राम रक्षा स्तोत्र, ऋषि कौशिक द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है जिसमें श्रीराम की भक्ति और भक्तों की पूर्ण रूप से रक्षा करने की कामना की गई है। यह स्तोत्र सभी प्रकार की बाधाओं और शत्रुओं से रक्षा के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। इसके नियमित पाठ से न केवल नवग्रहों के कुप्रभाव से रक्षा होती है बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है।
राम रक्षा स्तोत्र का महत्व
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। इसका पाठ शत्रुओं से रक्षा, नवग्रहों के कुप्रभाव से बचाव और जीवन की सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए किया जाता है। यहाँ हम राम रक्षा स्तोत्र को हिंदी अर्थ के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं जिससे आप इसके महत्व और महिमा को बेहतर समझ सकें। इस स्तोत्र में श्रीराम का यथार्थ वर्णन, श्रीराम की वंदना और श्रीराम नाम की महिमा का भी उल्लेख है।
श्री राम रक्षा स्तोत्र | Sri Ram Raksha Stotra
विनियोग:
अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः ।
श्री सीतारामचंद्रो देवता ।
अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः ।
श्रीमान हनुमान कीलकम ।
श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः ।
अथ ध्यानम्:
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,
पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम ।
वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,
रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम ॥
राम रक्षा स्तोत्रम्:
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ॥2॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥3॥
रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥
कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ॥8॥
जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः ॥9॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥
पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन ।
नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत ।
अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ॥16॥
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ॥20॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥
रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥
इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः ॥25॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं,
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं,
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ॥26॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥
श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम,
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम,
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥
श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि,
श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि,
श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥30॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥31॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ॥34॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥36॥
रामो राजमणिः सदा विजयते,
रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता,
निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं,
रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः,
सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः ॥37॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥
श्री राम रक्षा स्तोत्र के श्लोकों का अर्थ और व्याख्या
विनियोग
अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः।
श्री सीतारामचंद्रो देवता।
अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः।
श्रीमान हनुमान कीलकम।
श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः।
अर्थ:
इस श्री राम रक्षा स्तोत्र के ऋषि बुधकौशिक हैं। इस स्तोत्र के देवता श्री सीतारामचंद्र हैं। इसका छंद अनुष्टुप है। इसकी शक्ति सीता हैं। श्रीमान हनुमान इसका कीलक (मुख्य आधार) हैं। इस राम रक्षा स्तोत्र का जाप श्री सीतारामचंद्र की प्रसन्नता के लिए किया जाता है।
ध्यानम्
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,
पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम्।
वामांकारूढ़सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,
रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम्॥
अर्थ:
मैं ध्यान करता हूँ उस रामचंद्र का, जिनके लंबे भुजाएँ हैं, जिन्होंने धनुष और बाण धारण कर रखा है और जो पद्मासन में विराजमान हैं। जो पीले वस्त्र धारण किए हुए हैं, जिनकी आँखें नवकमल के दल की स्पर्धा करती हैं, जो प्रसन्नचित्त हैं। जिनके बाएँ पार्श्व में सीता बैठी हैं, जिनके मुखकमल को देख रही हैं और जिनकी जटाओं का मण्डल मनमोहक है।
1. चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥
अर्थ:
रघुनाथ (श्रीराम) का चरित्र शतकोटि (अरबों) में विस्तृत है। उनके चरित्र का प्रत्येक अक्षर महापातक (महान पापों) का नाश करने वाला है।
व्याख्या:
यह श्लोक श्रीराम के महान चरित्र की महिमा का वर्णन करता है। उनका चरित्र असीमित और विशाल है, और उनके चरित्र का प्रत्येक अक्षर पापों का नाश करने की क्षमता रखता है।
2. ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं॥
अर्थ:
नीलोत्पल (नीलकमल) के समान श्याम वर्ण वाले, कमल के समान नेत्र वाले श्रीराम का ध्यान करते हुए, जो जानकी (सीता) और लक्ष्मण के साथ हैं और जिनके सिर पर जटामुकुट (जटाओं का मुकुट) शोभायमान है।
व्याख्या:
यह श्लोक ध्यान की महिमा बताता है, जिसमें श्रीराम का वर्णन उनके श्यामल शरीर, कमल के समान नेत्र, सीता और लक्ष्मण के साथ और उनके जटामुकुट के साथ किया गया है। यह ध्यान हमें उनकी दिव्यता का आभास कराता है।
3. सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्।स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्॥
अर्थ:
शस्त्र, तरकश, धनुष और बाण को धारण करने वाले, निशाचरों का अंत करने वाले, स्वेच्छा से जगत की रक्षा के लिए प्रकट हुए अजन्मा (अज) और सर्वव्यापी प्रभु हैं।
व्याख्या:
इस श्लोक में श्रीराम के योद्धा रूप का वर्णन है, जिनके पास सभी शस्त्र हैं और जो निशाचरों का नाश करने के लिए प्रकट हुए हैं। वे अजन्मा और सर्वव्यापी हैं।
4. रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥
अर्थ:
जो विद्वान रामरक्षा का पाठ करते हैं, वह पापों को नष्ट करने वाली और सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली होती है। राघव (राम) मेरे सिर की रक्षा करें, और दशरथ के पुत्र मेरे मस्तक की रक्षा करें।
व्याख्या:
यह श्लोक रामरक्षा स्तोत्र के महत्व को बताता है। यह पापों को नष्ट करने वाली और सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली है। इसमें श्रीराम से सिर और मस्तक की रक्षा की प्रार्थना की गई है।
5. कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति।घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः॥
अर्थ:
कौसल्या के पुत्र (राम) मेरी दृष्टि की रक्षा करें, विश्वामित्र को प्रिय मेरे श्रवणों की रक्षा करें। मखत्राता (यज्ञरक्षक) मेरे नासिका की रक्षा करें, और सौमित्र (लक्ष्मण) को प्रिय मेरे मुख की रक्षा करें।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम से इंद्रियों की रक्षा की प्रार्थना की गई है। श्रीराम से दृष्टि, श्रवण, नासिका और मुख की रक्षा की प्रार्थना की गई है।
6. जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः।स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः॥
अर्थ:
विद्यानिधि (ज्ञान के भंडार) मेरी जिह्वा (जीभ) की रक्षा करें, भरत द्वारा वन्दित मेरे कण्ठ की रक्षा करें। दिव्य आयुध (शस्त्र) वाले मेरे स्कन्धों (कंधों) की रक्षा करें, और जिनके द्वारा शिव का धनुष भंग किया गया मेरे भुजाओं की रक्षा करें।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम से जिह्वा, कण्ठ, स्कन्धों और भुजाओं की रक्षा की प्रार्थना की गई है। राम विद्यानिधि, भरत के प्रिय और दिव्य शस्त्रधारी के रूप में वर्णित हैं।
7. करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित।मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः॥
अर्थ:
सीतापति (राम) मेरे हाथों की रक्षा करें, जामदग्न्य (परशुराम) को पराजित करने वाले मेरे हृदय की रक्षा करें। खरध्वंसी (खर का नाश करने वाले) मेरे मध्यभाग की रक्षा करें, और जाम्बवदाश्रय (जाम्बवान के मित्र) मेरी नाभि की रक्षा करें।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम से हाथ, हृदय, मध्यभाग और नाभि की रक्षा की प्रार्थना की गई है। राम सीतापति, परशुराम को पराजित करने वाले, खर का नाश करने वाले और जाम्बवान के मित्र के रूप में वर्णित हैं।
8. सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः॥
अर्थ:
