Mahamrityunjay Mantra- महामृत्युंजय मंत्र

महामृत्युंजय मंत्र, जिसे मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र कहा जाता है, त्रयंबकम मंत्र के नाम से भी जाना जाता है। यह ऋग्वेद का एक श्लोक है जो त्रयंबक (त्रिनेत्रों वाला) रुद्र (बाद में शिव के साथ जोड़ा गया) को संबोधित करता है। यह श्लोक यजुर्वेद में भी आता है। गायत्री मंत्र के साथ, यह समकालीन हिंदू धर्म का सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मंत्र है। शिव को मृत्युंजय (मृत्यु पर विजय पाने वाला) के रूप में समर्पित यह महान मंत्र ऋग्वेद में पाया जाता है और इसे महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।

इस मंत्र के कई नाम और रूप हैं:

  • इसे शिव के उग्र पहलू की ओर संकेत करते हुए रुद्र मंत्र कहा जाता है।
  • शिव के तीन आँखों की ओर इशारा करते हुए त्रयंबकम मंत्र कहा जाता है।
  • इसे कभी-कभी मृत-संजीवनी मंत्र के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह कठोर तपस्या पूरी करने के बाद पुरातन ऋषि शुक्र को प्रदान की गई “जीवन बहाल” करने वाली विद्या का एक घटक है।
  • ऋषि-मुनियों ने महामृत्युंजय मंत्र को वेद का ह्रदय कहा है।
  • चिंतन और ध्यान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अनेक मंत्रों में गायत्री मंत्र के साथ इस मंत्र का सर्वोच्च स्थान है।

महामृत्युंजय मंत्र:

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे

सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान्

मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

महामृत्युंजय मंत्र के 33 शब्दों में 33 देवताओं की शक्तियों का समावेश होता है। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों को विभिन्न देवताओं के साथ जोड़ा है। यहां उन 33 देवताओं के नाम और उनके संबंधित शक्तियों का वर्णन किया गया है:

इस मंत्र के 33 शब्दों और उनके साथ संबंधित देवताओं का विवरण निम्नलिखित है:

8 वसु:

  • – प्रथमा वसु (अग्नि)
  • त्रि – द्वितीया वसु (प्रत्युष)
  • अम् – तृतीया वसु (सोम)
  • बकं – चतुर्थी वसु (ध्रुव)
  • यजा – पंचमी वसु (अह)
  • महे – षष्ठी वसु (अनिल)
  • सु – सप्तमी वसु (अनल)
  • गन्धिं – अष्टमी वसु (प्रभास)

11 रुद्र:

  • पुष्टि – प्रथमा रुद्र (अजैकपात)
  • वर्धनम् – द्वितीया रुद्र (अहिर्बुध्न्य)
  • उर्वारुकम् – तृतीया रुद्र (भव)
  • इव – चतुर्थी रुद्र (रुद्र)
  • बन्धनान् – पंचमी रुद्र (महान)
  • मृत्योः – षष्ठी रुद्र (शर्व)
  • मुक्षीय – सप्तमी रुद्र (ईशान)
  • मा – अष्टमी रुद्र (पशुपति)
  • अमृतात् – नवमी रुद्र (उग्र)
  • (पंक्ति) – दशमी रुद्र (भीम)
  • ()त्रिशूलधारी – एकादश रुद्र (नटराज)

12 आदित्य:

  • त्रयोदश – प्रथमा आदित्य (मित्र)
  • चतुर्दश – द्वितीय आदित्य (वरुण)
  • पञ्चदश – तृतीय आदित्य (सूर्य)
  • षोडश – चतुर्थ आदित्य (भानु)
  • सप्तदश – पंचम आदित्य (खग)
  • अष्टादश – षष्ठम आदित्य (पूषण)
  • एकोनविंश – सप्तम आदित्य (अंश)
  • विंश – अष्टम आदित्य (रवि)
  • एकविंश – नवम आदित्य (गभस्तिमान)
  • द्वाविंश – दशम आदित्य (विवस्वान)
  • त्रयोविंश – एकादश आदित्य (सप्तार्चि)
  • चतुर्विंश – द्वादश आदित्य (अदित्य)

