का प्रतीक है।
- सर्वार्थसाधिके: जो सभी प्रकार के अर्थों या लक्ष्यों को साधने में सक्षम हैं। यानी कि जो हर एक की इच्छाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने की शक्ति रखती हैं।
- शरण्ये: जो शरण देने वाली हैं, जिसके पास संकट के समय में शरण ली जा सकती है।
- त्र्यम्बके गौरि: त्र्यम्बक (भगवान शिव) की पत्नी गौरि, जो शुभ्रता और पवित्रता का प्रतीक हैं।
- नारायणि: नारायण (विष्णु) की शक्ति, जो सृष्टि के पालनहार हैं। यहाँ देवी को विष्णु की पार्श्वशक्ति के रूप में संबोधित किया गया है।
- नमोऽस्तुते: तुम्हारे प्रति नमन है, तुम्हारी स्तुति है।
इस श्लोक के माध्यम से, भक्त माँ दुर्गा के उन सभी रूपों की स्तुति करते हैं जो सर्वोच्च मंगलकारी, शांतिदायक, सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली, शरण देने वाली, और पवित्रता का प्रतीक हैं। यह श्लोक देवी की विविधता और उनके दिव्य गुणों को सामने लाता है।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥
ये श्लोक सप्तश्लोकी दुर्गा के चौथे और पांचवे श्लोक हैं, जिनमें माँ दुर्गा के परोपकारी और सर्वशक्तिमान स्वरूप की स्तुति की गई है। आइए इन श्लोकों की व्याख्या करते हैं:
चौथा श्लोक:
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे । सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥
व्याख्या:
- शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे: जो शरण में आए हुए दुःखी और पीड़ितों की रक्षा के लिए समर्पित हैं।
- सर्वस्यार्तिहरे: जो सभी के दुःख और पीड़ा को हरने वाली हैं।
- देवि नारायणि नमोऽस्तुते: हे देवी नारायणि, आपको नमन है।
इस श्लोक में माँ दुर्गा की उस दिव्य गुण की स्तुति की गई है जो शरण में आये भक्तों का संरक्षण करती हैं और उनके दुःख-दर्द को दूर करती हैं।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ॥5॥
यह श्लोक सप्तश्लोकी दुर्गा का पांचवा श्लोक है, जिसमें माँ दुर्गा की सर्वव्यापकता, सर्वोच्चता, और सर्वशक्तिमत्ता की स्तुति की गई है। इसमें भक्त माँ दुर्गा से सभी प्रकार के भय से रक्षा की प्रार्थना करते हैं।
श्लोक:
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते । भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ॥5॥
व्याख्या:
- सर्वस्वरूपे: जो सभी स्वरूपों में विद्यमान हैं, अर्थात् माँ दुर्गा हर एक चीज़ में मौजूद हैं।
- सर्वेशे: सभी की ईश्वरी, सभी की अधिपति।
- सर्वशक्तिसमन्विते: सभी शक्तियों से युक्त, यानी कि माँ दुर्गा के पास सभी शक्तियाँ हैं।
- भयेभ्यस्त्राहि नो देवि: हे देवी, हमें सभी प्रकार के भय से रक्षा करें।
- दुर्गे देवि नमोऽस्तुते: हे दुर्गा देवी, आपको नमन है।
इस श्लोक के माध्यम से, भक्त माँ दुर्गा की सर्वशक्तिमत्ता और सर्वोच्चता को स्वीकार करते हैं और उनसे जीवन के सभी भयों और चिंताओं से मुक्ति की कामना करते हैं। यह श्लोक भक्तों को यह विश्वास दिलाता है कि माँ दुर्गा की शरण में आकर वे सभी प्रकार के भय और संकटों से मुक्त हो सकते हैं।
रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा
तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥
यह श्लोक सप्तश्लोकी दुर्गा का छठा श्लोक है, जिसमें माँ दुर्गा की उनके भक्तों के प्रति कृपा और उन्हें प्रदान किए जाने वाले आशीर्वादों की स्तुति की गई है। आइए इस श्लोक की व्याख्या करें:
श्लोक:
रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् । त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥
व्याख्या:
- रोगानशोषानपहंसि तुष्टा: जब आप प्रसन्न होती हैं, तो आप रोगों और दुःखों को दूर कर देती हैं। यहाँ देवी दुर्गा की उस शक्ति का वर्णन किया गया है जिससे वे अपने भक्तों के रोग और दुःख को नष्ट कर देती हैं।
- रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्: जब आप रुष्ट होती हैं, तो सभी अनिष्ट (अनचाहे) कामनाएँ नष्ट हो जाती हैं। इस भाग में यह दर्शाया गया है कि देवी के असंतुष्ट होने पर भी उनकी शक्ति से अनचाहे और हानिकारक परिणाम दूर हो जाते हैं।
- त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां: जो आपकी शरण में आते हैं, उनका कभी भी विनाश नहीं होता। इस लाइन से पता चलता है कि जो लोग देवी दुर्गा की शरण में आते हैं, उनकी रक्षा हमेशा की जाती है।
- त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति: जो आपकी शरण लेते हैं, वे अन्य लोगों के लिए आश्रय बन जाते हैं। इस भाग में बताया गया है कि देवी दुर्गा की शरण में आये लोग खुद भी दूसरों के लिए सहारा और संरक्षण का स्रोत बन जाते हैं।
इस श्लोक के माध्यम से, माँ दुर्गा की वह दिव्य शक्ति और करुणा की स्तुति की गई है, जो भक्तों के रोगों और दुखों को दूर करती है, उनकी अनचाही कामनाओं को नष्ट करती है, और उन्हें एक सुरक्षित और सहायक आश्रय प्रदान करती है।
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम् ॥7॥
