16 Somvar vrat katha for free

Lord Shiva Aarti- 16 Somvar Vrat katha Aarti

ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।

हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।

त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।

सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।

शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

16 सोमवार व्रत कथा का परिचय व्रत की महत्वता और उद्देश्य

सोलह सोमवार व्रत कथा हिन्दू धर्म की एक प्रमुख आध्यात्मिक परंपरा है, जिसका पालन विशेष रूप से भगवान शिव के भक्तों द्वारा किया जाता है। यह व्रत उन सभी भक्तों द्वारा किया जाता है जो अपने जीवन में सुख, समृद्धि, संतान प्राप्ति, विवाह और अन्य व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति चाहते हैं। सोलह सोमवार व्रत कथा इन्हीं इच्छाओं की पूर्ति के लिए एक आध्यात्मिक माध्यम मानी जाती है।

इस व्रत का आधार भक्ति और श्रद्धा है, जिसमें भक्त सोलह सोमवार को व्रत रखते हैं और प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं। व्रती इस दौरान नियमों का पालन करते हुए, भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने की कामना करते हैं। इस व्रत का उद्देश्य न केवल भौतिक लाभ प्राप्त करना है, बल्कि आत्मिक शांति और संतोष की अनुभूति करना भी है।

सोलह सोमवार व्रत कथा के पीछे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ गहराई से निहित हैं। यह कथा न केवल भगवान शिव की महिमा को प्रकट करती है, बल्कि भक्ति, श्रद्धा, समर्पण, और आत्म-अनुशासन के महत्व को भी उजागर करती है। इस व्रत की कथाओं में वर्णित चरित्र और घटनाएँ भक्तों को नैतिक शिक्षाएँ देती हैं और उन्हें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा देती हैं।

सोलह सोमवार व्रत की कथा और उसके अनुष्ठान हिन्दू धर्म में व्यापक रूप से मनाए जाने वाले धार्मिक प्रथाओं का हिस्सा हैं, जो भक्तों को ईश्वर के प्रति उनकी आस्था और समर्पण को गहराई से व्यक्त करने का अवसर प्रदान करते हैं। इस व्रत के माध्यम से, भक्त अपने जीवन में शिव की उपस्थिति को महसूस करते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं, जिससे उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।

व्रत कथा

16 Somvar vrat katha- एक बार भगवान शिव जी पार्वती जी के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक की अमरावती नगर में पहुँचे। उस नगर के राजा ने भगवान शिव का एक विशाल मंदिर बनवा रखा था.शिव और पार्वती उस मंदिर में रहने लगे। एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ! आज मेरी चौसर खेलने की इच्छा हो रही है।’ पार्वती की इच्छा जानकर शिव पार्वती के साथ चौसर खेलने बैठ गए। खेल प्रारंभ होते ही उस मंदिर का पुजारी वहां आ गया। माता पार्वती जी ने पुजारी जी से पूछा – कि हे पुजारी जी! यह बताइए कि इस बाज़ी में किसकी जीत होगी? तो ब्राह्मण ने कहा – कि महादेव जी की। परन्तु चौसर में शिवजी की पराजय हुई और माता पार्वती जी जीत गईं। तब ब्राह्मण को उन्होंने झूठ बोलने के अपराध में कोढ़ी होने का श्राप दिया। शिव और पार्वती उस मंदिर से कैलाश पर्वत लौट गए।

पार्वती जी के श्राप के कारण पुजारी कोढ़ी हो गया। नगर के स्त्री-पुरुष उस पुजारी की परछाई से भी दूर-दूर रहने लगे। कुछ लोगों ने राजा से पुजारी के कोढ़ी हो जाने की शिकायत की तो राजा ने किसी पाप के कारण पुजारी के कोढ़ी हो जाने का विचार कर उसे मंदिर से निकलवा दिया। उसकी जगह दूसरे ब्राह्मण को पुजारी बना दिया। कोढ़ी पुजारी मंदिर के बाहर बैठकर भिक्षा माँगने लगा।

कई दिनों के पश्चात स्वर्गलोक की कुछ अप्सराएं, उस मंदिर में पधारीं, और उसे देखकर कारण पूछा। पुजारी ने निःसंकोच पुजारी ने उन्हें भगवान शिव और पार्वतीजी के चौसर खेलने और पार्वतीजी के शाप देने की सारी कहानी सुनाई। तब अप्सराओं ने पुजारी से सोलह सोमवार का विधिवत व्रत्र रखने को कहा।

