जनेऊ, जिसे यज्ञोपवीत भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतीक है। यह एक पवित्र सूत्र है जो मुख्य रूप से तीन हिंदू वर्णों—ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य—के पुरुषों द्वारा पहना जाता है। जनेऊ आमतौर पर कच्चे सूती धागे से बना होता है, जिसे कुछ मामलों में ऊन या रेशम से भी बनाया जा सकता है। इसे धारण करने की प्रक्रिया और इसके महत्व को समझने के लिए, हमें इसकी धार्मिक भूमिका और सांस्कृतिक प्रासंगिकता पर विचार करना होगा।
धार्मिक महत्व
जनेऊ को धारण करने की परंपरा की शुरुआत उपनयन संस्कार से होती है, जो एक धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें एक युवक को वैदिक अध्ययन के लिए दीक्षित किया जाता है। इस संस्कार के द्वारा उसे धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारियों की शिक्षा दी जाती है। जनेऊ पहनने वाले व्यक्ति को ‘द्विज’ या ‘दो बार जन्मा’ माना जाता है, पहला जन्म उसके जैविक माता-पिता से और दूसरा वैदिक ज्ञान और संस्कारों के माध्यम से।
सांस्कृतिक प्रासंगिकता
जनेऊ का पहनावा और उपयोग समय के साथ और समुदाय के अनुसार भिन्न होता है। इसकी तीन प्रमुख स्थितियाँ हैं: उपवीत (जनेऊ को दायीं कंधे से बायीं कमर तक पहनना), प्राचीनावीत (जनेऊ को गले में लटकाना), और निवीत (जनेऊ को कमर में बांधना)। इन स्थितियों का उपयोग विभिन्न धार्मिक कार्यों और संस्कारों में किया जाता है।
उपनयन संस्कार का महत्व
उपनयन संस्कार हिंदू धर्म में एक बालक के धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत का प्रतीक है। इस संस्कार के द्वारा, बालक को गुरुकुल में वैदिक शिक्षा के लिए भेजा जाता है और उसे धार्मिक अध्यात्म, यज्ञ और ध्यान की शिक्षा दी जाती है।
जनेऊ का प्रयोग और उसकी विधियाँ अत्यंत सावधानीपूर्वक और सम्मान के साथ की जाती हैं, और इसे धारण करना और उतारना दोनों ही कठोर धार्मिक विधान का पालन करते हैं। यह पवित्र सूत्र न केवल एक धार्मिक प्रतीक है, बल्कि यह एक व्यक्ति के जीवन में नैतिकता और आध्यात्मिकता की यात्रा का भी प्रतीक है।
जनेऊ पहनने के नियम
बाजसनेयीनाम् ;
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।।
यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करने के समय प्रयोग किया जाने वाला पारंपरिक वैदिक मंत्र है। यह मंत्र यज्ञोपवीत की पवित्रता, इसके धारक की आयु, शुभ्रता, बल और तेज की वृद्धि की कामना करता है। इस मंत्र का अर्थ और महत्व निम्नलिखित है:
मंत्र का अर्थ:
- यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं: यज्ञोपवीत अत्यंत पवित्र है।
- प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्: यह प्रजापति द्वारा सृष्टि की आदि में उत्पन्न की गई है।
- आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं: यह आयु और पवित्रता में श्रेष्ठ है।
- यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः: यज्ञोपवीत से बल और तेज की वृद्धि हो।
मंत्र का महत्व:
इस मंत्र का जाप यज्ञोपवीत धारण करते समय किया जाता है ताकि धारक को यज्ञोपवीत के पवित्र गुणों की प्राप्ति हो सके। यह मंत्र न केवल यज्ञोपवीत की पवित्रता को स्थापित करता है, बल्कि इसे धारण करने वाले के लिए आयु, पवित्रता, बल और तेज की कामना भी करता है। यह एक धार्मिक संकेत के रूप में भी कार्य करता है कि यज्ञोपवीत धारण करने वाला व्यक्ति अब धार्मिक और आध्यात्मिक दायित्वों को उठाने के लिए तैयार है।
