दुर्गा देवी की स्तुति से संबंधित अधिकांश मंत्र 7वीं शताब्दी के बाद के हैं, लेकिन दुर्गा सूक्तम वैदिक काल का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो इसे विशेष महत्ता प्रदान करता है। यह सूक्तम वैदिक साहित्य के अंतिम भाग, तैत्तिरीय आरण्यक में वर्णित है, जो हिंदू धर्म के धार्मिक अनुष्ठानों में अति महत्वपूर्ण माना जाता है। दुर्गा सूक्तम में अधिकांश मंत्र अग्नि देवता को संबोधित करते हैं, जो यज्ञ में आहूत अग्नि का प्रतीक हैं। अग्नि, यहाँ दुर्गा देवी का प्रतीकात्मक रूप भी है। देवी दुर्गा और अग्नि का गहरा संबंध है, और दुर्गा के एक रूप को अग्नि दुर्गा भी कहा जाता है।
दुर्गा सूक्तम एक भक्ति-प्रार्थना है, जिसमें भक्त देवी दुर्गा और अग्नि देवता से संरक्षण, मोक्ष और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करता है। इस सूक्तम के उच्चारण से जीवन के समस्त कष्टों और कठिनाइयों से मुक्ति की प्रार्थना की जाती है।
दुर्गा सूक्तम्
जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो निदहाति वेदः ।
स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः ॥१॥
तामग्निवर्णां तपसा ज्वलन्तीं वैरोचनीं कर्मफलेषु जुष्टाम् ।
दुर्गां देवीँशरणमहं प्रपद्ये सुतरसि तरसे नमः ॥२॥
अग्ने त्वं पारया नव्यो अस्मान् स्वस्तिभिरति दुर्गाणि विश्वा ।
पूश्च पृथ्वी बहुला न उर्वी भवा तोकाय तनयाय शंयोः ॥३॥
विश्वानि नो दुर्गहा जातवेदः सिन्धुं न नावा दुरितातिपर्षि ।
अग्ने अत्रिवन्मनसा गृणानोऽस्माकं बोध्यविता तनूनाम् ॥४॥
पृतनाजितँसहमानमुग्रमग्निँ हुवेम परमात्सधस्थात् ।
स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा क्षामद्देवो अति दुरितात्यग्निः ॥५॥
प्रत्नोषि कमीड्यो अध्वरेषु सनाच्च होता नव्यश्च सत्सि ।
स्वां चाग्ने तनुवं पिप्रयस्वास्मभ्यं च सौभगमायजस्व ॥६॥
गोभिर्जुष्टमयुजो निषिक्तं तवेन्द्र विष्णोरनुसंचरेम ।
नाकस्य पृष्ठमभि संवसानो वैष्णवीं लोक इह मादयन्ताम् ॥७॥
ॐ कात्यायनाय विद्महे कन्याकुमारि धीमहि
तन्नो दुर्गिः प्रचोदयात् ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो निदहाति वेदः।
स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः॥
Jatavedase Sunavama Somam Ratiyato Nidahati Vedah
Let us offer our salutations to Jatavedas (Agni), the all-knowing one, who destroys enemies and obstacles. May he guide us through all difficulties, like a boat safely crossing the ocean.
Sa Nah Parshadati Durgani Vishva Naveva Sindhum Duritatyagnih
May Agni protect us and lead us across all the dangers of life, just as a boat crosses a vast ocean, overcoming all hardships.
