।। अथ श्री राम रक्षा स्तोत्रम।।
। श्री गणेशाय नमः।
अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः ।
श्री सीतारामचंद्रो देवता ।
अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः ।
श्रीमान हनुमान कीलकम ।
श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः ।
अथ ध्यानम्:
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,
पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम ।
वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,
रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम ॥
राम रक्षा स्तोत्रम्:
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ॥2॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥3॥
रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥
कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ॥8॥
जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः ॥9॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥
पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन ।
नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत ।
अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ॥16॥
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ॥20॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥
रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥
इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः ॥25॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं,
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं,
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ॥26॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥
श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम,
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम,
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥
श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि,
श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि,
श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥31॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ॥34॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥
रामो राजमणिः सदा विजयते,
रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता,
निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं,
रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः,
सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः ॥37॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
ति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
इस प्रकार बुधकौशिकद्वारा रचित श्रीराम रक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण होता है।
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥
श्री राम रक्षा स्तोत्र
श्री राम रक्षा स्तोत्र एक पारंपरिक हिन्दू प्रार्थना है जो भगवान राम की रक्षा और कृपा को आकर्षित करने के लिए पढ़ी जाती है। इसे आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित माना जाता है। इस स्तोत्र में भगवान राम के विविध दिव्य गुणों, उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और उनके चरित्र की महिमा का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र साधकों को मानसिक शांति, सुरक्षा और सफलता प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध है।
श्री राम रक्षा स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक लाभ होता है, बल्कि यह उन्हें भौतिक और मानसिक समस्याओं से रक्षा करने में भी सहायक माना जाता है। इसमें भगवान राम को उनके अनेक नामों और उपाधियों से पुकारा गया है, और उनसे अपने भक्तों की रक्षा करने का अनुरोध किया गया है।
इस स्तोत्र का पाठ करते समय विशेष ध्यान और भक्ति की आवश्यकता होती है। यह विश्वास है कि नियमित रूप से इसका पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं और उसे भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है।
श्री राम रक्षा स्तोत्र पढ़ने की विधि
