सर्वतोभद्र मंडल : Sarvatobhadra Mandal

सर्वतोभद्र मंडल ज्योतिषशास्त्र के एक विशेष आयाम से संबंधित है जिसे मुख्यतः विद्यारंभ, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्यों के मुहूर्त निर्धारण के लिए उपयोग किया जाता है। यह व्यवहार में एक वर्गाकार या चतुर्भुजीय ज्योतिषीय चार्ट होता है जिसमें आठ दिशाओं के देवता, ग्रहों के स्वामी, और नक्षत्रों के देवता आदि विभिन्न कारकों का चित्रण किया जाता है।

सर्वतोभद्र मंडल में प्रत्येक दिशा में विशेष यंत्र और मंत्रों का भी समावेश होता है, जो किसी भी व्यक्ति या स्थल के लिए शुभ और अशुभ फलों का संकेत देते हैं। इसका उपयोग व्यापक रूप से वास्तुशास्त्र में भी किया जाता है, जहाँ इसे भवन निर्माण और अन्य आर्किटेक्चरल योजनाओं के लिए आधार माना जाता है।

इसका प्राथमिक उद्देश्य होता है समय और स्थान की गुणवत्ता का आकलन करना ताकि शुभ फल प्राप्त हो सके। सर्वतोभद्र मंडल का विश्लेषण करते समय ज्योतिषी ग्रहों की स्थिति, नक्षत्रों के प्रभाव और दिशाओं के महत्व को विस्तार से देखते हैं।

सर्वतोभद्र मंडल का उपयोग विशेष रूप से शिवपूजन, देवी पूजन, और अन्य सभी देवताओं की पूजा के लिए डिजाइन किया गया है। इस मंडल की व्यवस्था न केवल ज्योतिषीय महत्व रखती है बल्कि वास्तुशास्त्र के अनुसार भी इसका बड़ा महत्व है।

सर्वतोभद्र मंडल के पूजन के लिए विशेष मंत्र इस प्रकार है:

सर्वतोभद्र मंडल पूजन मंत्र:

यह सर्वतोभद्र मंडल पूजन मंत्र विशेष रूप से इस मंडल की स्थापना और पूजा के लिए प्रयोग किया जाता है। मंत्र के माध्यम से न केवल मंडल की संरचना का वर्णन किया गया है, बल्कि इसमें उपस्थित विभिन्न ऊर्जाओं को सक्रिय करने की प्रक्रिया भी निहित है। यह मंत्र निम्नलिखित तत्वों को समेटे हुए है:

  • ओम् अद्भुतमण्डलाकारं वर्णैश्च विविधैर्युतम् – इस भाग में मंडल के अद्भुत और विविध रंगों से युक्त आकार का वर्णन किया गया है। यह मंडल के सौंदर्य और विविधता को प्रकट करता है।
  • अष्टाङ्गुल समायुक्तं सर्वतोभद्रमण्डलम् – इस लाइन में मंडल के आकार का विशिष्ट वर्णन है, जो आठ अंगुल (एक प्राचीन माप) के समान आयाम के साथ सर्वतोभद्र मंडल के रूप में स्थापित है।
  • अस्मिन् मंडले विन्यस्य ह्रीं बीजं त्रिपुरांतके – इस भाग में मंडल में ‘ह्रीं’ बीज मंत्र को त्रिपुरांतक (शिव) के लिए स्थापित करने की बात कही गई है। यह शक्ति के संकेंद्रण और सक्रियण का प्रतीक है।
  • अनुकूलय सर्वाणि यजमानस्य सिद्धये – इस अंतिम भाग में प्रार्थना की गई है कि मंडल की स्थापना और पूजा से यजमान (पूजा करने वाला व्यक्ति) की सभी इच्छाएँ पूरी हों और उसके सभी कार्य सिद्ध हों।

यह मंत्र उस समय के दौरान पाठ किया जाता है जब सर्वतोभद्र मंडल की स्थापना की जा रही होती है और इसके माध्यम से उस स्थान पर विशेष आध्यात्मिक और शुभ ऊर्जाओं को आमंत्रित किया जाता है।

इस मंत्र का उपयोग सर्वतोभद्र मंडल की स्थापना के समय किया जाता है और यह मंत्र यजमान (पूजा करने वाले) के सफलता और कल्याण के लिए आवश्यक होता है। इस मंत्र के माध्यम से सर्वतोभद्र मंडल में अनुकूल शक्तियों को आकर्षित करने का प्रयास किया जाता है।

