ॐ नमो भगवते वासुदेवाय (Om Namo Bhagavate Vasudevaya) हिंदू धर्म के सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण मंत्रों में से एक है, विशेष रूप से वैष्णव सम्प्रदाय में। इस मंत्र को द्वादसाक्षरी मंत्र या बस द्वादसाक्षरी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है बारह-अक्षर वाला मंत्र। यह मंत्र भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण दोनों को समर्पित है।
द्वादसाक्षरी मंत्र की परंपराएं
द्वादसाक्षरी मंत्र की दो परंपराएं हैं – तांत्रिक और पौराणिक। तांत्रिक परम्परा में इस मंत्र के ऋषि प्रजापति माने जाते हैं, जबकि पौराणिक परंपरा में इसके ऋषि नारद हैं। दोनों परंपराएं यह मानती हैं कि यह मंत्र सर्वोच्च विष्णु मंत्र है। शारदा तिलक तंत्रम में कहा गया है:
“द्वादशर्णो महामंत्र प्रधानो वैष्णवगामे” – अर्थात बारह अक्षरों वाला यह मंत्र वैष्णव मंत्रों में प्रमुख है।
श्रीमद्भागवतम् में महत्व
इसी प्रकार, श्रीमद्भागवतम् में भी इस मंत्र को परम मंत्र माना गया है। इसे मुक्ति मंत्र कहा जाता है, जो स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए एक आध्यात्मिक सूत्र के रूप में जाना जाता है। यह मंत्र विष्णु पुराण में भी पाया जाता है।
आध्यात्मिक साधना और भक्ति
यह मंत्र आध्यात्मिक साधना और भक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, और इसका जप करने से आध्यात्मिक शांति और मुक्ति की प्राप्ति होती है। द्वादशाक्षर मंत्र के विषय में कई पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है।
द्वादसाक्षरी मंत्र का प्रभाव और सिद्धि
भगवान विष्णु के भक्तों के लिए यह मंत्र एक मार्गदर्शक है। ध्रुव महाराज ने इस मंत्र का जप किया था और भगवान विष्णु को प्रसन्न करके अपने सभी संकटों को दूर किया था। गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा से सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं और यह मंत्र यश और पर की प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है।
द्वादशाक्षर मंत्र के लाभ
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय (Om Namo Bhagavate Vasudevaya) मंत्र के कई आध्यात्मिक और मानसिक लाभ हैं। वासुदेव द्वादशी के दिन द्वादशाक्षर मंत्र का जाप करना विशेष रूप से उत्तम माना गया है, हालांकि इसे किसी भी दिन जपा जा सकता है।
द्वादशाक्षर मंत्र का जाप करने के लाभ
- मानसिक और शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि:
- इस मंत्र के नियमित जाप से मानसिक और शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है। यह शरीर और मन को नई ऊर्जा से भर देता है और सकारात्मकता को बढ़ावा देता है।
- मन की शांति:
- द्वादशाक्षर मंत्र का जाप करने से मन शांत होता है। यह तनाव और चिंता को कम करता है, जिससे मन में शांति और स्थिरता आती है।
- विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति:
- इस मंत्र का जाप करने से विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति मिलती है। व्यक्ति कठिन समय में भी धैर्य और साहस बनाए रखता है।
- कार्य में बाधाएं दूर करना:
- वासुदेव द्वादशी के दिन इस मंत्र का 21 बार जाप करने से कार्य में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। इससे जीवन के अटके हुए काम भी पूरे हो जाते हैं।
- ग्रह शांति:
