Table of Contents
प्रिय पाठकों, आज हम आपके समक्ष जगन्नाथ पुरी की अद्भुत कथा प्रस्तुत करने जा रहे हैं, जो भगवान जगन्नाथ के दिव्य अवतार और उनके महान चमत्कारों की गाथा है। इस कहानी के माध्यम से, हम त्रेता युग से लेकर द्वापर युग तक की एक यात्रा करेंगे, जहाँ भगवान श्री राम और बाली के बीच की घटना से लेकर भगवान श्री कृष्ण के निधन तक के घटनाक्रम निहित हैं। इस यात्रा में, हम देखेंगे कैसे एक भूल से उत्पन्न एक श्राप ने अंततः एक दिव्य अवतार की उत्पत्ति का मार्ग प्रशस्त किया।
जगन्नाथ मंदिर
जगन्नाथ पुरी भारत के ओडिशा राज्य में स्थित एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह विशेष रूप से श्री जगन्नाथ मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जो हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक है। जगन्नाथ पुरी, बद्रीनाथ, द्वारका, और रामेश्वरम के साथ मिलकर भारत के चार धाम का निर्माण करते हैं, जो हिन्दू तीर्थयात्रा के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से हैं।
जगन्नाथ पुरी का मुख्य आकर्षण जगन्नाथ मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (भगवान विष्णु के एक रूप), उनके भाई बलभद्र, और बहन सुभद्रा को समर्पित है। यह मंदिर अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प सौंदर्य, और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। मंदिर में रखी गई मूर्तियाँ विशेष हैं क्योंकि ये लकड़ी से बनी होती हैं और हर बारह या निन्यानवे वर्षों में इन्हें नवीनीकृत किया जाता है, एक अनुष्ठान के तहत जिसे ‘नवकलेवर’ कहा जाता है।
जगन्नाथ पुरी अपने वार्षिक रथ यात्रा उत्सव के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है, जो आमतौर पर जून या जुलाई में मनाया जाता है। इस उत्सव में, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा की मूर्तियों को विशाल रथों पर सवार करके मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। यह यात्रा लाखों भक्तों द्वारा देखी और भाग ली जाती है, जो दुनिया भर से इस अवसर पर पुरी आते हैं।
पुरी अपने सुंदर समुद्र तटों के लिए भी जानी जाती है, जो तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आराम और मनोरंजन प्रदान करते हैं। पुरी समुद्र तट अपने साफ पानी, रेतीले किनारे, और सूर्यास्त के मनोरम दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है।
जगन्नाथ पुरी का रहस्य एवं कथा
इस कथा में हम यह भी देखेंगे कि कैसे भगवान विष्णु ने एक राजा के सपने में प्रकट होकर उन्हें एक दिव्य आदेश दिया, जिसका पालन करते हुए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों का निर्माण हुआ। इस प्रक्रिया में भगवान विश्वकर्मा की एक अनोखी भूमिका भी सामने आती है, जिसमें वे एक बूढ़े शिल्पकार के रूप में प्रकट होते हैं और एक विशेष शर्त के साथ मूर्तियों का निर्माण करते हैं।
इस कहानी के माध्यम से, हम यह भी समझेंगे कि कैसे प्रत्येक जीवन घटना का एक गहरा अर्थ और भगवान की इच्छा से एक अद्वितीय संबंध होता है। अंत में, हम जगन्नाथ मंदिर में स्थापित मूर्तियों के नवकलेवर अनुष्ठान के महत्व को देखेंगे, जो हर 12 वर्षों में आयोजित किया जाता है। इस अनुष्ठान के माध्यम से, भगवान जगन्नाथ के जीवित होने का विश्वास और उनके भक्तों के साथ उनके अटूट संबंध का उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, त्रेता युग में, भगवान श्री राम ने इंद्र के पुत्र बाली को ताड़ वृक्ष के पीछे छिपकर मार डाला था। जब बाली ने भगवान श्री राम से अपने अंत का कारण बिना किसी कारण के पूछा, तब भगवान श्री राम ने बाली को आश्वासन दिया कि द्वापर युग में, जब वह मानव रूप में अवतार लेंगे, तब वह अर्थात् बाली एक बहेलिए के रूप में जन्म लेगा और उनकी मृत्यु का कारण बनेगा।
