गुरु शब्द संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है “ज्ञान का प्रकाश” या “अंधकार को दूर करने वाला”। हिंदू धर्म में, गुरु को भगवान से भी ऊँचा स्थान दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गुरु ही वह व्यक्ति है जो हमें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है और हमें मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है।यदि आप आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं और मोक्ष के मार्ग पर जाना चाहते हैं, तो एक सच्चे गुरु की खोज करना बहुत ज़रूरी है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः।
यह मंत्र गुरु की महिमा का वर्णन करता है और उन्हें सर्वोच्च शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करता है। इस मंत्र का हिंदी में अर्थ है:
- गुरु ब्रह्मा हैं (सृष्टि करने वाले),
- गुरु विष्णु हैं (पालन करने वाले),
- गुरु देव महेश्वर (शिव) हैं (संहार करने वाले),
- गुरु साक्षात परब्रह्म हैं (सर्वोच्च शक्ति),
- ऐसे श्रीगुरु को प्रणाम।
इस मंत्र का संदेश है कि गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के समान माना गया है। गुरु को साक्षात परमब्रह्म स्वरूप में देखा गया है, और इस प्रकार उनसे सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। यह मंत्र गुरु की महानता और उनकी अद्वितीयता को दर्शाता है, और यह संकेत करता है कि गुरु ही सभी देवताओं के समकक्ष हैं और उन्हीं के द्वारा हमें सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः श्लोक का उद्गम
यह श्लोक महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित ‘गुरु गीता’ से लिया गया है, जो कि स्कंद पुराण का एक भाग है। गुरु गीता में माता पार्वती भगवान शिव से गुरु के महत्व के बारे में बताने के लिए कहती हैं। इस श्लोक में भगवान शिव गुरु के महत्व को बता रहे हैं। गुरु शब्द का सही अर्थ है वह जो अंधेरे को मिटाये। यह दो शब्दों से बना एक शब्द है: ‘गु’ यानी अंधेरा और ‘रु’ मतलब हटाने वाला। अर्थात अंधेरे को हटाने वाला हमारा गुरु है।
हमारे लिए हमारा गुरु त्रिमूर्ति का आकार है, जो तीन भगवानों का स्वरूप है: ब्रह्मा, विष्णु और शिव। हमारे लिए हमारा गुरु भगवान ब्रह्मा का आकार है, जो हमें विद्या रूपी प्रसाद देता है। हमारा गुरु विष्णु का स्वरूप भी है, जो हमें बनाई गई चीज़ों को सुरक्षित रखने का ज्ञान और तरीका प्रदान करता है। गुरु शिव का रूप भी है, जो हमें बुराई को हटाने का तरीका और उपाय प्रदान करता है। गुरु हमें अज्ञान हटाने के लिए विभिन्न प्रकार के रास्ते दिखाता है। इसलिए हमारा गुरु हमारे लिए वह अपार शक्ति है जो बुराई और अच्छाई, गलत और सही, इन सभी चीज़ों का संपूर्ण ज्ञान देने का केंद्र है। ऐसे गुरुजनों को शिष्य अपने तन मन से पूजनीय मानते हुए अपने श्रद्धा अर्पित करते हैं।
रामना महार्षि का गुरु के बारे में दृष्टिकोण
भगवान रामना महार्षि ने प्रसिद्ध रूप से कहा: “गुरु ही आत्मा है। गुरु बाह्य और आंतरिक दोनों हैं। बाहरी रूप में वह मन को अंदर की ओर मोड़ने के लिए प्रेरित करते हैं; आंतरिक रूप में वह मन को आत्मा की ओर खींचते हैं और मन को शांति में लाने में मदद करते हैं। यह गुरु की कृपा है। भगवान, गुरु और आत्मा में कोई भिन्नता नहीं है।”
जब उनसे पूछा गया कि गुरु को कैसे पाया जाए, तो उन्होंने कहा: “भगवान, जो सर्वव्यापी हैं, अपनी कृपा में प्रेमपूर्ण भक्त पर दया करते हैं और भक्त की प्रगति के अनुसार स्वयं को गुरु के रूप में प्रकट करते हैं। भक्त सोचता है कि वह एक व्यक्ति है और दो भौतिक शरीरों के बीच एक संबंध की अपेक्षा करता है। लेकिन गुरु, जो भगवान या आत्मा अवतार हैं, भीतर से काम करते हैं, व्यक्ति को उसके गलत मार्गों का एहसास कराते हैं और उसे सही रास्ते पर मार्गदर्शन करते हैं जब तक कि वह आत्मा को भीतर नहीं पहचान लेता।”
