शीतला अष्टमी

शीतला अष्टमी, जिसे बसौड़ा या बासौडा भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार माता शीतला को समर्पित है, जिन्हें शीतलता और रोग-निवारण की देवी माना जाता है। इसे चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है, जो होली के ठीक आठ दिन बाद आती है।

शीतला माता की पूजा में बासी भोजन (पहले से तैयार किया गया और ठंडा किया गया भोजन) का विशेष महत्व है। इस दिन नया खाना नहीं पकाया जाता; बल्कि सप्तमी के दिन बनाए गए भोजन को ही प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इस परंपरा के पीछे का विचार यह है कि शीतलता के माध्यम से पुरानी ऊर्जा का संरक्षण और पुनः उपयोग किया जा सकता है।

शीतला अष्टमी के दिन, भक्त माता शीतला की मूर्ति या तस्वीर की पूजा करते हैं। वे व्रत रखते हैं और माता की व्रत कथा सुनते हैं। पूजा के दौरान दही, गुड़, और ठंडे खाद्य पदार्थों का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा, भक्तों द्वारा शीतला माता के भजन और आरती गाई जाती है।

इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य शीतलता और स्वास्थ्य की कामना करना है। माना जाता है कि शीतला माता की पूजा से चेचक, चिकन पॉक्स, और अन्य त्वचा संबंधी रोगों से रक्षा होती है। इसलिए, इस दिन विशेष रूप से माता शीतला की पूजा और व्रत रखा जाता है।

शीतला अष्टमी भारत के कई हिस्सों में मनाई जाती है, लेकिन यह उत्तर भारतीय राज्यों में अधिक प्रचलित है। इस त्यौहार के माध्यम से, लोग शीतलता, शुद्धता और स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं, और समुदाय में एकता और साझेदारी की भावना को बढ़ावा देते हैं।

शीतला अष्टमी 2024

बसोड़ा 2024, जिसे शीतला अष्टमी भी कहा जाता है, के लिए पूजा का शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 10 मिनट से शाम 06 बजकर 40 मिनट तक है। इस दौरान आपको कुल 12 घंटे 30 मिनट का शुभ समय पूजा के लिए प्राप्त होगा। इस समय के भीतर शीतला माता की पूजा करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

शीतला सप्तमी और अष्टमी पूजन विधि

शीतला सप्तमी और अष्टमी, जिसे बसौड़े के त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है, में माता शीतला की पूजा की जाती है। यह पूजा खासकर शीतलता और स्वास्थ्य की देवी, माता शीतला को समर्पित है। आपके लिए यहां शीतला सप्तमी-अष्टमी या बसौड़े की पूजन विधि के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु दिए गए हैं:

  • सुबह जल्दी उठना और स्नान करना: शीतला सप्तमी-अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करें। ऐसा माना जाता है कि अगर आप सूर्य निकलने से पहले बसौड़ा पूजा कर लेते हैं, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
  • माता शीतला की पूजा: माता शीतला के मंदिर में जाकर या होलिका दहन स्थल पर, विधि-विधान के साथ पूजा करें। आप अपनी मान्यता अनुसार किसी भी जगह माता शीतला का ध्यान करके पूजा कर सकते हैं।
  • भोग लगाना: माता शीतला को जल चढ़ाएं, गुलाल और कुमकुम अर्पित करें। फिर बासी भोजन जैसे कि पूड़े, मीठे चावल, खीर, मिठाई आदि का भोग लगाएं।
  • विशेष ध्यान देने योग्य बातें:
    • माता शीतला को हमेशा ठंडे खाने का भोग लगाया जाता है।
    • पूजा करते समय दीया, धूप या अगरबत्ती नहीं जलानी चाहिए।
    • शीतला माता की पूजा में अग्नि को किसी भी तरह से शामिल नहीं किया जाता है।
  • पूजा के बाद की क्रियाएं: मंदिर या होलिका दहन स्थल पर पूजा करने के बाद, घर में वापस आकर प्रवेश द्वार के बाहर स्वास्तिक जरूर बनाएं। यह सुख, समृद्धि, और शुभता का प्रतीक है।

इस पूजा को करने से विश्वास है कि माता शीतला अपने भक्तों को रोगों से मुक्त रखती हैं और उन्हें स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। इस पूजा का उद्देश्य न केवल देवी को सम्मान देना है, बल्कि यह भी सिखाता है कि हमें अपने आसपास की शुद्धता और स्वच्छता का भी ध्यान रखना चाहिए।

