Sudarshana Mantra

श्री सुदर्शन अष्टकम स्तोत्र भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की महिमा का वर्णन करता है। इसका नियमित पाठ करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। इस स्तोत्र में सुदर्शन चक्र की शक्तियों, उसके गुणों और उसकी रक्षात्मक क्षमताओं का विवरण होता है, जिससे भक्तों को विशेष आशीर्वाद और सुरक्षा प्राप्त होती है।

हिंदू धर्म में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु की उपासना के लिए विशेष रूप से समर्पित है। इस दिन की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु की पूजा और मंत्रों का जाप करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।

गुरुवार आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसे भगवान विष्णु के दिन के रूप में जाना जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन की समस्याएं दूर होती हैं और व्यक्ति को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गुरुवार को भगवान विष्णु को समर्पित वैदिक मंत्रों का जाप करने से पूजा का विशेष फल मिलता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण मंत्र है श्री सुदर्शन अष्टकम स्तोत्र

श्लोक और अर्थ:

अर्थ:

  • प्रतिभटश्रेणि भीषण: सुदर्शन चक्र अत्यंत भयंकर और शक्तिशाली है, जो शत्रुओं की पूरी सेना को भयभीत कर देता है।
  • वरगुणस्तोम भूषण: सुदर्शन चक्र अद्वितीय गुणों का आभूषण है, जो इसके शक्तिशाली और प्रभावशाली स्वरूप को प्रकट करता है।
  • जनिभयस्थान तारण: यह उन लोगों को भयमुक्त करता है जो धर्म के पथ पर हैं और उनके सभी प्रकार के कष्टों का नाश करता है।
  • जगदवस्थान कारण: यह पूरे संसार की रक्षा का कारण है, जो धर्म और सत्य का पालन करता है।
  • निखिलदुष्कर्म कर्शन: सुदर्शन चक्र समस्त बुरे कर्मों को नष्ट कर देता है और अधर्मियों का विनाश करता है।
  • निगमसद्धर्म दर्शन: यह वेदों और धर्म के सिद्धांतों को प्रकट करता है, सत्य और धर्म के मार्ग को प्रशस्त करता है।
  • जय जय श्री सुदर्शन: हे सुदर्शन चक्र! आपकी जय हो, आपकी महिमा अपार है।

सार:

इस श्लोक में सुदर्शन चक्र की अपार शक्ति, दिव्यता और भगवान विष्णु की रक्षा क्षमता की स्तुति की गई है। सुदर्शन चक्र का नाम लेकर इसका स्मरण करने से भक्तों को शत्रुओं से सुरक्षा और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। यह श्लोक भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और उनके दिव्य अस्त्रों के प्रति श्रद्धा को प्रकट करता है।

यह श्लोक श्री सुदर्शनाष्टक का एक भाग है, जो भगवान विष्णु के शक्तिशाली और दिव्य सुदर्शन चक्र की महिमा का वर्णन करता है। इस श्लोक में सुदर्शन चक्र के रूप और गुणों का उल्लेख किया गया है, जो समस्त जगत को शुभ और सुरक्षात्मक रूप से मंडित करता है।

श्लोक और अर्थ:

अर्थ:

  • शुभजगद्रूप मण्डन: सुदर्शन चक्र पूरे जगत को शुभ, सुंदर और शांति का प्रतीक बनाता है।
  • सुरगणत्रास खन्डन: यह देवताओं के शत्रुओं के भय को समाप्त करता है।
  • शतमखब्रह्म वन्दित: इसे इन्द्र (शताक्षी) और ब्रह्मा द्वारा वंदित किया गया है।
  • शतपथब्रह्म नन्दित: यह सुदर्शन चक्र वैदिक ऋचाओं के अनुसार पूजित है और विद्वानों द्वारा इसकी प्रशंसा की जाती है।
  • प्रथितविद्वत् सपक्षित: यह विद्वानों के द्वारा पूजित है और उनकी इच्छाओं को पूर्ण करता है।
  • भजदहिर्बुध्न्य लक्षित: यह सुदर्शन चक्र सभी स्थानों पर अपनी उपस्थिति दिखाता है और सबकी रक्षा करता है।

सार:

यह श्लोक भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की महिमा का वर्णन करता है, जो जगत का शुभ मंडन करता है, देवताओं के शत्रुओं के भय को समाप्त करता है, और विद्वानों के द्वारा पूजित होता है। यह चक्र समस्त ब्रह्मांड में अपनी उपस्थिति दिखाकर रक्षा करता है।

जय जय श्री सुदर्शन: इस श्लोक में बार-बार सुदर्शन चक्र की महिमा और उसकी विजय की कामना की जाती है, जो इसके महत्त्व और शक्तिशाली स्वरूप को दर्शाता है।