सुग्रीव के स्वामी मेरी कटी (कमर) की रक्षा करें, हनुमान के प्रभु मेरे जंघों की रक्षा करें। रघुकुल के उत्तम (श्रेष्ठ) मेरी उरु (जांघों) की रक्षा करें, और राक्षसों के कुल का नाश करने वाले मेरी सम्पूर्ण देह की रक्षा करें।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम से कमर, जांघों और सम्पूर्ण देह की रक्षा की प्रार्थना की गई है। राम सुग्रीव के स्वामी, हनुमान के प्रभु और रघुकुल के श्रेष्ठ के रूप में वर्णित हैं।
9. जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः।पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामअखिलं वपुः॥
अर्थ:
सेतु (रामसेतु) बनाने वाले मेरी जानुओं (घुटनों) की रक्षा करें, दशमुख (रावण) का अंत करने वाले मेरी जंघों की रक्षा करें। विभीषण को राज्य प्रदान करने वाले मेरे पैरों की रक्षा करें, और राम मेरी सम्पूर्ण देह की रक्षा करें।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम से घुटनों, जंघों, पैरों और सम्पूर्ण देह की रक्षा की प्रार्थना की गई है। राम सेतु बनाने वाले, रावण का अंत करने वाले, विभीषण को राज्य देने वाले के रूप में वर्णित हैं।
10. एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत।स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥
अर्थ:
जो सुकृति (सत्कर्मी) इस रामबल से युक्त रक्षा का पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवती, विजयी और विनयी होता है।
व्याख्या:
यह श्लोक रामरक्षा स्तोत्र के पाठ के फल का वर्णन करता है। जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे दीर्घायु, सुख, संतान, विजय और विनम्रता प्राप्त होती है। यह श्लोक रामरक्षा के महत्व और उसकी शक्ति को स्पष्ट करता है।
11. पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः।न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः।
अर्थ:
जो पाताल, भूमि और आकाश में विचरण करने वाले, छल से चलने वाले हैं, वे भी उस व्यक्ति को देख नहीं सकते, जो राम नाम से सुरक्षित है।
व्याख्या:
राम नाम की महिमा इतनी बड़ी है कि वह हर प्रकार के दुष्ट और बुराई से रक्षा करता है। चाहे वे किसी भी लोक में विचरण करने वाले हों, राम नाम से सुरक्षित व्यक्ति को वे देख भी नहीं सकते।
12. रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन।नरौ न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति।
अर्थ:
जो व्यक्ति “राम”, “रामभद्र” या “रामचंद्र” का स्मरण करता है, वह पापों से लिप्त नहीं होता और उसे भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।
व्याख्या:
राम के नाम का स्मरण करना पापों को नष्ट करता है और जीवन में सुख-समृद्धि एवं मोक्ष प्रदान करता है। यह श्लोक राम नाम के उच्चारण की शक्ति और उसके लाभों को बताता है।
13. जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः।
अर्थ:
जो व्यक्ति जगत को विजयी बनाने वाले राम नाम के मंत्र को अपने कंठ में धारण करता है, उसकी सभी सिद्धियाँ उसके हाथ में होती हैं।
व्याख्या:
राम नाम के जाप या धारण करने से व्यक्ति को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यह श्लोक राम नाम की शक्ति और उसके प्रभाव को दर्शाता है।
14. वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत।अव्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम्।
अर्थ:
वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करने से व्यक्ति हर जगह अव्याहत आदेश (अविचलित सुरक्षा) प्राप्त करता है और उसे विजय और मंगल की प्राप्ति होती है।
व्याख्या:
राम कवच का स्मरण करने से व्यक्ति हर स्थान पर सुरक्षित रहता है और उसे सफलता और शुभता प्राप्त होती है। यह श्लोक राम कवच की शक्ति और उसकी प्रभावशीलता को बताता है।
15. आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः।तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः।
अर्थ:
जैसे भगवान शिव ने स्वप्न में इस राम रक्षा का आदेश दिया, उसी प्रकार प्रातःकाल में बुधकौशिक ऋषि ने इसे लिखा।
व्याख्या:
इस श्लोक में बताया गया है कि राम रक्षा स्तोत्र का उद्गम कैसे हुआ। भगवान शिव ने स्वप्न में इस स्तोत्र का आदेश दिया और बुधकौशिक ऋषि ने इसे प्रातःकाल में लिखा।
16. आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्।अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः।
अर्थ:
राम कल्पवृक्षों का उद्यान हैं, सभी आपदाओं का नाश करने वाले हैं। त्रिलोकों के प्रिय राम, श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं।
व्याख्या:
राम सभी समस्याओं और संकटों को दूर करने वाले हैं। वह त्रिलोकों के प्रिय हैं और उनकी उपस्थिति से सभी समस्याओं का नाश होता है।
17. तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ।
अर्थ:
राम और लक्ष्मण दोनों युवा, रूपवान, सुकुमार और महाबलशाली हैं। उनके विशाल नेत्र कमल के समान हैं और वे मृगचर्म और वृक्ष की छाल धारण किए हुए हैं।
व्याख्या:
यह श्लोक राम और लक्ष्मण के रूप, गुण और उनकी महिमा का वर्णन करता है।
18. फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ।
अर्थ:
जो फल और मूल खाने वाले, संयमी, तपस्वी और ब्रह्मचारी हैं। ये दशरथ के पुत्र और भाई राम और लक्ष्मण हैं।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम और लक्ष्मण के तपस्वी जीवन और उनके गुणों का वर्णन किया गया है।
19. शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ।
अर्थ:
जो सभी प्राणियों के शरण देने वाले, सभी धनुषधारियों में श्रेष्ठ और राक्षस कुल का नाश करने वाले हैं। वे रघुकुल के उत्तम राम और लक्ष्मण हमारी रक्षा करें।
व्याख्या:
राम और लक्ष्मण सभी की शरण देने वाले हैं और राक्षसों का नाश करने वाले हैं। यह श्लोक उनकी शक्ति और उनकी कृपा का वर्णन करता है।
20. आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ।रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम।
अर्थ:
जो धनुष और बाण धारण किए हुए हैं, उनके तरकश में बाण भरे हुए हैं। राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा के लिए हमेशा आगे-आगे चलें।
व्याख्या:
यह श्लोक राम और लक्ष्मण की रक्षा शक्ति को दर्शाता है और उनकी रक्षा करने की क्षमता का वर्णन करता है। यह व्यक्ति की प्रार्थना है कि वे सदैव उसकी रक्षा के लिए आगे रहें।
21. सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।गच्छन् मनोरथान नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः।
अर्थ:
धनुष और बाण धारण किए हुए, कवच पहने, खड्ग (तलवार) लिए हुए, युवा राम और लक्ष्मण हमारी सभी इच्छाओं की पूर्ति करते हुए हमारी रक्षा करें।
व्याख्या:
यह श्लोक राम और लक्ष्मण की वीरता और सुसज्जित युद्ध सामग्री के साथ उनकी रक्षा करने की शक्ति को वर्णित करता है। यह प्रार्थना है कि वे हमारी इच्छाओं को पूरा करें और हमें हर प्रकार के संकट से बचाएं।
22. रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः।
अर्थ:
राम, दशरथ के पुत्र, शूरवीर, लक्ष्मण के अनुचर (साथी), बलशाली, काकुत्स्थ वंश के, पूर्ण पुरुष और कौसल्या के पुत्र, रघुकुल के श्रेष्ठ हैं।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम के विभिन्न गुणों और पहचान का वर्णन किया गया है। यह बताता है कि राम केवल एक महान योद्धा नहीं हैं, बल्कि वे संपूर्ण और श्रेष्ठ पुरुष भी हैं।
23. वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः।जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः।
अर्थ:
राम वेदांत के ज्ञाता, यज्ञों के स्वामी, पुराण पुरुषों में श्रेष्ठ, जानकी के प्रिय, श्रीमान और असीम पराक्रम वाले हैं।
व्याख्या:
राम के विभिन्न रूपों और उनकी महानता का वर्णन करता है। वे वेदांत के ज्ञाता हैं और यज्ञों के स्वामी हैं। उनका पराक्रम अपार है और वे सीता के प्रिय हैं।
24. इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः।अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः।
अर्थ:
जो भक्त श्रद्धा सहित इन नामों का नित्य जाप करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक पुण्य प्राप्त होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
व्याख्या:
इस श्लोक में बताया गया है कि राम के नाम का जाप करने से भक्त को महान पुण्य की प्राप्ति होती है। यह अश्वमेध यज्ञ के पुण्य से भी अधिक है, जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण और शुभ माना जाता है।
25. रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम।स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः।
अर्थ:
जो राम को, जो नीले कमल के समान श्याम वर्ण, कमल के समान नेत्र और पीत वस्त्र धारण किए हुए हैं, दिव्य नामों से स्तुति करते हैं, वे संसार के बंधनों में नहीं फंसते।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम के दिव्य स्वरूप और उनकी स्तुति के लाभ को बताया गया है। उनके दिव्य नामों की स्तुति करने वाले व्यक्ति संसार के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।
26. रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं,काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्।राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं,वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम।