1 प्रजापति:

  • पंचविंश – प्रजापति

1 वषट:

  • षट् – वषट (यज्ञ का बलिदान मंत्र)

महामृत्युंजय मंत्र में इन 33 शब्दों और देवताओं की शक्तियों का ध्यान करके जप करना अत्यंत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को अनेक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।

महामृत्युंजय मंत्र विस्तृत अर्थ और महत्व:

  • : यह पवित्र ध्वनि है, जिसे ब्रह्मांड की मूल ध्वनि माना जाता है।
  • त्र्यम्बकं: तीन नेत्रों वाले, भगवान शिव का वर्णन करता है।
  • यजामहे: हम पूजा करते हैं या सम्मान करते हैं।
  • सुगन्धिं: सुगंधित, जो जीवन को सुगंधित और पोषण करता है।
  • पुष्टिवर्धनम्: जो हमारे स्वास्थ्य, समृद्धि और जीवन की पूर्णता को बढ़ाता है।
  • उर्वारुकमिव: जैसे पक्व खीरा (जिसे आसानी से पौधे से अलग किया जा सकता है)।
  • बन्धनान्: सांसारिक जीवन के बंधनों से।
  • मृत्योः: मृत्यु से।
  • मुक्षीय: हमें मुक्त करें, स्वतंत्र करें।
  • मा अमृतात्: अमरता से नहीं; हमें अमरता की अवस्था प्रदान करें।

महामृत्युंजय मंत्र का नियमित जप संकटों से मुक्ति, स्वास्थ्य सुधार, और दीर्घायु के लिए अत्यधिक प्रभावी माना जाता है। इसका नियमित उच्चारण शांति, समृद्धि, और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है।

महामृत्युंजय मंत्र के फायदे

  • अकाल मृत्यु का भय खत्म: इस मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति का अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। इसका जप करने से लंबी उम्र प्राप्त होती है।
  • दोषों का नाश: महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से मांगलिक दोष, नाड़ी दोष, कालसर्प दोष, भूत-प्रेत दोष, रोग, दुःस्वप्न, गर्भनाश, और संतानबाधा जैसे कई दोष समाप्त हो जाते हैं।
  • रोगों से मुक्ति: लंबी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए इस मंत्र का प्रतिदिन जप करना चाहिए। इससे रोगों का नाश होता है और व्यक्ति निरोगी बनता है। साथ ही, शारीरिक और मानसिक शांति भी मिलती है।
  • धन हानि से बचाव: धन हानि से बचने और जमीन-जायदाद से संबंधित विवादों में सफलता के लिए भी इस मंत्र का जप शुभ होता है। इससे व्यक्ति को धन-धान्य की कमी नहीं होती है।
  • नकारात्मकता का नाश: ईर्ष्या, लालच, नुकसान का डर जैसी नकारात्मकताओं का भी इस मंत्र के जप से नाश होता है। इससे व्यक्ति को समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता है।

महामृत्युंजय मंत्र के जाप में ये गलतियां न करें

  • सही उच्चारण: महामृत्युंजय मंत्र का सही उच्चारण करना अत्यंत आवश्यक है। गलत उच्चारण दुष्प्रभाव डाल सकता है।
  • शुद्ध आसन: मंत्र का जाप करते समय शुद्ध आसन का प्रयोग करें। कुशा के आसन पर बैठकर जप करना सबसे अच्छा माना जाता है।
  • रुद्राक्ष माला: इस मंत्र का जाप केवल रुद्राक्ष माला से ही करें। विधि विधान से मंत्र का जाप करते वक्त शिवलिंग पर दूध मिले जल से अभिषेक करते रहें।
  • निश्चित संख्या: इस मंत्र का जप एक निश्चित संख्या निर्धारित करके करें। अगले दिन इनकी संख्या बढ़ा लें, लेकिन कम न करें।
  • पूर्व दिशा: महामृत्युंजय मंत्र का जाप हमेशा पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही करना चाहिए।
  • सुनना भी लाभकारी: यदि आप नियमित जाप नहीं कर सकते हैं, तो इस मंत्र को सुनने मात्र से भी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है। ऑफिस जाते वक्त या कोई शुभ कार्य करने से पहले इसे सुन लेना शुभ माना जाता है।