- यह मंत्र ग्रहों की शांति के लिए भी उपयोग किया जाता है। नवग्रहों की शांति हेतु इस दिन विधिपूर्वक 1008 बार द्वादशाक्षर मंत्र का जाप करना शुभ माना गया है।
जाप विधि
- रोजाना जाप:
- कम से कम 101 बार इस मंत्र का रोजाना जाप करें। इससे दिन-प्रतिदिन की चुनौतियों से निपटने में सहायता मिलती है और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
- वासुदेव द्वादशी के दिन:
- वासुदेव द्वादशी के दिन 21 बार इस मंत्र का जाप करें। इससे कार्य में आ रही सभी बाधाएं दूर होंगी और जीवन में सुख-समृद्धि आएगी।
- विशेष अनुष्ठान:
- ग्रह शांति के लिए, विधिपूर्वक 1008 बार इस मंत्र का जाप करें। इससे नवग्रहों की शांति प्राप्त होती है और जीवन में सभी प्रकार की बाधाओं का नाश होता है।
द्वादशाक्षर मंत्र संबंधी कथा
पुराणों में द्वादशाक्षर मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” के महत्व को दर्शाने वाली एक कथा है जो इस मंत्र की अद्भुत शक्ति और प्रभाव को प्रकट करती है।
कथा का विवरण
एक ब्राह्मण ने कठिन तपस्या के बाद एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम ऐतरेय रखा गया। उपनयन संस्कार के बाद, जब पिता ने बालक को पढ़ाना शुरू किया, तो ऐतरेय कुछ भी बोल नहीं पाता था। उसकी जीभ हिलती ही नहीं थी, और वह केवल “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण कर पाता था। पिता ने उसे बहुत प्रयासों के बाद भी पढ़ाने में असफलता प्राप्त की।
निराश होकर, ब्राह्मण ने दूसरी शादी कर ली और नई पत्नी से चार पुत्रों को जन्म दिया। ये चारों पुत्र वेदों के विद्वान बन गए और अपने ज्ञान और कर्म से परिवार को धन-धान्य से भर दिया, जिससे उनकी माता सदा प्रसन्न रहती थी। किंतु ऐतरेय की मां सदैव शोकाकुल रहती थी क्योंकि उसे अपने पुत्र से कोई सुख नहीं मिला।
एक दिन, ऐतरेय की मां ने उसे कहा, “तुम्हारे भाई धन कमा कर अपनी माता को कितना सुख देते हैं। मैं ही अभागिन हूँ जो मुझे तुमसे कोई सुख नहीं मिला, इससे तो मेरा मर ही जाना अच्छा है।”
मां को दु:खी देखकर ऐतरेय ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, “आज मैं तुम्हारे लिए बहुत-सा धन लेकर आऊंगा।” इतना कहकर वह एक ऐसे स्थान पर पहुंचा जहां यज्ञ हो रहा था। उसके वहां पहुंचते ही यज्ञ कराने वाले ब्राह्मण मंत्र भूल गए। वे लोग बड़े असमंजस में पड़ गए कि एकाएक क्या बात हो गई। ऐतरेय तब “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का पाठ करने लगा, जिसे सुनकर ब्राह्मणों के मुख से भी मंत्र स्पष्ट रूप से निकलने लगे।
यह चमत्कार देखकर होता, उद्गाता और ऋषि-मुनियों ने उसकी प्रशंसा की और उसकी पूजा की। पूर्णाहुति के बाद, ऐतरेय को स्वर्ण-रत्न और बहुत-सा धन दिया गया। घर आकर ऐतरेय ने समस्त धन अपनी माता को समर्पित कर दिया।
कथा का यह भाग दर्शाता है कि भगवान के भजन और मंत्र जप के बिना मनुष्य भवसागर से तर नहीं सकता है। जैसा कि रामचरितमानस में कहा गया है:
“बारि मथें घृत होइ बरु सिकता ते बरु तेल। बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धान्त अपेल।।”
अर्थात्, जल के मथने से चाहे घी निकल आए, बालू से चाहे तेल निकले, परंतु भगवान के भजन के बिना मनुष्य भवसागर से तर नहीं सकता है। यह सिद्धांत अकाट्य है।
भगवान विष्णु का द्वादशाक्षर मंत्र: महिमा और महत्व
