संत श्री स्वामी समर्थ एक महान भारतीय संत और आध्यात्मिक गुरु थे। उनका जन्म, जीवन और कार्य विशेष रूप से महाराष्ट्र और कर्नाटक में प्रसिद्ध हैं। उन्हें “अक्कलकोट के स्वामी” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का प्रमुख हिस्सा अक्कलकोट, महाराष्ट्र में बिताया।
स्वामी समर्थ के बारे में कई कथाएँ और कहानियाँ प्रचलित हैं, लेकिन उनकी जन्म और प्रारंभिक जीवन के बारे में ठोस ऐतिहासिक तथ्य कम ही उपलब्ध हैं। ऐसा माना जाता है कि वे दत्तात्रेय के अवतार थे। उनके जीवनकाल के दौरान, उन्होंने अनेक चमत्कार किए और लोगों की समस्याओं का समाधान किया। उनके अनुयायियों का मानना है कि वे ईश्वर के साक्षात अवतार थे और उनके दर्शन मात्र से ही मनुष्य के पापों का नाश होता था।
स्वामी समर्थ का प्रमुख उपदेश था कि मनुष्य को अपने कर्मों के अनुसार फल मिलता है और वह सच्चे मन से भक्ति करने और धर्म के मार्ग पर चलने से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकता है। उन्होंने अपने अनुयायियों को सरलता, सच्चाई और प्रेम का मार्ग अपनाने का निर्देश दिया।
स्वामी समर्थ की महानता और चमत्कारों की कहानियाँ आज भी लोगों में जीवंत हैं, और उनके अनुयायी आज भी उनके उपदेशों और शिक्षाओं का पालन करते हैं। उनके समाधि स्थल, अक्कलकोट, एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जहाँ हर साल हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
श्री स्वामी समर्थ ध्यान मंत्र
श्रीमन्-महा गणाधिपतये नम: l
श्री गुरवे नम: l
श्री स्वामी समर्थ महाराजाय नम: l
श्री स्वामी समर्थ ध्यान मंत्र उनके भक्तों द्वारा विशेष रूप से ध्यान, साधना और पूजा के समय उपयोग किया जाता है। यह मंत्र स्वामी समर्थ के प्रति श्रद्धा और भक्ति प्रकट करने का एक तरीका है। यहाँ मंत्र का स्वरूप और उसके अर्थ को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है:
मंत्र:
श्रीमन्-महा गणाधिपतये नम: l
श्री गुरवे नम: l
श्री स्वामी समर्थ महाराजाय नम: l
अर्थ:
- श्रीमन्-महा गणाधिपतये नम: – मैं श्रीमंत महान गणपति को नमन करता हूँ।
- श्री गुरवे नम: – मैं श्री गुरु को नमन करता हूँ।
- श्री स्वामी समर्थ महाराजाय नम: – मैं श्री स्वामी समर्थ महाराज को नमन करता हूँ।
यह ध्यान मंत्र स्वामी समर्थ के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के साथ-साथ गणपति और गुरु के प्रति सम्मान प्रकट करने का भी एक तरीका है। इसका जाप भक्तों के मन में शांति, श्रद्धा और भक्ति का संचार करता है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से मन में शांति, आध्यात्मिक उन्नति और स्वामी समर्थ की कृपा प्राप्त होती है
Tarak Mantra Lyrics
निशंक होई रे मना,निर्भय होई रे मना।
प्रचंड स्वामीबळ पाठीशी, नित्य आहे रे मना।
अतर्क्य अवधूत हे स्मर्तुगामी,
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी।।१।।
जिथे स्वामीचरण तिथे न्युन्य काय,
स्वये भक्त प्रारब्ध घडवी ही माय।
आज्ञेवीना काळ ही ना नेई त्याला,
परलोकी ही ना भीती तयाला
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी।।२।।
उगाची भितोसी भय हे पळु दे,
वसे अंतरी ही स्वामीशक्ति कळु दे।
जगी जन्म मृत्यु असे खेळ ज्यांचा,
नको घाबरू तू असे बाळ त्यांचा
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी।।३।।
खरा होई जागा श्रद्धेसहित,
कसा होसी त्याविण तू स्वामिभक्त।
आठव! कितीदा दिली त्यांनीच साथ,
नको डगमगु स्वामी देतील हात
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी।।४।।
