गायत्री मंत्र Gayatri Mantra को वैदिक मंत्रों का राजा माना जाता है। यह मंत्र इतना शक्तिशाली और प्रभावी है कि इसके नियमित जाप से व्यक्ति को मानसिक शांति, आध्यात्मिक ऊर्जा और हर समस्या का समाधान प्राप्त हो सकता है। गायत्री मंत्र Gayatri Mantra के महत्व और इसके विधिपूर्वक जाप की जानकारी हम इस ब्लॉग में विस्तार से देंगे।
गायत्री मंत्र Gayatri Mantra का अर्थ और महत्व
गायत्री मंत्र Gayatri Mantra इस प्रकार है:
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
गायत्री मंत्र का अर्थ है:
हम उस पवित्र प्रकाश का ध्यान करते हैं, जो संपूर्ण संसार के कल्याण के लिए है। हे परमात्मा! हमारी बुद्धि को सही मार्ग दिखाओ और उसे ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करो।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥
Om Bhuur-Bhuvah Svah
Tat-Savitur-Varennyam
Bhargo Devasya Dhiimahi
Dhiyo Yo Nah Pracodayaat ||
This mantra, known as the Gayatri Mantra, holds profound spiritual significance. Its meaning is as follows:
“We meditate upon the divine and sacred light of the Creator, who is the source of all well-being for the entire universe. O Supreme Being! Illuminate our intellect and guide it towards the path of righteousness and wisdom.”
गायत्री मंत्र Gayatri Mantra का उच्चारण हमारे मानसिक, शारीरिक और आत्मिक संतुलन के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। यह मंत्र ब्रह्मांड की सकारात्मक ऊर्जा को हमारी ओर आकर्षित करता है और हमारे मनोवांछित कार्यों की पूर्ति में सहायक होता है।
गायत्री मंत्र Gayatri Mantra जाप की विधि
गायत्री मंत्र Gayatri Mantra को वेदों में सबसे पवित्र और प्रभावशाली मंत्रों में से एक माना गया है। इसके जाप से मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। इसे प्रभावशाली बनाने के लिए सही विधि का पालन करना आवश्यक है। गायत्री मंत्र Gayatri Mantra जाप की शुरुआत स्नान और शुद्धि से होती है। प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और किसी शांत और पवित्र स्थान का चयन करें, जहाँ कोई व्यवधान न हो। जाप के लिए एक उचित आसन का उपयोग करें। कंबल, कुश या रेशमी आसन विद्युत और ऊष्मा का संतुलन बनाए रखते हैं और साधना के दौरान स्थिरता प्रदान करते हैं।
गायत्री मंत्र Gayatri Mantra जाप के लिए पूजन सामग्री तैयार करना भी आवश्यक है। गायत्री माता की प्रतिमा या चित्र के समक्ष धूप, दीप, पुष्प और अक्षत रखें, जिससे वातावरण पवित्र और सकारात्मक बने। जाप प्रारंभ करने से पहले मन में स्पष्ट संकल्प लें कि आप यह जाप किस उद्देश्य से कर रहे हैं, जैसे मानसिक शांति, सफलता, या स्वास्थ्य। मंत्र का उच्चारण स्पष्ट, शुद्ध और मध्यम स्वर में करें, ताकि ध्यान पूरी तरह मंत्र पर केंद्रित रहे।
मंत्र जाप को व्यवस्थित और गिनती बनाए रखने के लिए माला का उपयोग करें। तुलसी, रुद्राक्ष या स्फटिक की माला इस कार्य के लिए उपयुक्त मानी जाती है। माला को दाहिने हाथ में रखें और 108 बार गायत्री मंत्र Gayatri Mantra का जाप करें। माला को अंगूठे और मध्यमा उंगली से पकड़ें, तर्जनी का उपयोग न करें। जाप के दौरान आसन न बदलें और अपनी पीठ को सीधा रखें।
जाप समाप्त होने पर गायत्री माता का ध्यान करें और उन्हें प्रणाम करें। ध्यान के बाद, जाप में हुई त्रुटियों के लिए क्षमायाचना करना न भूलें। यह साधना को पूर्णता प्रदान करता है। गायत्री मंत्र Gayatri Mantra का जाप सूर्योदय और सूर्यास्त के समय करना अधिक लाभकारी माना गया है। जाप के समय मन को एकाग्र रखें और बाहरी विचारों से मुक्त रहें।
गायत्री मंत्र Gayatri Mantra जाप एक गहन आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जो जीवन में शांति, सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार करती है। सही विधि और श्रद्धा के साथ इसका अभ्यास करने से साधक को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।
ब्रह्म संध्या गायत्री मंत्र जप – उपासना के पाँच अंग