यह सप्तश्लोकी दुर्गा का सातवाँ और अंतिम श्लोक है, जो माँ दुर्गा की समस्त बाधाओं को दूर करने और दुष्टों के विनाश की शक्ति की स्तुति करता है। आइए इस श्लोक की व्याख्या करें:
श्लोक:
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि । एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम् ॥7॥
व्याख्या:
- सर्वाबाधाप्रशमनं: जो सभी प्रकार की बाधाओं का शमन करती हैं। यहाँ माँ दुर्गा की उस शक्ति का वर्णन किया गया है जो भक्तों के जीवन से सभी बाधाओं और विघ्नों को दूर करती है।
- त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि: तीनों लोकों की सर्वेश्वरी, अर्थात स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल की सम्पूर्ण अधिपति। यह देवी दुर्गा के सर्वोच्च स्वामिनी होने की बात को दर्शाता है।
- एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्: इसी तरह, आपको शत्रुओं का विनाश करने का कार्य करना चाहिए। यह भाग देवी से प्रार्थना करता है कि वे भक्तों के शत्रुओं का नाश करें और उन्हें सुरक्षित रखें।
इस अंतिम श्लोक के माध्यम से, भक्त माँ दुर्गा से जीवन की सभी बाधाओं और शत्रुओं से रक्षा की प्रार्थना करते हैं। यह श्लोक माँ दुर्गा की अपार शक्ति और करुणा को स्वीकार करता है, और उनसे संरक्षण और मार्गदर्शन की कामना करता है। सप्तश्लोकी दुर्गा का यह पाठ भक्तों को आत्मिक शक्ति, सुरक्षा, और सफलता प्रदान करने का एक साधन है।
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के फायदे
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ करने से विभिन्न आध्यात्मिक, मानसिक, और भौतिक लाभ होते हैं। यह पाठ माँ दुर्गा की असीम शक्तियों की स्तुति करता है और भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है। नीचे सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ के कुछ मुख्य फायदे दिए गए हैं:
- आंतरिक शांति और स्थिरता: इस पाठ के नियमित अभ्यास से मन की चंचलता कम होती है और आत्मा में गहरी शांति का अनुभव होता है।
- नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति: सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा और बुरी नजर से बचाता है, जिससे जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है।
- संकटों से रक्षा: माँ दुर्गा की कृपा से भक्तों के जीवन से संकट और बाधाएं दूर होती हैं, और उन्हें सुरक्षा का आभास होता है।
- मानसिक दृढ़ता और साहस: यह पाठ व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूत बनाता है और साहस एवं आत्मविश्वास प्रदान करता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ आध्यात्मिक जागरूकता और उन्नति में सहायक होता है, जिससे व्यक्ति का अध्यात्मिक मार्ग पर गहराई से चिंतन होता है।
- जीवन में सफलता और समृद्धि: माँ दुर्गा के आशीर्वाद से भक्तों के जीवन में सफलता, समृद्धि और खुशहाली आती है।
- रोगों से मुक्ति: इस पाठ में माँ दुर्गा से रोगों के निवारण की प्रार्थना की गई है, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- दैनिक जीवन में सकारात्मक ऊर्जा: सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ व्यक्ति के दैनिक जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह को बढ़ावा देता है।
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ करने से प्राप्त होने वाले ये फायदे न केवल भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करते हैं, बल्कि उनके जीवन को सकारात्मक दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
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Mahakali Stotra | महाकाली स्तोत्र
सप्तश्लोकी दुर्गा क्या है?
सप्तश्लोकी दुर्गा, दुर्गा सप्तशती का एक संक्षिप्त रूप है जिसमें देवी दुर्गा की स्तुति के सात श्लोक होते हैं। यह मार्कण्डेय पुराण में पाया जाता है और भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति और संकटों से रक्षा प्रदान करता है।
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ करने के क्या लाभ हैं?
सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ करने से देवी दुर्गा की कृपा मिलती है, जिससे सभी दुख और संकट दूर होते हैं। यह आध्यात्मिक शक्ति, संकटों से रक्षा और इच्छाओं की पूर्ति में सहायक होता है।
सप्तश्लोकी दुर्गा में विनियोग का क्या महत्व है?
सप्तश्लोकी दुर्गा में विनियोग, पाठ या अनुष्ठान के प्रारंभ में पढ़ी जाने वाली एक प्रार्थना है जो पाठ के उद्देश्य, देवता और विधि को स्पष्ट करती है, इसे देवी दुर्गा की प्रीति और उनके आशीर्वाद के लिए समर्पित करती है।
सप्तश्लोकी दुर्गा के अंतिम श्लोक का सार क्या है?
सप्तश्लोकी दुर्गा के अंतिम श्लोक में देवी दुर्गा की बाधाओं और शत्रुओं को दूर करने की शक्ति की स्तुति की गई है, उन्हें त्रैलोक्य की सर्वोच्च संरक्षक के रूप में प्रस्तुत करते हुए।
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