श्री राम रक्षा स्तोत्र पढ़ने की विधि विशेष रूप से तैयार की गई है ताकि साधक इसके अधिकतम लाभ उठा सकें। निम्नलिखित चरणों का पालन करके आप इसे पढ़ने की विधि को समझ सकते हैं:
स्नान और स्वच्छता:
पाठ शुरू करने से पहले स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। यह मन और शरीर की पवित्रता सुनिश्चित करता है।
पूजा स्थल की तैयारी:
अपने पूजा स्थल को साफ करें और एक आसन पर बैठें। भगवान राम की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं।
संकल्प:
मन ही मन एक संकल्प लें कि आप यह स्तोत्र भगवान राम की आराधना और अपनी रक्षा के लिए पढ़ रहे हैं।
गणेश पूजा:
किसी भी पूजा या पाठ की शुरुआत में भगवान गणेश की उपासना करने का रिवाज है, ताकि सभी विघ्न दूर हों।
पाठ का आरंभ:
श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ शांत और एकाग्रचित्त होकर करें। पूरे मनोयोग से प्रत्येक श्लोक का उच्चारण करें।
ध्यान और मंत्र जप:
स्तोत्र पाठ के बाद, कुछ समय ध्यान में बिताएं और भगवान राम का मंत्र जपें, जैसे “श्री राम जय राम जय जय राम”।
आरती और प्रसाद:
पाठ के समापन पर भगवान राम की आरती गाएं और प्रसाद अर्पित करें।
प्रार्थना और समापन:
अंत में, भगवान राम से अपने और अपने परिवार की रक्षा, सुख-शांति, और समृद्धि की प्रार्थना करें। धन्यवाद के साथ पाठ का समापन करें।
इस प्रकार के विधि-विधान से श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से न केवल आपकी भक्ति में वृद्धि होगी बल्कि यह आपके जीवन में शांति और सकारात्मकता भी लाएगा।
।। अथ श्री राम रक्षा स्तोत्रम।।
श्री गणेशाय नमः।
ॐ अस्य श्री रामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि।
श्री सीतारामचन्द्रोदेवता
अनुष्टुप् छन्दः, सीताशक्ति
श्रीमद्हनुमान कीलकम् श्रीसीतरामचन्द्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।।
“।। अब श्री राम रक्षा स्तोत्रम।। प्रणाम है श्री गणेश को। इस श्री रामरक्षास्तोत्रमन्त्र के रचयिता हैं ऋषि बुधकौशिक। इसके देवता हैं श्री सीतारामचन्द्र, इसकी छन्द है अनुष्टुप्, शक्ति है सीता, इसके कीलक हैं श्रीमद्हनुमान, और यह जप श्री सीतारामचन्द्र की प्रीति के लिए किया जाता है।।”
यह श्लोक श्री राम रक्षा स्तोत्र की शुरुआत है, जो एक पवित्र और शक्तिशाली हिन्दू प्रार्थना है जिसे भगवान राम की रक्षा और कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है। इसमें ऋषि बुधकौशिक को इस स्तोत्र के रचयिता के रूप में पहचाना गया है, और इसकी देवता, छन्द, शक्ति, कीलक और जप के उद्देश्य का वर्णन किया गया है।
ध्यानम् –
ध्यायेदाजानुबाहं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं,
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ।
वामाङ्कारूढसीता मुखकमल्मिल्लोचनं नीरदाभं,
नानालङ्कारदीप्तं दधतमरुजटामण्डनं रामचन्द्रम्।।
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ।।1।।
ध्यानम् – “ध्यान करें उस आजानुबाहु (लंबी बाहों वाले) पर, जिन्होंने धनुष धारण किया है, जो कमल के आसन पर बैठे हैं, पीले वस्त्र पहने हुए हैं, नवीन कमल की पंखुड़ियों के समान प्रतिस्पर्धी नेत्रों वाले, प्रसन्न। वाम अंक में विराजमान सीता के साथ, उनके मुख कमल की तरह सुंदर नेत्रों वाले, मेघ के समान वर्ण वाले, विविध आभूषणों से दीप्तिमान, जटा मंडित रामचंद्र को। रघुनाथ की चरित्र को, जो शत कोटि विस्तार में फैला है, प्रत्येक अक्षर मनुष्यों के लिए महापापों का नाश करने वाला है।”
यह श्लोक श्री राम रक्षा स्तोत्र का हिस्सा है, जो भगवान राम के ध्यान और उनकी महिमा का वर्णन करता है। इसमें भगवान राम के रूप, गुण, और उनके साथ सीता माता की उपस्थिति का विवरण है। साथ ही, यह बताता है कि रामायण के प्रत्येक अक्षर में इतनी शक्ति है कि वह मनुष्यों के महापापों का नाश कर सकते हैं।
ध्यात्वा नीलोत्पल श्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जाता मुकुटमण्डितम् ।।2।।
“नीलोत्पल के समान श्यामल वर्ण के राम का ध्यान करो, जिनकी आँखें कमल के समान हैं। जानकी (सीता) और लक्ष्मण के साथ विराजमान, मुकुट से अलंकृत।”
