Lingashtakam

शिवलिंग के गुणों का समर्थन करने वाला लिंगाष्टक स्तोत्र, शिव के भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। यह स्तोत्र शिवलिंग के अद्वितीय महत्त्व और महिमा को गाता है। इसमें शिवलिंग के विभिन्न प्रकारों की महिमा का वर्णन किया गया है, जो भक्तों को शिव की पूजा और स्तुति के लिए प्रेरित करता है। यह स्तोत्र शिव के भक्तों के द्वारा प्रतिदिन पाठ किया जाता है, जिससे उनका शिव के प्रति अधिक समर्पण और भक्ति की भावना बढती है। लिंगाष्टक स्तोत्र का पाठ करने से शिव के अनंत गुणों का गान किया जाता है, जो उसके भक्तों को उसकी प्रीति और कृपा के प्रति अधिक संज्ञान कराता है। यह स्तोत्र भक्तों को मानसिक और आत्मिक शांति और संतोष प्रदान करता है।

Lingashtakam lyrics

।। इति लिंगाष्टकम स्तोत्र सम्पूर्णम्।।

अर्थ सहित व्याख्या

ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गम्

अर्थ: जिस शिवलिंग की ब्रह्मा, विष्णु (मुरारी) और देवता पूजा करते हैं, जो निर्मल प्रकाश से चमकता है, जो जन्म और मृत्यु के दुखों को नष्ट करता है, उस सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

व्याख्या:

  • ब्रह्मा: सृष्टिकर्ता, जिन्होंने ब्रह्मांड का निर्माण किया।
  • मुरारी: भगवान विष्णु, जिन्होंने मुरासुर का वध किया।
  • सुरा: देवता, जिन्होंने शिवलिंग की पूजा की।
  • निर्मलभासित: निर्मल प्रकाश से चमकता हुआ।
  • शोभितलिङ्गम्: शोभायमान शिवलिंग।
  • जन्मजदुःख: जन्म और मृत्यु के दुख।
  • विनाशक: नष्ट करने वाला।
  • सदाशिव: सदा शिव, अनंत और सर्वशक्तिमान शिव।

इस श्लोक में शिवलिंग की महिमा और उसकी पूजा का वर्णन किया गया है। शिवलिंग का प्रकाश निर्मल और चमकदार है, और यह सभी जन्म-मृत्यु के दुखों को नष्ट करने की क्षमता रखता है।

शिवलिंग की पूजा करने से सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है और भक्त को शांति प्राप्त होती है। यही कारण है कि इसे सदाशिवलिंग कहा गया है।

देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गम्

अर्थ: जिस शिवलिंग की देवता और श्रेष्ठ मुनि पूजा करते हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाला और करुणा का सागर है, जिसने रावण के अहंकार का नाश किया, उस सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

व्याख्या:

  • देवमुनिप्रवरार्चित: देवताओं और श्रेष्ठ मुनियों द्वारा पूजित।
  • कामदह: कामदेव को भस्म करने वाला।
  • करुणाकर: करुणा का सागर।
  • रावणदर्पविनाशन: रावण के अहंकार का विनाश करने वाला।
  • सदाशिव: सदा शिव, अनंत और सर्वशक्तिमान शिव।

इस श्लोक में शिवलिंग की महिमा और उसके विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है। यह बताया गया है कि देवता और श्रेष्ठ मुनि इस शिवलिंग की पूजा करते हैं।

शिव, जिन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया था, उन्हें कामदह कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि शिव ने अपनी तपस्या में किसी भी प्रकार के विघ्न को सहन नहीं किया।

शिव करुणा के सागर हैं, जो उनके करुणाकर नाम से स्पष्ट होता है। रावण, जो अहंकार में चूर था, उसका विनाश भी शिव ने ही किया था। इसलिए उन्हें रावणदर्पविनाशन कहा गया है।

इस प्रकार, यह श्लोक शिव की महानता और उनके दिव्य गुणों की महिमा का बखान करता है।

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गम्

अर्थ: जिस शिवलिंग को सभी सुगंधित पुष्पों और चंदन से अलंकृत किया जाता है, जो बुद्धि को बढ़ाने का कारण है, जिसे सिद्ध, देवता और असुर सभी वंदना करते हैं, उस सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

व्याख्या:

  • सर्वसुगन्धिसुलेपित: सभी प्रकार के सुगंधित पदार्थों से अलंकृत।
  • बुद्धिविवर्धनकारण: बुद्धि को बढ़ाने का कारण।
  • सिद्धसुरासुरवन्दित: सिद्ध (अधिकारियों), देवताओं और असुरों द्वारा वंदित।

इस श्लोक में शिवलिंग की महिमा का वर्णन है। यह कहा गया है कि शिवलिंग को विभिन्न सुगंधित पुष्पों और चंदन से अलंकृत किया जाता है, जो यह दर्शाता है कि शिवलिंग की पूजा बड़े श्रद्धा और आदर के साथ की जाती है।

