Vyankatesh Stotra- व्यंकटेश स्तोत्र

श्री व्यंकटेश स्तोत्र एक धार्मिक हिन्दू ग्रंथ है, जो भगवान विष्णु के वेंकटेश्वर स्वरूप की स्तुति में गाया जाता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से भगवान वेंकटेश्वर की महिमा को गाने के लिए प्रसिद्ध है, जो तिरुपति, आंध्र प्रदेश में स्थित हैं।

यह स्तोत्र उनकी भक्ति और आराधना के समय भक्तों द्वारा पाठ किया जाता है। व्यङ्कटेश्वर को भगवान विष्णु का एक रूप माना जाता है, जो उनके प्रिय देवता हैं। यह स्तोत्र उनके गुणों, लीलाओं और दिव्यता का वर्णन करता है और भक्तों को उनके शरण में आने के लिए प्रेरित करता है। व्यङ्कटेश स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को आध्यात्मिक शांति और संतोष प्राप्त होता है, और यह माना जाता है कि इससे उन्हें उनके जीवन की समस्याओं से राहत मिलती है और उनकी इच्छाएँ पूरी होती हैं।

व्यंकटेश स्तोत्र

व्यंकटेश स्तोत्र संस्कृत का हिंदी में अर्थ

वेङ्कटेशो वासुदेवः प्रद्युम्नोऽमितविक्रमः |

सङ्कर्षणोऽनिरुद्धश्च शेषाद्रिपतिरेव च || १||

  • वेङ्कटेशः – वेङ्कटेश (वेंकटेश्वर) का अर्थ है जो वेंकट पर्वत पर निवास करते हैं, जो तिरुपति में है। यह नाम भगवान विष्णु के बालाजी रूप को दर्शाता है।
  • वासुदेवः – वासुदेव, जो कृष्ण के पिता का नाम भी है, यहाँ भगवान कृष्ण के लिए प्रयोग किया गया है।
  • प्रद्युम्नः – प्रद्युम्न कृष्ण के पुत्र थे और उन्हें उनके अमित विक्रम के लिए जाना जाता है, यानी असीमित पराक्रम वाले।
  • सङ्कर्षणः – यह बलराम का एक अन्य नाम है, जो कृष्ण के बड़े भाई हैं।
  • अनिरुद्धः – अनिरुद्ध प्रद्युम्न के पुत्र थे, और वे भी विष्णु के अवतार माने जाते हैं।
  • शेषाद्रिपतिः – “शेषाद्रि” का अर्थ है शेषनाग का पर्वत, यह वेंकटेश्वर या बालाजी को संदर्भित करता है, जिन्हें तिरुपति के पहाड़ी क्षेत्र में पूजा जाता है।

जनार्दनः पद्मनाभो वेङ्कटाचलवासनः |

सृष्टिकर्ता जगन्नाथो माधवो भक्तवत्सलः || २||

  • जनार्दनः – यह नाम भगवान विष्णु के लिए उपयोग किया जाता है जिन्हें ‘लोगों का संहारक’ के रूप में माना जाता है।
  • पद्मनाभः – जिसका नाभि में कमल है। यह विष्णु की एक प्रमुख विशेषता है और उन्हें इसी रूप में केरल के पद्मनाभस्वामी मंदिर में पूजा जाता है।
  • वेङ्कटाचलवासनः – फिर से, यह वेंकट पर्वत पर निवास करने वाले विष्णु के रूप का संदर्भ है।
  • सृष्टिकर्ता – सृष्टि के निर्माता, यह विष्णु को ब्रह्मा के समान रचनात्मक शक्तियों वाला दर्शाता है।
  • जगन्नाथो – जगन्नाथ, जिसका अर्थ है ‘विश्व के स्वामी’, ओडिशा के पुरी में स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा हुआ है।
  • माधवः – माधव का अर्थ है लक्ष्मी के पति, और यह विष्णु का एक और प्रिय नाम है।
  • भक्तवत्सलः – जो भक्तों पर स्नेह रखते हैं, यह विष्णु के प्रेमी और कृपालु स्वभाव को दर्शाता है।

