अमोघ शिव कवच

अमोघ शिव कवच हिन्दू धर्म में एक आध्यात्मिक और शक्तिशाली सुरक्षात्मक स्तोत्र है, जो भगवान शिव की अद्भुत शक्तियों को समर्पित है। इसे उन भक्तों द्वारा पढ़ा जाता है जो जीवन में आने वाली विभिन्न समस्याओं और बाधाओं से सुरक्षा और मुक्ति पाने की इच्छा रखते हैं। अमोघ शिव कवच का अर्थ है वह कवच जिसका प्रभाव अचूक और निश्चित है।

इस कवच का पाठ करने से भक्तों का मानना है कि वे भगवान शिव की अनुकंपा और संरक्षण प्राप्त करते हैं, जो उन्हें जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों से बचाता है। यह कवच व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा और बुरी नजर से भी सुरक्षित रखता है।

शिव कवच का पाठ विशेष रूप से महाशिवरात्रि, प्रदोष व्रत या किसी भी सोमवार को किया जा सकता है, जिसे भगवान शिव के लिए समर्पित माना जाता है। इसके अलावा, जब भी कोई व्यक्ति जीवन में संकटों से घिरा महसूस करता है या आध्यात्मिक सुरक्षा और शक्ति की आवश्यकता होती है, तब भी इसका पाठ किया जा सकता है।

अस्य श्री शिव कवच स्त्रोत्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि:, अनुष्टुप छंद:, श्री सदाशिव रुद्रो देवता, ह्रीं शक्ति:, रं कीलकम, श्रीं ह्रीं क्लीं बीजं, श्री सदाशिव प्रीत्यर्थे शिवकवच स्त्रोत्र जपे विनियोग: |

ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने अन्गुष्ठाभ्याम नम: |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने तर्जनीभ्याम नम: |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने मध्यमाभ्याम नम:|
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्याम नम: |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कनिष्ठिकाभ्याम नम: |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने करतल करपृष्ठाभ्याम नम: |

ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने हृदयाय नम: |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने शिरसे स्वाहा |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने शिखायै वषट |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने नेत्रत्रयाय वौषट |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कवचाय हुम |
ॐ नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ
यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने अस्त्राय फट |

ॐ भूर्भुव: स्व: |

कर्पुरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम |
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ||

अमोघ शिव कवच एक आध्यात्मिक ढाल है जो भगवान शिव की शक्ति और आशीर्वाद से भक्तों को संरक्षित करती है। “अमोघ” का अर्थ है जो कभी विफल नहीं होता, इस प्रकार अमोघ शिव कवच का अर्थ होता है एक ऐसा कवच जिसका संरक्षण हमेशा प्रभावी रहता है। यह शिव कवच संस्कृत में लिखित एक प्रार्थना है जिसे ध्यान, पूजा या विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान पढ़ा जाता है।

अथ विनियोग:

विनियोग एक प्रारंभिक घोषणा है जो किसी भी वैदिक या पौराणिक मंत्र, स्तोत्र या कवच के जप या पाठ से पहले की जाती है। यह उस मंत्र या स्तोत्र के उद्देश्य, उसके रचयिता, छंद, देवता, बीज मंत्र, शक्ति और कीलक को परिभाषित करती है। यहाँ, शिव कवच स्तोत्र के विनियोग की व्याख्या की गई है:

  • ब्रह्मा ऋषि: यह बताता है कि इस शिव कवच स्तोत्र के ऋषि, यानी दिव्य दृष्टा या रचयिता, ब्रह्मा हैं।
  • अनुष्टुप छंद: यह इंगित करता है कि इस स्तोत्र का छंद अनुष्टुप है, जो एक विशेष वैदिक मीटर है।
  • श्री सदाशिव रुद्रो देवता: यह दर्शाता है कि इस स्तोत्र का देवता श्री सदाशिव रुद्र हैं, जो शिव का एक स्वरूप है।
  • ह्रीं शक्ति: “ह्रीं” यहाँ पर शक्ति, या दिव्य ऊर्जा को दर्शाता है जो इस स्तोत्र को सक्रिय करती है।
  • रं कीलकम: “रं” कीलक है, जो मंत्र के सक्रियण के लिए एक लॉकिंग मेकेनिज़्म की तरह कार्य करता है।
  • श्रीं ह्रीं क्लीं बीजं: ये बीज मंत्र हैं जो इस स्तोत्र की दिव्य शक्तियों को सक्रिय करते हैं।
  • श्री सदाशिव प्रीत्यर्थे शिवकवच स्त्रोत्र जपे विनियोग: यह घोषणा करता है कि श्री सदाशिव की प्रसन्नता के लिए शिव कवच स्तोत्र का जप किया जा रहा है।