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, जब यदुवंशी, गांधारी के शाप के कारण आपस में लड़ने लगते हैं, तब श्री कृष्ण एक पीपल के पेड़ के नीचे चतुर्भुज रूप में योग निद्रा में बैठ जाते हैं, तभी वहां से एक शिकारी गुजरता है, जो भगवान के लाल चमकते तलवों को विकिरण के मुख की भूल कर जारा के पीछे जाता है। और हिरण समझ कर एक तीर चला देता है। तीर भगवान कृष्ण के तलवे पर जा लगा ।
जब उसे पता चलता है कि वह कोई और नहीं बल्कि भगवान कृष्ण हैं, तो वह उसने जो किया उसके लिए बहुत दुखी होता है,और एक अपराध का बोध होता है, तो उसने कृष्ण से कहा कि मुझे पूजा के लिए मृत्युदंड दें।
कृष्ण ने उत्तर दिया आपने कोई अपराध नहीं किया था, यह तो पहले से ही त्रेता युग में लिखा जा चुका था, जो आज आपके हाथों में पूरा हो रहा है। यह इसलिए हुआ क्योंकि आपके पिछले जन्म में आप वानर राज बाली थे और आपको मैने ही छीप कर मारा था। जब बाली ने भगवान श्री राम से अपने अंत का कारण बिना किसी कारण के पूछा, तब भगवान श्री राम ने बाली को आश्वासन दिया कि द्वापर युग में, जब वे मानव रूप में अवतार लेंगे, तब वह अर्थात् बाली एक पहेली के रूप में जन्म लेगा और उनकी मृत्यु का कारण बनेगा। बहेलिए ने दुखी मन से घायल भगवान श्री कृष्ण को छोड़ दिया।
और कुछ समय बाद, श्री कृष्ण मानव रूप के शरीर को छोड़कर देवलोक के लिए प्रस्थान करते हैं। जब पांडवों को इसके बारे में पता चलता है, तो वे सभी एक साथ आते हैं और भगवान श्री कृष्ण की अंतिम क्रिया करते हैं और उनके शरीर को अग्नि में जला देते हैं। यह शरीर तो जल जाता है लेकिन भगवान श्री कृष्ण का हृदय जीवित रहता है। इसे देखकर, पांडव भगवान श्री कृष्ण के हृदय को एक मोटे लकड़े पर बांधते हैं और उसे समुद्र में बहा देते हैं, जो बहकर पुरी के समुद्र तट पर पहुंच जाता है। उस समय, वह राज्य में मालवा के रूप में जाना जाता था। वहां एक राजा हुआ करता था जिसकी राजधानी अवंतीपुर थी। राजा स्वयं भगवान विष्णु का महान भक्त था। वह हमेशा भगवान विष्णु के दर्शन करना चाहता था। एक रात, श्री हरि विष्णु राजा इंद्रधन के सपने में प्रकट होकर उन्हें दर्शन देते हैं।
दर्शन देने के साथ उन्होंने एक रहस्य वाली बात बताई कि आपको समुद्र में एक बड़ा लकड़ी का टुकड़ा मिलेगा , उस टुकड़े की सहायता से आप एक मूर्ति का निर्माण करवाएंगे, विष्णु के सपने के आदेश का पालन करते हुए, वे समुद्र तट पर पहुंचते हैं जहां उन्हें एक भारी लकड़ी का टुकड़ा तैरता हुआ दिखाई देता है जिसके साथ उन्हें एक कपड़े से बंधा हुआ दिल मिलता है। राजा इंद्रधन का सेवक वह टुकड़ा उठाकर उसे राजधानी में ले आता है, उसके बाद राजा अपने राज्य के सभी कुशल शिल्पकारों को बुलाता है और उन्हें भगवान विष्णु अर्थात् नील माधव की मूर्ति बनाने का आदेश देता है, लेकिन लकड़ी के टुकड़े पर कोई भी कारीगर काम नहीं कर पाया, उनके छेनी और हथौड़ी का लकड़ी पर कोई भी असर नहीं पड़ रहा था इस समस्या का हल निकालने के लिए राजा ने विश्वकर्मा जी की पूजा की और उन्हें निमंत्रण दिया। भगवान विश्वकर्मा जी एक बूढ़े शिल्पकार के रूप में राजमहल पहुंचते हैं।
विश्वकर्मा जी ने पूछा की