गोविन्दो गोपतिः कृष्णः केशवो गरुडध्वजः |

वराहो वामनश्चैव नारायण अधोक्षजः || ३||

  • गोविन्दः – गायों का संरक्षक, जिसका संबंध भगवान कृष्ण से है, जो गोपाल (गायों के पालक) के रूप में जाने जाते हैं।
  • गोपतिः – इसका अर्थ होता है गोपों (ग्वालों) का स्वामी, यह भी कृष्ण के गोपाल स्वरूप को दर्शाता है।
  • कृष्णः – यह विष्णु का बहुत प्रसिद्ध अवतार है, जिसे उनके श्याम वर्ण के लिए जाना जाता है।
  • केशवः – ‘केश’ (बाल) और ‘व’ (विष्णु) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है श्रीहरि जिन्होंने बालों को उत्पन्न किया। इसका एक अर्थ यह भी है कि वह कालीय नाग के सिर पर नाचने वाले हैं।
  • गरुडध्वजः – गरुड का ध्वज (पताका), इसका अर्थ है विष्णु जिनका वाहन गरुड है।
  • वराहः – यह विष्णु का वराह अवतार है, जिसमें उन्होंने सूकर का रूप धारण किया था।
  • वामनः – वामन अवतार में, विष्णु ने बौने ब्राह्मण का रूप धारण किया था।
  • नारायणः – जो जल में निवास करते हैं, यह विष्णु के सर्वव्यापी स्वरूप को दर्शाता है।
  • अधोक्षजः – जो इंद्रियों की पहुँच से परे हैं।

श्रीधरः पुण्डरीकाक्षः सर्वदेवस्तुतो हरिः |

श्रीनृसिंहो महासिंहः सूत्राकारः पुरातनः || ४||

  • श्रीधरः – श्री (लक्ष्मी) का धारक, यह विष्णु को लक्ष्मी के साथी के रूप में दर्शाता है।
  • पुण्डरीकाक्षः – कमल की तरह आँखें वाला, यह विष्णु की सुंदरता और शांति को दर्शाता है।
  • सर्वदेवस्तुतो हरिः – सभी देवताओं द्वारा स्तुति किया गया हरि।
  • श्रीनृसिंहः – नृसिंह अवतार में विष्णु ने आधा मानव, आधा सिंह का रूप धारण किया था।
  • महासिंहः – महान सिंह, जो नृसिंह के शक्तिशाली स्वरूप को दर्शाता है।
  • सूत्राकारः – सूत्रों का निर्माता, जिसका अर्थ है वह जो सृष्टि के मूल सिद्धांतों को बनाये रखते हैं।
  • पुरातनः – अत्यंत प्राचीन, जो विष्णु के सनातन (शाश्वत) स्वरूप को दर्शाता है।

रमानाथो महीभर्ता भूधरः पुरुषोत्तमः |

 चोळपुत्रप्रियः शान्तो ब्रह्मादीनां वरप्रदः || ५||

  • रमानाथः – लक्ष्मी (रमा) के नाथ, यानी लक्ष्मी के पति। यह भगवान विष्णु के लिए प्रयुक्त होता है।
  • महीभर्ता – पृथ्वी का धारण करने वाला, यह वराह अवतार में विष्णु द्वारा पृथ्वी को उठाने का संकेत देता है।
  • भूधरः – पर्वत की तरह पृथ्वी को संभालने वाला।
  • पुरुषोत्तमः – सर्वोच्च पुरुष, जो सबसे उत्कृष्ट और आदर्श हैं।
  • चोळपुत्रप्रियः – चोळ राजवंश के पुत्रों का प्रिय, यह शायद विष्णु के किसी विशेष रूप या किसी ऐतिहासिक घटना का संकेत देता है।
  • शान्तः – शांत स्वभाव वाला।
  • ब्रह्मादीनां वरप्रदः – ब्रह्मा और अन्य देवताओं को वरदान देने वाला।