यह श्लोक भी श्री राम रक्षा स्तोत्र से है और इसमें भगवान राम के दिव्य स्वरूप का ध्यान करने की बात कही गई है। इसमें राम के श्यामल वर्ण, कमल नयन, सीता और लक्ष्मण के साथ उनके सानिध्य, और उनके मुकुट धारण करने की विशेषताओं का वर्णन है।
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगन्नातुमाविर्भूतमजं विभुम् ।।3।।
“तूणीर, धनुष और बाणों से सुसज्जित, रात्रि में विचरण करने वालों का अंत करने वाले, स्वयं की लीला से जगत की रक्षा करने हेतु अवतरित हुए, अजन्मा और विभु (सर्वव्यापी)।”
यह श्लोक भगवान राम के दिव्य गुणों और कार्यों का वर्णन करता है। इसमें बताया गया है कि भगवान राम ने अपने तूणीर, धनुष और बाणों के साथ रात्रि में विचरण करने वाले राक्षसों का नाश किया। वे अजन्मा हैं और स्वयं की लीला से जगत की रक्षा करने के लिए अवतरित हुए हैं, जिससे उनकी दिव्यता और सर्वव्यापकता की झलक मिलती है।
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः।।4।।
“बुद्धिमान व्यक्ति रामरक्षा (राम रक्षा स्तोत्र) का पाठ करे, जो पापों को नष्ट करने वाली और सभी कामनाओं को पूरा करने वाली है। मेरे सिर की रक्षा राघव (राम) करें, मेरे भाल की रक्षा दशरथ के पुत्र (राम) करें।”
यह श्लोक राम रक्षा स्तोत्र के महत्व और उसके जाप से होने वाले लाभों को बताता है। यह कहता है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी कामनाएँ पूरी होती हैं। साथ ही, यह भगवान राम से व्यक्तिगत सुरक्षा की प्रार्थना भी करता है, जहाँ भक्त भगवान राम से अपने सिर और माथे की रक्षा की कामना करता है।
कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियःश्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ।।5।।
“कौसल्या के पुत्र (राम) मेरी आँखों की रक्षा करें, विश्वामित्र के प्रिय श्रुतियों (वेदों) की रक्षा करें। यज्ञों के रक्षक मेरी घ्राण शक्ति (नाक) की रक्षा करें, सौमित्रि (लक्ष्मण) के प्रिय मेरे मुख की रक्षा करें।”
इस श्लोक में भगवान राम से विभिन्न अंगों की रक्षा की प्रार्थना की गई है। यह व्यक्ति की आँखों, वेदों के ज्ञान (श्रुति), घ्राण शक्ति और मुख की रक्षा के लिए भगवान राम की कृपा का आह्वान करता है। यह भगवान राम के विभिन्न रूपों और उनके द्वारा किए गए विभिन्न कार्यों का भी संकेत देता है, जैसे कि उनका विश्वामित्र के प्रति प्रेम और लक्ष्मण के प्रति वात्सल्य।
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ।।6।।
“ज्ञान के भंडार (राम) मेरी जिह्वा (जीभ) की रक्षा करें, भरत द्वारा वंदित (पूजित) मेरे कंठ (गले) की रक्षा करें। दिव्य आयुध (शस्त्र) धारी मेरे स्कन्धों (कंधों) की रक्षा करें, शत्रुओं के धनुष को तोड़ने वाले मेरे भुजाओं की रक्षा करें।”
इस श्लोक में भगवान राम से भक्त के विभिन्न शारीरिक अंगों की रक्षा के लिए प्रार्थना की गई है, जिसमें जिह्वा, कंठ, स्कन्ध, और भुजाएँ शामिल हैं। यह उनके द्वारा धारित दिव्य शस्त्रों और उनके द्वारा विजय प्राप्त करने की शक्ति का भी स्मरण कराता है।
करौ सीतपतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः।।7।।
“सीता के पति (राम) मेरे हाथों की रक्षा करें, जामदग्न्य (परशुराम) को जितने वाले मेरे हृदय की रक्षा करें। खर को नष्ट करने वाले मेरे मध्य (पेट) की रक्षा करें, जाम्बवान के आश्रय (सहायता) से मेरे नाभि की रक्षा करें।”
इस श्लोक में भगवान राम को सीता के पति, जामदग्न्य (परशुराम) को जीतने वाले, खर (राक्षस) का वध करने वाले, और जाम्बवान के सहायता प्राप्त करने वाले के रूप में याद किया गया है। भक्त अपने हाथों, हृदय, मध्य और नाभि की रक्षा के लिए भगवान राम से प्रार्थना करता है।
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।
ऊरु रघुत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ।।8।।
“सुग्रीव के स्वामी (राम) मेरे कटि (कमर) की रक्षा करें, हनुमान के प्रभु मेरे सक्थिनी (जाँघें) की रक्षा करें। रघुकुल के श्रेष्ठ (राम) मेरे ऊरु (जांघों) की रक्षा करें, राक्षस कुल के विनाशक मेरे ऊरु की रक्षा करें।”
यह श्लोक भगवान राम और हनुमान के द्वारा भक्त के विभिन्न शारीरिक अंगों की रक्षा की प्रार्थना करता है। इसमें राम को सुग्रीव का स्वामी और राक्षस कुल का विनाशक बताया गया है, जबकि हनुमान को उनके प्रभु के रूप में याद किया गया है। यह श्लोक भगवान राम के सहायकों और उनके द्वारा किए गए महान कार्यों की महिमा को भी प्रकट करता है।