सर्वतोभद्र मंडल चित्र

सर्वतोभद्र मंडल चित्र की व्यवस्था में प्रत्येक दिशा को एक विशेष देवता के साथ जोड़ा गया है, जो कि उस दिशा के अनुरूप विशिष्ट गुण और शक्तियों को प्रतिबिंबित करते हैं। यहाँ दी गई विवरणिका उस संरचना को बेहतर समझने में मदद करती है:

  • केंद्र (मुख्य देवता) – मंडल का केंद्र बिंदु, जहां मुख्य देवता स्थित होते हैं। यह देवता सम्पूर्ण मंडल की ऊर्जा और शक्ति का केंद्र माना जाता है।
  • उत्तर (विष्णु) – उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व विष्णु करते हैं, जो संरक्षण और पालन के देवता हैं।
  • पूर्व (शिव) – पूर्व दिशा में शिव की स्थिति होती है, जो विनाश और पुनर्निर्माण के देवता हैं।
  • पश्चिम (ब्रह्मा) – पश्चिम दिशा ब्रह्मा से संबंधित है, जो सृष्टि और रचना के देवता हैं।
  • दक्षिण (गणेश) – दक्षिण दिशा में गणेश की स्थिति है, जो विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता हैं।
  • उत्तर-पूर्व (इंद्र) – इस कोने में इंद्र का स्थान है, जो देवताओं के राजा और वर्षा एवं तूफान के प्रभारी हैं।
  • उत्तर-पश्चिम (वरुण) – वरुण, जल और समुद्र के देवता, इस क्षेत्र में स्थित हैं।
  • दक्षिण-पूर्व (अग्नि) – अग्नि, जो अग्नि और ऊर्जा के देवता हैं, दक्षिण-पूर्व में स्थित हैं।
  • दक्षिण-पश्चिम (यम) – यम, मृत्यु और धर्म के देवता, दक्षिण-पश्चिम कोने में स्थित हैं।

इस प्रकार की संरचना से यह स्पष्ट होता है कि प्रत्येक दिशा और कोने का अपना विशिष्ट महत्व और ऊर्जा होती है, जिसका उपयोग विशेष धार्मिक क्रियाकलापों और पूजा अनुष्ठानों में किया जाता है। इस तरह के विन्यास से न केवल देवता की संरचना संतुलित रहती है बल्कि यह साधकों को उच्चतम आध्यात्मिक ऊर्जा तक पहुँचने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

सर्वतोभद्र मंडल चित्र के लाभ

सर्वतोभद्र मंडल चक्र को एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली आरेख माना जाता है। इसे विभिन्न प्रकार के पूजा क्रियाकलापों और यज्ञों में उपयोग किया जाता है, जिससे यह साधना स्थल पर शुभता और समृद्धि का संचार करता है। इस मंडल का महत्व और उपयोगिता निम्नलिखित बिंदुओं में देखी जा सकती है:

  • सकारात्मक ऊर्जा का आकर्षण: सर्वतोभद्र मंडल चक्र विशेष रूप से डिजाइन किया गया है ताकि यह सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित कर सके। इसके चारों ओर विभिन्न देवताओं और सूक्ष्म शक्तियों का वास होता है, जो साधक को आध्यात्मिक लाभ पहुँचाते हैं।
  • नकारात्मक ऊर्जा को दूर करना: यह मंडल नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करने में सहायक माना जाता है। इसका प्रयोग वास्तु दोषों को निवारण और अशुभता को कम करने के लिए भी किया जाता है।
  • शांति और समृद्धि का प्रसार: सर्वतोभद्र मंडल का उपयोग से न केवल घर या पूजा स्थल में शांति और समृद्धि बढ़ती है, बल्कि यह साधकों के जीवन में भी सौभाग्य और उत्थान लाता है।
  • विभिन्न अनुष्ठानों में उपयोगिता: यह मंडल विशेष रूप से देवी-देवताओं की पूजा, यज्ञ, ग्रह शांति, वास्तु पूजा, और मंगलिक कार्यों में उपयोगी होता है। इसका उपयोग करके अनुष्ठानों की शक्ति और प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है।

इस प्रकार, सर्वतोभद्र मंडल चक्र का महत्व अत्यंत व्यापक है, और इसे सनातन धर्म में एक अत्यधिक प्रभावशाली और शक्तिपूर्ण उपकरण के रूप में माना जाता है। इसकी सहायता से साधक और उपासक अपने जीवन में शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

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