श्रीनिधिः सर्वभूतानां भयकृद्भयनाशनः |

श्रीरामो रामभद्रश्च भवबन्धैकमोचकः || ६||

  • श्रीनिधिः – धन और समृद्धि का भंडार, जिसका अर्थ है विष्णु जो समस्त धन और शक्तियों के स्रोत हैं।
  • सर्वभूतानां – सभी जीवों के लिए।
  • भयकृद्भयनाशनः – जो भय उत्पन्न करता है और भय को नष्ट करता है, इसका अर्थ विष्णु जीवन के सुख-दुःख दोनों का स्रोत हैं।
  • श्रीरामो – राम अवतार, जो रामायण के नायक हैं।
  • रामभद्रः – भद्र या शुभ राम, जिन्होंने धर्म की स्थापना की।
  • भवबन्धैकमोचकः – भव (संसार) के बंधनों से एकमात्र मुक्तिदाता, यह राम के मोक्षदायिनी शक्ति को दर्शाता है।

भूतावासो गिरावासः श्रीनिवासः श्रियःपतिः |

अच्युतानन्तगोविन्दो विष्णुर्वेङ्कटनायकः || ७||

  • भूतावासः – सभी जीवों का निवास स्थान, यानी विष्णु जो सभी प्राणियों के भीतर निवास करते हैं।
  • गिरावासः – पर्वतों में निवास करने वाला, यह तिरुपति और अन्य पवित्र पर्वतों पर विष्णु के निवास का संकेत देता है।
  • श्रीनिवासः – लक्ष्मी का निवास, यह तिरुपति में भगवान वेंकटेश्वर का एक लोकप्रिय नाम है।
  • श्रियः पतिः – लक्ष्मी के स्वामी, यह भी विष्णु को लक्ष्मी के पति के रूप में दर्शाता है।
  • अच्युत – जो कभी नहीं गिरते या अडिग हैं, अच्युत विष्णु के स्थायित्व और शाश्वत स्वभाव को दर्शाता है।
  • अनन्त – अनंत या असीमित, विष्णु के अनंत स्वरूप का प्रतीक।
  • गोविन्द – गायों के रक्षक, यह विष्णु के कृष्ण रूप का संदर्भ देता है।
  • वेङ्कटनायकः – वेंकट पर्वत के नायक, तिरुपति के वेंकटेश्वर का संदर्भ।

सर्वदेवैकशरणं सर्वदेवैकदैवतम् |

समस्तदेवकवचं सर्वदेवशिखामणिः || ८||

  • सर्वदेवैकशरणम् – सभी देवताओं की एकमात्र शरण, यह विष्णु के सर्वोच्चता को दर्शाता है।
  • सर्वदेवैकदैवतम् – सभी देवताओं के देवता, जिसका अर्थ है विष्णु सभी देवताओं के देवता हैं।
  • समस्तदेवकवचम् – सभी देवताओं का कवच या प्रोटेक्टर, जो सभी की रक्षा करता है।
  • सर्वदेवशिखामणिः – सभी देवताओं के शिखर का रत्न, जिसका अर्थ है विष्णु सभी देवताओं में सर्वोच्च हैं।

इतीदं कीर्तितं यस्य विष्णोरमिततेजसः |

 त्रिकाले यः पठेन्नित्यं पापं तस्य न विद्यते || ९||

  • इतीदं कीर्तितं यस्य – इस प्रकार से जिसका वर्णन किया गया है।
  • विष्णोर अमिततेजसः – अमित तेजस्वी विष्णु का। यहां “अमित तेजस” का अर्थ है जिनकी महिमा असीम है।
  • त्रिकाले यः पठेन्नित्यं – जो इसे नियमित रूप से तीनों समय (सुबह, दोपहर, शाम) पढ़ता है।
  • पापं तस्य न विद्यते – उसके पाप नहीं रहते, यानी उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

राजद्वारे पठेद्घोरे सङ्ग्रामे रिपुसङ्कटे |

भूतसर्पपिशाचादिभयं नास्ति कदाचन || १०||

  • राजद्वारे पठेद्घोरे – जब वह राजा के दरबार में या किसी भयानक स्थिति में पढ़ता है।
  • सङ्ग्रामे रिपुसङ्कटे – युद्ध में या शत्रु के संकट में होते समय।
  • भूतसर्पपिशाचादिभयं नास्ति कदाचन – भूत, सर्प, पिशाच और अन्य तरह के डर से कभी भय नहीं होता।