गायत्री मंत्र Gayatri Mantra जप से पहले ब्रह्म संध्या का अभ्यास करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। यह प्रक्रिया आत्मा और शरीर की शुद्धि का एक महत्वपूर्ण चरण है, जो साधक को ध्यान और साधना में एकाग्रता प्रदान करती है। ब्रह्म संध्या पाँच मुख्य अंगों से मिलकर बनी होती है, जिनका उद्देश्य मानसिक और शारीरिक शुद्धि के साथ आध्यात्मिक उन्नति को सुनिश्चित करना है।
पहला चरण पवित्रीकरण है, जिसमें शरीर को बाहरी और आंतरिक रूप से शुद्ध करने के लिए जल का उपयोग किया जाता है। साधक बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से उसे ढँकते हैं और
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
मंत्र का उच्चारण करते हुए जल को सिर और शरीर पर छिड़कते हैं। यह चरण मानसिक और शारीरिक शुद्धि को सुनिश्चित करता है, जिससे साधना में ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है।
दूसरा चरण आचमन है, जो शरीर की आंतरिक पवित्रता पर केंद्रित होता है। इसमें चम्मच या हाथ से तीन बार जल का आचमन किया जाता है और प्रत्येक बार
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा।
ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा।
मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। यह प्रक्रिया न केवल शरीर को शुद्ध करती है, बल्कि साधक के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाती है।
तीसरा चरण शिखा वंदन है, जिसमें सिर पर शिखा को स्पर्श करते हुए
ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
मंत्र का उच्चारण किया जाता है। इस चरण का उद्देश्य मस्तिष्क और आत्मा को दिव्य ऊर्जा से जोड़ना है, जिससे साधक को मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
चौथा चरण प्राणायाम है, जो श्वास-प्रश्वास की साधना के माध्यम से मानसिक और शारीरिक संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है। इसमें श्वास को धीरे-धीरे खींचकर कुछ समय तक रोकने और फिर छोड़ने के साथ
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः।
ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। प्राणायाम साधक को मानसिक शांति और ध्यान की गहराई को बढ़ाने में मदद करता है।
अंतिम चरण न्यास है, जिसमें जल को अंगुलियों से भिगोकर शरीर के विभिन्न अंगों पर छिड़का जाता है और
ॐ वाँ मे आस्येऽस्तु। (मुख को)ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु। (नासिका के दोनों छिद्रों को)ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु। (दोनों नेत्रों को)ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु। (दोनों कानों को)ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु। (दोनों भुजाओं को)ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु। (दोनों जंघाओं को)ॐ अरिष्टानि मेऽंगानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु। (समस्त शरीर पर)
मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। यह चरण शरीर के अंगों को शुद्ध और जागृत करने के लिए किया जाता है, जिससे साधक की चेतना और आत्मा में पवित्रता का अनुभव होता है।
ब्रह्म संध्या का हर चरण आत्मिक और शारीरिक शुद्धि का अद्भुत माध्यम है। यह प्रक्रिया साधना के लिए आवश्यक ऊर्जा और शांति प्रदान करती है। इन पाँच अंगों का विधिपूर्वक पालन करने से साधक अपनी आध्यात्मिक यात्रा को समृद्ध और सफल बना सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार, मंत्रों का सही उच्चारण और विधियों का पालन इस प्रक्रिया की सफलता के लिए अनिवार्य है। ब्रह्म संध्या आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है, जिससे साधक अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है।
गायत्री मंत्र Gayatri Mantra केवल एक साधारण मंत्र नहीं है, यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा का स्रोत है। इसके नियमित जाप से जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। यदि आप भी अपने जीवन को श्रेष्ठ और कल्याणकारी बनाना चाहते हैं, तो गायत्री मंत्र Gayatri Mantra का जाप अवश्य करें।
गायत्री माता की जय!
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