आप मूर्ति बनाना चाहते हैं। राजा ने कहा हां,राजा ने उत्तर दिया जी कोई भी शिल्पकार मूर्ति बनाने के लिए सक्षम नहीं है, विश्वकर्मा जी ने कहा राजन, मैं निश्चित रूप से उसे काठ से मूर्ति बनाऊंगा, लेकिन मेरी कुछ शर्तें हैं जिन्हें आपको स्वीकार करना होगा। आप मुझे बताइए, राजन, मैं भगवान विष्णु अर्थात् नील माधव की मूर्तियां बनाऊंगा। मूर्ति का निर्माण से पहले विश्वकर्मा जी ने राजा से एक वचन मांगा वचन में उन्होंने कहा कि मैं 21 दिन तक मूर्ति का निर्माण करता रहूंगा, लेकिन आपको यह वचन देना होगा की मूर्ति के निर्माण कार्य को करते समय कोई भी मेरी निर्माण की प्रक्रिया में विघ्न न डालें, यदि कोई व्यक्ति मेरे निर्माण कार्य में विघ्न डालता है तो मैं तुरंत ही वह काम छोड़कर चला जाऊंगा। राजा ने उनकी विनीति स्वीकार की और विश्वकर्मा जी काम में लग गए।
वह निर्माण कार्य में व्यस्त हो जाता है और कक्ष से आने वाली हथौड़ी की खड़खड़ाहट की आवाज सुनना शुरू कर देता है। इस तरह दिन बीतते जाते हैं। मूर्ति के निर्माण की शुरुआत के 15 दिन बाद, रानी गुंडीचा कक्ष के पास से उसे झांकती हैं ,मगर कक्ष के अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी जिससे वह परेशान हो जाती है और राजा इंद्र पास जाकर सब कुछ बताती है। आज वहां से कोई आवाज नहीं आ रही है। मगर कक्ष के अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही , वह बूढ़ा शिल्पकार भूख और प्यास से चला गया है? हमें कक्ष खोलकर देखना चाहिए। हमें बिना किसी कारण के हत्या का दोषी नहीं हो जाना चाहिएइसलिए हमको चलकर देखना चाहिए कि वह शिल्पकार जीवित है या संकट में है। रानी के अनुरोध पर राजा ने विश्वकर्मा जी के पक्ष के द्वारा को खुलवाने का आदेश दिया ,जैसे ही कक्षा का द्वार खोला गयाऔर विश्वकर्मा जी की दृष्टि राजा पर पड़ी विश्वकर्मा जी ने तुरंत ही उसे अर्ध निर्मित मूर्ति में भगवान का हृदय स्थापित करते हुए वहां से चले गए। इस घटना से राजा को बहुत दुख पहुंचा और वह अर्ध निर्मित मूर्ति की ओर ध्यान से देखने लगे मूर्ति को लगातार देखने के बाद राजा को यह महसूस हुआ की मूर्ति मेंअभिवी प्राण बाकी है।
जब राजा बनाई गई मूर्तियों के पास जाते हैं, तो उन्हें श्री कृष्ण की मूर्ति से दिल की धड़कन की आवाज सुनाई देती है, जिससे उन्हें यह ज्ञात होता है कि भगवान श्री कृष्ण का दिल इस मूर्ति के भीतर निवास करता है। भगवान विष्णु की इच्छा के अनुसार, उन मूर्तियों की स्थापना की गई जो आज भगवान जगन्नाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध हैं।
प्रिय मित्रों, आइए आपको बताते हैं कि आज भी जगन्नाथ मंदिर के गर्भ में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां एक साथ स्थापित हैं जिन्हें हर 12 वर्षों में बदला जाता है जिसे नव कलेवर कहा जाता है। जब मंदिर की मूर्तियों को बदला जाता है तब ब्रह्म पदार्थ को मूर्तियों से निकालकर नई मूर्तियों में रखा जाता है। इसे श्री कृष्ण का हृदय माना जाता है। जगन्नाथ मंदिर के पुजारी कहते हैं कि जब वह ब्रह्म पदार्थ को नई मूर्तियों में रखते हैं, तो उन्हें अपने हाथों में कुछ कूदता हुआ महसूस होता है जो जीवित अवस्था में होता है। यह भी माना जाता है कि इस ब्रह्म पदार्थ को देखने वाला व्यक्ति मर जाएगा, इसलिए मूर्ति बदलते समय पुजारी की आँखों पर कपड़ा बांध दिया जाता है और उसके हाथों में दस्ताने रखे जाते हैं। जब भी इन मूर्तियों को बदला जाता है, पूरे शहर की बिजली काट दी जाती है।
प्रिय मित्रों, हर साल भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा की यात्रा बड़े धूमधाम से आयोजित की जाती है, जिसे देखने के लिए न केवल देश बल्कि दुनिया के हर कोने से भक्तों की भीड़ जुटती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा
जगन्नाथ रथ यात्रा, जिसे chariot festival या रथजात्रा के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय सनातन धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित त्योहार है। यह उत्सव विशेष रूप से ओडिशा के पुरी में मनाया जाता है और इसमें भगवान जगन्नाथ की विशाल और भव्य रथ यात्रा शामिल होती है। यह त्योहार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर जून या जुलाई महीने में पड़ता है।
इस उत्सव के दौरान, भगवान जगन्नाथ को उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ उनके मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। इस प्रक्रिया में, तीनों देवताओं की मूर्तियों को अलग-अलग रथों पर सजाया जाता है और फिर भक्तों द्वारा रस्सियों के माध्यम से खींचा जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष, बलभद्र के रथ को तालध्वज, और सुभद्रा के रथ को देवदलन कहा जाता है।
रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह एकता, सामाजिक समरसता और भाईचारे का प्रतीक भी है। लाखों भक्त दुनिया भर से पुरी आते हैं और इस आध्यात्मिक अनुभव में भाग लेते हैं। यह यात्रा न केवल भगवान के प्रति भक्ति को दर्शाती है बल्कि यह भी सिखाती है कि किस प्रकार सभी वर्गों के लोग एक साथ मिलकर एक धार्मिक उत्सव मना सकते हैं।
रथ यात्रा के नौ दिनों के बाद, देवताओं को वापस उनके मुख्य मंदिर में ले जाया जाता है, जिसे ‘बहुड़ा यात्रा’ कहा जाता है। इस पूरे उत्सव के दौरान, पुरी शहर धार्मिक उत्साह और आध्यात्मिक आनंद से भर जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल ओडिशा बल्कि पूरे भारत और विश्व में हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण और पवित्र अवसर है। यह उत्सव भारतीय संस्कृति की विविधता और आध्यात्मिक गहराई को दर्शाता है।
जगन्नाथ पुरी क्या है?
जगन्नाथ पुरी ओडिशा, भारत में एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जो श्री जगन्नाथ मंदिर के लिए प्रसिद्ध है और यह हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक है।
जगन्नाथ पुरी की कथा में भगवान विश्वकर्मा की क्या भूमिका है?
भगवान विश्वकर्मा एक बूढ़े शिल्पकार के रूप में प्रकट होते हैं और विशेष शर्तों के साथ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों का निर्माण करते हैं।
नवकलेवर अनुष्ठान क्या है?
नवकलेवर एक अनुष्ठान है जो हर 12 वर्षों में आयोजित किया जाता है, जिसमें मंदिर की मूर्तियों को बदला जाता है और ब्रह्म पदार्थ को नई मूर्तियों में रखा जाता है, जिसे श्री कृष्ण का हृदय माना जाता है।
जगन्नाथ पुरी क्यों प्रसिद्ध है?
जगन्नाथ पुरी ओडिशा में स्थित एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जो विशेष रूप से श्री जगन्नाथ मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक है।
जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा का महत्व क्या है?
जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित त्योहार है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा की मूर्तियों को विशाल रथों पर सवार करके मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। यह एकता, सामाजिक समरसता और भाईचारे का प्रतीक है।
‘नवकलेवर’ अनुष्ठान क्या है?
‘नवकलेवर’ अनुष्ठान एक धार्मिक अनुष्ठान है जो हर 12 वर्षों में आयोजित किया जाता है। इस दौरान, जगन्नाथ मंदिर में स्थापित मूर्तियों को बदला जाता है और नई मूर्तियों में ‘ब्रह्म पदार्थ’ को स्थानांतरित किया जाता है, जिसे श्री कृष्ण का हृदय माना जाता है।