अर्थ:
जो राम लक्ष्मण के अग्रज, रघुकुल के श्रेष्ठ, सीता के पति, सुंदर, काकुत्स्थ वंश के, करुणा के सागर, गुणों की खान, ब्राह्मणों के प्रिय, धर्मात्मा, राजा, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्यामवर्ण, शांत स्वरूप वाले, लोक को प्रिय, रघुकुल के तिलक और रावण के शत्रु हैं, उनकी वंदना करता हूँ।
व्याख्या:
यह श्लोक राम के विभिन्न गुणों और विशेषताओं का विस्तृत वर्णन करता है। राम के रूप, गुण, धर्म, सत्यनिष्ठा और करुणा का बखान किया गया है।
27. रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।
अर्थ:
राम, रामभद्र, रामचंद्र, रघुनाथ, सीता के पति, और वेदों के ज्ञाता को नमस्कार है।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम के विभिन्न नामों को स्मरण करते हुए उन्हें नमस्कार किया गया है। ये नाम उनके विभिन्न गुणों और विशेषताओं को दर्शाते हैं।
28. श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम,श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।श्रीराम राम रणकर्कश राम राम,श्रीराम राम शरणं भव राम राम।
अर्थ:
श्रीराम, रघुनंदन राम, भरत के अग्रज राम, रण में कठोर राम, राम शरण में आने वाले राम।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम के विभिन्न नामों को बार-बार स्मरण करते हुए उनकी शरण में आने की प्रार्थना की गई है।
29. श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि,श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि।श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि,श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये।
अर्थ:
श्रीरामचंद्र के चरणों को मन से स्मरण करता हूँ, श्रीरामचंद्र के चरणों का वचनों से गुणगान करता हूँ, श्रीरामचंद्र के चरणों को सिर से नमस्कार करता हूँ, श्रीरामचंद्र के चरणों की शरण लेता हूँ।
व्याख्या:
इस श्लोक में भक्त राम के चरणों की महिमा का बखान करते हुए, उन्हें मन, वचन और कर्म से स्मरण करता है और उनकी शरण लेने की प्रार्थना करता है।
30. माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु।नान्यं जाने नैव जाने न जाने॥
अर्थ:
राम मेरी माता हैं, रामचंद्र मेरे पिता हैं, राम मेरे स्वामी हैं, रामचंद्र मेरे सखा हैं। मेरे लिए सब कुछ दयालु रामचंद्र ही हैं। मैं किसी और को नहीं जानता, न ही जानना चाहता हूँ।
व्याख्या:
यह श्लोक राम के प्रति अटूट भक्ति और समर्पण को दर्शाता है। भक्त राम को अपने माता-पिता, स्वामी और सखा के रूप में मानता है और उनके अलावा किसी अन्य को नहीं जानता।
31. दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज।पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्॥
अर्थ:
जिनके दक्षिण (दायें) ओर लक्ष्मण और बायें ओर जनक की पुत्री (सीता) विराजमान हैं, और जिनके आगे हनुमान हैं, उन रघुनन्दन राम को वन्दन करता हूँ।
व्याख्या:
यह श्लोक राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान के समूह को वर्णित करता है। यह बताता है कि राम के बगल में उनके प्रिय भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता हैं, और उनके आगे भक्त हनुमान हैं। यह दृश्य राम की महिमा और उनके प्रियजनों की निकटता को दर्शाता है।
32. लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं।कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
अर्थ:
जो लोक को प्रिय, युद्ध में धैर्यवान, कमल के समान नेत्र वाले, रघुवंश के स्वामी, करुणा के रूप और करुणा के अकर्ता हैं, उन श्रीरामचन्द्र की शरण लेता हूँ।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम की विशेषताओं को वर्णित किया गया है। वे सभी को प्रिय हैं, युद्ध में धैर्यवान और करुणा के सागर हैं। उनका स्वरूप करुणा का प्रतीक है, और वे रघुवंश के स्वामी हैं।
33. मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये॥
अर्थ:
जो मन की गति के समान तेज, वायु के समान वेगवान, इन्द्रियों को जीतने वाले, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, वायु के पुत्र, वानरों के समूह के नेता और श्रीराम के दूत हैं, उन हनुमान की शरण लेता हूँ।
व्याख्या:
यह श्लोक हनुमान की महानता और उनके गुणों का वर्णन करता है। वे अत्यधिक तेज, बुद्धिमान और श्रीराम के भक्त हैं। वे वानरों के नेता हैं और राम के प्रिय दूत हैं।
34. कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्॥
अर्थ:
जो ‘राम राम’ की मधुर ध्वनि करते हैं और मधुर अक्षरों से सज्जित हैं, उस कवितारूपी शाखा पर विराजमान वाल्मीकि रूपी कोकिल का मैं वन्दन करता हूँ।
व्याख्या:
