Hanuman Ji

हनुमान जी HANUMAN JI: भक्ति और शक्ति के प्रतीक

(Hanuman Ji)

भूत-पिशाच निकट नहीं आवे। महावीर जब नाम सुनावे ।।

नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बल बीरा।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना।।

प्रस्तुत पंक्तिया हनुमान चालीसा, जो तुलसीदास द्वारा रचित है, हिन्दू धर्म में एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह पुस्तिका भगवान हनुमान को समर्पित है और इसमें उनकी बल, बुद्धि, और आध्यात्मिक शक्तियों का वर्णन किया गया है। हनुमान चालीसा न केवल भक्ति और आस्था का एक स्रोत है, बल्कि इसे ज्ञानवर्धक और बुद्धि विकास में सहायक माना जाता है।

इसके पाठ से भक्तों को आत्मबल और मनोबल मिलता है, साथ ही यह उन्हें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है। हनुमान चालीसा का पाठ भक्तों को आंतरिक शांति और संतुलन प्रदान करता है, और इसे नियमित रूप से पढ़ने से मन की शुद्धि और आत्मा की उन्नति होती है। यह ग्रंथ हनुमान जी HANUMAN JI के असीम भक्ति और शक्ति का प्रतीक है, जो भक्तों को उनके जीवन में मार्गदर्शन और प्रेरणा प्रदान करता है।

कौन थे राम (Ram) भक्त हनुमान (Hanuman)?

Hanuman Ji

हनुमान जी HANUMAN JI श्री राम के सबसे बड़े भक्त हैं और अंत तक इस धरती पर धर्म के रक्षक भी हैं। हनुमान जी HANUMAN JI को भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है।

हनुमान जी HANUMAN JI वानर राजा केसरी और देवी अंजना के पुत्र थे। देवी अंजना पहले एक अप्सरा थीं, जिनका नाम पुंजिकस्थला था। एक बार ऋषि दुर्वासा सभा में इंद्रदेव से बात कर रहे थे, पुंजिकस्थला कई बार उनके सामने से गुजरे जिससे उनका ध्यान भटक रहा था। दुर्वासा ऋषि ने क्रोधित होकर पुंजिकस्थला को श्राप दिया कि वह पृथ्वी पर जन्म लेगी और वह भी वानर के रूप में। इसके बाद ही पुंजिक शाला ने देवी अंजना के रूप में जन्म लिया और वानर राज केसरी से विवाह किया। पृथ्वी पर उन्होंने कठोर तपस्या की और दृश्य देव के आशीर्वाद से हनुमान जी HANUMAN JI को जन्म दिया।

जन्म से संबंधित एक अन्य कथा- वह हनुमान जी HANUMAN JI के जन्म से संबंधित है और इसे आनंद रामायण के सार कांड में वर्णित किया गया है। इस कथा के अनुसार, जब राजा दशरथ ने अपने पुत्रों की प्राप्ति के लिए यज्ञ किया, तो उस यज्ञ से प्रकट हुए अग्नि देव ने उन्हें प्रसाद के रूप में खीर प्रदान की।

यह खीर, जिसे देवी मां कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी को बाँटा गया था, उसमें से एक हिस्सा एक वानर द्वारा ले जाया गया। जब वानर, अंजनी पर्वत के ऊपर से गुजर रही था, तब वह खीर वहां गिर गई और देवी अंजना को मिली। देवी अंजना ने इस खीर को ग्रहण किया और उसके परिणामस्वरूप महाबली हनुमान का जन्म हुआ।

इसी तरह, खीर के अन्य हिस्से से श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। इस प्रकार, यह कथा रामायण के प्रमुख पात्रों के दिव्य जन्म की व्याख्या करती है और इसमें हनुमान जी HANUMAN JI का जन्म भी एक अद्भुत और पवित्र घटना के रूप में दर्शाया गया है।