पुजारी द्वारा पूजन विधि पूछने पर अप्सराओं ने कहा- ‘सोमवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर, स्नानादि से निवृत्त होकर, स्वच्छ वस्त्र पहनकर, आधा सेर गेहूँ का आटा लेकर उसके तीन अंग बनाना। फिर घी का दीपक जलाकर गुड़, नैवेद्य, बेलपत्र, चंदन, अक्षत, फूल,जनेऊ का जोड़ा लेकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करना। पूजा के बाद तीन अंगों में एक अंग भगवान शिव को अर्पण करके, एक आप ग्रहण करें। शेष दो अंगों को भगवान का प्रसाद मानकर वहां उपस्थित स्त्री, पुरुषों और बच्चों को बाँट देना। इस तरह व्रत करते हुए जब सोलह सोमवार बीत जाएँ तो सत्रहवें सोमवार को एक पाव आटे की बाटी बनाकर, उसमें घी और गुड़ मिलाकर चूरमा बनाना। फिर भगवान शिव को भोग लगाकर वहाँ उपस्थित स्त्री, पुरुष और बच्चों को प्रसाद बाँट देना।  इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने और व्रतकथा सुनने से भगवान शिव तुम्हारे कोढ़ को नष्ट करके तुम्हारी सभी मनोकामनाएँ पूरी कर देंगे। इतना कहकर अप्सराएं स्वर्गलोक को चली गईं।

पुजारी ने अप्सराओं के कथनानुसार सोलह सोमवार का विधिवत व्रत किया। फलस्वरूप भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका कोढ़ नष्ट हो गया। राजा ने उसे फिर मंदिर का पुजारी बना दिया। वह मंदिर में भगवान शिव की पूजा करता आनंद से जीवन व्यतीत करने लगा।

कुछ दिनों बाद पुन: पृथ्वी का भ्रमण करते हुए भगवान शिव और पार्वती उस मंदिर में पधारे। स्वस्थ पुजारी को देखकर पार्वती ने आश्चर्य से उसके रोगमुक्त होने का कारण पूछा तो पुजारी ने उन्हें सोलह सोमवार व्रत करने की सारी कथा सुनाई।

पार्वती जी भी व्रत की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने पुजारी से इसकी विधि पूछकर स्वयं सोलह सोमवार का व्रत प्रारंभ किया। पार्वती जी उन दिनों अपने पुत्र कार्तिकेय के नाराज होकर दूर चले जाने से बहुत चिन्तित रहती थीं। वे कार्तिकेय को लौटा लाने के अनेक उपाय कर चुकी थीं, लेकिन कार्तिकेय लौटकर उनके पास नहीं आ रहे थे। सोलह सोमवार का व्रत करते हुए पार्वती ने भगवान शिव से कार्तिकेय के लौटने की मनोकामना की। व्रत समापन के तीसरे दिन सचमुच कार्तिकेय वापस लौट आए। कार्तिकेय ने अपने हृदय-परिवर्तन के संबंध में पार्वतीजी से पूछा- ‘हे माता! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया था, जिससे मेरा क्रोध नष्ट हो गया और मैं वापस लौट आया?’ तब पार्वतीजी ने कार्तिकेय को सोलह सोमवार के व्रत की कथा कह सुनाई।

कार्तिकेय अपने एक ब्राह्मण मित्र ब्रह्मदत्त के परदेस चले जाने से बहुत दुखी थे. उसको वापस लौटाने के लिए कार्तिकेय ने सोलह सोमवार का व्रत करते हुए ब्रह्मदत्त के वापस लौट आने की कामना प्रकट की। व्रत के समापन के कुछ दिनों के बाद मित्र लौट आया। ब्राह्मण ने कार्तिकेय से कहा- ‘प्रिय मित्र! तुमने ऐसा कौन-सा उपाय किया था जिससे परदेस में मेरे विचार एकदम परिवर्तित हो गए और मैं तुम्हारा स्मरण करते हुए लौट आया?’ कार्तिकेय ने अपने मित्र को भी सोलह सोमवार के व्रत की कथा-विधि सुनाई। ब्राह्मण मित्र व्रत के बारे में सुनकर बहुत खुश हुआ। उसने भी व्रत किया।