इस प्रकार, यह मंत्र यज्ञोपवीत धारण करने के लिए न केवल एक शाब्दिक निर्देश प्रदान करता है, बल्कि यह धारक को उसके जीवन में आगे बढ़ने के लिए आशीर्वाद और शक्ति भी प्रदान करता है। इसके माध्यम से, धारक अपने धार्मिक पथ पर चलने के लिए नैतिक और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करता है।
जनेऊ, जिसे यज्ञोपवीत भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक पवित्र सूत्र है जो कुछ वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य) के पुरुषों द्वारा पहना जाता है। इसे पहनने के कुछ नियम और परंपराएं होती हैं, जो इस प्रकार हैं:
- उपनयन संस्कार (यज्ञोपवीत संस्कार): जनेऊ पहनने की शुरुआत उपनयन संस्कार के साथ होती है, जो एक धार्मिक और सामाजिक संस्कार है। इस संस्कार के माध्यम से एक युवक को वैदिक अध्ययन की दीक्षा दी जाती है और उसे धार्मिक जिम्मेदारियों के लिए तैयार किया जाता है।
- दायीं कंधे से बायीं ओर: जनेऊ को आमतौर पर दायीं कंधे से बायीं कमर तक पहना जाता है। इसे उपवीती कहा जाता है। इस स्थिति का महत्व इस बात को दर्शाता है कि व्यक्ति अध्यात्मिक अध्ययन और धार्मिक कर्तव्यों के प्रति समर्पित है।
- संस्कार और पूजा के समय: विशेष धार्मिक कर्मकांड या पूजा के दौरान, जनेऊ को कभी-कभी प्राचीनावित (गले में लटकाना) या निवीत (कमर में बांधना) की स्थिति में पहना जाता है। यह स्थिति संस्कार या पूजा की गरिमा के अनुरूप होती है।
- सावधानी और सफाई: जनेऊ की नियमित सफाई और उचित देखभाल महत्वपूर्ण होती है। इसे साफ और पवित्र रखना चाहिए। नहाते समय इसे पहने रखना आवश्यक होता है।
- आचार-विचार: जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति से उच्च आचार विचार और सद्व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। जनेऊ पहनने वाले को अपने जीवन में धार्मिक आदर्शों का पालन करना चाहिए।
- पुनर्नवीनीकरण: समय के साथ, जब जनेऊ पुराना या क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो उसे एक नए जनेऊ से बदल दिया जाता है। इस प्रक्रिया को भी विशेष धार्मिक विधि के साथ किया जाता है।
- मंत्र और विधि: जनेऊ को पहनते समय ‘ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्. आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः’ मंत्र का उच्चारण करते हुए इसे बाएं कंधे से दायीं कमर की तरफ पहना जाता है। यह मंत्र जनेऊ की पवित्रता और उसके धारण करने वाले को आयु, तेज, और बल प्रदान करने की कामना व्यक्त करता है।
- लंबाई और गांठें: जनेऊ आमतौर पर 96 अंगुल (लगभग दो मीटर) लंबा होता है, और इसमें पांच गांठें होती हैं जो पांच ज्ञानेंद्रियों और पंचकर्मों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- पहनने की स्थिति: जनेऊ को विशेष रूप से मल-मूत्र विसर्जन के समय कान पर कस कर दो बार लपेटा जाता है ताकि यह अपवित्र न हो।
यज्ञोपवीत धारण करने का मंत्र:
छन्दोगानाम्: ॐ यज्ञो पवीतमसि यज्ञस्य त्वोपवीतेनोपनह्यामि।।
अर्थ:
- यज्ञो पवीतमसि: यह यज्ञ पवित्र है।