नामकरण

हनुमान जी HANUMAN JI के नामकरण की कथा वास्तव में बहुत रोचक और प्रेरक है। जैसा कि आपने बताया, उनका मूल नाम ‘निकुंब’ था। लेकिन उनके बचपन की एक घटना ने उनका नाम ‘हनुमान’ बना दिया। यह नाम उन्हें एक विशेष घटना के कारण मिला, जिसे वाल्मीकि रामायण में किष्किंधा कांड में वर्णित किया गया है।

जब हनुमान जी HANUMAN JI ने बचपन में सूर्य को देखा, तो उन्हें यह किसी पके हुए फल की तरह लगा और वे इसे खाने के लिए सूर्य की ओर बढ़ गए। इंद्रदेव, जो इस दृश्य को देख रहे थे, उन्होंने हनुमान जी HANUMAN JI को रोकने के लिए अपने वज्र से प्रहार किया। इस प्रहार की वजह से हनुमान जी HANUMAN JI की ठुड्डी (जबड़ा) क्षतिग्रस्त हो गई। पवन देव ने जब अपने पुत्र को आकाश से गिरते देखा, तो वे उन्हें पाताल लोक ले गए। इससे देवता बहुत दुखी हुए और उन्होंने ब्रह्मांड में वायु को स्थिर कर दिया, जिससे सभी प्राणियों का दम घुटने लगा और पृथ्वी पर हाहाकार मच गया। तब सभी देवताओं और देवी-देवताओं ने पाताल लोक में जाकर पवन देव से प्रार्थना की। ब्रह्मा ने उन्हें अमरता का वरदान दिया, और विष्णु ने उन्हें सबसे बड़े भक्त का आशीर्वाद दिया। इतना ही नहीं, भगवान इंद्र ने भी उन्हें यह वरदान दिया कि अब से कोई भी हथियार या शस्त्र उन्हें चोट नहीं पहुंचा पाएगा। इस घटना के कारण, उन्हें ‘हनुमान’ के नाम से जाना जाने लगा, जिसमें ‘हनु’ का अर्थ है जबड़ा या ठुड्डी।

यह कथा हनुमान जी HANUMAN JI के असाधारण बल, साहस और उनके अद्भुत चरित्र का परिचायक है। इसके अलावा, इस कथा में उनके पिता पवन देव का भी महत्वपूर्ण योगदान है, जिन्होंने अपने पुत्र के लिए अपनी शक्ति का उपयोग किया। हनुमान जी HANUMAN JI का जीवन और उनके कार्य हिंदू धर्म में भक्ति, बल, और निष्ठा के आदर्श प्रतीक हैं।

हनुमान जी HANUMAN JI और शिव जी SHIV JI के बीच युद्ध  की कथा

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पद्म पुराण में वर्णित हनुमान जी HANUMAN JI और शिवजी SHIV JI के बीच का यह संघर्ष वास्तव में एक अत्यंत रोचक और महत्वपूर्ण कथा है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, हनुमानजी HANUMAN JI को अक्सर शिवजी SHIV JI का अवतार माना जाता है, लेकिन पद्म पुराण में उनके बीच के इस संघर्ष का वर्णन उनकी अलग पहचान और स्वतंत्र चरित्र को उजागर करता है।

कथा के अनुसार, जब श्रीराम SHRI RAM ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया और यज्ञ का घोड़ा राजा वीर मणि के नगर में पकड़ा गया, तो राजा शत्रुघ्न को यज्ञ के नियमों के अनुसार युद्ध करना पड़ा। राजा वीर मणि, जो शिवजी SHIV JI के अनन्य भक्त थे, ने शिवजी SHIV JI से सहायता मांगी। शिवजी SHIV JI ने वीरभद्र का रूप धारण कर युद्ध में प्रवेश किया, जिसके परिणामस्वरूप भरत के पुत्र पुश की मृत्यु हो गई और शत्रुघ्न बेहोश हो गए।