द्वादशाक्षर मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” भगवान विष्णु के भक्तों के लिए अत्यंत प्रभावशाली और महत्वपूर्ण माना गया है। इस मंत्र का निरंतर जप करने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे सद्गति प्राप्त होती है। लक्ष्मीजी की बड़ी बहन अलक्ष्मी (दरिद्रा) भगवान के नाम को सुनकर उस घर से तुरन्त भाग खड़ी होती है।
द्वादशाक्षर मंत्र का महत्व सूतजी ने बताया है कि अगर मनुष्य सत्कर्म करते हुए, सोते-जागते, चलते-उठते इस मंत्र का निरंतर जप करता है तो वह सभी पापों से मुक्त होकर सद्गति को प्राप्त करता है। इसी मंत्र के जप से ध्रुव को भगवान के दर्शन बहुत शीघ्र प्राप्त हुए थे।
द्वादशाक्षर मंत्र जप की विधि
द्वादसाक्षरी मंत्र का जप पूर्ण विधि-विधान के साथ करना चाहिए। यदि इस मंत्र का जाप संपूर्ण आस्था और भक्ति से किया जाए तो संसार की कोई भी उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है। भगवान विष्णु उनके भक्तों की पुकार अवश्य सुनते हैं और यह परम मंत्र कल्याणकारी सिद्ध होता है।
इस महामंत्र का जाप करने के लिए तुलसी माला का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है। इस मंत्र की सिद्धि के लिए लाख जप करने की परंपरा है, लेकिन आज के समय में यह संभव न हो तो इस मंत्र का अनुष्ठान भी किया जा सकता है। अनुष्ठान के बाद तर्पण और भोजन का आयोजन करना चाहिए।
- पवित्र स्थान और शुद्ध आहार: मंत्र जप करने के लिए पवित्र स्थान और शुद्ध सात्विक आहार का महत्व है। शास्त्रों में बताई गई विधि और संत के आशीर्वाद से शीघ्र लाभ मिलता है।
- प्रात:काल जप: स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का ध्यान और मानसिक पूजा करना उत्तम है। भगवान विष्णु का ध्यान इस प्रकार करें:
- भगवान विष्णु के शरीर की दिव्य कान्ति करोड़ों सूर्य के समान है। उन्होंने अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किया हुआ है। भूदेवी और श्रीदेवी उनके उभय पार्श्व की शोभा बढ़ा रही हैं। उनका वक्ष:स्थल श्रीवत्सचिह्न से सुशोभित है। वे अपने गले में चमकीली कौस्तुभमणि धारण करते हैं। हार, केयूर, वलय, कुण्डल, किरीट आदि दिव्य आभूषण जिनके अंगों में धारण करने से धन्य हो रहे हैं। ऋषि-मुनि सामवेद से उनकी स्तुति कर रहे हैं। उन पीताम्बरधारी भगवान विष्णु का मैं ध्यान करता हूँ।
- मंत्र जप से पहले स्मरण: इस मंत्र के ऋषि प्रजापति, छन्द गायत्री और देवता वासुदेव हैं। मंत्र जप से पहले इनका स्मरण करना चाहिए।
- मंत्र न्यास: हो सके तो मंत्र के बारहों अक्षरों का न्यास करें। न्यास करने से शरीर मन्त्रमय हो जाता है और सारी अपवित्रता दूर हो जाती है।
- सुरक्षा भावना: जप करते समय साधक को यह भावना रखनी चाहिए कि भगवान का सुदर्शन चक्र चारों ओर से उसकी रक्षा कर रहा है।
- आसन पर बैठकर जप: तुलसी या पद्मकाष्ठ की माला से इस मंत्र का जप करें। जप करते समय माला ढक कर करें और तर्जनी ऊंगली से माला का स्पर्श न हो।
- मंत्र जप की गुप्तता: मंत्र जप इस तरह करें कि किसी दूसरे को सुनायी न दे। संत चरणदासजी का कहना है:
आठ मास मुख सों जपै, सोलह मास कंठ जाप।
बत्तिस मास हिरदै जपे, तन में रहे न पाप।।
तन में रहे न पाप, भक्ति का उपजै पौधा।मन रुक जावे तभी, अपरबल कहिये योधा।।
- यज्ञोपवीतधारी के लिए ‘ॐ’: यज्ञोपवीतधारी मनुष्य को इस मंत्र के पहले ‘ॐ’ लगाना चाहिए और अन्य सभी लोग ‘श्री’ लगाकर इसका जाप कर सकते हैं।