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्–घे दशमुखान्तकः।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ।।9।।
“सेतु निर्माणकर्ता (राम) मेरे जानु (घुटनों) की रक्षा करें, दस सिर वाले रावण के अंतक (नाशक) मेरे जंघा (जांघ के निचले भाग) की रक्षा करें। विभीषण को श्री (समृद्धि) देने वाले (राम) मेरे पाद (पैर) की रक्षा करें, राम मेरे पूरे शरीर की रक्षा करें।”
यह श्लोक भगवान राम से भक्त के विभिन्न शारीरिक अंगों की रक्षा के लिए प्रार्थना करता है, जिसमें घुटने, जंघा, और पैर शामिल हैं। यह भगवान राम के विभिन्न कार्यों और उपलब्धियों का स्मरण कराता है, जैसे कि समुद्र पर सेतु का निर्माण, रावण का वध, और विभीषण को श्री देना। इसमें राम से पूरे शरीर की रक्षा की भी प्रार्थना की गई है।
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्।।10।।
“जो सुकृती (पुण्यात्मा) व्यक्ति इस राम के बल से युक्त रक्षा (स्तोत्र) का पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रों से युक्त, विजयी और विनयी बनता है।”
यह श्लोक राम रक्षा स्तोत्र के पाठ के लाभों को बताता है। यह कहता है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह न केवल लंबी आयु प्राप्त करता है बल्कि सुख, संतान, विजय और विनम्रता में भी समृद्ध होता है। इस प्रकार, यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि भौतिक और मानसिक सुख-समृद्धि का भी आश्वासन देता है।
पातालभूतलव्योम चरिणश्छद्मचारिणः।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः।।11।।
“पाताल (नीचे की दुनिया), भूतल (धरती), और व्योम (आकाश) में विचरण करने वाले, छद्म (गुप्त) रूप से चलने वाले, वे भी उसे देख पाने में सक्षम नहीं होते, जो राम के नाम से रक्षित है।”
यह श्लोक भगवान राम के नाम की शक्ति और रक्षा क्षमता का वर्णन करता है। यह कहता है कि भगवान राम के नाम से रक्षित व्यक्ति को पाताल के असुर, धरती पर चलने वाले राक्षस और आकाश में उड़ने वाले दैत्य भी नहीं देख पाते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान राम के नाम की रक्षा से व्यक्ति हर प्रकार के अदृश्य और दृश्य खतरों से सुरक्षित रहता है।
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्।
नरो न लिप्यते पापै भक्तिं मुक्तिं च विन्दति।।12।।
“जो व्यक्ति ‘राम’, ‘रामभद्र’, या ‘रामचन्द्र’ का स्मरण करता है, वह पापों से लिप्त नहीं होता और भक्ति तथा मुक्ति को प्राप्त करता है।”
यह श्लोक भगवान राम के नाम के जप और स्मरण की महत्ता को बताता है। यह दर्शाता है कि भगवान राम के नाम का स्मरण करने वाले व्यक्ति पर पापों का कोई प्रभाव नहीं होता और वह भक्ति के मार्ग पर चलते हुए मुक्ति की प्राप्ति करता है। इस प्रकार, यह श्लोक आध्यात्मिक साधना में भगवान राम के नाम की महत्ता और शक्ति को प्रकट करता है।
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः।।13।।
“जो व्यक्ति जगत को जीतने वाले एकमात्र मंत्र, राम नाम से रक्षित होता है, और जो इसे अपने कंठ में धारण करता है, उसके हाथ में सभी सिद्धियाँ होती हैं।”
यह श्लोक भगवान राम के नाम की शक्ति और महत्व को बताता है। यह कहता है कि राम नाम एक ऐसा मंत्र है जो जगत की विजय प्रदान करता है और जो व्यक्ति इसे अपने कंठ में धारण करता है, उसके लिए सभी प्रकार की सिद्धियाँ (आध्यात्मिक उपलब्धियाँ) सुलभ हो जाती हैं। इस प्रकार, राम नाम का जप और धारण एक शक्तिशाली आध्यात्मिक साधना है जो व्यक्ति को सर्वांगीण सफलता और सिद्धियों की ओर ले जाती है।
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम्।।14।।
“जो व्यक्ति इस वज्रपंजर (वज्र के पिंजरे जैसी मजबूत) नामक रामकवच का स्मरण करता है, वह सर्वत्र अव्याहत (बाधारहित) आज्ञा (आदेश) प्राप्त करता है और हर जगह जय और मंगल (शुभ) प्राप्त करता है।”
यह श्लोक रामकवच की महत्ता को दर्शाता है, जिसे वज्रपंजर कवच के रूप में वर्णित किया गया है, जो अत्यंत मजबूत और अभेद्य होता है। इस कवच के स्मरण से व्यक्ति को अपने जीवन में सभी क्षेत्रों में बाधाओं के बिना सफलता और शुभता प्राप्त होती है। इस प्रकार, रामकवच का स्मरण व्यक्ति को जीवन की हर चुनौती में विजयी बनाने और शुभ फल प्राप्त करने में सहायक होता है।
