Bhojan Mantra- मंत्र जिसके पढ़ने से खाना पवित्र हो जाता है।

भोजन मंत्र (Bhojan Mantra) एक पवित्र वचन होता है जिसे भोजन करने से पहले पढ़ा जाता है, इसका उद्देश्य भोजन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना और भोजन को पवित्र मानना है।

यन्तु नदयो वर्षन्तु पर्जन्याः सुपिप्पला ओषधयो भवन्तु

 अन्नवतामोदनवतामामिक्षवताम्। एषां राजा भूयासम् ओदनमुद्ब्रुवते परमेष्ठी वा एषः यदोदनः। परमामेवैनं श्रियं गमयति

मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन् मा स्वासारमुत स्वसा सम्यञ्च सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया। ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ब्रह्मैवतेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।।

सहनाववतु। सह नौ भुनक्तु। सहवीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।।

शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!!

भोजन-मंत्र (Bhojan Mantra) के माध्यम से, व्यक्ति उस भोजन के लिए धन्यवाद करता है जो प्रकृति, किसानों, और भोजन तैयार करने वालों के प्रयासों से प्राप्त हुआ है।

इस मंत्र का अर्थ है:

“जैसे नदियां पृथ्वी को सींचती हैं, वैसे ही बादल अच्छी बारिश लाएं। सभी ओषधियाँ (औषधीय पौधे) अच्छे फल दें।”

इस मंत्र की व्याख्या निम्नलिखित है:

यह मंत्र प्रकृति के प्रति आदर और समर्थन की भावना को व्यक्त करता है। इसमें वर्षा और ओषधियों की समृद्धि के लिए प्रार्थना की गई है, जो जीवन के स्थायित्व और स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। नदियों की सींचाई और पर्जन्य (वर्षा) का उल्लेख करके, यह मंत्र प्रकृति के उन तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानता है, जो भोजन और औषधि प्रदान करते हैं। ओषधियों का सुपिप्पला (अच्छे फल देने वाला) होना यह दर्शाता है कि प्रार्थना सिर्फ भौतिक उत्पादन के लिए नहीं है, बल्कि यह भी है कि ये उत्पादन स्वास्थ्यवर्धक और पोषण से भरपूर हों।

इस प्रकार, यह मंत्र हमें याद दिलाता है कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रति हमारी जिम्मेदारियाँ हैं और हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहना चाहिए, ताकि हमारे आस-पास का पर्यावरण स्वस्थ और समृद्ध रह सके।

  • अर्थ: “जिनके पास अन्न है, ओदन (चावल का पानी) है, और घी है, मैं उन सभी का राजा बनूं। ओदन कहता है, ‘परमेष्ठी (सर्वोच्च) भी वह है जिसके पास यह ओदन है।’ यह ओदन सच में उसे परम श्री (ऐश्वर्य) की ओर ले जाता है।”
  • व्याख्या: यह मंत्र भोजन की सर्वोच्च महत्वता और उसके द्वारा प्राप्त होने वाले आध्यात्मिक और भौतिक लाभों को दर्शाता है। अन्न, ओदन, और आमिक्ष (घी) यहाँ पोषण और संपन्नता के प्रतीक के रूप में हैं। मंत्र कहता है कि जिसके पास ये चीजें हैं, वह सभी का नेतृत्व करने की क्षमता रखता है, और उसे परम श्री (उच्चतम ऐश्वर्य) प्राप्त होती है।

इसमें भोजन के प्रति कृतज्ञता और उसके महत्व को समझने की भावना व्यक्त की गई है। ओदन (यहाँ चावल का पानी या पकाया हुआ चावल) को अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र माना गया है, जिसके माध्यम से आध्यात्मिक और भौतिक समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह मंत्र भोजन के प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना को प्रेरित करता है और हमें याद दिलाता है कि भोजन न सिर्फ शारीरिक पोषण का साधन है, बल्कि यह आध्यात्मिक और भौतिक विकास का भी एक माध्यम है।

अर्थ: भाई भाई को न देखे नफरत से, न ही बहन बहन को। सभी को एक समान दृष्टि से देखते हुए, सबके प्रति अच्छी और सकारात्मक बातें कहो।

व्याख्या: यह श्लोक मानवीय संबंधों में सद्भाव और प्रेम की महत्वपूर्णता पर बल देता है। यह हमें याद दिलाता है कि हमें एक दूसरे के प्रति करुणा और समझदारी से पेश आना चाहिए, बिना किसी पूर्वाग्रह के।

अर्थ: अर्पण (चढ़ावा) ब्रह्म है, हवि (आहुति) भी ब्रह्म है, अग्नि (जिसमें आहुति दी जाती है) भी ब्रह्म है। आहुति देने वाला (कर्ता) भी ब्रह्म है। इस प्रकार, ब्रह्म वह स्थान है जहाँ तक हमें पहुँचना है, ब्रह्म में समाधि के माध्यम से।

इस मंत्र का उद्देश्य भोजन करने वाले को यह समझाना है कि भोजन का प्रत्येक अंश, भोजन करने की क्रिया, और भोजन करने वाला खुद – सभी ब्रह्म का ही एक रूप हैं। यह मंत्र व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से जागृत करते हुए, भोजन के प्रति अधिक सम्मान और कृतज्ञता की भावना विकसित करने के लिए प्रेरित करता है।

व्याख्या: इस श्लोक में ब्रह्माण्ड के सर्वव्यापी स्वरूप और अंतर्निहित एकता का वर्णन है। यह बताता है कि सभी क्रियाएँ और उनके कर्ता ब्रह्म के अलग-अलग रूप हैं, और अंततः सब कुछ ब्रह्म में ही समाहित हो