सोलह सोमवार व्रत का समापन करने के बाद ब्रह्मदत्त विदेश यात्रा पर निकला। वहां नगर के राजा राजा हर्षवर्धन की बेटी राजकुमारी गुंजन का स्वयंवर हो रहा था। वहां के राजा ने प्रतिज्ञा की थी कि एक हथिनी यह माला जिसके गले में डालेगी, वह अपनी पुत्री का विवाह उसी से करेगा।

ब्राह्मण भी उत्सुकता वश महल में चला गया। वहां कई राज्यों के राजकुमार बैठे थे। तभी एक सजी-धजी हथिनी सूँड में जयमाला लिए वहां आई। हथिनी ने ब्राह्मण के गले में जयमाला डाल दी। फलस्वरूप राजकुमारी का विवाह ब्राह्मण से हो गया।

एक दिन उसकी पत्नी ने पूछा- ‘हे प्राणनाथ! आपने कौन-सा शुभकार्य किया था जो उस हथिनी ने राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में जयमाला डाल दी।’ ब्राह्मण ने सोलह सोमवार व्रत की विधि बताई। अपने पति से सोलह सोमवार का महत्व जानकर राजकुमारी ने पुत्र की इच्छा से सोलह सोमवार का व्रत किया। निश्चित समय पर भगवान शिव की अनुकम्पा से राजकुमारी के एक सुंदर, सुशील व स्वस्थ पुत्र पैदा हुआ। पुत्र का नामकरण गोपाल के रूप में हुआ।

बड़ा होने पर पुत्र गोपाल ने भी मां से एक दिन प्रश्न किया कि मैंने तुम्हारे ही घर में जन्म लिया इसका क्या कारण है। माता गुंजन ने पुत्र को सोलह सोमवार व्रत की जानकारी दी। व्रत का महत्व जानकर गोपाल ने भी व्रत करने का संकल्प किया। गोपाल जब सोलह वर्ष का हुआ तो उसने राज्य पाने की इच्छा से सोलह सोमवार का विधिवत व्रत किया। व्रत समापन के बाद गोपाल घूमने के लिए समीप के नगर में गया। वहां के वृद्ध राजा ने गोपाल को पसंद किया और बहुत धूमधाम से आपनी पुत्री राजकुमारी मंगला का विवाह गोपाल के साथ कर दिया। सोलह सोमवार के व्रत करने से गोपाल महल में पहुँचकर आनंद से रहने लगा।

दो वर्ष बाद वृद्ध राजा का निधन हो गया, तो गोपाल को उस नगर का राजा बना दिया गया। इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने से गोपाल की राज्य पाने की इच्छा पूर्ण हो गई। राजा बनने के बाद भी वह विधिवत सोलह सोमवार का व्रत करता रहा। व्रत के समापन पर सत्रहवें सोमवार को गोपाल ने अपनी पत्नी मंगला से कहा कि व्रत की सारी सामग्री लेकर वह समीप के शिव मंदिर में पहुंचे।

पति की आज्ञा का उलघंन करके, सेवकों द्वारा पूजा की सामग्री मंदिर में भेज दी। स्वयं मंदिर नहीं गई। जब राजा ने भगवान शिव की पूजा पूरी की तो आकाशवाणी हुई- ‘हे राजन्! तेरी रानी ने सोलह सोमवार व्रत का अनादर किया है। सो रानी को महल से निकाल दे, नहीं तो तेरा सब वैभव नष्ट हो जाएगा। आकाशवाणी सुनकर उसने तुरंत महल में पहुंचकर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि रानी को दूर किसी नगर में छोड़ आओ.´ सैनिकों ने राजा की आज्ञा का पालन करते हुए उसे तत्काल उसे घर से निकाल दिया। रानी भूखी-प्यासी उस नगर में भटकने लगी। रानी को उस नगर में एक बुढ़िया मिली। वह बुढ़िया सूत कातकर बाजार में बेचने जा रही थी, लेकिन उस बुढ़िया से सूत उठ नहीं रहा था। बुढ़िया ने रानी से कहा- ‘बेटी! यदि तुम मेरा सूत उठाकर बाजार तक पहुंचा दो और सूत बेचने में मेरी मदद करो तो मैं तुम्हें धन दूंगी।’