यह श्लोक भी श्री सुदर्शनाष्टक का एक हिस्सा है, जो सुदर्शन चक्र की महिमा और अद्वितीयता का वर्णन करता है। इस श्लोक में सुदर्शन चक्र की शक्ति, उसकी रक्षा करने की क्षमता, और उसकी अद्वितीय विशेषताओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।

श्लोक और अर्थ:

अर्थ:

  • स्फुटतटिज्जाल पिञ्जर: सुदर्शन चक्र बिजली की चमक के समान अपने प्रकाश से चारों ओर को घेरता है।
  • पृथुतरज्वाल पञ्जर: यह शक्तिशाली ज्वालाओं के पिंजरे जैसा है, जो शत्रुओं को नष्ट करने के लिए हर समय तैयार रहता है।
  • परिगत प्रत्नविग्रह: यह चक्र हर समय भगवान विष्णु के साथ रहता है और उनका अद्वितीय शक्ति का प्रतीक है।
  • पतुतरप्रज्ञ दुर्ग्रह: यह चक्र इतनी प्रखर बुद्धि और अजेय शक्ति का है कि इसे किसी भी प्रकार से पराजित नहीं किया जा सकता।
  • प्रहरण ग्राम मण्डित: यह चक्र विभिन्न प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित है, जिससे यह भगवान विष्णु के शत्रुओं का संहार करता है।
  • परिजन त्राण पण्डित: यह चक्र भक्तों की रक्षा करने में हमेशा सक्षम और कुशल है, जिससे उनके परिजनों का त्राण होता है।

अर्थात: यह श्लोक सुदर्शन चक्र की अपरंपार शक्ति और उसकी अद्वितीयता का वर्णन करता है। सुदर्शन चक्र बिजली की तरह चमकता है, आग के पिंजरे के समान शक्तिशाली है, और किसी भी प्रकार से अजेय है। यह चक्र भगवान विष्णु के शस्त्रों से सुसज्जित है और भक्तों की रक्षा करने में हमेशा तत्पर रहता है।

जय जय श्री सुदर्शन: इस श्लोक के अंत में भी सुदर्शन चक्र की विजय और उसकी महिमा का गान किया गया है, जो उसकी अद्वितीय शक्ति और उसके सर्वत्र सुरक्षा प्रदान करने के गुणों को दर्शाता है।

इस श्लोक में भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की महिमा और शक्ति का गुणगान किया गया है। यह श्लोक विशेष रूप से सुदर्शन चक्र के परम वैभव और उसकी अद्वितीय क्षमताओं का वर्णन करता है।

श्लोक और अर्थ:

अर्थ:

  • निजपदप्रीत सद्गण: सुदर्शन चक्र अपने भक्तों के चरणों में प्रेम करता है और उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है।
  • निरुपधिस्फीत षड्गुण: यह सभी दोषों से मुक्त और सभी छह गुणों से सम्पन्न है (सर्वज्ञता, सर्वशक्ति, सर्वसमर्थता, आदि)।
  • निगम निर्व्यूढ वैभव: यह वेदों में वर्णित और अवर्णनीय वैभव से युक्त है।
  • निजपर व्यूह वैभव: यह भगवान विष्णु के व्यक्तिगत और उच्चतम वैभव का प्रतीक है, जो उनके दिव्य रूपों में प्रकट होता है।
  • हरि हय द्वेषि दारण: यह सुदर्शन चक्र, हरि (विष्णु) के शत्रुओं का संहार करता है।
  • हर पुर प्लोष कारण: यह भगवान शिव के शत्रुओं और उनकी नगरियों को नष्ट करने का कारण है।
  • जय जय श्री सुदर्शन: हे सुदर्शन चक्र, आपकी जय हो!

सार:

यह श्लोक सुदर्शन चक्र की अद्वितीय शक्ति, वैभव, और भगवान विष्णु के प्रति उसकी असीम भक्ति का वर्णन करता है। सुदर्शन चक्र न केवल विष्णु के शत्रुओं का नाश करता है, बल्कि यह सभी बाधाओं को दूर कर उनके भक्तों की रक्षा भी करता है। इस श्लोक का पाठ करने से भक्तों को भगवान विष्णु और सुदर्शन चक्र की कृपा प्राप्त होती है, जिससे उनके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

श्लोक और अर्थ:

अर्थ:

  • दनुज विस्तार कर्तन: सुदर्शन चक्र दुष्ट राक्षसों (दनुजों) के विस्तार को काट देता है और उन्हें नष्ट करता है।
  • जनि तमिस्रा विकर्तन: यह चक्र तमिस्रा (अज्ञानता और अंधकार) को समाप्त करता है।
  • दनुजविद्या निकर्तन: यह राक्षसों की मायावी शक्तियों और उनकी दुष्ट विद्या का नाश करता है।
  • भजदविद्या निवर्तन: यह भक्तों की अज्ञानता को दूर करता है और उन्हें ज्ञान प्रदान करता है।
  • अमर दृष्ट स्व विक्रम: देवताओं ने सुदर्शन चक्र के अद्वितीय पराक्रम को देखा है।
  • समर जुष्ट भ्रमिक्रम: यह चक्र युद्ध में भ्रमित करने वाली चालों को नष्ट करता है और विजय दिलाता है।
  • जय जय श्री सुदर्शन: हे सुदर्शन चक्र, आपकी जय हो!