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः।।15।।
“हर (भगवान शिव) ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश दिया, और तदनुसार, प्रातः काल में जागने पर बुधकौशिक ऋषि ने इसे लिखा।”
यह श्लोक रामरक्षा स्तोत्र की उत्पत्ति के बारे में बताता है। इसमें वर्णन किया गया है कि भगवान शिव ने स्वप्न में ऋषि बुधकौशिक को इस स्तोत्र की रचना करने का आदेश दिया था। जागने पर बुधकौशिक ऋषि ने भगवान शिव के आदेशानुसार इसे लिखा। यह बताता है कि रामरक्षा स्तोत्र की रचना दिव्य प्रेरणा से हुई थी और इसका महत्व और शक्ति असीम है।
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान् स नः प्रभुः।।16।।
यह श्लोक पहले ही अनुवाद किया जा चुका है, लेकिन आपके लिए फिर से प्रस्तुत कर रहा हूँ:
“राम, कल्पवृक्षों (इच्छापूर्ति करने वाले दिव्य वृक्षों) का आराम हैं, सभी आपदाओं का विराम हैं। तीनों लोकों के लिए अत्यंत सुंदर, श्रीमान् राम हमारे प्रभु हैं।”
इस श्लोक में भगवान राम की महिमा और उनके गुणों का वर्णन है, जो सभी प्रकार की आपदाओं से राहत दिलाने वाले और तीनों लोकों में आदरणीय हैं।
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
“युवा, सुंदर रूप से सम्पन्न, अत्यंत सुकुमार परन्तु महान बलवान, कमल के समान विशाल नेत्रों वाले, चीर (हिरन की खाल) और कृष्णाजिन (काले हिरन की खाल) के वस्त्र पहने।“
यह श्लोक भगवान राम और लक्ष्मण के दिव्य रूप का वर्णन करता है, जो उनके युवा और आकर्षक रूप, कोमलता, महान शक्ति, विशाल और सुंदर नेत्रों, और उनके विशिष्ट वस्त्रों की ओर संकेत करता है। यह उनकी दिव्यता और वीरता के साथ–साथ उनके सौम्य और आकर्षक व्यक्तित्व को भी प्रकट करता है।
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
“फल और मूल (जड़ों) का आहार करने वाले, संयमी और ब्रह्मचारी, ये दोनों दशरथ के पुत्र हैं, भ्रातारौ राम और लक्ष्मण।”
यह श्लोक भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण के चरित्र और जीवन शैली का वर्णन करता है। इसमें बताया गया है कि दोनों भाई तपस्वी जीवन जीते थे, फल और मूल का आहार करते थे, और ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। ये दोनों राजा दशरथ के पुत्र थे और एक दूसरे के साथ गहरे भ्रातृत्व का बंधन साझा करते थे।
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुश्मताम्।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ।।19।।
“सभी प्राणियों के लिए शरण स्थल, सभी धनुर्धरों में श्रेष्ठ, राक्षस कुल के नाशक, रघुकुल के उत्तम दोनों भाई हमें रक्षा प्रदान करें।”
यह श्लोक भगवान राम और लक्ष्मण को सभी जीवों के लिए एक शरणस्थली, सभी धनुर्धारियों में सर्वोत्कृष्ट और राक्षसों के विनाशक के रूप में स्तुति करता है। इसमें उनसे रक्षा और संरक्षण की प्रार्थना की गई है, जिससे उनकी दिव्यता और रक्षक के रूप में उनकी भूमिका का पता चलता है।
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग संगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रतः पथि सदैव गच्छताम् ।।20।।
“तैयार धनुष और बाणों से सज्जित, दुश्मनों को नष्ट करने वाले बाणों के साथ, मेरी रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण सदैव मेरे सामने मेरे पथ पर चलें।”
यह श्लोक भगवान राम और लक्ष्मण को सजग और तैयार योद्धाओं के रूप में वर्णित करता है, जो अपने धनुष और बाणों से सज्जित हैं और शत्रुओं का नाश करने के लिए तत्पर हैं। इसमें भक्त यह प्रार्थना करता है कि वे दोनों भाई सदैव उसकी रक्षा के लिए उसके पथ पर आगे चलें, जिससे उसे हर प्रकार के खतरों से सुरक्षा प्राप्त हो।
संनद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथोऽस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः।।21।।
“सज्जित कवच, तलवार, धनुष और बाणों से युक्त, युवा राम, हमारे मनोरथ (इच्छाओं) के अनुरूप चलते हुए, लक्ष्मण के साथ हमारी रक्षा करें।”