महामृत्युंजय मंत्र एक शक्तिशाली वैदिक मंत्र है जो भगवान शिव को समर्पित है, और शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है। सही तरीके से जप करने पर यह व्यक्ति को सुरक्षा, स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक विकास प्रदान करता है। महामृत्युंजय मंत्र का नियमित और विधिपूर्वक जाप करने से व्यक्ति को अनेक लाभ मिलते हैं, और यह जीवन में शांति, समृद्धि और सुरक्षा प्रदान करता है।

यह भी पढ़ें – Shiv Dhyan Mantra- शिव ध्यान मंत्र

महामृत्युंजय मंत्र क्या है और इसका क्या महत्व है?

महामृत्युंजय मंत्र, जिसे मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र कहा जाता है, ऋग्वेद का एक श्लोक है जो रुद्र (बाद में शिव के साथ जोड़ा गया) को समर्पित है। यह समकालीन हिंदू धर्म में गायत्री मंत्र के साथ सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मंत्र है। यह मृत्यु को जीतने और लंबी आयु प्रदान करने के लिए माना जाता है।

महामृत्युंजय मंत्र के विभिन्न नाम और पहलू क्या हैं?

महामृत्युंजय मंत्र के कई नाम और रूप हैं:
रुद्र मंत्र: शिव के उग्र पहलू की ओर संकेत करता है।
त्रयंबकम मंत्र: शिव के तीन आंखों की ओर इशारा करता है।
मृत-संजीवनी मंत्र: जीवन बहाल करने वाली विद्या का घटक है, जिसे पुरातन ऋषि शुक्र को प्रदान किया गया था।
वेद का ह्रदय: ऋषि-मुनियों द्वारा कहा गया है।
सर्वोच्च मंत्र: ध्यान और चिंतन के लिए गायत्री मंत्र के साथ सर्वोच्च स्थान रखता है।

महामृत्युंजय मंत्र में कितने शब्द हैं और कौन से देवता उनसे जुड़े हैं?

महामृत्युंजय मंत्र में 33 शब्द हैं, प्रत्येक को विशिष्ट देवताओं के साथ जोड़ा गया है:
8 वसु
11 रुद्र
12 आदित्य
1 प्रजापति
1 वषट

महामृत्युंजय मंत्र के प्रत्येक शब्द का विस्तृत अर्थ क्या है?

मंत्र के शब्दों का विस्तृत अर्थ निम्नलिखित है:
: यह पवित्र ध्वनि है, जिसे ब्रह्मांड की मूल ध्वनि माना जाता है।
त्र्यम्बकं: तीन नेत्रों वाले, भगवान शिव का वर्णन करता है।
यजामहे: हम पूजा करते हैं या सम्मान करते हैं।
सुगन्धिं: सुगंधित, जो जीवन को सुगंधित और पोषण करता है।
पुष्टिवर्धनम्: जो हमारे स्वास्थ्य, समृद्धि और जीवन की पूर्णता को बढ़ाता है।
उर्वारुकमिव: जैसे पक्व खीरा (जिसे आसानी से पौधे से अलग किया जा सकता है)।
बन्धनान्: सांसारिक जीवन के बंधनों से।
मृत्योः: मृत्यु से।
मुक्षीय: हमें मुक्त करें, स्वतंत्र करें।
मा अमृतात्: अमरता से नहीं; हमें अमरता की अवस्था प्रदान करें।

महामृत्युंजय मंत्र के जप करने के क्या लाभ हैं?

अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और लंबी आयु प्राप्त होती है।
मांगलिक दोष, नाड़ी दोष, कालसर्प दोष, भूत-प्रेत दोष, रोग, दुःस्वप्न, गर्भनाश और संतानबाधा का नाश होता है।
लंबी बीमारी से छुटकारा पाने और निरोगी रहने में सहायता मिलती है।
धन हानि से बचाव और जमीन-जायदाद से संबंधित विवादों में सफलता मिलती है।
ईर्ष्या, लालच, नुकसान का डर जैसी नकारात्मकताओं का नाश होता है, जिससे व्यक्ति को समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता है।





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