सार:

यह श्लोक सुदर्शन चक्र की अद्वितीय शक्ति का वर्णन करता है, जो अंधकार, अज्ञानता, और दुष्ट शक्तियों को समाप्त करता है। यह चक्र अपने भक्तों की अज्ञानता को दूर करके उन्हें ज्ञान की दिशा में अग्रसर करता है। इसके अलावा, यह देवताओं के लिए विजय और शांति का प्रतीक भी है। सुदर्शन चक्र की स्तुति करने से व्यक्ति को ज्ञान, शक्ति, और सभी बुराइयों से मुक्ति मिलती है।

इस श्लोक में सुदर्शन चक्र की विशेषताओं और उसकी महान शक्तियों का वर्णन किया गया है। यह श्लोक उसकी अद्वितीय शक्ति, रक्षा क्षमता और उसके द्वारा फैलाए गए दिव्य प्रभाव की प्रशंसा करता है।

श्लोक और अर्थ:

अर्थ:

  • प्रथिमुखालीढ बन्धुर: सुदर्शन चक्र अपनी अग्रिम गति में अद्वितीय और प्रभावशाली है।
  • पृथुमहाहेति दन्तुर: यह चक्र बड़े-बड़े अस्त्रों से भी लैस है, जो शत्रुओं को काटने में सक्षम है।
  • विकटमाय बहिष्कृत: यह सुदर्शन चक्र विकट मायावी शक्तियों को नष्ट कर देता है और उन्हें बाहर कर देता है।
  • विविधमाला परिष्कृत: सुदर्शन चक्र विभिन्न प्रकार की दिव्य शक्तियों से सज्जित है, जो इसे और भी अधिक शक्तिशाली बनाती हैं।
  • स्थिरमहायन्त्र तन्त्रित: यह चक्र एक महान तंत्र की तरह स्थिर और अटल है, जो अपने कार्य में दक्ष है।
  • दृढ दया तन्त्र यन्त्रित: यह चक्र दृढ़ता और दया से संचालित होता है, जो भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहता है।
  • जय जय श्री सुदर्शन: हे सुदर्शन चक्र, आपकी जय हो!

सार:

यह श्लोक सुदर्शन चक्र की महान शक्ति और उसकी अद्वितीय क्षमताओं की प्रशंसा करता है। यह चक्र न केवल शत्रुओं को नष्ट करने में सक्षम है, बल्कि विकट मायावी शक्तियों को भी समाप्त करता है। इसके अलावा, यह चक्र दिव्य शक्तियों से सुशोभित है और अपने कार्य में अडिग रहता है। सुदर्शन चक्र की स्तुति करने से व्यक्ति को शक्ति, साहस, और दैवीय सुरक्षा प्राप्त होती है।

श्लोक और अर्थ:

अर्थ:

  • महित सम्पत् सदक्षर: सुदर्शन चक्र महान संपत्तियों से सम्पन्न है और अजेय है।
  • विहितसम्पत् षडक्षर: यह चक्र षडक्षर मंत्रों (छह अक्षरों वाले मंत्रों) से संपन्न है, जो इसे अधिक शक्तिशाली बनाता है।
  • षडरचक्र प्रतिष्ठित: सुदर्शन चक्र षडरचक्र (छह चक्रों) में प्रतिष्ठित है, जो शरीर के भीतर स्थित प्रमुख ऊर्जा केंद्र हैं।
  • सकल तत्त्व प्रतिष्ठित: यह चक्र सभी तत्त्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) में प्रतिष्ठित है और उन्हें संतुलित रखता है।
  • विविध सङ्कल्प कल्पक: सुदर्शन चक्र विभिन्न संकल्पों को पूर्ण करने की क्षमता रखता है।
  • विबुधसङ्कल्प कल्पक: यह चक्र देवताओं के संकल्पों को भी पूर्ण करता है और उनकी इच्छाओं को साकार करता है।
  • जय जय श्री सुदर्शन: हे सुदर्शन चक्र, आपकी जय हो!