यह श्लोक भगवान राम की युद्ध के लिए तैयारी और उनके युवा वीरता का वर्णन करता है। इसमें राम और लक्ष्मण की दुआ मांगी गई है कि वे भक्तों की इच्छाओं के अनुसार चलते हुए उनकी रक्षा करें। यह श्लोक उनके प्रति आस्था और विश्वास को दर्शाता है।
रामो दशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुस्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघुत्तमः।।22।।
“राम, दशरथ के पुत्र, वीर, लक्ष्मण के साथी, शक्तिशाली, काकुस्थ (सूर्यवंशी), पूर्ण पुरुष, कौसल्या के पुत्र, रघुकुल के श्रेष्ठ।”
यह श्लोक भगवान राम के विभिन्न गुणों और उनके वंशज की महिमा का वर्णन करता है। इसमें राम को वीर, शक्तिशाली, सूर्यवंशी, पूर्ण पुरुष, और रघुकुल के सर्वोत्कृष्ट के रूप में स्तुति की गई है। यह उनकी दिव्यता और महानता को प्रकट करता है।
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभःश्रीमानप्रमेय पराक्रमः।।23।।
“वेदान्त द्वारा ज्ञातव्य, यज्ञों के ईश्वर, पुराणों में वर्णित पुरुषोत्तम, जानकी (सीता) के प्रिय, श्रीमान, अप्रमेय पराक्रम वाले।”
यह श्लोक भगवान राम के आध्यात्मिक और दिव्य गुणों का वर्णन करता है। इसमें उन्हें वेदान्त के द्वारा जाने जाने वाले, यज्ञों के स्वामी, पुराणों में वर्णित सर्वोत्कृष्ट पुरुष, सीता के प्रियतम, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रमी के रूप में स्तुति की गई है। यह उनकी विशेषताओं और उनकी असीम शक्तियों को प्रकट करता है।
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशयः।।24।।
“जो मेरा भक्त इन मंत्रों का नित्य जप श्रद्धा से करता है, वह अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक पुण्य प्राप्त करता है, इसमें कोई संदेह नहीं।”
यह श्लोक भक्ति और जप की महत्वपूर्णता को रेखांकित करता है। यह बताता है कि श्रद्धा और निष्ठा के साथ इन मंत्रों का नियमित जाप करने से भक्त विशेष पुण्य प्राप्त करता है, जो अश्वमेध यज्ञ के पुण्य से भी अधिक है। अश्वमेध यज्ञ हिन्दू धर्म में एक बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण यज्ञ माना जाता है, इसलिए इस श्लोक के माध्यम से इन मंत्रों के जाप की अद्वितीय आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाया गया है।
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामिभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणौ नरः।।25।।
“दुर्वा घास के समान श्याम वर्ण वाले, कमल के समान आँखों वाले, पीले वस्त्र धारण किए राम को, जो दिव्य नामों से स्तुति करते हैं, वे नर संसार के बंधनों में नहीं बंधते।”
यह श्लोक भगवान राम की महिमा और उनके दिव्य नामों की स्तुति करने के महत्व को बताता है। इसमें कहा गया है कि जो लोग भगवान राम की इस प्रकार से स्तुति करते हैं, वे संसार के चक्रव्यूह से मुक्त हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति करते हैं। यह भक्ति के मार्ग पर चलने की महत्वपूर्णता और उसके फल को दर्शाता है।
रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्।
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥26॥
“मैं वंदन करता हूँ राम को, लक्ष्मण के बड़े भाई, रघुकुल के श्रेष्ठ, सीता के पति, सुंदर को। काकुत्स्थ (सूर्यवंशी), करुणा के सागर, गुणों की खान, विप्रों (ब्राह्मणों) के प्रिय, धर्मनिष्ठ को, राजाओं का राजा, सत्य के प्रतिबद्ध, दशरथ के पुत्र, श्यामल (गहरे वर्ण) और शांत स्वरूप को। मैं वंदन करता हूँ लोकों को आनंदित करने वाले, रघुकुल के तिलक, राघव, रावण के शत्रु को।“
यह श्लोक भगवान राम के विभिन्न गुणों, उपाधियों और उनके दिव्य स्वरूप की स्तुति करता है। इसमें उन्हें अद्वितीय सुंदरता, करुणा, धार्मिकता, सत्यनिष्ठा और शांति के प्रतीक के रूप में वर्णित किया गया है, साथ ही उन्हें रघुकुल का श्रेष्ठ और रावण का विनाशक भी बताया गया है।
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
“राम को, रामभद्र को, रामचंद्र को, वेधस (सृष्टि के कर्ता) को, रघुनाथ को, नाथ (स्वामी) को, सीता के पति को, नमस्कार है।“
यह श्लोक भगवान राम के प्रति विभिन्न नामों और उपाधियों के साथ आदर और समर्पण भाव को प्रकट करता है। इसमें राम को उनके कई नामों और भूमिकाओं में संबोधित किया गया है, जिससे उनके विविध गुणों और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं का उल्लेख होता है। यह श्लोक भक्तों को भगवान राम के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करने का एक माध्यम प्रदान करता है।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