रानी ने बुढ़िया की बात मान ली। लेकिन जैसे ही रानी ने सूत की गठरी को हाथ लगाया, तभी जोर की आंधी चली और गठरी खुल जाने से सारा सूत आंधी में उड़ गया। बुढ़िया ने उसे फटकारकर भागा दिया। रानी चलते-चलते नगर में एक तेली के घर पहुंची। उस तेली ने तरस खाकर रानी को घर में रहने के लिए कह दिया लेकिन तभी भगवान शिव के प्रकोप से तेली के तेल से भरे मटके एक-एक करके फूटने लगे। तेली ने भी भागा दिया।

भूखी-प्यास से व्याकुल रानी वहां से आगे की ओर चल पड़ी। रानी ने एक नदी पर जल पीकर अपनी प्यास शांत करनी चाही तो नदी का जल उसके स्पर्श से सूख गया। अपने भाग्य को कोसती हुई रानी आगे चल दी। चलते-चलते रानी एक जंगल में पहुंची। उस जंगल में एक तालाब था। उसमें निर्मल जल भरा हुआ था. निर्मल जल देखकर रानी की प्यास तेज हो गई। जल पीने के लगी रानी ने तालाब की सीढ़ियां उतरकर जैसे ही जल को स्पर्श किया, तभी उस जल में असंख्य कीड़े उत्पन्न हो गए. रानी ने दु:खी होकर उस गंदे जल को पीकर अपनी प्यास शांत की।

रानी ने एक पेड़ की छाया में बैठकर कुछ देर आराम करना चाहा तो उस पेड़ के पत्ते पलभर में सूखकर बिखर गए। रानी दूसरे पेड़ के नीचे जाकर बैठी जिस पेड़ के नीचे बैठती वही सुख जाता।

वन और सरोवर की यह दशा देखकर वहां के ग्वाले बहुत हैरान हुए। ग्वाले रानी को समीप के मंदिर में पुजारी जी के पास ले गए। रानी के चेहरे को देखकर ही पुजारी जान गए कि रानी अवश्य किसी बड़े घर की है। भाग्य के कारण दर-दर भटक रही है।

पुजारी ने रानी से कहा- ‘पुत्री! तुम कोई चिंता नहीं करो। मेरे साथ इस मंदिर में रहो। कुछ ही दिनों में सब ठीक हो जाएगा। पुजारी की बातों से रानी को बहुत सांत्वना मिली। रानी उस मंदिर में रहने लगी, रानी भोजन बनाती तो सब्जी जल जाती, आटे में कीड़े पड़ जाते। जल से बदबू आने लगती। पुजारी भी रानी के दुर्भाग्य से बहुत चिंतित होते हुए बोले- ‘हे पुत्री! अवश्य ही तुझसे कोई अनुचित काम हुआ है जिसके कारण देवता तुझसे नाराज हैं और उनकी नाराजगी के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई है। पुजारी की बात सुनकर रानी ने अपने पति के आदेश पर मंदिर में न जाकर, शिव की पूजा नहीं करने की सारी कथा सुनाई।

पुजारी ने कहा- ‘अब तुम कोई चिंता नहीं करो.कल सोमवार है और कल से तुम सोलह सोमवार के व्रत करना शुरू कर दो। भगवान शिव अवश्य तुम्हारे दोषों को क्षमा कर देंगे।’ पुजारी की बात मानकर रानी ने सोलह सोमवार के व्रत प्रारंभ कर दिए। रानी सोमवार का व्रत करके शिव की विधिवत पूजा-अर्चना की तथा व्रतकथा सुनने लगी। जब रानी ने सत्रहवें सोमवार को विधिवत व्रत का समापन किया तो उधर उसके पति राजा के मन में रानी की याद आई। राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को रानी को ढूँढकर लाने के लिए भेजा। रानी को ढूँढते हुए सैनिक मंदिर में पहुँचे और रानी से लौटकर चलने के लिए कहा। पुजारी ने सैनिकों से मना कर दिया और सैनिक निराश होकर लौट गए। उन्होंने लौटकर राजा को सारी बात बताईं।

राजा स्वयं उस मंदिर में पुजारी के पास पहुँचे और रानी को महल से निकाल देने के कारण पुजारी जी से क्षमा माँगी। पुजारी ने राजा से कहा- ‘यह सब भगवान शिव के प्रकोप के कारण हुआ है। इतना कहकर रानी को विदा किया।