विनियोग का यह विवरण भक्तों को स्तोत्र के पीछे की गहराई और उसके उद्देश्य को समझने में मदद करता है, और यह उन्हें स्तोत्र के पाठ या जप के लिए उचित मानसिक स्थिति में लाता है।

करन्यास

यह श्लोक शिव कवच का एक हिस्सा हो सकता है, जो भगवान शिव की आराधना और स्तुति के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी व्याख्या इस प्रकार है:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: इस भाग में भगवान शिव को “ज्वलज्वालामालिने” यानी ज्वालाओं की माला से सुशोभित भगवान के रूप में संबोधित किया गया है। “ॐ नमो भगवते” का अर्थ है “ओम, मैं भगवान को नमस्कार करता हूँ।” यह भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और समर्पण को व्यक्त करता है।
  • ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने अन्गुष्ठाभ्याम नम: इस भाग में, “ह्रां” एक बीज मंत्र है जो इस मंत्र की शक्ति को सक्रिय करने के लिए प्रयोग किया गया है। “सर्वशक्तिधाम्ने” का अर्थ है सभी शक्तियों का आधार या स्रोत, जो भगवान शिव के असीम शक्ति को दर्शाता है। “इशानात्मने” का अर्थ है ईशान या परमेश्वर का स्वरूप। “अन्गुष्ठाभ्याम नम:” का अर्थ है अंगूठे के द्वारा नमन, जो एक योगिक मुद्रा और भक्ति का प्रतीक है।

इस प्रकार, यह श्लोक भक्तों को भगवान शिव की असीम शक्ति और दिव्य स्वरूप का ध्यान करने और उनकी आराधना में संलग्न होने का आमंत्रण देता है। यह भक्ति और आत्म-समर्पण का एक गहन अभिव्यक्ति है, जिसे विशेष रूप से शिव कवच के पाठ के दौरान उच्चारित किया जाता है।

इस श्लोक का उच्चारण और अर्थ शिव कवच के अभ्यास के भाग के रूप में भक्ति और आध्यात्मिक शक्ति की अभिव्यक्ति को दर्शाता है। इसे विस्तार से समझाएँ:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: यह वाक्यांश भगवान शिव को संबोधित करता है, जिन्हें ‘ज्वलज्वालामालिने’ कहा गया है, अर्थात्, जो ज्वालाओं की माला धारण किए हुए हैं। यह भगवान शिव के तेजस्वी और शक्तिशाली स्वरूप की पूजा करता है।
  • नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने तर्जनीभ्याम नम: इस भाग में कई तत्व निहित हैं:
    • नं रिं: ये बीज मंत्र हैं जो विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा और शक्ति को सक्रिय करने के लिए उच्चारित किए जाते हैं।
    • नित्यतृप्तिधाम्ने: यह भगवान शिव के उस स्वरूप को संदर्भित करता है जो सदैव संतुष्ट और आनंदित रहता है, एक ऐसी अवस्था जो अंतरात्मा के शाश्वत संतोष को दर्शाती है।
    • तत्पुरुषातमने: ‘तत्पुरुष’ भगवान शिव का एक नाम है, जो उन्हें परम तत्व या परमात्मा के रूप में पहचानता है। यहाँ, शिव को उनके आध्यात्मिक स्वरूप के रूप में स्मरण किया जा रहा है।
    • तर्जनीभ्याम नम: ‘तर्जनीभ्याम’ का अर्थ है तर्जनी उंगली द्वारा। यहाँ भक्त अपनी तर्जनी उंगली के साथ भगवान शिव को नमस्कार कर रहे हैं, जो आदर और समर्पण का प्रतीक है।

यह श्लोक भक्तों को भगवान शिव के विविध स्वरूपों और गुणों का ध्यान और स्मरण करने के लिए प्रेरित करता है, साथ ही साथ उनकी आराधना में गहराई से लीन होने का मार्ग दर्शाता है।