“श्रीराम, राम, रघुकुल के आनंददायक, राम राम। श्रीराम, राम, भरत के बड़े भाई, राम राम। श्रीराम, राम, युद्ध में कठोर, राम राम। श्रीराम, राम, मेरी शरण बनो, राम राम।“
यह श्लोक भगवान राम के विभिन्न रूपों और भूमिकाओं का स्मरण करते हुए उनकी उपासना और शरणागति की भावना को व्यक्त करता है। इसमें राम को रघुकुल के आनंददायक, भरत के बड़े भाई, युद्ध में कठोर, और भक्तों के लिए शरणस्थली के रूप में प्रशंसा की गई है। यह श्लोक भक्तों को राम के चरणों में समर्पण करने और उनकी शरण में आने की प्रेरणा देता है।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
“मैं मन से श्रीरामचंद्र के चरणों का स्मरण करता हूँ। मैं वाणी से श्रीरामचंद्र के चरणों की स्तुति करता हूँ। मैं शिर से श्रीरामचंद्र के चरणों को नमन करता हूँ। मैं श्रीरामचंद्र के चरणों में शरण लेता हूँ।“
यह श्लोक भगवान श्रीरामचंद्र के चरणों के प्रति भक्ति और समर्पण की गहरी भावना को व्यक्त करता है। इसमें भक्त अपने मन, वाणी, और शरीर के माध्यम से भगवान राम के चरणों का स्मरण, स्तुति, नमन और शरणागति की भावना को प्रकट करते हैं। यह श्लोक आध्यात्मिक जीवन में गहरे समर्पण और भगवान के प्रति पूर्ण शरणागति की महत्ता को दर्शाता है।
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
“राम मेरी माता हैं, मेरे पिता रामचंद्र हैं। राम मेरे स्वामी हैं, मेरे सखा (मित्र) रामचंद्र हैं। मेरा सर्वस्व दयालु रामचंद्र हैं। मैं किसी अन्य को नहीं जानता, न ही जानना चाहता हूँ, न जानूंगा।“
यह श्लोक भगवान राम के प्रति एक भक्त की अटूट भक्ति और समर्पण की भावना को व्यक्त करता है। इसमें भक्त यह कहते हैं कि उनके लिए भगवान राम ही सब कुछ हैं – माता, पिता, स्वामी, और मित्र। भक्त के लिए भगवान राम ही उनका सर्वस्व हैं, और वे भगवान राम के अलावा किसी अन्य को नहीं जानते और न ही जानना चाहते हैं। यह श्लोक भगवान राम के प्रति अनन्य भक्ति और निष्ठा का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
“जिनके दक्षिण भाग में लक्ष्मण हैं, वाम भाग में जनक की पुत्री (सीता) हैं, और जिनके सामने हनुमान हैं, उस रघुनंदन (राम) को मैं वंदन करता हूँ।“
यह श्लोक भगवान राम के साथ उनके प्रमुख सहयोगियों – उनके भाई लक्ष्मण, पत्नी सीता, और भक्त हनुमान – की उपस्थिति को दर्शाता है। यह श्लोक भगवान राम की दिव्यता और उनके आसपास के पवित्र और शक्तिशाली वातावरण को प्रकट करता है, जहाँ उनके सबसे करीबी और प्रिय सहयोगी हमेशा उनके साथ होते हैं। यह उनके दिव्य जीवन और उनके महान कार्यों में उनके साथी की महत्वपूर्ण भूमिका को सम्मानित करता है।
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
“लोकों को आकर्षित करने वाले, रणक्षेत्र में धैर्यवान, कमल के समान नेत्रों वाले, रघुवंश के स्वामी। करुणा का स्वरूप, करुणा को देने वाले, श्रीरामचंद्र की शरण में मैं आता हूँ।“
यह श्लोक भगवान रामचंद्र की दिव्यता और उनके गुणों की स्तुति करता है। इसमें भगवान राम को लोकों के प्रिय, युद्ध में निडर, रघुवंश के आदर्श स्वामी, करुणा के प्रतीक, और करुणा का स्रोत के रूप में वर्णित किया गया है। यह श्लोक भक्तों को भगवान राम की शरण में आने की प्रेरणा देता है, जहाँ उन्हें दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
“मन की गति से चलने वाले, पवन के समान वेग से युक्त, इंद्रियों को जीतने वाले, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ। वायु के पुत्र, वानर सेना के नेता, श्रीराम के दूत की शरण में मैं आता हूँ।“
यह श्लोक हनुमानजी की स्तुति करता है, जो अपनी असीम गति, इंद्रियों पर विजय, उत्कृष्ट बुद्धिमत्ता, और भगवान श्रीराम के प्रमुख दूत के रूप में उनकी भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं। वे वायुदेव के पुत्र हैं और वानर सेना के मुख्य नेता हैं। यह श्लोक भक्तों को हनुमानजी की शरण में आने की प्रेरणा देता है, जो उन्हें आध्यात्मिक संरक्षण और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
