क्यों नहीं होती देवराज इंद्र की पूजा?

हिंदू धर्म की समृद्ध पौराणिक कथाओं में, देवताओं का राजा देवराज इंद्र एक प्रमुख स्थान रखते हैं। वे स्वर्ग के शासक और इंद्रलोक के स्वामी हैं। इसके बावजूद, पूरे भारत में इंद्र देव के मंदिर कम ही मिलते हैं और उनकी पूजा भी लगभग नहीं होती। यह एक दिलचस्प विरोधाभास है जो कई लोगों के मन में सवाल उठाता है: आखिर क्यों नहीं होती देवराज इंद्र की पूजा? इस प्रश्न का उत्तर कई पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। इस ब्लॉग में, हम विष्णु पुराण और अन्य प्राचीन शास्त्रों के संदर्भों के माध्यम से इस विषय का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

इंद्र देव, जिन्हें देवताओं का राजा माना जाता है, हिंदू धर्मग्रंथों में एक प्रमुख स्थान रखते हैं। उन्हें वर्षा, आकाश, और युद्ध का देवता माना जाता है। इंद्र देव का वर्णन ऋग्वेद में प्रमुखता से मिलता है, जहां उनकी वीरता और शक्ति की कथाएँ वर्णित हैं। फिर भी, उनकी पूजा का प्रचलन धीरे-धीरे घट गया और आज उनके मंदिर दुर्लभ हैं।

इंद्रदेव का मुख्य अस्त्र वज्र था और उनकी सवारी एक सफेद हाथी ऐरावत थी। वेदों के अनुसार, इंद्रदेव ने कई बार देवताओं और स्वर्ग को राक्षसों से बचाया था। एक बार, वृत्त नामक खतरनाक राक्षस ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया और धरती से सारा पानी छीन लिया था। इंद्रदेव ने वृत्त को पराजित करने के लिए ऋषि दधीचि की हड्डियों से बने वज्र का उपयोग किया था। इस तरह उन्होंने स्वर्ग को वापस जीता और धरती पर वर्षा लौटाई।

इंद्र की उपाधि और उनका इतिहास

इंद्र कोई एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक उपाधि है जो स्वर्ग के राजा को दी जाती है। पुराणों के अनुसार, अब तक 14 इंद्र हो चुके हैं। इंद्र पद पर विराजमान व्यक्ति को हमेशा अपने सिंहासन के छिन जाने का भय रहता था, जिसके चलते उन्होंने कई बार तपस्वियों को उनके मार्ग से भटकाने के प्रयास किए और राजाओं के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े चुराए।

पौराणिक कथाएँ और इंद्र की पूजा का अभाव

महाभारत के महान योद्धाओं में से एक करण, एक ऐसे योद्धा थे जो शायद अर्जुन को भी पराजित कर सकते थे। उन्हें अपने पिता सूर्यदेव से कवच और कुंडल प्राप्त हुआ था, जिससे वे अमर थे। लेकिन फिर भी, महाभारत के युद्ध के दौरान, अर्जुन के हाथों करण मारे गए। इसके पीछे इंद्रदेव का हाथ था, जो स्वर्ग लोक के राजा और अर्जुन के पिता थे। इंद्रदेव ने अपने पुत्र अर्जुन की रक्षा के लिए करण से उनके कवच और कुंडल छल से मांग लिए थे। इस घटना के बाद ही युद्ध में करण की मृत्यु हुई थी।

अहिल्या और गौतम ऋषि की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार इंद्र देव ने अहिल्या, जो ऋषि गौतम की पत्नी थी, पर मोहित होकर छल किया। इंद्र ने गौतम ऋषि का रूप धारण कर अहिल्या के साथ संपर्क बनाया। जब ऋषि गौतम को इस धोखे का पता चला, उन्होंने इंद्र को शाप दिया कि उनके शरीर पर 1000 योनियां (महिला जननांग) उभर आएं। बाद में, इंद्र ने क्षमा याचना की, तब ऋषि ने उन योनियों को आंखों में बदल दिया। अहिल्या को पत्थर बनने का शाप मिला, जिसे बाद में भगवान राम ने अपने चरणस्पर्श से मुक्त किया। इस घटना के बाद, इंद्र की पूजा कम हो गई।

भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पूजा

एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज में देखा कि लोग इंद्र देव की पूजा कर रहे हैं, उन्होंने उन्हें गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने का निर्देश दिया। श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को बताया कि इंद्र देव ना तो ईश्वर हैं और ना ही ईश्वर तुल्य। इंद्र ने क्रोधित होकर ब्रज में मूसलाधार वर्षा करवाई, लेकिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की। इस घटना के बाद से ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा बंद कर दी और गोवर्धन पूजा का प्रचलन बढ़ गया।

इंद्र की चरित्रगत कमजोरियाँ

इंद्रदेव की पत्नी और उनकी इच्छाएँ

इंद्रदेव की पत्नी का नाम सच्ची था, लेकिन उनके कई और संबंध भी थे। स्वर्ग के सभी अप्सरा और गंधर्व उनके पास ही रहते थे। इंद्रदेव के पास किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी, लेकिन असुरों के पास हर चीज की कमी थी। इसलिए अक्सर स्वर्ग पर असुरों का आक्रमण होता था और इंद्रदेव उन्हें पराजित करने में व्यस्त रहते थे।

अहंकार और असुरक्षा

इंद्र देव के चरित्र में अहंकार और असुरक्षा का भाव प्रमुखता से दिखाई देता है। वे अक्सर ऋषियों और मुनियों के तप को भंग करने के लिए अप्सराओं का उपयोग करते थे और अन्य देवताओं की शक्ति को चुनौती देने से डरते थे। यह स्वार्थी और असुरक्षित व्यवहार उनकी पूजा के अभाव का एक बड़ा कारण है।

युद्ध और पराजय

महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों में भी इंद्र की कमजोरियों का वर्णन मिलता है। इंद्र अक्सर देवासुर संग्रामों में पराजित होते थे और अन्य देवताओं की सहायता के लिए याचना करते थे। उनकी यह असफलताएँ और पराजय भी उनके प्रति श्रद्धा को कम करती हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण

कर्तव्य और धर्म का पालन

हिंदू धर्म में, पूजा उन देवताओं की होती है जो धर्म का पालन करते हैं और मानवता के कल्याण के लिए कार्य करते हैं। इंद्र देव के कर्तव्यों और उनके कृत्यों में यह धार्मिक गुण अक्सर अनुपस्थित दिखते हैं। उनके छल, कपट और अहंकार के कारण, वे श्रद्धा और सम्मान प्राप्त नहीं कर पाते।

मंदिर और पूजा का महत्व

मंदिर और पूजा का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है। मंदिर उन्हें देवताओं की बनाए जाते हैं जिनकी पूजा और आस्था में लोग विश्वास करते हैं। इंद्र देव के कर्मों और उनके प्रति समाज की दृष्टि के कारण, उनके मंदिरों का निर्माण नहीं हुआ और उनकी पूजा नहीं की जाती।

इंद्रदेव की कहानियाँ हमें यह सिखाती हैं कि कितनी भी शक्ति और अधिकार क्यों न हो, अहंकार और अत्याचार हमेशा विनाश की ओर ले जाते हैं। इंद्रदेव का पतन इसी का परिणाम था और उनकी कहानियाँ हमें विनम्रता और सद्गुणों की महत्ता का पाठ पढ़ाती हैं। महाभारत और अन्य पुराणों में उनकी कहानियाँ एक महत्वपूर्ण संदेश देती हैं कि अहंकार से बचे रहना ही सच्चे देवत्व की पहचान है।

हिंदू धर्म में देवराज इंद्र की पूजा का अभाव पौराणिक कथाओं, उनके चरित्र और धार्मिक दृष्टिकोण के कारण है। उनके छल, अहंकार और असुरक्षित व्यवहार ने उनके प्रति श्रद्धा को कम कर दिया। इस कारण, हिंदू समाज में इंद्र देव की पूजा और उनके मंदिरों का निर्माण नहीं होता। यह लेख उन सभी कारणों को स्पष्ट करता है जिनके चलते इंद्र देव की पूजा का प्रचलन नहीं है।

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