यह श्लोक महर्षि वाल्मीकि को समर्पित है, जिन्होंने रामायण की रचना की। वे राम के नाम की मधुर ध्वनि करने वाले कोकिल (कोयल) के समान हैं, और उनकी कविताएं शाखाओं के समान हैं।
35. आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥
अर्थ:
जो आपदाओं को दूर करने वाले, सभी सम्पदाओं के दाता, और लोक के प्रिय हैं, उन श्रीराम को मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम की महिमा का वर्णन किया गया है। वे संकटों को दूर करने वाले, सभी प्रकार की संपत्तियों के दाता और सभी लोगों के प्रिय हैं। उन्हें बार-बार नमस्कार करने की प्रार्थना की जाती है।
36. भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्।तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्॥
अर्थ:
राम-राम का गर्जन (उच्चारण) भव (संसार) के बीजों को नष्ट करने वाला, सुख-संपदा का अर्जन करने वाला और यमदूतों को डराने वाला है।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम-नाम की शक्ति का वर्णन किया गया है। राम-नाम के उच्चारण से संसार के दुख समाप्त हो जाते हैं, सुख और संपदा की प्राप्ति होती है और यमदूतों का भय समाप्त हो जाता है।
37. रामो राजमणिः सदा विजयते, रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता, निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः।रामान्नास्ति परायणं परतरं, रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः, सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः॥
अर्थ:
राम, जो राजाओं के मणि हैं, सदा विजय प्राप्त करें। मैं राम, रमेश (लक्ष्मीपति) का भजन करता हूँ। राम द्वारा निशाचरों की सेना नष्ट की गई, राम को नमस्कार है। राम से बढ़कर कोई आश्रय नहीं है, मैं राम का दास हूँ। राम में मेरा चित्त लय हो जाए, हे राम, मुझे उद्धार करें।
व्याख्या:
इस श्लोक में राम की महिमा और उनके प्रति समर्पण को व्यक्त किया गया है। राम को राजाओं के मणि के रूप में बताया गया है जो सदा विजय प्राप्त करते हैं। उनके भजन से निशाचरों की सेना का नाश होता है और वे सबसे श्रेष्ठ आश्रय हैं। यह भक्त की प्रार्थना है कि राम में उसका चित्त लय हो जाए और उसे उद्धार मिले।
38. राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥
अर्थ:
राम-राम, राम-राम का उच्चारण करने में मैं रमण करता हूँ, यह हजार नामों के तुल्य है, हे सुंदर मुखवाली।
व्याख्या:
यह श्लोक राम-नाम के जप की महिमा को दर्शाता है। राम-नाम का जप करने से हजार नामों के जप के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। यह भक्त को राम-नाम के महत्व और उसके पुण्य के बारे में समझाता है।
श्री राम रक्षा स्तोत्र का यह पाठ भगवान श्री राम की महिमा और उनकी शक्ति का वर्णन करता है। इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति के जीवन में सुरक्षा, शांति, समृद्धि और विजय प्राप्त होती है। इसमें श्री राम के विभिन्न गुणों और उनके द्वारा प्रदान की गई रक्षा कवच का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के पाप नष्ट होते हैं और उसे मानसिक शांति एवं समृद्धि प्राप्त होती है।
राम रक्षा स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की समस्याओं और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। श्रीराम की भक्ति और उनकी महिमा का वर्णन करते हुए, यह स्तोत्र भक्तों के लिए एक सुरक्षा कवच का कार्य करता है। इसके पाठ से नवग्रहों के कुप्रभाव से भी बचाव होता है और जीवन में शांति, समृद्धि और सुख का आगमन होता है।
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श्री राम रक्षा स्तोत्र क्या है?
श्री राम रक्षा स्तोत्र ऋषि कौशिक द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है जिसमें श्रीराम की भक्ति और भक्तों की पूर्ण रूप से रक्षा करने की कामना की गई है।
राम रक्षा स्तोत्र का महत्व क्या है?
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। इसका पाठ शत्रुओं से रक्षा, नवग्रहों के कुप्रभाव से बचाव और जीवन की सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए किया जाता है।
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से क्या लाभ प्राप्त होते हैं?
राम रक्षा स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सुरक्षा, शांति, समृद्धि और विजय प्राप्त होती है। इसके पाठ से व्यक्ति के सभी प्रकार के पाप नष्ट होते हैं और उसे मानसिक शांति एवं समृद्धि प्राप्त होती है।
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाना चाहिए। विशेष रूप से, इसे प्रातःकाल या संध्या के समय किया जाना उत्तम माना जाता है।