- जातवेदसे: अग्नि देव को संबोधित करते हुए (जो सभी को जानते हैं)।
- सुनवाम: हम अर्पण करते हैं (यहाँ सोम, जिसे बलि या भेंट के रूप में लिया जा सकता है)।
- सोमम्: सोम रस या भक्ति रस।
- मरातीयतो: शत्रुओं से रक्षा करने वाले।
- निदहाति वेदः: जो सब कुछ जलाकर नष्ट कर देते हैं, अर्थात् सभी बाधाओं को नष्ट कर देते हैं।
- स नः पर्षदति: वह हमें पार कराएँ।
- दुर्गाणि विश्वा: सभी कठिनाइयों और बाधाओं से।
- नावेव सिन्धुं: जैसे नाव समुद्र को पार करती है।
- दुरितात्यग्निः: अग्नि सभी पापों और कठिनाइयों को नष्ट करता है।
अर्थ: हम अग्निदेव से प्रार्थना करते हैं, जो सभी कुछ जानते हैं और सभी बाधाओं को नष्ट करने में सक्षम हैं। जैसे नाविक नाव को समुद्र के पार ले जाता है, वैसे ही वे हमें भी जीवन की सभी कठिनाइयों और पापों से पार कराएँ।
तामग्निवर्णां तपसा ज्वलन्तीं वैरोचनीं कर्मफलेषु जुष्टाम्।
दुर्गां देवीँ शरणमहं प्रपद्ये सुतरसि तरसे नमः॥
Tam Agnivarnam Tapasa Jvalantim Vairochanim Karma-Phaleshu Jushtam
I take refuge in Goddess Durga, who shines with the radiant color of fire and glows with the power of austerity. She is the daughter of the sun and grants the fruits of righteous actions.
Durgam Devim Sharanam Aham Prapadye Sutarasi Tarase Namah
I surrender to Goddess Durga for protection. With her swift and powerful grace, she helps us overcome all difficulties. I bow to her in reverence.
- ताम: उस देवी को (दुर्गा देवी)।
- अग्निवर्णां: जिनका रंग अग्नि के समान है।
- तपसा: तपस्या के द्वारा।
- ज्वलन्तीं: जो धधक रही हैं, दीप्तिमान हैं।
- वैरोचनीं: सूर्य के वंशज, अर्थात्, शक्ति और प्रकाश से युक्त।
- कर्मफलेषु जुष्टाम्: जो कर्मों के फलों को देती हैं।
- दुर्गां देवीम्: दुर्गा देवी को।
- शरणम्: शरण में।
- अहं प्रपद्ये: मैं समर्पित होता हूँ।
- सुतरसि: जो पार करने में सक्षम हैं।
- तरसे नमः: उनको नमस्कार है, जो कठिनाइयों से पार कराती हैं।
अर्थ: मैं उस दुर्गा देवी की शरण में आता हूँ, जो अग्नि के समान तेजस्वी हैं, जो कर्मों के फलों में प्रतिष्ठित हैं। आप ही कठिनाइयों से पार कराने वाली हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ।
अग्ने त्वं पारया नव्यो अस्मान् स्वस्तिभिरति दुर्गाणि विश्वा।
पूश्च पृथ्वीं बहुला न उर्वी भवा तोकाय तनयाय शंयोः॥
Agne Tvam Paraya Navyo Asman Svastibhirati Durgani Vishva
O Agni, you are the one who guides us through all difficulties. With your blessings, may you safely lead us across every obstacle in life, bringing us well-being and prosperity.
Pushcha Prithvi Bahula Na Urvi Bhava Tokaya Tanayaya Shamyoh
May the Earth be vast and nurturing for us, O Agni. Grant safety and happiness to our children and descendants, ensuring their well-being and growth.