इसलिए, शिष्य को केवल गुरु के शब्दों पर कार्य करना और भीतर काम करना है। गुरु ‘भीतर’ और ‘बाह्य’ दोनों हैं, इसलिए वह आपको अंदर की ओर प्रेरित करने के लिए बाहरी परिस्थितियाँ बनाते हैं और साथ ही ‘अंतःकरण’ को केंद्र की ओर खींचने के लिए तैयार करते हैं। इस प्रकार, वह ‘बाह्य’ से प्रेरणा देते हैं और ‘भीतर’ से खींचते हैं, ताकि आप केंद्र में स्थिर हो सकें।
गुरु की महिमा और उनकी भूमिका
गुरु के महत्व को समझने के लिए हमें यह समझना होगा कि वे सिर्फ एक शिक्षक नहीं होते, बल्कि एक मार्गदर्शक होते हैं जो हमें जीवन के सही मार्ग पर ले जाने के लिए हमारे जीवन में आते हैं। गुरु हमें न केवल शैक्षिक ज्ञान देते हैं, बल्कि जीवन की सही दिशा और उद्देश्य के बारे में भी मार्गदर्शन करते हैं।
गुरु का ब्रह्मा स्वरूप
गुरु का ब्रह्मा स्वरूप हमें यह सिखाता है कि सृजन और निर्माण केवल भौतिक वस्तुओं का नहीं होता, बल्कि यह हमारी आत्मा और हमारे आंतरिक विचारों का भी होता है। गुरु हमें नए विचारों, नई दृष्टियों और नई संभावनाओं को जन्म देने के लिए प्रेरित करते हैं। वे हमें सृजनशीलता और नवाचार की शक्ति प्रदान करते हैं, जिससे हम अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण और समृद्ध बना सकें।
गुरु का विष्णु स्वरूप
गुरु का विष्णु स्वरूप हमें यह सिखाता है कि केवल निर्माण करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे सुरक्षित रखना और बनाए रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। गुरु हमें यह सिखाते हैं कि कैसे हम अपने विचारों, कार्यों और उपलब्धियों को स्थिरता प्रदान कर सकते हैं। वे हमें जीवन में संतुलन और स्थिरता बनाए रखने का महत्व समझाते हैं, जिससे हम अपने लक्ष्यों को स्थायी रूप से प्राप्त कर सकें।
गुरु का शिव स्वरूप
गुरु का शिव स्वरूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में नकारात्मकता और बुराइयों को नष्ट करना भी आवश्यक है। गुरु हमें यह सिखाते हैं कि कैसे हम अपने अंदर की बुरी आदतों, नकारात्मक विचारों और अज्ञानता को समाप्त कर सकते हैं। वे हमें आत्मसाक्षात्कार और आत्मशुद्धि के मार्ग पर ले जाते हैं, जिससे हम अपने सच्चे आत्म को पहचान सकें और जीवन में शांति और संतोष पा सकें।
गुरु का आध्यात्मिक महत्व
गुरु का आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा और व्यापक है। वे हमें न केवल भौतिक जीवन के पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि हमें आध्यात्मिक जागरूकता और आत्मज्ञान के मार्ग पर भी ले जाते हैं। गुरु हमें यह सिखाते हैं कि सच्ची खुशी और शांति बाहरी भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि हमारे अंदर की आत्मा में है। वे हमें ध्यान, योग और आत्मचिंतन के माध्यम से आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं।
निष्कर्ष
गुरु की महिमा और उनका महत्व अतुलनीय है। वे हमारे जीवन में त्रिमूर्ति के समान होते हैं, जो हमें सृजन, संरक्षण और विनाश के मार्ग पर ले जाते हैं। वे हमें ज्ञान, स्थिरता और आत्मशुद्धि की दिशा में प्रेरित करते हैं। गुरु का आशीर्वाद हमें जीवन के हर पहलू में सफलता और शांति प्रदान करता है। इसलिए, हमें अपने गुरु का आदर और सम्मान करना चाहिए और उनके मार्गदर्शन को अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः। इस मंत्र के साथ, हम अपने गुरु को नमन करते हैं और उनके प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। उनकी कृपा और आशीर्वाद हमारे जीवन को सदैव प्रकाशित और मार्गदर्शित करता रहे।
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गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु श्लोक का क्या अर्थ है?