विभूति नमननाम ध्यानार्दी तीर्थ,
स्वामीच या पंचामृतात।
हे तीर्थ घेइ आठवी रे प्रचिती,
ना सोडती तया, जया स्वामी घेती हाती ।।५।।
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी
।। श्री स्वामी समर्थ ।
श्री स्वामी समर्थ के भक्तों के लिए यह श्लोक उनके जीवन में शांति और सुरक्षा का भाव लाता है। यहाँ प्रस्तुत श्लोकों का अर्थ और उनकी व्याख्या की गई है:
श्लोक 1:
निशंक होई रे मना, निर्भय होई रे मना।
प्रचंड स्वामीबळ पाठीशी, नित्य आहे रे मना।
अतर्क्य अवधूत हे स्मर्तुगामी,
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी।।१।।
अर्थ:
- निशंक होई रे मना, निर्भय होई रे मना: हे मन, तू निशंक और निर्भय हो जा।
- प्रचंड स्वामीबळ पाठीशी, नित्य आहे रे मना: स्वामी समर्थ की प्रचंड शक्ति हमेशा तेरे साथ है, हे मन।
- अतर्क्य अवधूत हे स्मर्तुगामी: यह अद्भुत अवधूत (स्वामी समर्थ) स्मरण मात्र से ही उपस्थित हो जाते हैं।
- अशक्य ही शक्य करतील स्वामी: स्वामी समर्थ असंभव को भी संभव कर सकते हैं।
व्याख्या: यह श्लोक भक्तों को आश्वासन देता है कि स्वामी समर्थ की शक्ति हमेशा उनके साथ है, जिससे उन्हें किसी भी प्रकार का भय या संदेह नहीं होना चाहिए। स्वामी समर्थ के स्मरण मात्र से ही वे उपस्थित हो जाते हैं और असंभव को भी संभव बना देते हैं।
श्लोक 2:
जिथे स्वामीचरण तिथे न्युन्य काय,
स्वये भक्त प्रारब्ध घडवी ही माय।
आज्ञेवीना काळ ही ना नेई त्याला,
परलोकी ही ना भीती तयाला
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी।।२।।
अर्थ:
- जिथे स्वामीचरण तिथे न्युन्य काय: जहाँ स्वामी समर्थ के चरण होते हैं, वहाँ कोई कमी नहीं होती।
- स्वये भक्त प्रारब्ध घडवी ही माय: स्वामी समर्थ स्वयं अपने भक्तों का प्रारब्ध (भाग्य) बनाते हैं।
- आज्ञेवीना काळ ही ना नेई त्याला: स्वामी की आज्ञा के बिना काल (मृत्यु) भी भक्त को नहीं ले जा सकता।
- परलोकी ही ना भीती तयाला: और परलोक में भी उसे कोई भय नहीं होता।
- अशक्य ही शक्य करतील स्वामी: स्वामी समर्थ असंभव को भी संभव कर देते हैं।
व्याख्या: इस श्लोक में बताया गया है कि जहाँ स्वामी समर्थ के चरण होते हैं, वहाँ कोई भी कमी नहीं होती। स्वामी समर्थ अपने भक्तों का भाग्य स्वयं बनाते हैं और उनकी आज्ञा के बिना मृत्यु भी भक्त को नहीं ले जा सकती। परलोक में भी स्वामी समर्थ के भक्त को कोई भय नहीं होता। स्वामी समर्थ असंभव को भी संभव बना देते हैं।
यह श्लोक भक्तों को स्वामी समर्थ की असीम शक्ति और कृपा के प्रति आश्वस्त करता है, जिससे वे निशंक और निर्भय होकर जीवन जी सकें।
श्लोक 3:
उगाची भितोसी भय हे पळु दे,
वसे अंतरी ही स्वामीशक्ति कळु दे।
जगी जन्म मृत्यु असे खेळ ज्यांचा,
नको घाबरू तू असे बाळ त्यांचा
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी।।३।।
अर्थ:
- उगाची भितोसी भय हे पळु दे: तू व्यर्थ में डरता है, इस भय को दूर कर दे।
- वसे अंतरी ही स्वामीशक्ति कळु दे: अपने भीतर स्वामी समर्थ की शक्ति को अनुभव कर।
- जगी जन्म मृत्यु असे खेळ ज्यांचा: जिनके लिए इस संसार में जन्म और मृत्यु केवल खेल हैं,
- नको घाबरू तू असे बाळ त्यांचा: तू उनके बालक जैसा है, घबराने की जरूरत नहीं है।
- अशक्य ही शक्य करतील स्वामी: स्वामी समर्थ असंभव को भी संभव कर सकते हैं।
व्याख्या: यह श्लोक भक्त को यह समझाने का प्रयास करता है कि व्यर्थ में डरने की आवश्यकता नहीं है। स्वामी समर्थ की शक्ति को अपने भीतर महसूस करने की कोशिश करें। स्वामी समर्थ के लिए जन्म और मृत्यु केवल खेल के समान हैं, और आप उनके बालक के समान हैं। इसलिए, आपको किसी भी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए। स्वामी समर्थ असंभव को भी संभव बना सकते हैं।