यह श्लोक भगवान शिव की स्तुति और आराधना में एक और मंत्र है, जो उनके विभिन्न गुणों और शक्तियों का आह्वान करता है। इस श्लोक की व्याख्या इस प्रकार है:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: इस वाक्यांश का अर्थ है, “ओम, मैं उस भगवान को नमस्कार करता हूँ जो ज्वालाओं की माला से सुशोभित हैं।” यह भगवान शिव के तेजस्वी और ऊर्जावान स्वरूप की आराधना करता है।
  • मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने मध्यमाभ्याम नम: इस श्लोक के हिस्से की विस्तृत व्याख्या नीचे दी गई है:
    • मं रूं: ये बीज मंत्र हैं जो विशेष ऊर्जाओं और शक्तियों को सक्रिय करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
    • अनादिशक्तिधाम्ने: यह भगवान शिव के उस स्वरूप की स्तुति करता है जो अनादि शक्ति का धाम (स्रोत) है, अर्थात् जो सभी शक्तियों का आदि और अंत हैं।
    • अधोरात्मने: यह शब्द भगवान शिव के उस आधारभूत स्वरूप को संदर्भित करता है जो सभी दिशाओं में व्याप्त है, यहाँ “अधो” का अर्थ हो सकता है नीचे या निम्न, जो संभवतः उनकी उच्चतम अवस्था को भी दर्शाता है, जो सभी दिशाओं में व्याप्त है।
    • मध्यमाभ्याम नम: “मध्यमाभ्याम” का अर्थ है मध्यमा उंगली (अंगुली) के द्वारा नमन। यहाँ भक्त अपनी मध्यमा उंगली के माध्यम से भगवान शिव को नमस्कार करते हैं, जो आराधना और समर्पण की एक योगिक मुद्रा हो सकती है।

यह श्लोक भक्तों को भगवान शिव की अद्वितीय शक्तियों और व्यापक स्वरूप की आराधना में लीन होने का आमंत्रण देता है, और उनके प्रति गहरी श्रद्धा और समर्पण को व्यक्त करता है।

यह श्लोक भगवान शिव के वामदेव स्वरूप की आराधना करता है और उनकी स्वतंत्र शक्ति को संबोधित करता है। इसकी व्याख्या इस प्रकार है:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: इस वाक्यांश का अर्थ है, “ओम, मैं उस भगवान को नमस्कार करता हूँ जो ज्वालाओं की माला से सुशोभित हैं।” यह भगवान शिव के उज्ज्वल और ऊर्जावान स्वरूप की आराधना करता है।
  • शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्याम नम: इस भाग की विस्तार से व्याख्या नीचे दी गई है:
    • शिं रैं: ये बीज मंत्र हैं जो विशेष आध्यात्मिक ऊर्जाओं और शक्तियों को सक्रिय करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
    • स्वतंत्रशक्तिधाम्ने: इस वाक्यांश का अर्थ है “स्वतंत्र शक्ति के धाम” या आधार, जो भगवान शिव की उस अनंत और स्वतंत्र शक्ति को दर्शाता है जिसके द्वारा वे सृष्टि को नियंत्रित और पोषित करते हैं।
    • वामदेवात्मने: “वामदेव” भगवान शिव के पांच प्रमुख अवतारों (पंचानन) में से एक है। वामदेव उनके सृजनात्मक और संहारक आयामों को प्रकट करते हैं।
    • अनामिकाभ्याम नम: “अनामिकाभ्याम” का अर्थ है अनामिका उंगली (अर्थात् रिंग फिंगर) के द्वारा नमन। यहाँ भक्त अपनी अनामिका उंगली के माध्यम से भगवान शिव के वामदेव स्वरूप को नमस्कार करते हैं, जो एक विशेष भक्ति और समर्पण की मुद्रा है।

यह श्लोक भगवान शिव के स्वतंत्र और सर्वशक्तिमान स्वरूप की आराधना करता है, विशेष रूप से उनके वामदेव अवतार को संबोधित करते हुए। यह भक्तों को भगवान शिव के विविध और गहरे आयामों की स्तुति में लीन होने का आमंत्रण देता है।