- यज्ञस्य त्वोपवीतेनोपनह्यामि: मैं इस यज्ञ की पवित्रता को अपनी यज्ञोपवीत से बढ़ाता हूं।
जनेऊ अशुद्ध कब होता है
जनेऊ, जो हिंदू धर्म में एक पवित्र सूत्र माना जाता है, उसे विशेष धार्मिक और शुचिता के मानदंडों के अनुसार धारण किया जाता है। इसकी शुद्धता बनाए रखना महत्वपूर्ण है, और कुछ परिस्थितियों में इसे अशुद्ध माना जा सकता है। जनेऊ को अशुद्ध माने जाने की कुछ प्रमुख स्थितियाँ निम्नलिखित हैं:
- मृत्यु या शोक: परिवार में किसी की मृत्यु होने पर जनेऊ को अशुद्ध माना जाता है। ऐसी स्थिति में, उपयोग किए जाने वाले जनेऊ को बदल दिया जाता है और नए जनेऊ के साथ पुनः संस्कार किया जाता है।
- अशुद्ध स्थानों पर जाना: जैसे कि श्मशान घाट या किसी अन्य स्थान पर जहाँ अशुद्धता मानी जाती है, वहाँ जाने के बाद जनेऊ को अशुद्ध माना जा सकता है।
- शारीरिक शुद्धता का अभाव: यदि व्यक्ति ने स्नान नहीं किया है या अशुद्ध कार्य किया है (जैसे कि अशुद्ध भोजन करना या अशुद्ध वस्तुओं को स्पर्श करना), तब भी जनेऊ को अशुद्ध माना जा सकता है।
- भौतिक क्षति: यदि जनेऊ टूट जाता है, मलिन हो जाता है, या किसी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो इसे अशुद्ध माना जाता है।
- उपेक्षा या अनादर: यदि जनेऊ को उचित सम्मान नहीं दिया जाता है या उसे अनुचित तरीके से रखा जाता है, तो भी उसे अशुद्ध माना जा सकता है।
जनेऊ उतारने की विधि
जनेऊ उतारने की विधि उस समय और परिस्थिति पर निर्भर करती है जब इसे उतारना आवश्यक होता है। जनेऊ को उतारने का कारण आमतौर पर इसकी पुरानी या अशुद्ध अवस्था हो सकता है, या फिर किसी विशेष धार्मिक क्रिया के लिए इसे बदलना पड़ सकता है। जनेऊ उतारने की एक सामान्य विधि निम्नलिखित है:
यज्ञोपवीत उतारने का मंत्र:
एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।
अर्थ:
- एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया: इतने दिनों तक मैंने तुम्हें, ब्रह्म (यज्ञोपवीत), धारण किया है।
- जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्: अब तुम पुराने हो गए हो, इसलिए मैं तुम्हें त्यागता हूं, जाओ सूत्र, सुखपूर्वक जाओ।
- स्नान करना: जनेऊ उतारने से पहले स्नान करना आवश्यक होता है। यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति शुद्ध अवस्था में हो।
- पवित्र स्थान का चयन: जनेऊ उतारते समय एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करें, जहां आप ध्यान और पूजा कर सकें।
- पूजा और मंत्रोच्चारण: जनेऊ उतारने से पहले ईश्वर की पूजा करें और संबंधित मंत्रों का उच्चारण करें। यह मंत्र वैदिक शास्त्रों में दिए गए हो सकते हैं या आपकी स्थानीय परंपराओं के अनुसार हो सकते हैं।
- जनेऊ उतारना: धीरे से जनेऊ को अपने शरीर से उतारें। इसे करते समय आदर और सम्मान के भाव रखें।
- उचित निपटान: उतारे गए जनेऊ का उचित तरीके से निपटान करें। पुराने जनेऊ को जलाना या उसे किसी पवित्र नदी में विसर्जित करना प्रचलित है। इसे सम्मान के साथ किया जाना चाहिए।
- नया जनेऊ धारण करना: जनेऊ उतारने के बाद, यदि आवश्यक हो, तो एक नया जनेऊ धारण करें। नए जनेऊ को धारण करने से पहले संबंधित मंत्रों का उच्चारण करें और पूजा करें
जनेऊ मुहूर्त 2024
जनवरी 2024
- 21 जनवरी (रविवार): रात 07:27 से प्रात: 03:52, 22 जनवरी