शीतला अष्टमी की कहानी

शीतला माता और कुम्हारन की कहानी

एक बार शीतला माता धरती पर भ्रमण कर रही थीं। वे देखना चाहती थीं कि कौन उनकी पूजा करता है और कौन उन्हें मानता है। राजस्थान के डुंगरी गाँव में पहुंचने पर उन्हें पता चला कि इस गाँव में उनका कोई मंदिर नहीं है और न ही उनकी पूजा होती है।

माता शीतला गाँव की गलियों में घूम रही थीं। तभी एक मकान से किसी ने उबला हुआ चावल का पानी (मांड) नीचे फेंका। यह पानी माता शीतला के ऊपर गिर गया, जिससे उनके शरीर पर फफोले/छाले पड़ गए। माता शीतला के पूरे शरीर में जलन होने लगी।

वे गाँव में इधर-उधर भाग-भाग कर चिल्लाने लगीं, “अरे मैं जल गई! मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है! कोई मेरी सहायता करो!” लेकिन उस गाँव में किसी ने उनकी सहायता नहीं की।

वहीं अपने घर के बाहर एक कुम्हारन बैठी थी। उसका नाम लक्ष्मी था। उसने देखा कि एक बूढ़ी माई बहुत जल गई है। उसके पूरे शरीर में तपन है और फफोले पड़ गए हैं। वह तपन सहन नहीं कर पा रही है।

लक्ष्मी ने दया दिखाई और कहा, “हे माँ! तू यहाँ आकर बैठ जा। मैं तेरे शरीर पर ठंडा पानी डालती हूँ।” उसने माता शीतला पर खूब ठंडा पानी डाला और बोली, “हे माँ! मेरे घर में रात की बनी हुई राबड़ी और दही है। तू दही-राबड़ी खा लें।”

जब माता शीतला ने ठंडी ज्वार के आटे की राबड़ी और दही खाया तो उनके शरीर को ठंडक मिली।

लक्ष्मी ने कहा, “आ माँ बैठजा। तेरे सिर के बाल बहुत बिखरे हैं। ला मैं तेरी चोटी गूँथ देती हूँ।”

जैसे ही लक्ष्मी ने माता शीतला के बालों में कंगी की, तो उसकी नजर माता के सिर के पीछे पड़ी। उसने देखा कि एक आँख बालों के अंदर छुपी है। यह देखकर वह लक्ष्मी डर के मारे घबराकर भागने लगी।

तब माता शीतला ने कहा, “रुकजा बेटी! तू डर मत। मैं कोई भूत-प्रेत नहीं हूँ। मैं शीतला देवी हूँ। मैं इस धरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है और कौन मेरी पूजा करता है।”

यह सुनकर लक्ष्मी माता के चरणों में गिर पड़ी।

माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने और सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किए अपने असली रूप में प्रगट हो गईं।

माता के दर्शन कर लक्ष्मी सोचने लगी कि अब मैं गरीब इन माता को कहाँ बिठाऊँ।

तब माता बोली, “हे बेटी! तुम किस सोच में पड़ गई?”

लक्ष्मी ने हाथ जोड़कर आँखों में आँसू बहते हुए कहा, “हे माँ! मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता बिखरी हुई है। मैं आपको कहाँ बिठाऊँ? मेरे घर में ना तो चौकी है, ना बैठने का आसन ही।”

तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठकर एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फैंक दिया।

और उस कुम्हारन से कहा, “हे बेटी! मैं तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हूँ। अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग लो।”

तब लक्ष्मी ने हाथ जोड़कर कहा, “हे माता! मेरी इच्छा है कि अब आपगाँव में ही निवास करें और वही आशीर्वाद दें जैसे उसने उसके घर की दरिद्रता दूर की थी। माँ शीतला ने कुम्हारन की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि उनकी पूजा का अधिकार केवल कुम्हार जाति का होगा। इसके बाद, डुंगरी गाँव में माँ शीतला का निवास स्थापित हो गया और गाँव का नाम शील की डुंगरी पड़ गया। यहाँ शीतला सप्तमी के दिन एक बड़ा मेला लगता है।

जय माँ शीतला!

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