श्लोक 4:
खरा होई जागा श्रद्धेसहित,
कसा होसी त्याविण तू स्वामिभक्त।
आठव! कितीदा दिली त्यांनीच साथ,
नको डगमगु स्वामी देतील हात
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी।।४।।
अर्थ:
- खरा होई जागा श्रद्धेसहित: सच्चे और जागरूक श्रद्धा के साथ हो।
- कसा होसी त्याविण तू स्वामिभक्त: उनके बिना (स्वामी समर्थ के बिना) तू सच्चा भक्त कैसे हो सकता है।
- आठव! कितीदा दिली त्यांनीच साथ: याद कर! कितनी बार उन्होंने तुम्हारा साथ दिया है।
- नको डगमगु स्वामी देतील हात: मत डगमगाओ, स्वामी तुम्हें सहारा देंगे।
- अशक्य ही शक्य करतील स्वामी: स्वामी समर्थ असंभव को भी संभव कर सकते हैं।
व्याख्या: यह श्लोक भक्त को सच्चे और जागरूक श्रद्धा के साथ स्वामी समर्थ के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देता है। स्वामी समर्थ के बिना कोई भी सच्चा भक्त नहीं बन सकता। हमें याद रखना चाहिए कि स्वामी समर्थ ने कितनी बार हमें मुश्किल समय में साथ दिया है। हमें किसी भी परिस्थिति में नहीं डगमगाना चाहिए, क्योंकि स्वामी समर्थ हमेशा हमें सहारा देंगे। स्वामी समर्थ असंभव को भी संभव बना सकते हैं।
इन श्लोकों के माध्यम से स्वामी समर्थ के भक्तों को यह संदेश दिया जाता है कि वे हमेशा निशंक और निर्भय रहें, सच्चे और जागरूक श्रद्धा के साथ स्वामी समर्थ के प्रति समर्पित रहें, और स्वामी समर्थ की असीम शक्ति और कृपा पर विश्वास रखें।
श्लोक 5:
विभूति नमननाम ध्यानार्दी तीर्थ,
स्वामीच या पंचामृतात।
हे तीर्थ घेइ आठवी रे प्रचिती,
ना सोडती तया, जया स्वामी घेती हाती ।।५।।
अर्थ:
- विभूति नमननाम ध्यानार्दी तीर्थ: विभूति, नमन, नाम, ध्यान आदि तीर्थ के रूप में,
- स्वामीच या पंचामृतात: स्वामी समर्थ ही इन पंचामृत (पांच अमृत) में हैं।
- हे तीर्थ घेइ आठवी रे प्रचिती: इस तीर्थ का अनुभव करते हुए, इसे स्मरण कर।
- ना सोडती तया, जया स्वामी घेती हाती: जिन्हें स्वामी समर्थ अपने हाथ में ले लेते हैं, उन्हें कभी नहीं छोड़ते।
व्याख्या: इस श्लोक में विभूति, नमन, नाम, ध्यान और तीर्थ को पंचामृत के रूप में स्वामी समर्थ की कृपा का प्रतीक माना गया है। भक्तों को इन पंचामृतों का सेवन कर स्वामी समर्थ का अनुभव और उनकी कृपा का स्मरण करना चाहिए। जो भक्त स्वामी समर्थ की शरण में आ जाते हैं, स्वामी समर्थ उन्हें कभी नहीं छोड़ते। वे हमेशा उनके साथ रहते हैं और उनकी रक्षा करते हैं।
अशक्य ही शक्य करतील स्वामी: स्वामी समर्थ असंभव को भी संभव कर सकते हैं।
अर्थ: स्वामी समर्थ वह शक्ति रखते हैं जो असंभव को संभव बना सकती है। उनके लिए कोई भी कार्य कठिन या असंभव नहीं है।
व्याख्या: यह वाक्य भक्तों को यह विश्वास दिलाता है कि स्वामी समर्थ की कृपा और शक्ति से कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है। स्वामी समर्थ के प्रति सच्ची श्रद्धा और विश्वास रखने वाले भक्तों के जीवन में कोई भी कठिनाई या बाधा स्थायी नहीं होती। स्वामी समर्थ की असीम कृपा और उनकी दिव्य शक्ति से सभी बाधाओं को पार किया जा सकता है।
इस श्लोक के माध्यम से भक्तों को स्वामी समर्थ के पंचामृत (विभूति, नमन, नाम, ध्यान, तीर्थ) का सेवन कर उनकी कृपा और अनुभव का स्मरण करने की प्रेरणा दी जाती है, जिससे वे सभी भय और कठिनाइयों से मुक्त होकर स्वामी समर्थ की कृपा का अनुभव कर सकें।
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