यह श्लोक भगवान शिव के सद्योजात रूप की वंदना करता है, जो उनके पांच मुख्य अवतारों में से एक है। इस श्लोक में सद्योजात रूप की विशेषताओं और गुणों की स्तुति की गई है। व्याख्या इस प्रकार है:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: “ओम, मैं उस भगवान को नमस्कार करता हूँ जो ज्वालाओं की माला से सुशोभित हैं।” यह भगवान शिव के तेज और ऊर्जा को समर्पित है।
  • वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कनिष्ठिकाभ्याम नम:
    • वां रौं: ये बीज मंत्र हैं, जो विशेष ऊर्जाओं को सक्रिय करने और उस विशेष दिव्यता को आह्वान करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
    • अलुप्तशक्तिधाम्ने: इसका अर्थ है “जिसकी शक्ति कभी नहीं मिटती।” यह भगवान शिव की अनंत और अविनाशी शक्ति को दर्शाता है।
    • सद्योजातात्मने: ‘सद्योजात’ भगवान शिव के उन पांच मुखों में से एक का नाम है, जो तत्काल और तात्कालिक सृजन का प्रतीक है। सद्योजात का अर्थ है जो ‘अभी’ उत्पन्न हुआ है, जो नवीनता और शुद्धता का प्रतीक है।
    • कनिष्ठिकाभ्याम नम: यह भक्ति और समर्पण की मुद्रा है, जिसमें कनिष्ठिका उंगली (छोटी उंगली) के द्वारा नमन किया जाता है। यह शिव के सद्योजात स्वरूप के प्रति समर्पण और वंदना को दर्शाता है।

इस श्लोक के माध्यम से भक्त भगवान शिव के सद्योजात स्वरूप की अद्वितीय शक्ति, शुद्धता और नवीनता की स्तुति करते हैं, और उनके दिव्य आशीर्वाद की कामना करते हैं।

इस श्लोक में भगवान शिव की सर्वव्यापी और अनादि शक्ति की आराधना की गई है। इसकी विस्तृत व्याख्या निम्नलिखित है:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: “ओम, मैं उस भगवान को नमस्कार करता हूँ जो ज्वालाओं की माला से सुशोभित हैं।” यह वाक्यांश भगवान शिव के प्रभावशाली और तेजस्वी स्वरूप की वंदना करता है।
  • यं र: ये बीज मंत्र हैं जो इस मंत्र के आध्यात्मिक और ऊर्जावान पहलुओं को सक्रिय करते हैं।
  • अनादिशक्तिधाम्ने: इसका अर्थ है “अनादि शक्ति का धाम” या स्रोत। अनादि शक्ति वह अविनाशी और अनंत ऊर्जा है जो सृष्टि के आरंभ से पहले से विद्यमान है। यह भगवान शिव के उस स्वरूप की वंदना करता है जो सभी शक्तियों का स्रोत है।
  • सर्वात्मने: “सर्वात्मने” का अर्थ है “सभी का आत्मा”। यह भगवान शिव के उस स्वरूप की आराधना करता है जो समस्त चेतना और जीवन का आधार है, और जो सभी प्राणियों में विद्यमान है।
  • करतल करपृष्ठाभ्याम नम: इसका अर्थ है “हथेली और हाथ के पिछले भाग से नमस्कार”। यह एक शारीरिक मुद्रा है जो समर्पण और भक्ति को व्यक्त करती है, जिसमें भक्त अपने हाथों के संपूर्ण भाग से भगवान शिव को नमन करते हैं, यह उनके प्रति पूर्ण समर्पण और आदर को दर्शाता है।

यह श्लोक भक्तों को भगवान शिव की अनंत शक्ति और सर्वव्यापकता का ध्यान करने और उन्हें अपनी सम्पूर्ण भक्ति अर्पित करने के लिए प्रेरित करता है।