शिवलिंग की पूजा बुद्धि और ज्ञान को बढ़ाने का कारण बनती है। जो लोग शिवलिंग की पूजा करते हैं, उनकी बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है।

सिद्ध, देवता और असुर सभी शिवलिंग की वंदना करते हैं, यह दर्शाता है कि शिवलिंग की पूजा के प्रति सभी के मन में समान श्रद्धा और भक्ति है। इस प्रकार, यह श्लोक शिव की महानता और उनके सर्वसमावेशी स्वरूप को दर्शाता है।

कनकमहामणिभूषितलिङ्गम्

अर्थ: जिस शिवलिंग को सोने और महान रत्नों से भूषित किया गया है, जो नागराज (फणिपति) से सुशोभित है, जिसने दक्ष के यज्ञ का विनाश किया था, उस सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

व्याख्या:

  • कनकमहामणिभूषित: सोने और महान रत्नों से भूषित।
  • फणिपतिवेष्टितशोभित: नागराज (शेषनाग) से सुशोभित।
  • दक्षसुयज्ञविनाशन: दक्ष के यज्ञ का विनाश करने वाला।

इस श्लोक में शिवलिंग की भव्यता और शक्ति का वर्णन किया गया है। यह कहा गया है कि शिवलिंग को सोने और बहुमूल्य रत्नों से सजाया गया है, जो इसकी भव्यता को प्रदर्शित करता है।

शिवलिंग के चारों ओर नागराज शेषनाग कुंडली मारे हुए हैं, जो उसकी महिमा और सुरक्षा का प्रतीक है।

दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ के विनाश का संदर्भ शिव की अद्वितीय शक्ति और क्रोध को दर्शाता है। शिव ने यह विनाश इसलिए किया क्योंकि दक्ष ने शिव का अपमान किया था और शिव की पत्नी सती (दक्ष की पुत्री) ने यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था।

इस प्रकार, यह श्लोक शिव की महिमा, उनकी महानता और उनकी अद्वितीय शक्ति का वर्णन करता है।

कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गम्

अर्थ: जिस शिवलिंग को कुंकुम और चंदन से लेपित किया गया है, जो कमल और हार से सुशोभित है, जो संचित पापों का विनाश करने वाला है, उस सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

व्याख्या:

  • कुङ्कुमचन्दनलेपित: कुंकुम और चंदन से लेपित। कुंकुम और चंदन पवित्रता और शुभता के प्रतीक हैं, जो शिवलिंग की दिव्यता को बढ़ाते हैं।
  • पङ्कजहारसुशोभित: कमल और हार से सुशोभित। कमल पवित्रता और सौंदर्य का प्रतीक है, और हार अलंकार का प्रतीक है, जो शिवलिंग की शोभा को बढ़ाता है।
  • सञ्चितपापविनाशन: संचित पापों का विनाश करने वाला। यह बताता है कि शिव की पूजा से व्यक्ति के संचित (संचित) पाप नष्ट हो जाते हैं, और उसे मुक्ति मिलती है।

इस श्लोक में शिवलिंग की पवित्रता और उसकी दिव्यता को व्यक्त किया गया है। कुंकुम और चंदन से लेपित शिवलिंग की सुगंध और ठंडक भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक सुख प्रदान करती है।

कमल और हार से अलंकृत शिवलिंग उसकी दिव्यता और उसकी शोभा को बढ़ाते हैं, जिससे भक्तों को एक अलौकिक अनुभव होता है।

शिवलिंग की पूजा से भक्तों के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं, जिससे उन्हें जीवन में शांति, समृद्धि और मुक्ति प्राप्त होती है। इस प्रकार, यह श्लोक शिव की महिमा, उनकी पवित्रता और उनकी संचित पापों का नाश करने वाली शक्ति का वर्णन करता है।

देवगणार्चितसेवितलिङ्गम्

अर्थ: जिस शिवलिंग की देवताओं के समूह द्वारा अर्चना और सेवा की जाती है, जो भाव और भक्ति से पूज्य है, जो करोड़ों सूर्यों के प्रकाश के समान चमकता है, उस सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

व्याख्या:

  • देवगणार्चितसेवितलिङ्गम्: देवताओं के समूह द्वारा अर्चित और सेवा किया जाने वाला शिवलिंग। यह दर्शाता है कि शिवलिंग की महिमा इतनी महान है कि स्वयं देवता भी इसकी पूजा और सेवा करते हैं।
  • भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्: भाव और भक्ति से पूज्य शिवलिंग। इसका अर्थ है कि शिवलिंग की पूजा में भाव और भक्ति का विशेष महत्व है, और इसके द्वारा भक्त अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
  • दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गम्: करोड़ों सूर्यों के प्रकाश के समान चमकता शिवलिंग। यह बताता है कि शिवलिंग की दिव्यता और उसका तेज इतना अधिक है कि वह अनगिनत सूर्यों के समान चमकता है।