इसे देखकर हनुमानजी HANUMAN JI युद्ध के मैदान में आए और उन्होंने शिवजी SHIV JI के रथ को नष्ट कर दिया और उन पर पत्थर से प्रहार किया। शिवजी SHIV JI ने प्रत्युत्तर में हनुमानजी HANUMAN JI पर अपना त्रिशूल फेंका, लेकिन हनुमानजी HANUMAN JI ने उसे तोड़ दिया। इसके बाद शिवजी SHIV JI ने अपनी शक्ति से प्रहार किया, जो हनुमानजी HANUMAN JI के सीने से टकराई। क्रोधित होकर हनुमानजी HANUMAN JI ने शिवजी SHIV JI पर एक बड़े पेड़ से प्रहार किया, जिससे शिवजी SHIV JI की गर्दन में बंधी नाग की माला उखड़ गई। इसके बाद शिवजी SHIV JI ने लोहे की ओखली से हनुमानजी HANUMAN JI पर प्रहार किया, जिसका जवाब हनुमानजी HANUMAN JI ने विष्णु की शरण लेकर दिया।

यह युद्ध दीर्घकालिक था और अंततः हनुमानजी HANUMAN JI की विजय हुई। यह कथा हिन्दू धर्म की गहराइयों और देवताओं के बीच के संबंधों की जटिलता को दर्शाती है। यह न केवल हनुमानजी HANUMAN JI के अद्वितीय बल और शक्ति को उजागर करती है, बल्कि शिवजी SHIV JI और हनुमानजी HANUMAN JI के बीच के अनोखे संबंध को भी प्रकट करती है।

क्यों चढ़ाया जाता है हनुमान जी HANUMAN JI को सिंदूर?

Hanuman Ji

हनुमानजी HANUMAN JI की इस कथा में उनकी अपार भक्ति और समर्पण का सुंदर चित्रण है। यह मान्यता कि जब भी विश्वभर में रामकथा का उल्लेख होता है, हनुमानजी HANUMAN JI किसी न किसी रूप में उस स्थल पर उपस्थित रहते हैं, उनके अनन्य भक्ति और श्रीराम SHRI RAM के प्रति अटूट समर्पण को दर्शाती है।

विश्व भर में हनुमानजी HANUMAN JI की पूजा एक विशिष्ट मूर्ति के रूप में की जाती है, जिसमें उनका संपूर्ण शरीर सिंदूर से ढका होता है। हनुमान चालीसा में उनका वर्णन कंचन वर्ण, अर्थात् सोने जैसे वर्ण के रूप में किया गया है, लेकिन उनके शरीर पर सिंदूर का लेपन उनके असीम भक्ति और श्रीराम SHRI RAM के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है।

कथा के अनुसार, वनवास समाप्त होने के पश्चात एक दिन हनुमानजी HANUMAN JI ने माता सीता को मांग में सिंदूर लगाते हुए देखा। जब उन्होंने माता सीता से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि यह सिंदूर वह श्रीराम SHRI RAM की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए लगाती हैं। इस पर विचार करते हुए हनुमानजी HANUMAN JI ने सोचा कि यदि माता सीता के एक चुटकी सिंदूर से श्रीराम SHRI RAM को लाभ होता है, तो उनके पूरे शरीर पर सिंदूर लगाने से कितना अधिक लाभ होगा। इस विचार से प्रेरित होकर हनुमानजी HANUMAN JI ने अपने पूरे शरीर को सिंदूर से ढक लिया। जब वह श्रीराम SHRI RAM के दरबार में पहुँचे, तो श्रीराम SHRI RAM ने इस अनोखे दृश्य को देखकर आश्चर्य व्यक्त किया और हनुमानजी HANUMAN JI ने उन्हें इसका कारण बताया। उनकी इस अतुलनीय भक्ति को देखकर श्रीराम SHRI RAM अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने हनुमानजी HANUMAN JI को आशीर्वाद दिया।

यह कथा हनुमानजी HANUMAN JI के भक्ति और समर्पण की गहराई को दर्शाती है और उन्हें एक आदर्श भक्त के रूप में प्रस्तुत करती है।

