यं वैदिका मन्त्रदृशः पुराणा इन्द्र यमं मातररिश्वानमाहुः ।
वेदान्तिनो ऽनिर्वचनीयमेकं यं ब्रह्मशब्देन विनिर्दिशन्ति || १ ||
शैवा यमीशं शिव इत्यवोचन् यं वैष्णवा विष्णुरिति स्तुवन्ति ।
बुद्धस्तथाऽर्हन्निति बौद्धजैनाः सत्श्री अकालेति च सिक्ख संत ||२||
शास्तेति केचित् कतिचित् कुमारः स्वामीति मातेति पितेति भक्त्या ।
प्रार्थयन्ते जगदीशितारं यं स एक एव प्रभुरद्वितीयः ||३||
एकात्मता मंत्र का अर्थ
एकात्मता मंत्र एक गहरे आध्यात्मिक और एकीकरण के संदेश को प्रसारित करता है, जिसका उपयोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शाखाओं में किया जाता है। इस मंत्र के माध्यम से, यह संदेश दिया जाता है कि दिव्यता एक ही है, भले ही विभिन्न परंपराएँ और संस्कृतियाँ इसे अलग-अलग नामों और रूपों में पहचानती हों।
यह आध्यात्मिक एकता या अद्वैत (अद्वितीयता) के विचार को दर्शाता है, जिसमें यह माना जाता है कि समस्त चेतना एक ही अद्वितीय सत्ता से उत्पन्न होती है। यह विचार विशेष रूप से अद्वैत वेदांत में प्रमुख है, जिसके अनुसार ब्रह्मांड में सभी वस्तुएँ और जीव एक ही अंतर्निहित सत्ता या ब्रह्म से जुड़े हुए हैं।
यं वैदिका मन्त्रदृशः पुराणाः इन्द्रं यमं मातरिश्वानमाहुः।
वेदान्तिनो निर्वचनीयमेकम् यं ब्रह्म शब्देन विनिर्दिशन्ति॥
यह श्लोक वेदांत दर्शन की गहराई और विविधता को दर्शाता है। इसमें वेदांतिक दृष्टि से ब्रह्म के अवर्णनीय (निर्वचनीय) स्वरूप का वर्णन किया गया है। श्लोक का अर्थ है:
“वैदिक मंत्रों को देखने वाले पुराणिक ऋषि इंद्र, यम और मातरिश्वा को कहते हैं। वेदांती उसे एक अवर्णनीय ब्रह्म के रूप में ब्रह्म शब्द से व्यक्त करते हैं।”
इस श्लोक में, वेदिक मंत्रों के दर्शन और पुराणों में वर्णित देवताओं का उल्लेख किया गया है, जैसे कि इंद्र (देवताओं के राजा), यम (मृत्यु के देवता), और मातरिश्वा (वायु के देवता)। वेदांतिन, जो अद्वैत वेदांत के दार्शनिक हैं, इन सभी देवताओं और प्रतीकों के पीछे एक अव्यक्त, अनिर्वचनीय सत्ता को मानते हैं, जिसे वे ‘ब्रह्म’ कहते हैं। इस दृष्टिकोण में, ब्रह्म उस अंतिम सत्य को दर्शाता है जो सभी भेदों और नाम-रूपों से परे है, और जो समस्त सृष्टि का आधार है।
इस श्लोक के माध्यम से, वेदांत दर्शन की उस गहराई को उजागर किया गया है जो ब्रह्म को सभी प्रकार के देवी-देवताओं और आध्यात्मिक आकारों से परे एक अद्वितीय, निराकार और अनंत सत्ता के रूप में मानती है। यह श्लोक वेदांत के उस सिद्धांत को प्रकट करता है जिसमें एकत्व की भावना और सार्वभौमिक सत्य की खोज को महत्व दिया जाता है।
शैवायमीशं शिवइत्यवोचन् यं वैष्णवा विष्णुरिति स्तुवन्ति।
बुद्धस्तथार्हन्इति बौद्ध जैनाः सत्–श्री–अकालेति च सिक्खसन्तः॥
यह श्लोक भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में विविधता और एकता की सुंदर धारणा को प्रस्तुत करता है। इसमें विभिन्न धार्मिक परंपराओं द्वारा पूज्य ईश्वरीय स्वरूपों के नामों का उल्लेख किया गया है, जो अंततः उसी दिव्य सत्ता के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं।
इस श्लोक का अर्थ है:
“शैव (शिव के उपासक) उसे ईशान (शिव) कहते हैं और शिव के रूप में पूजते हैं, जबकि वैष्णव (विष्णु के उपासक) उसे विष्णु के रूप में स्तुति करते हैं। इसी प्रकार, बौद्ध उसे बुद्ध कहकर और जैन उसे अर्हन (तीर्थंकर) के रूप में पूजते हैं; और सिख उसे ‘सत् श्री अकाल’ के रूप में संबोधित करते हैं।”
इस श्लोक में विभिन्न धार्मिक परंपराओं का उल्लेख है जैसे कि हिंदू धर्म (शिव और विष्णु के रूप में), बौद्ध धर्म (बुद्ध के रूप में), जैन धर्म (तीर्थंकर या अर्हन के रूप में), और सिख धर्म (‘सत् श्री अकाल’ के रूप में)। यह श्लोक यह संदेश देता है कि भले ही विभिन्न धार्मिक परंपराएँ दिव्यता को अलग-अलग नामों और रूपों में पहचानती हैं, लेकिन वे सभी उसी एक दिव्य सत्ता की उपासना करते हैं।