सार:

यह श्लोक सुदर्शन चक्र की अद्वितीय शक्ति और दिव्यता की स्तुति करता है। यह चक्र न केवल भौतिक संपत्तियों से संपन्न है, बल्कि इसमें आध्यात्मिक और मंत्रात्मक शक्तियाँ भी निहित हैं। सुदर्शन चक्र सभी तत्त्वों को नियंत्रित करता है और देवताओं के संकल्पों को पूरा करने में सक्षम है। इस श्लोक के पाठ से व्यक्ति को सुदर्शन चक्र की दिव्य शक्ति और कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में आने वाली सभी बाधाओं का नाश होता है।

श्लोक और अर्थ:

अर्थ:

  • भुवन नेत्र त्रयीमय: सुदर्शन चक्र त्रिलोक (तीनों लोकों) का नेत्र है, जो सबकुछ देख सकता है और सभी जगहों में उपस्थित है।
  • सवन तेजस्त्रयीमय: यह चक्र त्रिलोकी के तेज से संपन्न है और उसकी ऊर्जा अपार है।
  • निरवधि स्वादु चिन्मय: सुदर्शन चक्र की चेतन शक्ति अनंत और अविरल है, जिससे सबकुछ परमानंदमय हो जाता है।
  • निखिल शक्ते जगन्मय: यह चक्र समस्त जगत की शक्तियों का संगम है और सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है।
  • अमित विश्वक्रियामय: सुदर्शन चक्र अनंत विश्व की सभी गतिविधियों को नियंत्रित करने की क्षमता रखता है।
  • शमित विश्वग्भयामय: यह चक्र समस्त जगत के भय को शांत करता है और उसे नष्ट करता है।
  • जय जय श्री सुदर्शन: हे सुदर्शन चक्र, आपकी जय हो!

सार:

यह श्लोक सुदर्शन चक्र की अपार शक्ति और व्यापकता की महिमा का गुणगान करता है। सुदर्शन चक्र त्रिलोक के लिए नेत्र के समान है और उसकी ऊर्जा अपार है। यह चक्र सभी शक्तियों का स्रोत है और ब्रह्मांड की सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है। इसके प्रभाव से समस्त जगत के भय समाप्त होते हैं और शांति स्थापित होती है। इस श्लोक के पाठ से व्यक्ति को सुदर्शन चक्र की दिव्य कृपा और सुरक्षा प्राप्त होती है।

फलश्रुति (श्लोक का परिणाम या लाभ) श्लोकों के अंत में बताया जाता है, जो उन श्लोकों का पाठ करने से प्राप्त होने वाले लाभों का वर्णन करता है। यहाँ श्री सुदर्शनाष्टक के फलश्रुति का वर्णन किया गया है।

श्लोक और अर्थ:

अर्थ:

  • द्विचतुष्कमिदं प्रभूतसारं: यह अष्टक (श्री सुदर्शनाष्टक) अति महत्वपूर्ण और सारभूत है।
  • पठतां वेङ्कटनायक प्रणीतम्: इसे वेङ्कटनायक (श्री वेङ्कटेश्वर) के द्वारा रचित और प्रस्तुत किया गया है। इसका पाठ करने से बहुत ही लाभकारी परिणाम मिलते हैं।
  • विषमेऽपि मनोरथः प्रधावन्: इस अष्टक का पाठ करने से मनुष्य के सभी मनोरथ (इच्छाएँ) पूरी होती हैं, चाहे वे विषम परिस्थितियों में भी क्यों न हों।
  • न विहन्येत रथाङ्ग धुर्य गुप्तः: सुदर्शन चक्र, जो रथ के पहिये के समान है, की सुरक्षा के कारण, कोई भी बाधा या विपत्ति उस व्यक्ति को नहीं छू सकती।

अर्थात: जो व्यक्ति इस अष्टक का श्रद्धा और भक्ति से पाठ करता है, उसकी सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। सुदर्शन चक्र की कृपा से उसे किसी भी प्रकार की विपत्ति या बाधा नहीं आती और वह सदा सुरक्षित रहता है।

अंतिम मंत्र:

इति श्री सुदर्शनाष्टकं समाप्तम् ॥

अर्थ: यह श्री सुदर्शनाष्टक समाप्त हुआ। मैं उस कवि और तर्क के सिंह (महान व्यक्तित्व) श्री वेङ्कटेश्वर को प्रणाम करता हूँ, जो वेदांत के गुरु और कल्याणकारी गुणों के धनी हैं।

सार:

श्री सुदर्शनाष्टक का पाठ करने से व्यक्ति को सुदर्शन चक्र की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इससे उसकी सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं और वह किसी भी प्रकार की विपत्ति से सुरक्षित रहता है। यह स्तुति विशेष रूप से भगवान विष्णु के भक्तों के लिए अत्यधिक लाभकारी मानी गई है।

यह भी पढ़ें – श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र





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