हनुमानजी HANUMAN JI और महाभारत

हनुमानजी HANUMAN JI का चरित्र वास्तव में भारतीय पौराणिक कथाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण और विविध है, जो केवल त्रेतायुग की रामायण से ही संबंधित नहीं है, बल्कि द्वापरयुग के महाभारत से भी जुड़ा हुआ है। महाभारत के अनुसार, हनुमानजी HANUMAN JI ने अर्जुन को वरदान दिया था कि वे कुरुक्षेत्र के युद्ध में उनकी सहायता करेंगे। इस प्रकार, जब महाभारत का युद्ध आरंभ हुआ, हनुमानजी HANUMAN JI अर्जुन के रथ के ध्वज पर विराजमान थे और युद्ध के अंत तक उन्होंने अर्जुन का साथ दिया। युद्ध समाप्ति पर अर्जुन के रथ के जलकर राख हो जाने का किस्सा उनकी रक्षा क्षमता को दर्शाता है।

वहीं, हनुमानजी HANUMAN JI का संबंध रामायण से भी गहरा है। रामायण के अनेक संस्करणों में, उनकी भक्ति और श्रीराम SHRI RAM के प्रति समर्पण की कहानियाँ प्रमुख हैं। उनमें से सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध वाल्मीकि रामायण है। लेकिन वाल्मीकि रामायण से पहले भी, हनुमान जी HANUMAN JI ने अपना स्वतंत्र संस्करण रामायण का लिखा था, जिसे ‘हनुमत रामायण’ के नाम से जाना जाता है। कुछ कथाओं के अनुसार, जब महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामायण पूरी करके हनुमान जी HANUMAN JI के पास पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि हनुमान जी HANUMAN JI ने अपने नखों से हिमालय पर्वतों पर रामायण उकेरी थी। ऋषि वाल्मीकि की उदासी देखकर हनुमान जी HANUMAN JI ने अपनी लिखी हुई रामायण को नष्ट कर दिया, और इस प्रकार उनका संस्करण हमेशा के लिए लुप्त हो गया।

निष्कर्ष:

हनुमान जी HANUMAN JI हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पूजनीय चरित्र हैं। वे भगवान राम के सबसे बड़े भक्त हैं और अपनी असीम भक्ति, वीरता, और समर्पण के लिए जाने जाते हैं। हनुमान जी HANUMAN JI की कथाएँ हिंदू धर्म में भक्ति, साहस, और निष्ठा के आदर्श प्रतीक हैं। हनुमान जी HANUMAN JI के जीवन और कार्यों से हमें कई महत्वपूर्ण प्रेरणाएँ मिलती हैं। वे हमें सिखाते हैं कि हमें अपने आराध्य देव के प्रति सच्ची भक्ति और समर्पण रखना चाहिए। वे हमें यह भी सिखाते हैं कि हमें अपने साहस और शक्ति का प्रयोग दूसरों की मदद के लिए करना चाहिए। हनुमान जी HANUMAN JI हिंदू धर्म में एक लोकप्रिय देवता हैं और उनकी पूजा पूरे भारत में की जाती है। वे हिंदू धर्म में भक्ति और शक्ति के प्रतीक हैं और उनकी शिक्षाएँ हमें आज भी प्रेरित करती हैं। हनुमान जी HANUMAN JI की कथाएँ आज भी हमें उनकी अद्भुत शक्तियों, अपार भक्ति, और अटूट निष्ठा का संदेश देती हैं, जो युगों-युगों तक अमर रहेगा। उनकी कथाएँ हमें यह भी सिखाती हैं कि सच्ची भक्ति और निष्ठा से ही हम अपने जीवन में सच्चे सुख और शांति को प्राप्त कर सकते हैं।

हनुमान जी की आरती- Hanuman Aarti

हनुमान चालिसा- Hanuman Chalisa

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