- अग्ने: अग्निदेव।
- त्वं: आप।
- पारया: पार करें, हमें पार कराएँ।
- नव्यः: नयी ऊर्जा से युक्त।
- अस्मान्: हमें।
- स्वस्तिभिः: कल्याण के साथ।
- अति दुर्गाणि विश्वा: सभी कठिनाइयों को पार कराएँ।
- पूष्च: पालन करें।
- पृथ्वीं: पृथ्वी को (स्थिरता)।
- बहुला: समृद्ध।
- न उर्वी: विस्तृत (समृद्धि और स्थिरता के साथ)।
- भवा: बनें।
- तोकाय: पुत्र के लिए।
- तनयाय: संतान के लिए।
- शंयोः: कल्याण और सुरक्षा प्रदान करें।
अर्थ: हे अग्निदेव, आप हमें सभी कठिनाइयों से कल्याण और समृद्धि के साथ पार कराएँ। आप पृथ्वी को समृद्ध बनाकर हमारे पुत्रों और संतानों के कल्याण और सुरक्षा के लिए हमारे साथ रहें।
विश्वानि नो दुर्गहा जातवेदः सिन्धुं न नावा दुरितातिपर्षि।
अग्ने अत्रिवन्मनसा गृणानोऽस्माकं बोध्यविता तनूनाम्॥
Vishvani No Durgaha Jatavedah Sindhum Na Nava Duritatiparshi
O Jatavedas, the knower of all things, just as a boat crosses the ocean safely, may you carry us across all difficulties and dangers in life. Protect us from all forms of harm.
Agne Atrivan Manasa Grunano’smakam Bodhyavita Tanunam
O Agni, just as Sage Atri did with his mind, I praise you. Be our protector and guardian, ensuring the well-being of our bodies and souls.
- विश्वानि: समस्त।
- नो: हमारे।
- दुर्गहा: कठिनाइयाँ, बाधाएँ।
- जातवेदः: अग्निदेव (जो सब कुछ जानते हैं)।
- सिन्धुं न नावा: जैसे नाव समुद्र को पार करती है।
- दुरिताति पर्षि: सभी पापों और कष्टों को पार कराते हैं।
- अग्ने: हे अग्निदेव।
- अत्रिवत्: अत्रि ऋषि की तरह।
- मनसा: मन से, ध्यान के साथ।
- गृणानः: स्तुति करते हुए।
- अस्माकं: हमारा।
- बोधि अविता: हमें रक्षक बनें।
- तनूनाम्: हमारी देहों की (सुरक्षा करें)।
अर्थ: हे अग्निदेव, जैसे नाव समुद्र को पार करती है, वैसे ही आप हमें समस्त कठिनाइयों और पापों से पार कराएँ। जैसे अत्रि ऋषि ने आपकी स्तुति की, उसी तरह हम भी आपके ध्यान में लीन हैं। आप हमारे शरीरों की रक्षा करें और हमें सभी संकटों से उबारें।
पृतनाजितँसहमानमुग्रमग्निँ हुवेम परमात्सधस्थात्।
स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा क्षामद्देवो अति दुरितात्यग्निः॥
Pritanajitam Saha Manam Ugram Agnim Huvema Paramat Sadhastat
We invoke the fierce and powerful Agni, the conqueror of battles, from his supreme abode. May he come to our aid and grant us strength.
Sa Nah Parshadati Durgani Vishva Kshamad Devo Ati Duritatyagnih
May the divine Agni guide us across all difficulties and dangers in life. With his grace, may we overcome all adversities and reach safety, free from harm.
- पृतनाजितं: युद्धों को जीतने वाला।
- सहमानम्: सहने वाला, धैर्यवान।
- उग्रम्: प्रचंड, शक्तिशाली।
- अग्निं: अग्निदेव।
- हुवेम: हम आह्वान करते हैं।
- परमात्सधस्थात्: उच्च स्थान से।
- स नः पर्षदति: वह हमें पार कराएँ।
- दुर्गाणि विश्वा: सभी कठिनाइयाँ।
- क्षामत्: हमें सुरक्षा प्रदान करें।
- देवः: देवता।
- अति दुरितात्यग्निः: अग्नि सभी पापों और कष्टों को नष्ट कर देते हैं।
अर्थ: हम उस अग्निदेव का आह्वान करते हैं, जो युद्धों में विजयी होते हैं, सहनशील और प्रचंड शक्ति से युक्त हैं। वे हमें सभी कठिनाइयों से पार कराएँ और सभी पापों और कष्टों को नष्ट करें।
प्रत्नोषि कमीड्यो अध्वरेषु सनाच्च होता नव्यश्च सत्सि।
स्वां चाग्ने तनुवं पिप्रयस्वास्मभ्यं च सौभगमायजस्व॥
Pratnoshi Kamidyo Adhvareshu Sanaachch Hota Navyashcha Satsi
You, O Agni, are ancient and worthy of worship in sacrifices. You have always been the invoker of the gods, and you remain ever youthful and new in your presence.