अपुत्रो लभते पुत्रान् निर्धनो धनवान् भवेत् |

रोगार्तो मुच्यते रोगाद् बद्धो मुच्येत बन्धनात् || ११||

  • अपुत्रो लभते पुत्रान् – जो नि:संतान हैं, वे पुत्र प्राप्त करते हैं।
  • निर्धनो धनवान् भवेत् – जो धनहीन हैं, वे धनवान बनते हैं।
  • रोगार्तो मुच्यते रोगाद् – जो रोग से पीड़ित हैं, वे रोग से मुक्त होते हैं।
  • बद्धो मुच्येत बन्धनात् – जो बंधन में हैं, वे बंधन से मुक्त होते हैं।

यद्यदिष्टतमं लोके तत्तत्प्राप्नोत्यसंशयः |

ऐश्वर्यं राजसम्मानं भक्तिमुक्तिफलप्रदम् || १२||

  • यद्यदिष्टतमं लोके – जो भी इस दुनिया में सबसे अधिक वांछनीय है।
  • तत्तत्प्राप्नोत्यसंशयः – उसे वह सब कुछ निस्संदेह प्राप्त होता है।
  • ऐश्वर्यं राजसम्मानं – समृद्धि और राजा के समान सम्मान।
  • भक्तिमुक्तिफलप्रदम् – भक्ति के माध्यम से मुक्ति का फल प्रदान करने वाला।

विष्णोर्लोकैकसोपानं सर्वदुःखैकनाशनम् |

सर्वैश्वर्यप्रदं नॄणां सर्वमङ्गलकारकम् || १३||

  • विष्णोर्लोकैकसोपानं – विष्णु के लोक (वैकुंठ) तक पहुंचने का एकमात्र सोपान या मार्ग।
  • सर्वदुःखैकनाशनम् – सभी दुःखों को नष्ट करने वाला।
  • सर्वैश्वर्यप्रदं नॄणां – सभी मनुष्यों को समस्त ऐश्वर्य प्रदान करने वाला।
  • सर्वमङ्गलकारकम् – सभी मंगल (शुभ) कार्यों का कारक।

मायावी परमानन्दं त्यक्त्वा वैङ्कुण्ठमुत्तमम् |

स्वामिपुष्करिणीतीरे रमया सह मोदते || १४||

  • मायावी परमानन्दं – माया (भौतिक दुनिया) के आनंद को त्याग कर, परमानंद प्राप्त करने वाले।
  • त्यक्त्वा वैङ्कुण्ठमुत्तमम् – श्रेष्ठ वैकुंठ को त्यागने वाला। यहाँ यह संकेत दिया गया है कि भगवान विष्णु स्वयं वैकुंठ धाम में रहते हैं।
  • स्वामिपुष्करिणीतीरे – स्वामी पुष्करिणी, तिरुपति में स्थित एक पवित्र सरोवर के तीर पर।
  • रमया सह मोदते – रमा (लक्ष्मी) के साथ आनंदित होते हुए।

कल्याणाद्भुतगात्राय कामितार्थप्रदायिने |

श्रीमद्वेङ्कटनाथाय श्रीनिवासाय ते नमः || १५||

  • कल्याणाद्भुतगात्राय – जिनका रूप अद्भुत और कल्याणकारी है।
  • कामितार्थप्रदायिने – जो भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करते हैं।
  • श्रीमद्वेङ्कटनाथाय – श्रीमान वेंकटनाथ को, जो तिरुपति के पर्वत पर विराजमान हैं।
  • श्रीनिवासाय ते नमः – श्रीनिवास (एक अन्य नाम जिसका अर्थ है लक्ष्मी का निवास) को नमन।

वेङ्कटाद्रिसमं स्थानं ब्रह्माण्डे नास्ति किञ्चन |

वेङ्कटेशसमो देवो न भूतो न भविष्यति || १६||

  • वेङ्कटाद्रिसमं स्थानं – वेंकटाद्रि (तिरुपति के पर्वत) के समान स्थान।
  • ब्रह्माण्डे नास्ति किञ्चन – ब्रह्मांड में कोई भी समान स्थान नहीं है।
  • वेङ्कटेशसमो देवो न भूतो न भविष्यति – वेंकटेश के समान कोई देवता न तो पहले हुआ है और न ही आगे होगा।

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