- प्रार्थना: जप के अंत में भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि ‘हे प्रभो! यह शरीर, प्राण, इन्द्रिय, मन, बुद्धि और आत्मा—जो कुछ मैं हूँ, वह सब तुम्हारा है। ऐसी कृपा कीजिए कि तुम्हारा ही भजन हो, तुम्हारे मंत्र का जप हो और तुम्हारा ही चिन्तन हो। एक क्षण के लिए भी तुम्हें न भूलूं।’
मंत्र जप का फल
शास्त्रों में कहा गया है कि:
- एक लाख जप: आत्मशुद्धि होती है।
- दो लाख जप: मंत्र-शुद्धि प्राप्त होती है।
- तीन लाख जप: स्वर्गलोक का अधिकारी हो जाता है।
- चार लाख जप: भगवान विष्णु का सामीप्य प्राप्त होता है।
- पांच लाख जप: निर्मल ज्ञान प्राप्त होता है।
- छ: लाख जप: बुद्धि भगवान विष्णु में स्थिर हो जाती है।
- सात लाख जप: श्रीविष्णु का सारुप्य प्राप्त करता है।
- आठ लाख जप: निर्वाण (परम शांति और मोक्ष) प्राप्त करता है।
- बारह लाख जप: भगवान का साक्षात्कार हो जाता है।
मंत्र का अनुष्ठान
इस मंत्र का एक अनुष्ठान बारह लाख जप का है। अंत में दशांश हवन करना चाहिए और उसका दशांश तर्पण और तर्पण का दशांश ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। यदि हवन आदि करने की शक्ति और सुविधा न हो तो जितना हवन करना है उसका चौगुना जप करना चाहिए।
स्कन्दपुराण के अनुसार, द्वादशाक्षर महामंत्र का जप सभी मासों में पाप-नाश करने वाला है किन्तु चातुर्मास्य में इसका माहात्म्य विशेष रूप से बढ़ जाता है।
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द्वादशाक्षर मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” क्या है?
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” हिंदू धर्म के सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण मंत्रों में से एक है, विशेष रूप से वैष्णव सम्प्रदाय में। यह भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण दोनों को समर्पित है और इसे द्वादसाक्षरी मंत्र कहा जाता है।
द्वादशाक्षर मंत्र की कौन-कौन सी परंपराएं हैं?
द्वादशाक्षर मंत्र की दो परंपराएं हैं – तांत्रिक और पौराणिक। तांत्रिक परम्परा में इस मंत्र के ऋषि प्रजापति माने जाते हैं, जबकि पौराणिक परंपरा में इसके ऋषि नारद हैं।
श्रीमद्भागवतम् में द्वादशाक्षर मंत्र का क्या महत्व है?
श्रीमद्भागवतम् में द्वादशाक्षर मंत्र को परम मंत्र माना गया है और इसे मुक्ति मंत्र कहा जाता है, जो स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए एक आध्यात्मिक सूत्र के रूप में जाना जाता है।
द्वादशाक्षर मंत्र का जाप कैसे करें?
द्वादशाक्षर मंत्र का जाप पूर्ण विधि-विधान के साथ करना चाहिए। तुलसी माला का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है, और मंत्र की सिद्धि के लिए लाख जप करने की परंपरा है।
द्वादशाक्षर मंत्र के लाभ क्या हैं?
द्वादशाक्षर मंत्र के नियमित जाप से मानसिक और शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है, मन शांत होता है, विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति मिलती है, कार्य में बाधाएं दूर होती हैं, और ग्रह शांति के लिए उपयोगी होता है
भगवान विष्णु का द्वादशाक्षर मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का महत्व क्या है?
द्वादशाक्षर मंत्र का निरंतर जप करने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे सद्गति प्राप्त होती है। लक्ष्मीजी की बड़ी बहन अलक्ष्मी (दरिद्रा) भगवान के नाम को सुनकर उस घर से तुरन्त भाग खड़ी होती है।