Swam Chagne Tanuvam Piprayasv Asmabhyam Cha Saubhagam Ayajasva
O Agni, protect and nourish your own form, and bestow upon us prosperity and good fortune.
- प्रत्नोषि: आप पुरातन समय से कर रहे हैं।
- कमीड्यः: स्तुत्य, वंदनीय।
- अध्वरेषु: यज्ञों में।
- सनाच्च: बहुत पहले से।
- होताः: यज्ञ करने वाले।
- नव्यश्च: नवीन रूप से, नवीनता के साथ।
- सत्सि: आप उपस्थित हैं।
- स्वां: अपने।
- अग्ने: हे अग्निदेव।
- तनुवं: शरीर।
- पिप्रयस्व: संतुष्ट करें, तृप्त करें।
- अस्मभ्यं: हमें।
- सौभगम्: सौभाग्य।
- आयजस्व: प्रदान करें।
अर्थ: हे अग्निदेव, आप प्राचीनकाल से यज्ञों में स्तुत्य और वंदनीय रहे हैं। आप हमेशा नवीन ऊर्जा से यज्ञ में उपस्थित रहते हैं। कृपया हमारे शरीर को तृप्त करें और हमें सौभाग्य प्रदान करें।
गोभिर्जुष्टमयुजो निषिक्तं तवेन्द्र विष्णोरनुसंचरेम।
नाकस्य पृष्ठमभि संवसानो वैष्णवीं लोक इह मादयन्ताम्॥
Gobhir Jushtam Ayujo Nishiktam Tava Indra Vishnor Anusancharem
With the blessings of cows (symbolizing abundance and nourishment), and the energy of the sun, may we follow the path of Indra and Vishnu, attaining success and fulfillment.
Nakasya Prishtham Abhi Samvasano Vaishnavim Lok Iha Madayantaam
May we ascend to the heavenly realms, riding the skies, and rejoice in the divine world of Vishnu (Vaikuntha). Let this divine energy bring us joy and fulfillment.
- गोभिः: गायों द्वारा।
- जुष्टम्: पूजित।
- अयुजः: बिना जुते हुए, मुक्त।
- निषिक्तम्: सिंचित किया हुआ।
- तव इन्द्र: हे इन्द्र।
- विष्णोः: विष्णु का।
- अनुसंचरेम: अनुसरण करें।
- नाकस्य: स्वर्ग का।
- पृष्ठम्: पीठ या उच्च स्थान।
- अभि: ऊपर।
- संवसानः: रहने वाले।
- वैष्णवीम्: विष्णु की।
- लोकम्: लोक।
- इह: यहाँ।
- मादयन्ताम्: आनंदित हों।
अर्थ: हे इन्द्र और विष्णु, हम आपके साथ जुड़ना चाहते हैं और आपके द्वारा सिंचित (संरक्षित) स्थान पर जाना चाहते हैं। हम स्वर्ग के उच्च स्थान पर निवास करें और विष्णु लोक में आनंदित हों।
ॐ कात्यायनाय विद्महे कन्याकुमारि धीमहि तन्नो दुर्गिः प्रचोदयात्।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
Om Katyayanaya Vidmahe Kanyakumari Dhimahi Tanno Durgih Prachodayat
We meditate upon Goddess Katyayani, the youthful daughter of Sage Katyayana (Kanyakumari). May Goddess Durga inspire and guide us on the right path.