- 26 जनवरी (शुक्रवार): देर रात 01:20 से सुबह 07:12
- 31 जनवरी (बुधवार): सुबह 07:10 से सुबह 11:36
फरवरी 2024
- 11 फरवरी (रविवार): शाम 05:29 से सुबह 07:02, 12 फरवरी
- 12 फरवरी (सोमवार): सुबह 07:03 से दोपहर 02:56
- 14 फरवरी (बुधवार): सुबह 11:30 से दोपहर 12:10
- 18 फरवरी (रविवार): रात 10:24 से सुबह 06:57, 19 फरवरी
- 19 फरवरी (सोमवार): सुबह 06:57 से रात 09:20
- 25 फरवरी (रविवार): रात 08:36 से देर रात 01:24, 26 फरवरी
- 26 फरवरी (सोमवार): सुबह 04:31 से सुबह 06:49
- 28 फरवरी (बुधवार): सुबह 04:19 से सुबह 06:47
- 29 फरवरी (गुरुवार): सुबह 06:47 से सुबह 10:22
मार्च 2024
- 27 मार्च (बुधवार): सुबह 09:36 से शाम 04:15
- 29 मार्च (शुक्रवार): रात 08:36 से प्रात: 03:01, 30 मार्च
अप्रैल 2024
- 12 अप्रैल (शुक्रवार): दोपहर 01:12 से सुबह 05:58, 13 अप्रैल
- 17 अप्रैल (बुधवार): दोपहर 03:14 से सुबह 05:53, 18 अप्रैल
- 18 अप्रैल (गुरुवार): सुबह 05:53 से सुबह 07:09
- 25 अप्रैल (गुरुवार): सुबह 04:53 से सुबह 05:45
मई 2024
- 9 मई (गुरुवार): दोपहर 12:26 से शाम 05:30
- 10 मई (शुक्रवार): सुबह 06:22 से सुबह 08:17
- 12 मई (रविवार): सुबह 06:14 से सुबह 10:24
- 17 मई (शुक्रवार): सुबह 10:04 से दोपहर 02:42
- 18 मई (शनिवार): सुबह 06:00 से सुबह 07:46
- 19 मई (रविवार): दोपहर 02:34 से शाम 04:51
- 20 मई (सोमवार): सुबह 09:53 से शाम 04:47
- 24 मई (शुक्रवार): सुबह 07:22 से सुबह 11:57
- 25 मई (शनिवार): सुबह 11:53 से दोपहर 02:11
जून 2024
- 8 जून (शनिवार): सुबह 06:23 से सुबह 08:38 तक
- 9 जून (रविवार): सुबह 06:19 से सुबह 08:34 तक
- 10 जून (सोमवार): शाम 05:44 से रात 08:02 तक
- 16 जून (रविवार): सुबह 08:07 से दोपहर 03:00 तक
- 17 जून (सोमवार): सुबह 05:54 से सुबह 08:03 तक
- 22 जून (शनिवार): सुबह 07:43 से दोपहर 12:21 तक
- 23 जून (रविवार): सुबह 07:39 से दोपहर 12:17 तक
- 26 जून (बुधवार): सुबह 09:48 से शाम 04:41 तक
जुलाई 2024
- 7 जुलाई (रविवार): सुबह 06:44 से सुबह 09:04 तक
- 8 जुलाई (सोमवार): सुबह 06:40 से सुबह 09:00 तक
- 10 जुलाई (बुधवार): दोपहर 01:26 से शाम 06:04 तक
- 11 जुलाई (गुरुवार): सुबह 06:28 से सुबह 11:06 तक
- 17 जुलाई (बुधवार): सुबह 07:33 से सुबह 08:25 तक
नवंबर 2024
- 3 नवंबर (रविवार): सुबह 07:06 से सुबह 10:28 तक
- 4 नवंबर (सोमवार): सुबह 07:07 से सुबह 10:24 तक
- 6 नवंबर (बुधवार): सुबह 07:08 से दोपहर 12:20 तक
- 11 नवंबर (सोमवार): सुबह 09:57 से दोपहर 03:10 तक
- 13 नवंबर (बुधवार): सुबह 07:30 से सुबह 09:49 तक
- 17 नवंबर (रविवार): सुबह 07:17 से दोपहर 01:10 तक
- 20 नवंबर (बुधवार): सुबह 11:25 से शाम 04:00 तक
दिसंबर 2024
- 4 दिसंबर (बुधवार): सुबह 07:30 से सुबह 10:30 तक
- 5 दिसंबर (गुरुवार): दोपहर 01:36 से शाम 06:32 तक
- 6 दिसंबर (शुक्रवार): सुबह 07:32 से दोपहर 12:05 तक
- 11 दिसंबर (बुधवार): सुबह 07:35 से सुबह 07:59 तक
- 12 दिसंबर (गुरुवार): सुबह 07:30 से सुबह 09:59 तक
- 15 दिसंबर (शुक्रवार): दोपहर 03:57 से रात 08:07 तक
- 16 दिसंबर (शनिवार): सुबह 07:39 से दोपहर 12:53 तक
- 19 दिसंबर (गुरुवार): सुबह 11:14 से सुबह 02:06 तक
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