“राम राम इति कूजन करते हुए, मधुर और मधुराक्षरों के साथ, कविता की शाखा पर चढ़कर, मैं वाल्मीकि कोकिल (कोयल) को वंदन करता हूँ।“
यह श्लोक महर्षि वाल्मीकि की स्तुति करता है, जिन्होंने रामायण की रचना की। इसमें उन्हें कोकिल की उपमा दी गई है, जो “राम राम” का मधुर स्मरण करते हुए कविता की शाखा पर चढ़ते हैं। यह श्लोक वाल्मीकि जी की काव्यात्मक प्रतिभा और उनके द्वारा रचित रामायण के मधुर और गहन अक्षरों की महिमा को दर्शाता है। वाल्मीकि जी को आदि कवि माना जाता है, और इस श्लोक के माध्यम से उनकी विशिष्ट कृति और उनके योगदान को सम्मानित किया गया है।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
“आपदाओं को हरने वाले, सभी सम्पदाओं को देने वाले, लोकों को आकर्षित करने वाले श्रीराम को मैं बार–बार नमन करता हूँ।“
यह श्लोक भगवान श्रीराम के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना को व्यक्त करता है। इसमें श्रीराम को आपदाओं का नाश करने वाले और सभी प्रकार की समृद्धियों को प्रदान करने वाले के रूप में स्तुति की गई है। इसके अलावा, उन्हें लोकों के प्रिय के रूप में भी वर्णित किया गया है, जो उनकी दिव्यता और आकर्षण को दर्शाता है। भक्त इस श्लोक के माध्यम से भगवान राम के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा और नमन को प्रकट करते हैं।
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
“संसार के बीजों का नाश करने वाला, सुख और समृद्धि को प्राप्त कराने वाला, यमदूतों को डराने वाला, ‘राम राम‘ की गर्जना है।“
यह श्लोक ‘राम राम‘ के जप की शक्ति को दर्शाता है। यह कहता है कि भगवान राम के नाम का स्मरण संसार के बंधनों को नष्ट करता है, भक्तों को सुख और समृद्धि की प्राप्ति कराता है, और मृत्यु के देवता यम के दूतों को भी डराता है। इस प्रकार, ‘राम राम‘ का जप एक शक्तिशाली आध्यात्मिक साधना है जो आत्मिक उन्नति और मुक्ति की ओर ले जाती है।
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
“राम, राजाओं के रत्न, सदैव विजयी रहते हैं, मैं रमेश (राम) की भजन करता हूँ। राम द्वारा निशाचरों (राक्षसों) की सेना को पराजित किया गया, उस राम को मेरा नमस्कार। राम से बढ़कर कोई अन्य शरणस्थली नहीं है, मैं राम का दास हूँ। मेरा चित्त सदैव राम में लीन रहे, हे राम, मुझे उद्धार करो।”
यह श्लोक भगवान राम की महिमा को व्यक्त करता है, उनकी विजयी प्रकृति, उनके द्वारा राक्षसों के विनाश, और उनमें अनन्य शरणागति की भावना को दर्शाता है। इसमें भक्त अपने को राम का दास बताते हैं और उनके चरणों में समर्पण की भावना व्यक्त करते हैं, साथ ही राम से आत्मिक उद्धार की प्रार्थना करते हैं।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
“राम, राम, और केवल राम, मन को आनंदित करने वाले राम में, सहस्रनाम (हजार नामों) के तुल्य है राम नाम, हे सुंदरानना।”
यह श्लोक भगवान राम के नाम की महिमा को बताता है। इसमें कहा गया है कि केवल राम का नाम ही मन को आनंदित करने वाला है और यह विष्णु सहस्रनाम या किसी भी देवता के हजार नामों के समान पवित्र और शक्तिशाली है। इस श्लोक के माध्यम से भक्तों को यह संदेश दिया जाता है कि राम नाम का स्मरण उन्हें आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की ओर ले जा सकता है।
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
इस प्रकार बुधकौशिकद्वारा रचित श्रीराम रक्षा स्तोत्र सम्पूर्ण होता है।
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥
यह वाक्य श्रीराम रक्षा स्तोत्र के समापन को दर्शाता है, जिसे ऋषि बुधकौशिक ने रचा था। यह स्तोत्र भगवान राम की महिमा, उनके दिव्य गुणों, और उनके भक्तों के प्रति उनकी कृपा का वर्णन करता है। स्तोत्र के समापन पर, इसकी सम्पूर्णता की घोषणा की गई है और यह समर्पित किया गया है श्री सीतारामचंद्र को, जिससे इसकी दिव्यता और पवित्रता में वृद्धि होती है। यह स्तोत्र न केवल भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है बल्कि उन्हें भगवान राम के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना से भी भर देता
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