Om Shantih Shantih Shantih
Om, peace, peace, peace.
- ॐ: परमात्मा का उच्चारण।
- कात्यायनाय: कात्यायनी देवी को।
- विद्महे: हम जानते हैं।
- कन्याकुमारि: कन्या के रूप में।
- धीमहि: ध्यान करते हैं।
- तन्नः: वह हमें।
- दुर्गिः: दुर्गा देवी।
- प्रचोदयात्: प्रेरित करें।
अर्थ: हम कात्यायनी देवी का ध्यान करते हैं, जो कन्या के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वह हमें प्रबुद्ध करें और हमारे मार्गदर्शन करें।
ॐ शांति, शांति, शांति: हम सभी प्राणियों के लिए आंतरिक, बाहरी और दिव्य शांति की कामना करते हैं।
दुर्गा सूक्तम का सार
“हे जातवेद (अग्नि) देव, हम आपको सोमरस अर्पित करते हैं, जिससे आप हमारे जीवन की सभी बाधाओं और कष्टों को दूर करें। आप ही वह अग्नि हैं, जो हमें सभी दुःखों से बचाते हैं, जैसे एक जहाज समुद्र के पार पहुँचाता है, वैसे ही आप हमें इस संसार रूपी समुद्र से पार कराएँ।”
यहाँ अग्नि को जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है। अग्नि देव से यह प्रार्थना की जाती है कि वह भक्तों की रक्षा करें, उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाएँ और जीवन को सुखमय और समृद्ध बनाएँ।
अग्नि और दुर्गा देवी का संबंध
दुर्गा सूक्तम में अग्नि देवता की उपासना का एक महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि अग्नि देव को दुर्गा का प्रतीक माना गया है। अग्नि में ऊर्जा, प्रकाश, और शक्ति का स्रोत निहित है, जो दुर्गा देवी के गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। अग्नि दुर्गा देवी का वह रूप है, जो भक्तों को शक्ति, साहस और जीवन के संकटों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है।
“हे अग्नि देव, आप अग्नि के समान तेजस्वी हैं, जो तपस्या की शक्ति से प्रकाशित होती हैं। आप कर्मों और उनके फलों से जुड़ी हुई हैं। हे देवी दुर्गा, मैं आपकी शरण में आता हूँ। मुझे इस संसार रूपी सागर से पार कराएँ, आपको मेरा प्रणाम है।”
दुर्गा सूक्तम का लाभ
दुर्गा सूक्तम का नियमित जाप भक्तों को अनेक लाभ प्रदान कर सकता है। यह देवी दुर्गा और अग्नि देवता का संरक्षण प्रदान करता है, जो भक्तों को कठिन परिस्थितियों से उबरने में मदद करते हैं। इस सूक्तम के मंत्रों में वह शक्ति है, जो जीवन की सभी बाधाओं और कष्टों को दूर कर सकती है। जब भक्त इसे सच्ची भक्ति और उसके अर्थ को समझकर जाप करता है, तो देवी दुर्गा उन्हें आशीर्वाद देती हैं।
इसके जाप से भक्तों को मोक्ष का मार्ग दिखता है, और उन्हें जीवन में सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा मिलती है। दुर्गा सूक्तम के माध्यम से देवी दुर्गा की दिव्य शक्ति का अनुभव किया जा सकता है, जो अत्यधिक ऊर्जा और साहस प्रदान करती है।
दुर्गा सूक्तम वैदिक युग से चली आ रही एक महत्वपूर्ण प्रार्थना है, जो अग्नि देव और देवी दुर्गा को समर्पित है। यह न केवल भक्तों को जीवन की कठिनाइयों से लड़ने का साहस प्रदान करती है, बल्कि उन्हें सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी दिखाती है। इसका नियमित जाप जीवन में शांति, सफलता और समृद्धि का संचार करता है।