  • अर्थ: “हे ईश्वर, हमें साथ में सुरक्षित रखें, हमें साथ में पोषण दें, हमें साथ में बल और वीरता प्रदान करें। हमारी पढ़ाई तेजस्वी हो और हम एक दूसरे से ईर्ष्या न करें। ओम शांति, शांति, शांति।”
  • व्याख्या: यह मंत्र सहयोग, समर्थन, सुरक्षा, और सामूहिक विकास की कामना करता है। “सहनाववतु” का अर्थ है “हम दोनों को साथ में सुरक्षित रखें” जो शिक्षक और शिष्य, या अधिक व्यापक अर्थ में, समाज के सभी सदस्यों के बीच सामंजस्य और सहयोग की कामना करता है। यह मंत्र सामूहिक विकास और पारस्परिक सम्मान की भावना को बढ़ावा देने के लिए कहा जाता है।

“सह नौ भुनक्तु” से तात्पर्य है कि सभी को साथ में पोषण मिले, “सहवीर्यं करवावहै” से यह प्रार्थना है कि सभी साथ में बल और वीरता प्राप्त करें। “तेजस्विनावधीतमस्तु” का अर्थ है कि हमारी अध्ययन और ज्ञान की प्रक्रिया तेजस्वी और प्रभावशाली हो। अंत में, “मा विद्विषावहै” से यह प्रार्थना है कि हम एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या या द्वेष न रखें।

“ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः” के साथ मंत्र का समापन तीन प्रकार की शांति की कामना करता है: आध्यात्मिक शांति, सामाजिक शांति, और प्राकृतिक शांति। यह मंत्र सभी प्रकार के दुखों और विघ्नों से मुक्ति की कामना करता है, और समग्र शांति और सद्भाव की प्रार्थना करता है।


यह भोजन का समाप्ति मंत्र धन्यवाद और कृतज्ञता की भावना को व्यक्त करता है। इस मंत्र के माध्यम से, व्यक्ति उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करता है जिन्होंने भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित की है। यह मंत्र न केवल भोजन प्रदान करने वाले के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है बल्कि यह भी इच्छा व्यक्त करता है कि वे सुखी रहें और उनका जीवन सदा मंगलमय हो।

इस मंत्र में “अन्नदाता सुखी भव” से अन्न प्रदान करने वाले की सुख-समृद्धि की कामना की गई है, जो भोजन के महत्व को समझते हुए, उसे उपलब्ध कराने वालों के प्रति सम्मान और आदर व्यक्त करता है। “सदा मङ्गलमूर्तिः” यह प्रार्थना है कि उनका जीवन हमेशा शुभ और मंगलमय हो।

“धन्यवादः प्रदाता त्वं, नान्यथेति विचारय” इस भाग में भोजन प्रदान करने वाले के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त की गई है, और यह संदेश दिया गया है कि इस कृतज्ञता के अलावा कोई अन्य विचार नहीं होना चाहिए। यह भोजन के प्रति, और उसे प्रदान करने वाले के प्रति गहरी आदर और सम्मान की भावना को दर्शाता है।

इस प्रकार, यह मंत्र भोजन के समाप्ति पर आभार और सम्मान की भावना को प्रकट करता है, और यह हमें याद दिलाता है कि हमें उन सभी के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए जिनके प्रयासों से हमें भोजन मिलता है।

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भोजन-मंत्र क्या है?

भोजन-मंत्र एक पवित्र उच्चारण है जिसे भोजन करने से पहले पढ़ा जाता है, जिसका उद्देश्य भोजन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना और इसे पवित्र मानना है। यह प्रकृति, किसानों, और भोजन तैयार करने वालों के प्रयासों की सराहना करता है।

नदियों, वर्षा, और औषधीय पौधों के बारे में भोजन-मंत्र का क्या महत्व है?

यह मंत्र प्रकृति के प्रति आदर और समर्थन की भावना को व्यक्त करता है, वर्षा और औषधियों की समृद्धि के लिए प्रार्थना करता है, जो जीवन के स्थायित्व और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह प्रकृति के उन तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानता है, जो भोजन और औषधि प्रदान करते हैं, और स्वस्थ और समृद्ध पर्यावरण के लिए प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने पर जोर देता है।

भोजन, पानी, और घी के बारे में भोजन-मंत्र क्या संकेत देता है?

यह भोजन की सर्वोच्च महत्वता और इसके द्वारा प्राप्त होने वाले आध्यात्मिक और भौतिक लाभों को दर्शाता है। अन्न, पानी, और घी यहाँ पोषण और संपन्नता के प्रतीक के रूप में हैं। मंत्र यह सुझाव देता है कि जिनके पास ये वस्तुएँ हैं, वह सभी का नेतृत्व करने की क्षमता रखते हैं, और उन्हें परम श्री (उच्चतम ऐश्वर्य) प्राप्त होती है, भोजन के प्रति कृतज्ञता और इसके महत्व को समझने की भावना को दर्शाता है।

भोजन से संबंधित ब्रह्म की अवधारणा वाले मंत्र का क्या अर्थ है?

यह समझाता है कि भोजन का प्रत्येक अंश, भोजन करने की क्रिया, और भोजन करने वाला खुद – सभी ब्रह्म का ही एक रूप हैं। यह मंत्र व्यक्ति को भोजन के प्रति अधिक सम्मान और कृतज्ञता की भावना



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