राजा के साथ रानी महल में पहुँची। महल में बहुत खुशियाँ मनाई गईं। पूरे नगर को सजाया गया। राजा ने ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और धन का दान दिया. नगर में निर्धनों को वस्त्र बाँटे गए।

रानी सोलह सोमवार का व्रत करते हुए महल में आनंदपूर्वक रहने लगी। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसके जीवन में सुख ही सुख भर गए।

व्रत विधि और पूजा का महत्व

सोलह सोमवार व्रत और पूजा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। यह व्रत भगवान शिव के प्रति समर्पण और भक्ति का प्रतीक है। इस व्रत की विधि में विशेष अनुष्ठान और पूजा विधियाँ शामिल हैं, जो भक्तों को ईश्वरीय कृपा प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

व्रत की विधि का विस्तृत वर्णन:

सोलह सोमवार व्रत का आरंभ प्रथम सोमवार से होता है। व्रती सुबह स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र पहनते हैं और भगवान शिव की पूजा के लिए तैयार होते हैं। पूजा के समय, व्रती भगवान शिव को बिल्व पत्र, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करते हैं। पूरे दिन में व्रती केवल एक समय फलाहार ग्रहण करते हैं। शाम को फिर से पूजा की जाती है और सोलह सोमवार की कथा सुनी जाती है।

पूजा के समय की विशेषताएँ और आवश्यक सामग्री:

सोलह सोमवार व्रत की पूजा में शिवलिंग पर जल अर्पित करना, बिल्व पत्र, फूल, धूप, दीप और प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाना शामिल है। इस पूजा में विशेष रूप से बिल्व पत्र का बहुत महत्व होता है, क्योंकि यह भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। पूजा के दौरान ‘ओम नमः शिवाय’ मंत्र का जाप किया जाता है।

व्रत और पूजा का भक्तों के जीवन पर प्रभाव:

सोलह सोमवार व्रत और पूजा न केवल भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक माध्यम प्रदान करती है, बल्कि इससे उनके जीवन में आत्मिक शांति, संतोष और समृद्धि का भी आगमन होता है। यह व्रत और पूजा भक्तों में आत्म-अनुशासन, धैर्य और समर्पण की भावना को विकसित करती है। इस प्रकार, यह विधि न केवल धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि एक आत्म-सुधार की प्रक्रिया भी है जो भक्तों को उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद करती है।

निष्कर्ष और समापन

सोलह सोमवार व्रत कथा के माध्यम से प्राप्त होने वाले मुख्य संदेश और शिक्षाएँ आस्था, धैर्य, और निष्ठां की महत्वता को रेखांकित करती हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि किस प्रकार अडिग विश्वास और भक्ति के बल पर कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना किया जा सकता है और दिव्य शक्तियों से आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।

व्रत कथा का महत्व और प्रभाव इसकी व्यापक रूप से स्वीकृति और अनुपालन में देखा जा सकता है। यह कथा न केवल व्यक्तिगत जीवन में आध्यात्मिक संतुष्टि और शांति प्रदान करती है, बल्कि समाज में भी एकता, सहानुभूति, और सहयोग की भावना को बढ़ावा देती है। यह व्यक्तियों को उनके जीवन में उच्च आदर्शों और मूल्यों का पालन करने की प्रेरणा देती है।

व्रत कथा का व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल भक्तिमय परंपराओं को जीवित रखती है, बल्कि यह समाज के विभिन्न तबकों को एक साथ लाकर उनमें सामाजिक सद्भाव और सांस्कृतिक एकता को भी प्रोत्साहित करती है। इस प्रकार, सोलह सोमवार व्रत कथा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक सामाजिक संदेश भी है जो व्यक्तियों को उनके दैनिक जीवन में उच्च आदर्शों की ओर अग्रसर करता है।

सोलह सोमवार के व्रत करने और कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और जीवन में किसी तरह की कमी नहीं होती है। स्त्री-पुरुष आनंदपूर्वक जीवन-यापन करते हुए मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

Somvar Vrat katha for free

Hanuman Pranam

हनुमान प्रणाम: Hanuman Pranam

“मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शिरसा नमामि॥” “शान्तं…

Read More
Ashtalakshmi Stotram

Ashtalakshmi Stotram

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने…

Read More

3 thoughts on “16 Somvar vrat katha for free”

Leave a comment