अंगन्यास

यह श्लोक भगवान शिव के इशान रूप की वंदना करता है, जो उनकी सर्वोच्च शक्तियों और आत्मा के संरक्षक के रूप में आराधना करता है। इस श्लोक की व्याख्या इस प्रकार है:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: इस वाक्यांश का अर्थ है “ओम, मैं उस भगवान को नमस्कार करता हूँ जो ज्वालाओं की माला से सुशोभित हैं।” यह भगवान शिव के तेजस्वी और ऊर्जावान स्वरूप की वंदना करता है।
  • ह्रां सर्वशक्तिधाम्ने इशानात्मने हृदयाय नम:
    • ह्रां: यह बीज मंत्र है जो इस मंत्र के आध्यात्मिक और ऊर्जावान पहलुओं को सक्रिय करता है।
    • सर्वशक्तिधाम्ने: इसका अर्थ है “सभी शक्तियों का स्रोत”। यह भगवान शिव की अनंत और अविनाशी शक्ति को दर्शाता है।
    • इशानात्मने: ‘इशान’ भगवान शिव का एक नाम है, जो उन्हें सर्वोच्च आत्मा और ब्रह्मांड के संरक्षक के रूप में संदर्भित करता है।
    • हृदयाय नम: इसका अर्थ है “हृदय को नमन”। यह भक्त द्वारा अपने हृदय से भगवान शिव के इशान स्वरूप को नमस्कार करने की भावना व्यक्त करता है, जो अंतरात्मा के साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाता है।

यह श्लोक भक्तों को भगवान शिव के सर्वोच्च और सर्वव्यापक स्वरूप की आराधना में लीन होने का आमंत्रण देता है, और उनके प्रति गहरी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करता है।

यह श्लोक भगवान शिव के ‘तत्पुरुष’ रूप की स्तुति करता है और उनके द्वारा प्रदान किए गए नित्य तृप्ति और संतोष को मान्यता देता है। इसकी विस्तृत व्याख्या इस प्रकार है:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: “ओम, मैं उस भगवान को नमस्कार करता हूँ जो ज्वालाओं की माला से सुशोभित हैं।” यह भगवान शिव के ज्वलंत और ऊर्जावान स्वरूप की वंदना करता है।
  • नं रिं नित्यतृप्तिधाम्ने तत्पुरुषातमने शिरसे स्वाहा:
    • नं रिं: ये बीज मंत्र हैं, जो मंत्र के आध्यात्मिक और ऊर्जावान पहलुओं को सक्रिय करने के लिए उच्चारित किए जाते हैं।
    • नित्यतृप्तिधाम्ने: इसका अर्थ है “निरंतर संतोष का स्रोत।” यह भगवान शिव के उस स्वरूप को दर्शाता है जो सदैव संतुष्ट रहता है और अपने भक्तों को भी अंतहीन संतोष प्रदान करता है।
    • तत्पुरुषातमने: ‘तत्पुरुष’ भगवान शिव के एक महत्वपूर्ण रूप को संदर्भित करता है, जो परम आत्मा या उच्चतम तत्व के रूप में है।
    • शिरसे स्वाहा: “शिरसे” का अर्थ है सिर पर, और “स्वाहा” एक ऐसा शब्द है जो आमतौर पर हवन या यज्ञ के दौरान उपयोग किया जाता है जब किसी पवित्र चीज़ को अग्नि में अर्पित किया जाता है। यहाँ यह भगवान शिव को आत्मसमर्पण और आध्यात्मिक समर्पण का प्रतीक है।

इस श्लोक के माध्यम से, भक्त भगवान शिव के ‘तत्पुरुष’ रूप की आराधना करते हैं, उन्हें नित्य संतोष और आत्मिक शांति का स्रोत मानते हैं, और अपनी आध्यात्मिक प्रगति के लिए उनके प्रति पूर्ण समर्पण की भावना व्यक्त करते हैं।

यह श्लोक भगवान शिव की स्तुति करता है, जिसमें उनकी अनादि शक्ति और अधोरात्मने (शायद अधोगति या निम्न स्थिति के आत्मा के रूप में व्यापकता) स्वरूप को पहचाना जाता है। इसकी विस्तार से व्याख्या इस प्रकार है:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: “ओम, मैं उस दिव्य शक्ति को नमन करता हूँ जो ज्वालाओं की माला से सुशोभित है।” यह वाक्यांश भगवान शिव की उस दिव्य और शक्तिशाली ऊर्जा की प्रशंसा करता है जो उनके आसपास की ज्वालाओं से प्रतीत होती है।
  • मं रूं अनादिशक्तिधाम्ने अधोरात्मने शिखायै वषट:
    • मं रूं: ये बीज मंत्र हैं जो विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा को सक्रिय करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
    • अनादिशक्तिधाम्ने: यह भगवान शिव के उस स्वरूप की स्तुति करता है जो सभी शक्तियों का मूल स्रोत है, जो अनादि और अनंत है।
    • अधोरात्मने: यह भगवान शिव के विस्तारित स्वरूप को दर्शाता है, जो सभी दिशाओं में व्याप्त है, विशेष रूप से नीचे या निम्न स्तर पर, जिसे अधोगति या अधोलोक के संदर्भ में भी समझा जा सकता है।
    • शिखायै वषट: “शिखायै” का अर्थ है “शिखा के लिए” या “सिर के ऊपरी भाग के लिए”, जो आध्यात्मिक ऊर्जा और ज्ञान का प्रतीक है। “वषट” एक मंत्र है जिसे यज्ञ या पूजा में आहुति देते समय उच्चारित किया जाता है, यहाँ यह शिव को आहुति देने और उनके दिव्य स्वरूप को समर्पित करने का संकेत है।