यह श्लोक गुरु की महिमा का वर्णन करता है, जिसमें कहा गया है कि गुरु ब्रह्मा (सृष्टि करने वाले), विष्णु (पालन करने वाले), और महेश्वर (संहार करने वाले) के समान हैं। गुरु को साक्षात परमब्रह्म स्वरूप में देखा गया है, और इस प्रकार उनसे सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। इस श्लोक का हिंदी अर्थ है:
गुरु ब्रह्मा हैं (सृष्टि करने वाले),
गुरु विष्णु हैं (पालन करने वाले),
गुरु देव महेश्वर (शिव) हैं (संहार करने वाले),
गुरु साक्षात परब्रह्म हैं (सर्वोच्च शक्ति),
ऐसे श्रीगुरु को प्रणाम।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः श्लोक का उद्गम क्या है?
यह श्लोक महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित ‘गुरु गीता’ से लिया गया है, जो कि स्कंद पुराण का एक भाग है। गुरु गीता में माता पार्वती भगवान शिव से गुरु के महत्व के बारे में पूछती हैं और भगवान शिव इस श्लोक के माध्यम से गुरु के महत्व को बताते हैं।
‘गुरु’ शब्द का सही अर्थ क्या है?
‘गुरु’ शब्द का अर्थ है वह जो अंधेरे को मिटाए। यह दो शब्दों से बना है: ‘गु’ यानी अंधेरा और ‘रु’ मतलब हटाने वाला। अर्थात, अंधेरे को हटाने वाला हमारा गुरु है।
गुरु का त्रिमूर्ति के रूप में महत्व क्या है?
हमारे लिए गुरु त्रिमूर्ति का आकार है, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्वरूप है। गुरु ब्रह्मा का रूप है जो हमें विद्या रूपी प्रसाद देता है, विष्णु का रूप है जो हमें सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करता है, और शिव का रूप है जो हमें बुराई को नष्ट करने का तरीका सिखाता है।
गुरु का ब्रह्मा स्वरूप क्या सिखाता है?
गुरु का ब्रह्मा स्वरूप हमें सिखाता है कि सृजन और निर्माण केवल भौतिक वस्तुओं का नहीं होता, बल्कि हमारी आत्मा और आंतरिक विचारों का भी होता है। गुरु हमें नए विचारों और नई संभावनाओं को जन्म देने के लिए प्रेरित करते हैं।
गुरु का विष्णु स्वरूप क्या सिखाता है?
गुरु का विष्णु स्वरूप हमें सिखाता है कि केवल निर्माण करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे सुरक्षित रखना और बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है। गुरु हमें संतुलन और स्थिरता बनाए रखने का महत्व समझाते हैं।
गुरु का शिव स्वरूप क्या सिखाता है?
गुरु का शिव स्वरूप हमें सिखाता है कि जीवन में नकारात्मकता और बुराइयों को नष्ट करना आवश्यक है। गुरु हमें आत्मसाक्षात्कार और आत्मशुद्धि के मार्ग पर ले जाते हैं।
गुरु का आध्यात्मिक महत्व क्या है?
गुरु का आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा और व्यापक है। वे हमें न केवल भौतिक जीवन के पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि हमें आध्यात्मिक जागरूकता और आत्मज्ञान के मार्ग पर भी ले जाते हैं। गुरु की महिमा और उनका महत्व अतुलनीय है। वे हमारे जीवन में त्रिमूर्ति के समान होते हैं, जो हमें सृजन, संरक्षण और विनाश के मार्ग पर ले जाते हैं। गुरु का आशीर्वाद हमें जीवन के हर पहलू में सफलता और शांति प्रदान करता है। इसलिए, हमें अपने गुरु का आदर और सम्मान करना चाहिए और उनके मार्गदर्शन को अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
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