यह श्लोक भारतीय आध्यात्मिकता के मूल सिद्धांतों में से एक, एकत्व के सिद्धांत को व्यक्त करता है, जिसमें विविधता में एकता की बात कही गई है। यह सभी जीवों और उनकी आध्यात्मिक खोजों के बीच एकता और समरसता का संदेश देता है।
शास्तेति केचित् कतिचित् कुमारः स्वामीति मातेति पितेति भक्त्या।
यं प्रार्थन्यन्ते जगदीशितारम् स एक एव प्रभुरद्वितीयः॥
यह श्लोक भी भारतीय आध्यात्मिक दर्शन की विशिष्ट विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें दिव्यता के विभिन्न नामों और रूपों के माध्यम से एकत्व की भावना को व्यक्त किया गया है।
इस श्लोक का अर्थ है:
“कुछ लोग उसे ‘शास्ता’ कहते हैं, कुछ ‘कुमार’ कहते हैं, अन्य उसे ‘स्वामी’, ‘माता’, ‘पिता’ के नाम से भक्ति भाव से पुकारते हैं। जिसे वे सभी जगदीश (विश्व के ईश्वर) के रूप में प्रार्थना करते हैं, वह एक ही प्रभु है, अद्वितीय।”
यह श्लोक दिव्यता के प्रति विभिन्न लोगों के भावनात्मक और व्यक्तिगत संबंधों को दर्शाता है। ‘शास्ता’, ‘कुमार’, ‘स्वामी’, ‘माता’, और ‘पिता’ जैसे विभिन्न नामों का उपयोग करके, यह स्पष्ट किया गया है कि लोग अपनी सांस्कृतिक और व्यक्तिगत पृष्ठभूमि के अनुसार दिव्यता को विभिन्न रूपों में देखते और संबोधित करते हैं।
इस श्लोक के माध्यम से, यह संदेश दिया गया है कि भले ही दिव्यता को अलग-अलग नामों और रूपों में पुकारा जाए, लेकिन अंततः वह एक ही है, अद्वितीय और अपरिवर्तनीय। यह विविधता में एकता के आध्यात्मिक सिद्धांत को प्रतिध्वनित करता है, जो विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं में समान रूप से स्वीकार किया गया है।
निष्कर्ष
यह मंत्र विविध धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं के बीच एकता की भावना को बढ़ावा देता है, और यह दिखाता है कि सभी धार्मिक परंपराएँ अंततः एक ही सत्य की ओर इशारा करती हैं। इस प्रकार, एकात्मता मंत्र न केवल आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और धार्मिक सहिष्णुता के महत्व को भी रेखांकित करता है।
इस मंत्र के माध्यम से, RSS अपने सदस्यों को यह सिखाने का प्रयास करता है कि सभी लोगों और धर्मों के प्रति सम्मान और एकता की भावना रखनी चाहिए, और यह कि सभी धार्मिक परंपराएँ एक ही उच्चतम सत्य की ओर इशारा करती हैं, जिसे अलग-अलग नामों और रूपों में व्यक्त किया जाता है।
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एकात्मता मंत्र क्या है?
एकात्मता मंत्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शाखाओं में प्रसारित एक गहरे आध्यात्मिक और एकीकरण का संदेश है। यह संदेश देता है कि दिव्यता एक ही है, भले ही विभिन्न परंपराएं और संस्कृतियां इसे विभिन्न नामों और रूपों में पहचानें। यह आध्यात्मिक एकता या अद्वैत के विचार को प्रदर्शित करता है, जिसमें यह माना जाता है कि समस्त चेतना एक ही अद्वितीय सत्ता से उत्पन्न होती है।
एकात्मता मंत्र का मूल संदेश क्या है?
एकात्मता मंत्र का मुख्य संदेश अद्वैत या अद्वितीयता का सिद्धांत है, जो जोर देता है कि समस्त अस्तित्व और प्राणी एक ही दिव्य स्रोत से जुड़े हुए हैं। यह ब्रह्मांड में उपस्थित विविधता के पीछे अंतर्निहित एकता को उजागर करता है।
एकात्मता मंत्र सामाजिक सद्भाव को कैसे बढ़ावा देता है?
एकात्मता मंत्र सामाजिक सद्भाव और धार्मिक सहिष्णुता को विविध धार्मिक परंपराओं के साझा आध्यात्मिक आधार को उजागर करके बढ़ावा देता है। यह दिखाता है कि सभी धर्म एक ही उच्चतम सत्य की ओर इशारा करते हैं, जिससे विभिन्न समुदायों के बीच समझ और सम्मान की भावना को मजबूत किया जा सकता है।
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