इस श्लोक के माध्यम से, भक्त भगवान शिव की अनादि शक्ति और उनके सर्वव्यापी स्वरूप की वंदना करते हैं, और उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा और ज्ञान के प्रति समर्पण व्यक्त करते हैं।

इस श्लोक में भगवान शिव के ‘वामदेव’ रूप और उनकी स्वतंत्र शक्ति की स्तुति की गई है, साथ ही उनकी तीन आंखों को विशेष महत्व दिया गया है। यहाँ इसकी व्याख्या की गई है:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: “ओम, मैं उस भगवान को नमस्कार करता हूँ जो ज्वालाओं की माला से सुशोभित हैं।” यह भगवान शिव के तेजस्वी और ऊर्जावान स्वरूप की वंदना करता है।
  • शिं रैं स्वतंत्रशक्तिधाम्ने वामदेवात्मने नेत्रत्रयाय वौषट:
    • शिं रैं: ये बीज मंत्र हैं, जो विशेष ऊर्जाओं और शक्तियों को सक्रिय करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
    • स्वतंत्रशक्तिधाम्ने: इसका अर्थ है “स्वतंत्र शक्ति का स्रोत।” यह भगवान शिव की उनकी स्वायत्त और अपार शक्ति की वंदना करता है।
    • वामदेवात्मने: ‘वामदेव’ भगवान शिव के पांच प्रमुख रूपों में से एक है, जो उनके सौम्य और सृजनात्मक पहलुओं को प्रकट करता है।
    • नेत्रत्रयाय: यह भगवान शिव की तीन आंखों को संदर्भित करता है, जो सृष्टि, स्थिति और संहार के उनके कार्यों का प्रतीक हैं।
    • वौषट: यह एक वैदिक मंत्र है जो यज्ञ या पूजा में आहुति देते समय उपयोग किया जाता है, यहाँ यह भगवान शिव के प्रति समर्पण और उन्हें अर्पण करने की भावना को व्यक्त करता है।

इस श्लोक के माध्यम से, भक्त भगवान शिव के वामदेव स्वरूप और उनकी तीन आंखों की आराधना करते हैं, जो सृष्टि के विभिन्न पहलुओं का प्रतीक हैं, और उनके प्रति गहरी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करते हैं।

इस श्लोक में भगवान शिव के ‘सद्योजात’ रूप और उनकी अलुप्त (अविनाशी) शक्ति की स्तुति की गई है, साथ ही इसमें कवच (सुरक्षा) के लिए प्रार्थना भी शामिल है। इस श्लोक की व्याख्या इस प्रकार है:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: “ओम, मैं उस भगवान को नमन करता हूँ जो ज्वालाओं की माला से सुशोभित हैं।” यह वाक्यांश भगवान शिव के दिव्य और ऊर्जावान स्वरूप की वंदना करता है।
  • वां रौं अलुप्तशक्तिधाम्ने सद्योजातात्मने कवचाय हुम:
    • वां रौं: ये बीज मंत्र हैं, जो विशेष ऊर्जाओं और शक्तियों को सक्रिय करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
    • अलुप्तशक्तिधाम्ने: इसका अर्थ है “अविनाशी शक्ति का स्रोत।” यह भगवान शिव की उस अनंत और अविनाशी शक्ति की वंदना करता है।
    • सद्योजातात्मने: ‘सद्योजात’ भगवान शिव के पांच मुखों में से एक है, जो नवजात और तत्काल सृजन का प्रतीक है। यह उनके सृजनात्मक और उत्पत्ति संबंधी पहलुओं की वंदना करता है।
    • कवचाय हुम: “कवचाय” का अर्थ है “सुरक्षा के लिए”, और “हुम” एक बीज मंत्र है जो उस सुरक्षा और शक्ति को सक्रिय करने का काम करता है। यहाँ भक्त भगवान शिव से अविनाशी शक्ति और सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं।