इस श्लोक में शिवलिंग की दिव्यता और उसकी महिमा का वर्णन किया गया है। देवताओं के समूह द्वारा पूजित और सेवित शिवलिंग का विशेष महत्व है, क्योंकि यह दर्शाता है कि शिवलिंग की महिमा कितनी महान और व्यापक है।

भाव और भक्ति से शिवलिंग की पूजा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दर्शाता है कि भक्त अपनी संपूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ शिवलिंग की आराधना करते हैं।

शिवलिंग की दिव्यता और उसका तेज करोड़ों सूर्यों के प्रकाश के समान है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि शिव की महिमा अनंत और अपरिमेय है। इस प्रकार, यह श्लोक शिवलिंग की पूजा के महत्व, उसकी दिव्यता और उसकी अपार महिमा का वर्णन करता है।

अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गम्

अर्थ: जिस शिवलिंग के चारों ओर अष्टदल (आठ पंखुड़ियों वाला) कमल होता है, जो सभी उत्पत्तियों का कारण है, और जो आठ प्रकार की दरिद्रता को नष्ट करता है, उस सदाशिवलिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।

व्याख्या:

  • अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गम्: अष्टदल कमल के द्वारा परिवेष्टित शिवलिंग। अष्टदल कमल को आध्यात्मिकता और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिवलिंग का सौंदर्य और महत्व अष्टदल कमल के समान दिव्य है।
  • सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम्: जो सभी उत्पत्तियों का कारण है। यह बताता है कि शिवलिंग ब्रह्मांड की उत्पत्ति का कारण है और सभी सृष्टियों की मूल शक्ति है।
  • अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गम्: जो आठ प्रकार की दरिद्रता को नष्ट करता है। इसका अर्थ है कि शिवलिंग की पूजा से भक्तों की आर्थिक, मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक दरिद्रता का नाश होता है।

इस श्लोक में शिवलिंग की दिव्यता, उसकी उत्पत्ति का कारण होना, और दरिद्रता को नष्ट करने की शक्ति का वर्णन किया गया है। शिवलिंग का अष्टदल कमल से घिरा होना उसकी सौंदर्य और दिव्यता को दर्शाता है।

शिवलिंग को सभी उत्पत्तियों का कारण बताया गया है, जो यह दर्शाता है कि शिव ब्रह्मांड की सृष्टि के मूल स्रोत हैं। इसके साथ ही, शिवलिंग की पूजा से भक्तों की सभी प्रकार की दरिद्रता का नाश होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि शिवलिंग की पूजा से भक्तों को संपूर्ण समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।

इस प्रकार, यह श्लोक शिवलिंग की महानता, उसकी उत्पत्ति का कारण होना, और उसकी दरिद्रता नाश करने की शक्ति का वर्णन करता है, जिससे भक्तों को जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि प्राप्त होती है।

अर्थ: मैं सदा उस परमात्मा शिवलिंग का प्रणाम करता हूँ, जो स्वर्गवासियों, गुरुओं, और सर्वश्रेष्ठ देवताओं द्वारा पूजित होता है, जिसे सुरवन के पुष्पों से सदा आराधित किया जाता है, और जो परमात्मा का अत्यंत परात्पर, परमात्मिक रूप है।

व्याख्या:

  • सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गम्: जो स्वर्गवासियों, गुरुओं, और सर्वश्रेष्ठ देवताओं द्वारा पूजित होता है। यह शिवलिंग उत्तम देवताओं की पूजा का आदर्श बनाता है।
  • सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम्: जिसे स्वर्गवासियों के पुष्प से सदा पूजा जाता है। यह शिवलिंग उच्च स्वर्गीय आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
  • परात्परं परमात्मकलिङ्गम्: जो परमात्मा का अत्यंत परात्पर, परमात्मिक रूप है। यह शिवलिंग आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है, जो सभी धार्मिक और आध्यात्मिक लक्ष्यों का सार है।

इस श्लोक में शिवलिंग की ऊँचाई, उसकी पूजा का उच्च स्तर, और उसका परमात्मिक रूप का वर्णन किया गया है। इसमें शिवलिंग का स्वर्गीय और परमात्मिक महत्त्व प्रकट होता है। यह श्लोक भक्तों को शिवलिंग की आध्यात्मिक महिमा के प्रति श्रद्धा और समर्पण को बढ़ावा देता है।

अर्थ: जो व्यक्ति इस लिंगाष्टक स्तोत्र को पढ़े, वह शिव के समीप में पुण्य को प्राप्त होता है। वह शिवलोक को प्राप्त होता है और शिव के साथ आनंदित होता है।

इस स्तोत्र में शिवलिंग के गुणों की महिमा और महत्त्व का वर्णन किया गया है, और इसके पाठ से भक्त को शिव के साथ सम्पर्क में आने और उसकी कृपा को प्राप्त करने का साधन मिलता है। यह स्तोत्र शिवभक्ति में समर्पित है और उसके पाठ से भक्त की आत्मिक उन्नति होती है। इसे पढ़कर भक्त शिव के साथ एकान्त में आनंदित होता है और उसकी कृपा का अनुभव करता है।

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