इस श्लोक के माध्यम से, भक्त भगवान शिव के सद्योजात स्वरूप और उनकी अविनाशी शक्ति की आराधना करते हैं और उनसे आत्मिक सुरक्षा और रक्षा की प्रार्थना करते हैं।

इस श्लोक में भगवान शिव की ‘अनादि शक्ति’ की स्तुति है, और उनसे अस्त्र (शस्त्र) के लिए प्रार्थना की जा रही है। यहाँ इसकी व्याख्या दी गई है:

  • नमो भगवते ज्वलज्वालामालिने ॐ: यह वाक्यांश भगवान शिव की दिव्य और ऊर्जावान स्वरूप की प्रशंसा करता है, जिनका तेज ज्वालाओं की अनंत माला से युक्त है।
  • यं र: अनादिशक्तिधाम्ने सर्वात्मने अस्त्राय फट |
    • यं र: ये बीज मंत्र हैं, जो विशेष ऊर्जाओं और शक्तियों को सक्रिय करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
    • अनादिशक्तिधाम्ने: इसका अर्थ है “अनादि शक्ति का आधार।” यह भगवान शिव की उस अविनाशी और अनंत शक्ति को दर्शाता है, जो सभी ऊर्जाओं और शक्तियों का स्रोत है।
    • सर्वात्मने: इससे भगवान शिव का सर्वव्यापी स्वरूप संदर्भित होता है, जो सम्पूर्ण जगत् का आत्मा है।
    • अस्त्राय फट: “अस्त्र” का अर्थ है “शस्त्र” या “आयुध”, जो युद्ध में प्रयोग होता है। “फट” एक विशिष्ट मंत्र है जो अस्त्र को सक्रिय करने के लिए उच्चारित किया जाता है। इस भाग में, भक्त भगवान शिव से युद्ध के लिए अस्त्र का उपयोग करने की प्रार्थना करता है।

इस श्लोक के माध्यम से, भक्त भगवान शिव की अनादि और सर्वशक्ति को प्रशंसा करते हैं और उनसे युद्ध के लिए अस्त्र की मदद का अनुरोध करते हैं।

अथ दिग्बन्धन:

ध्यानम


दिग्बन्धन एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसका उपयोग विशेष ध्यान सत्रों, पूजा, या यज्ञों के दौरान आस-पास की दिशाओं को बाँधने या सुरक्षित करने के लिए किया जाता है। इसका उद्देश्य नकारात्मक ऊर्जाओं को बाहर रखना और एक सुरक्षित, पवित्र स्थान स्थापित करना है जहाँ आध्यात्मिक अभ्यास बिना किसी बाधा के किया जा सके।

“ॐ भूर्भुव: स्व:” गायत्री मंत्र का प्रारंभिक भाग है, जिसे “महाव्याहृति” कहा जाता है। यह तीन लोकों – भू (पृथ्वी), भुवः (अंतरिक्ष), और स्वः (स्वर्ग) को संदर्भित करता है। यह संकेत देता है कि पूजा या ध्यान के दौरान तीनों लोकों की शक्तियाँ और आशीर्वाद सम्मिलित होते हैं।

ध्यानम् (मंत्र) “कर्पुरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम | सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ||” भगवान शिव की स्तुति है। इसका अर्थ है:

  • कर्पुरगौरं करुणावतारं: वह जिनका रंग कपूर की तरह उजला है और जो करुणा का अवतार हैं।
  • संसारसारं भुजगेन्द्रहारम: वह जो संसार के सार हैं और जिनके गले में नागराज हार के रूप में शोभायमान है।
  • सदा वसन्तं हृदयारविन्दे: वह जो हमेशा हृदय के कमल में वास करते हैं।
  • भवं भवानीसहितं नमामि: मैं भवानी के साथ भव (भगवानात्मिक और रक्षात्मक प्रक्रिया है, जो किसी स्थान या व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जाओं और शक्तियों से सुरक्षित रखने के लिए की जाती है। इसका अभ्यास योग, ध्यान, और पूजा आदि के समय किया जाता है ताकि एक सुरक्षित और पवित्र अंतरिक्ष सृजित किया जा सके।

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